ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
इहाँ अर्धनिसि रावनु जागा। निज सारथि सन खीझन लागा ॥ सठ रनभूमि छड़ाइसि मोही। धिग धिग अधम मंदमति तोही ॥
तेहिं पद गहि बहु बिधि समुझावा। भौरु भएँ रथ चढ़ि पुनि धावा ॥ सुनि आगवनु दसानन केरा। कपि दल खरभर भयउ घनेरा ॥
जहँ तहँ भूधर बिटप उपारी। धाए कटकटाइ भट भारी ॥
Chanda / छन्द
छं. धाए जो मर्कट बिकट भालु कराल कर भूधर धरा। अति कोप करहिं प्रहार मारत भजि चले रजनीचरा ॥ बिचलाइ दल बलवंत कीसन्ह घेरि पुनि रावनु लियो। चहुँ दिसि चपेटन्हि मारि नखन्हि बिदारि तनु ब्याकुल कियो ॥
Doha/ दोहा
दो. देखि महा मर्कट प्रबल रावन कीन्ह बिचार। अंतरहित होइ निमिष महुँ कृत माया बिस्तार ॥ १०० ॥
Chanda / छन्द
छं. जब कीन्ह तेहिं पाषंड। भए प्रगट जंतु प्रचंड ॥ बेताल भूत पिसाच। कर धरें धनु नाराच ॥ १ ॥
जोगिनि गहें करबाल। एक हाथ मनुज कपाल ॥ करि सद्य सोनित पान। नाचहिं करहिं बहु गान ॥ २ ॥
धरु मारु बोलहिं घोर। रहि पूरि धुनि चहुँ ओर ॥ मुख बाइ धावहिं खान। तब लगे कीस परान ॥ ३ ॥
जहँ जाहिं मर्कट भागि। तहँ बरत देखहिं आगि ॥ भए बिकल बानर भालु। पुनि लाग बरषै बालु ॥ ४ ॥
जहँ तहँ थकित करि कीस। गर्जेउ बहुरि दससीस ॥ लछिमन कपीस समेत। भए सकल बीर अचेत ॥ ५ ॥
हा राम हा रघुनाथ। कहि सुभट मीजहिं हाथ ॥ एहि बिधि सकल बल तोरि। तेहिं कीन्ह कपट बहोरि ॥ ६ ॥
प्रगटेसि बिपुल हनुमान। धाए गहे पाषान ॥ तिन्ह रामु घेरे जाइ। चहुँ दिसि बरूथ बनाइ ॥ ७ ॥
मारहु धरहु जनि जाइ। कटकटहिं पूँछ उठाइ ॥ दहँ दिसि लँगूर बिराज। तेहिं मध्य कोसलराज ॥ ८ ॥
Chanda / छन्द
छं. तेहिं मध्य कोसलराज सुंदर स्याम तन सोभा लही। जनु इंद्रधनुष अनेक की बर बारि तुंग तमालही ॥ प्रभु देखि हरष बिषाद उर सुर बदत जय जय जय करी। रघुबीर एकहि तीर कोऽपि निमेष महुँ माया हरी ॥ १ ॥
माया बिगत कपि भालु हरषे बिटप गिरि गहि सब फिरे। सर निकर छाड़े राम रावन बाहु सिर पुनि महि गिरे ॥ श्रीराम रावन समर चरित अनेक कल्प जो गावहीं। सत सेष सारद निगम कबि तेउ तदपि पार न पावहीं ॥ २ ॥
Doha/ दोहा
दो. ताके गुन गन कछु कहे जड़मति तुलसीदास। जिमि निज बल अनुरूप ते माछी उड़इ अकास ॥ १०१(क) ॥
काटे सिर भुज बार बहु मरत न भट लंकेस। प्रभु क्रीड़त सुर सिद्ध मुनि ब्याकुल देखि कलेस ॥ १०१(ख) ॥
Chaupai / चोपाई
काटत बढ़हिं सीस समुदाई। जिमि प्रति लाभ लोभ अधिकाई ॥ मरइ न रिपु श्रम भयउ बिसेषा। राम बिभीषन तन तब देखा ॥
उमा काल मर जाकीं ईछा। सो प्रभु जन कर प्रीति परीछा ॥ सुनु सरबग्य चराचर नायक। प्रनतपाल सुर मुनि सुखदायक ॥
नाभिकुंड पियूष बस याकें। नाथ जिअत रावनु बल ताकें ॥ सुनत बिभीषन बचन कृपाला। हरषि गहे कर बान कराला ॥
असुभ होन लागे तब नाना। रोवहिं खर सृकाल बहु स्वाना ॥ बोलहि खग जग आरति हेतू। प्रगट भए नभ जहँ तहँ केतू ॥
दस दिसि दाह होन अति लागा। भयउ परब बिनु रबि उपरागा ॥ मंदोदरि उर कंपति भारी। प्रतिमा स्त्रवहिं नयन मग बारी ॥
Chanda / छन्द
छं. प्रतिमा रुदहिं पबिपात नभ अति बात बह डोलति मही। बरषहिं बलाहक रुधिर कच रज असुभ अति सक को कही ॥ उतपात अमित बिलोकि नभ सुर बिकल बोलहि जय जए। सुर सभय जानि कृपाल रघुपति चाप सर जोरत भए ॥
Doha/ दोहा
दो. खैचि सरासन श्रवन लगि छाड़े सर एकतीस। रघुनायक सायक चले मानहुँ काल फनीस ॥ १०२ ॥
Chaupai / चोपाई
सायक एक नाभि सर सोषा। अपर लगे भुज सिर करि रोषा ॥ लै सिर बाहु चले नाराचा। सिर भुज हीन रुंड महि नाचा ॥
धरनि धसइ धर धाव प्रचंडा। तब सर हति प्रभु कृत दुइ खंडा ॥ गर्जेउ मरत घोर रव भारी। कहाँ रामु रन हतौं पचारी ॥
डोली भूमि गिरत दसकंधर। छुभित सिंधु सरि दिग्गज भूधर ॥ धरनि परेउ द्वौ खंड बढ़ाई। चापि भालु मर्कट समुदाई ॥
मंदोदरि आगें भुज सीसा। धरि सर चले जहाँ जगदीसा ॥ प्रबिसे सब निषंग महु जाई। देखि सुरन्ह दुंदुभीं बजाई ॥
तासु तेज समान प्रभु आनन। हरषे देखि संभु चतुरानन ॥ जय जय धुनि पूरी ब्रह्मंडा। जय रघुबीर प्रबल भुजदंडा ॥
बरषहि सुमन देव मुनि बृंदा। जय कृपाल जय जयति मुकुंदा ॥
Chanda / छन्द
छं. जय कृपा कंद मुकंद द्वंद हरन सरन सुखप्रद प्रभो। खल दल बिदारन परम कारन कारुनीक सदा बिभो ॥
सुर सुमन बरषहिं हरष संकुल बाज दुंदुभि गहगही। संग्राम अंगन राम अंग अनंग बहु सोभा लही ॥
सिर जटा मुकुट प्रसून बिच बिच अति मनोहर राजहीं। जनु नीलगिरि पर तड़ित पटल समेत उड़ुगन भ्राजहीं ॥
भुजदंड सर कोदंड फेरत रुधिर कन तन अति बने। जनु रायमुनीं तमाल पर बैठीं बिपुल सुख आपने ॥
Doha/ दोहा
दो. कृपादृष्टि करि प्रभु अभय किए सुर बृंद। भालु कीस सब हरषे जय सुख धाम मुकंद ॥ १०३ ॥
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