ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
पति सिर देखत मंदोदरी। मुरुछित बिकल धरनि खसि परी ॥ जुबति बृंद रोवत उठि धाईं। तेहि उठाइ रावन पहिं आई ॥
पति गति देखि ते करहिं पुकारा। छूटे कच नहिं बपुष सँभारा ॥ उर ताड़ना करहिं बिधि नाना। रोवत करहिं प्रताप बखाना ॥
तव बल नाथ डोल नित धरनी। तेज हीन पावक ससि तरनी ॥ सेष कमठ सहि सकहिं न भारा। सो तनु भूमि परेउ भरि छारा ॥
बरुन कुबेर सुरेस समीरा। रन सन्मुख धरि काहुँ न धीरा ॥ भुजबल जितेहु काल जम साईं। आजु परेहु अनाथ की नाईं ॥
जगत बिदित तुम्हारी प्रभुताई। सुत परिजन बल बरनि न जाई ॥ राम बिमुख अस हाल तुम्हारा। रहा न कोउ कुल रोवनिहारा ॥
तव बस बिधि प्रपंच सब नाथा। सभय दिसिप नित नावहिं माथा ॥ अब तव सिर भुज जंबुक खाहीं। राम बिमुख यह अनुचित नाहीं ॥
काल बिबस पति कहा न माना। अग जग नाथु मनुज करि जाना ॥
Chanda / छन्द
छं. जान्यो मनुज करि दनुज कानन दहन पावक हरि स्वयं। जेहि नमत सिव ब्रह्मादि सुर पिय भजेहु नहिं करुनामयं ॥ आजन्म ते परद्रोह रत पापौघमय तव तनु अयं। तुम्हहू दियो निज धाम राम नमामि ब्रह्म निरामयं ॥
Doha/ दोहा
दो. अहह नाथ रघुनाथ सम कृपासिंधु नहिं आन। जोगि बृंद दुर्लभ गति तोहि दीन्हि भगवान ॥ १०४ ॥
Chaupai / चोपाई
मंदोदरी बचन सुनि काना। सुर मुनि सिद्ध सबन्हि सुख माना ॥ अज महेस नारद सनकादी। जे मुनिबर परमारथबादी ॥
भरि लोचन रघुपतिहि निहारी। प्रेम मगन सब भए सुखारी ॥ रुदन करत देखीं सब नारी। गयउ बिभीषनु मन दुख भारी ॥
बंधु दसा बिलोकि दुख कीन्हा। तब प्रभु अनुजहि आयसु दीन्हा ॥ लछिमन तेहि बहु बिधि समुझायो। बहुरि बिभीषन प्रभु पहिं आयो ॥
कृपादृष्टि प्रभु ताहि बिलोका। करहु क्रिया परिहरि सब सोका ॥ कीन्हि क्रिया प्रभु आयसु मानी। बिधिवत देस काल जियँ जानी ॥
Doha/ दोहा
दो. मंदोदरी आदि सब देइ तिलांजलि ताहि। भवन गई रघुपति गुन गन बरनत मन माहि ॥ १०५ ॥
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