Ram Charita Manas

Lanka-Kanda

Mandodari's laments after Ravana dies, funeral ceremony of Ravana with full honours.

ॐ श्री परमात्मने नमः


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ॐ श्री गणेशाय नमः

Chaupai / चोपाई

पति सिर देखत मंदोदरी। मुरुछित बिकल धरनि खसि परी ॥ जुबति बृंद रोवत उठि धाईं। तेहि उठाइ रावन पहिं आई ॥

Chapter : 30 Number : 134

पति गति देखि ते करहिं पुकारा। छूटे कच नहिं बपुष सँभारा ॥ उर ताड़ना करहिं बिधि नाना। रोवत करहिं प्रताप बखाना ॥

Chapter : 30 Number : 134

तव बल नाथ डोल नित धरनी। तेज हीन पावक ससि तरनी ॥ सेष कमठ सहि सकहिं न भारा। सो तनु भूमि परेउ भरि छारा ॥

Chapter : 30 Number : 134

बरुन कुबेर सुरेस समीरा। रन सन्मुख धरि काहुँ न धीरा ॥ भुजबल जितेहु काल जम साईं। आजु परेहु अनाथ की नाईं ॥

Chapter : 30 Number : 134

जगत बिदित तुम्हारी प्रभुताई। सुत परिजन बल बरनि न जाई ॥ राम बिमुख अस हाल तुम्हारा। रहा न कोउ कुल रोवनिहारा ॥

Chapter : 30 Number : 134

तव बस बिधि प्रपंच सब नाथा। सभय दिसिप नित नावहिं माथा ॥ अब तव सिर भुज जंबुक खाहीं। राम बिमुख यह अनुचित नाहीं ॥

Chapter : 30 Number : 134

काल बिबस पति कहा न माना। अग जग नाथु मनुज करि जाना ॥

Chapter : 30 Number : 134

Chanda / छन्द

छं. जान्यो मनुज करि दनुज कानन दहन पावक हरि स्वयं। जेहि नमत सिव ब्रह्मादि सुर पिय भजेहु नहिं करुनामयं ॥ आजन्म ते परद्रोह रत पापौघमय तव तनु अयं। तुम्हहू दियो निज धाम राम नमामि ब्रह्म निरामयं ॥

Chapter : 30 Number : 135

Doha/ दोहा

दो. अहह नाथ रघुनाथ सम कृपासिंधु नहिं आन। जोगि बृंद दुर्लभ गति तोहि दीन्हि भगवान ॥ १०४ ॥

Chapter : 30 Number : 136

Chaupai / चोपाई

मंदोदरी बचन सुनि काना। सुर मुनि सिद्ध सबन्हि सुख माना ॥ अज महेस नारद सनकादी। जे मुनिबर परमारथबादी ॥

Chapter : 30 Number : 136

भरि लोचन रघुपतिहि निहारी। प्रेम मगन सब भए सुखारी ॥ रुदन करत देखीं सब नारी। गयउ बिभीषनु मन दुख भारी ॥

Chapter : 30 Number : 136

बंधु दसा बिलोकि दुख कीन्हा। तब प्रभु अनुजहि आयसु दीन्हा ॥ लछिमन तेहि बहु बिधि समुझायो। बहुरि बिभीषन प्रभु पहिं आयो ॥

Chapter : 30 Number : 136

कृपादृष्टि प्रभु ताहि बिलोका। करहु क्रिया परिहरि सब सोका ॥ कीन्हि क्रिया प्रभु आयसु मानी। बिधिवत देस काल जियँ जानी ॥

Chapter : 30 Number : 136

Doha/ दोहा

दो. मंदोदरी आदि सब देइ तिलांजलि ताहि। भवन गई रघुपति गुन गन बरनत मन माहि ॥ १०५ ॥

Chapter : 30 Number : 137

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