ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
आइ बिभीषन पुनि सिरु नायो। कृपासिंधु तब अनुज बोलायो ॥ तुम्ह कपीस अंगद नल नीला। जामवंत मारुति नयसीला ॥
सब मिलि जाहु बिभीषन साथा। सारेहु तिलक कहेउ रघुनाथा ॥ पिता बचन मैं नगर न आवउँ। आपु सरिस कपि अनुज पठावउँ ॥
तुरत चले कपि सुनि प्रभु बचना। कीन्ही जाइ तिलक की रचना ॥ सादर सिंहासन बैठारी। तिलक सारि अस्तुति अनुसारी ॥
जोरि पानि सबहीं सिर नाए। सहित बिभीषन प्रभु पहिं आए ॥ तब रघुबीर बोलि कपि लीन्हे। कहि प्रिय बचन सुखी सब कीन्हे ॥
Chanda / छन्द
छं. किए सुखी कहि बानी सुधा सम बल तुम्हारें रिपु हयो। पायो बिभीषन राज तिहुँ पुर जसु तुम्हारो नित नयो ॥ मोहि सहित सुभ कीरति तुम्हारी परम प्रीति जो गाइहैं। संसार सिंधु अपार पार प्रयास बिनु नर पाइहैं ॥
Doha/ दोहा
दो. प्रभु के बचन श्रवन सुनि नहिं अघाहिं कपि पुंज। बार बार सिर नावहिं गहहिं सकल पद कंज ॥ १०६ ॥
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