ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha/ दोहा
दो. बरषहिं सुमन हरषि सुन बाजहिं गगन निसान। गावहिं किंनर सुरबधू नाचहिं चढ़ीं बिमान ॥ १०९(क) ॥
जनकसुता समेत प्रभु सोभा अमित अपार। देखि भालु कपि हरषे जय रघुपति सुख सार ॥ १०९(ख) ॥
Chaupai / चोपाई
तब रघुपति अनुसासन पाई। मातलि चलेउ चरन सिरु नाई ॥ आए देव सदा स्वारथी। बचन कहहिं जनु परमारथी ॥
दीन बंधु दयाल रघुराया। देव कीन्हि देवन्ह पर दाया ॥ बिस्व द्रोह रत यह खल कामी। निज अघ गयउ कुमारगगामी ॥
तुम्ह समरूप ब्रह्म अबिनासी। सदा एकरस सहज उदासी ॥ अकल अगुन अज अनघ अनामय। अजित अमोघसक्ति करुनामय ॥
मीन कमठ सूकर नरहरी। बामन परसुराम बपु धरी ॥ जब जब नाथ सुरन्ह दुखु पायो। नाना तनु धरि तुम्हइँ नसायो ॥
यह खल मलिन सदा सुरद्रोही। काम लोभ मद रत अति कोही ॥ अधम सिरोमनि तव पद पावा। यह हमरे मन बिसमय आवा ॥
हम देवता परम अधिकारी। स्वारथ रत प्रभु भगति बिसारी ॥ भव प्रबाहँ संतत हम परे। अब प्रभु पाहि सरन अनुसरे ॥
Doha/ दोहा
दो. करि बिनती सुर सिद्ध सब रहे जहँ तहँ कर जोरि। अति सप्रेम तन पुलकि बिधि अस्तुति करत बहोरि ॥ ११० ॥
Chanda / छन्द
छं. जय राम सदा सुखधाम हरे। रघुनायक सायक चाप धरे ॥ भव बारन दारन सिंह प्रभो। गुन सागर नागर नाथ बिभो ॥
तन काम अनेक अनूप छबी। गुन गावत सिद्ध मुनींद्र कबी ॥ जसु पावन रावन नाग महा। खगनाथ जथा करि कोप गहा ॥
जन रंजन भंजन सोक भयं। गतक्रोध सदा प्रभु बोधमयं ॥ अवतार उदार अपार गुनं। महि भार बिभंजन ग्यानघनं ॥
अज ब्यापकमेकमनादि सदा। करुनाकर राम नमामि मुदा ॥ रघुबंस बिभूषन दूषन हा। कृत भूप बिभीषन दीन रहा ॥
गुन ग्यान निधान अमान अजं। नित राम नमामि बिभुं बिरजं ॥ भुजदंड प्रचंड प्रताप बलं। खल बृंद निकंद महा कुसलं ॥
बिनु कारन दीन दयाल हितं। छबि धाम नमामि रमा सहितं ॥ भव तारन कारन काज परं। मन संभव दारुन दोष हरं ॥
सर चाप मनोहर त्रोन धरं। जरजारुन लोचन भूपबरं ॥ सुख मंदिर सुंदर श्रीरमनं। मद मार मुधा ममता समनं ॥
अनवद्य अखंड न गोचर गो। सबरूप सदा सब होइ न गो ॥ इति बेद बदंति न दंतकथा। रबि आतप भिन्नमभिन्न जथा ॥
कृतकृत्य बिभो सब बानर ए। निरखंति तवानन सादर ए ॥ धिग जीवन देव सरीर हरे। तव भक्ति बिना भव भूलि परे ॥
अब दीन दयाल दया करिऐ। मति मोरि बिभेदकरी हरिऐ ॥ जेहि ते बिपरीत क्रिया करिऐ। दुख सो सुख मानि सुखी चरिऐ ॥
खल खंडन मंडन रम्य छमा। पद पंकज सेवित संभु उमा ॥ नृप नायक दे बरदानमिदं। चरनांबुज प्रेम सदा सुभदं ॥
Doha/ दोहा
दो. बिनय कीन्हि चतुरानन प्रेम पुलक अति गात। सोभासिंधु बिलोकत लोचन नहीं अघात ॥ १११ ॥
Chaupai / चोपाई
तेहि अवसर दसरथ तहँ आए। तनय बिलोकि नयन जल छाए ॥ अनुज सहित प्रभु बंदन कीन्हा। आसिरबाद पिताँ तब दीन्हा ॥
तात सकल तव पुन्य प्रभाऊ। जीत्यों अजय निसाचर राऊ ॥ सुनि सुत बचन प्रीति अति बाढ़ी। नयन सलिल रोमावलि ठाढ़ी ॥
रघुपति प्रथम प्रेम अनुमाना। चितइ पितहि दीन्हेउ दृढ़ ग्याना ॥ ताते उमा मोच्छ नहिं पायो। दसरथ भेद भगति मन लायो ॥
सगुनोपासक मोच्छ न लेहीं। तिन्ह कहुँ राम भगति निज देहीं ॥ बार बार करि प्रभुहि प्रनामा। दसरथ हरषि गए सुरधामा ॥
Doha/ दोहा
दो. अनुज जानकी सहित प्रभु कुसल कोसलाधीस। सोभा देखि हरषि मन अस्तुति कर सुर ईस ॥ ११२ ॥
Chanda / छन्द
छं. जय राम सोभा धाम। दायक प्रनत बिश्राम ॥ धृत त्रोन बर सर चाप। भुजदंड प्रबल प्रताप ॥ १ ॥
जय दूषनारि खरारि। मर्दन निसाचर धारि ॥ यह दुष्ट मारेउ नाथ। भए देव सकल सनाथ ॥ २ ॥
जय हरन धरनी भार। महिमा उदार अपार ॥ जय रावनारि कृपाल। किए जातुधान बिहाल ॥ ३ ॥
लंकेस अति बल गर्ब। किए बस्य सुर गंधर्ब ॥ मुनि सिद्ध नर खग नाग। हठि पंथ सब कें लाग ॥ ४ ॥
परद्रोह रत अति दुष्ट। पायो सो फलु पापिष्ट ॥ अब सुनहु दीन दयाल। राजीव नयन बिसाल ॥ ५ ॥
मोहि रहा अति अभिमान। नहिं कोउ मोहि समान ॥ अब देखि प्रभु पद कंज। गत मान प्रद दुख पुंज ॥ ६ ॥
कोउ ब्रह्म निर्गुन ध्याव। अब्यक्त जेहि श्रुति गाव ॥ मोहि भाव कोसल भूप। श्रीराम सगुन सरूप ॥ ७ ॥
बैदेहि अनुज समेत। मम हृदयँ करहु निकेत ॥ मोहि जानिए निज दास। दे भक्ति रमानिवास ॥ ८ ॥
दे भक्ति रमानिवास त्रास हरन सरन सुखदायकं। सुख धाम राम नमामि काम अनेक छबि रघुनायकं ॥ सुर बृंद रंजन द्वंद भंजन मनुज तनु अतुलितबलं। ब्रह्मादि संकर सेब्य राम नमामि करुना कोमलं ॥
Doha/ दोहा
दो. अब करि कृपा बिलोकि मोहि आयसु देहु कृपाल। काह करौं सुनि प्रिय बचन बोले दीनदयाल ॥ ११३ ॥
Chaupai / चोपाई
सुनु सुरपति कपि भालु हमारे। परे भूमि निसचरन्हि जे मारे ॥ मम हित लागि तजे इन्ह प्राना। सकल जिआउ सुरेस सुजाना ॥
सुनु खगेस प्रभु कै यह बानी। अति अगाध जानहिं मुनि ग्यानी ॥ प्रभु सक त्रिभुअन मारि जिआई। केवल सक्रहि दीन्हि बड़ाई ॥
सुधा बरषि कपि भालु जिआए। हरषि उठे सब प्रभु पहिं आए ॥ सुधाबृष्टि भै दुहु दल ऊपर। जिए भालु कपि नहिं रजनीचर ॥
रामाकार भए तिन्ह के मन। मुक्त भए छूटे भव बंधन ॥ सुर अंसिक सब कपि अरु रीछा। जिए सकल रघुपति कीं ईछा ॥
राम सरिस को दीन हितकारी। कीन्हे मुकुत निसाचर झारी ॥ खल मल धाम काम रत रावन। गति पाई जो मुनिबर पाव न ॥
Doha/ दोहा
दो. सुमन बरषि सब सुर चले चढ़ि चढ़ि रुचिर बिमान। देखि सुअवसरु प्रभु पहिं आयउ संभु सुजान ॥ ११४(क) ॥
परम प्रीति कर जोरि जुग नलिन नयन भरि बारि। पुलकित तन गदगद गिराँ बिनय करत त्रिपुरारि ॥ ११४(ख) ॥
Chanda / छन्द
छं. मामभिरक्षय रघुकुल नायक। धृत बर चाप रुचिर कर सायक ॥ मोह महा घन पटल प्रभंजन। संसय बिपिन अनल सुर रंजन ॥ १ ॥
अगुन सगुन गुन मंदिर सुंदर। भ्रम तम प्रबल प्रताप दिवाकर ॥ काम क्रोध मद गज पंचानन। बसहु निरंतर जन मन कानन ॥ २ ॥
बिषय मनोरथ पुंज कंज बन। प्रबल तुषार उदार पार मन ॥ भव बारिधि मंदर परमं दर। बारय तारय संसृति दुस्तर ॥ ३ ॥
स्याम गात राजीव बिलोचन। दीन बंधु प्रनतारति मोचन ॥ अनुज जानकी सहित निरंतर। बसहु राम नृप मम उर अंतर ॥ ४ ॥
मुनि रंजन महि मंडल मंडन। तुलसिदास प्रभु त्रास बिखंडन ॥ ५ ॥
Doha/ दोहा
दो. नाथ जबहिं कोसलपुरीं होइहि तिलक तुम्हार। कृपासिंधु मैं आउब देखन चरित उदार ॥ ११५ ॥
Sign In