ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
करि बिनती जब संभु सिधाए। तब प्रभु निकट बिभीषनु आए ॥ नाइ चरन सिरु कह मृदु बानी। बिनय सुनहु प्रभु सारँगपानी ॥
सकुल सदल प्रभु रावन मार् यो। पावन जस त्रिभुवन बिस्तार् यो ॥ दीन मलीन हीन मति जाती। मो पर कृपा कीन्हि बहु भाँती ॥
अब जन गृह पुनीत प्रभु कीजे। मज्जनु करिअ समर श्रम छीजे ॥ देखि कोस मंदिर संपदा। देहु कृपाल कपिन्ह कहुँ मुदा ॥
सब बिधि नाथ मोहि अपनाइअ। पुनि मोहि सहित अवधपुर जाइअ ॥ सुनत बचन मृदु दीनदयाला। सजल भए द्वौ नयन बिसाला ॥
Doha/ दोहा
दो. तोर कोस गृह मोर सब सत्य बचन सुनु भ्रात। भरत दसा सुमिरत मोहि निमिष कल्प सम जात ॥ ११६(क) ॥
तापस बेष गात कृस जपत निरंतर मोहि। देखौं बेगि सो जतनु करु सखा निहोरउँ तोहि ॥ ११६(ख) ॥
बीतें अवधि जाउँ जौं जिअत न पावउँ बीर। सुमिरत अनुज प्रीति प्रभु पुनि पुनि पुलक सरीर ॥ ११६(ग) ॥
करेहु कल्प भरि राजु तुम्ह मोहि सुमिरेहु मन माहिं। पुनि मम धाम पाइहहु जहाँ संत सब जाहिं ॥ ११६(घ) ॥
Chaupai / चोपाई
सुनत बिभीषन बचन राम के। हरषि गहे पद कृपाधाम के ॥ बानर भालु सकल हरषाने। गहि प्रभु पद गुन बिमल बखाने ॥
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