Ram Charita Manas

Lanka-Kanda

Departure of Shri Sita and Ram for Ayodhya on the Pushpak Viman. Lastly, glory of Shri Ramcharitra Manas.

ॐ श्री परमात्मने नमः


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ॐ श्री गणेशाय नमः

Doha/ दोहा

दो. प्रभु प्रेरित कपि भालु सब राम रूप उर राखि। हरष बिषाद सहित चले बिनय बिबिध बिधि भाषि ॥ ११८(क) ॥

Chapter : 36 Number : 156

कपिपति नील रीछपति अंगद नल हनुमान। सहित बिभीषन अपर जे जूथप कपि बलवान ॥ ११८(ख) ॥

Chapter : 36 Number : 156

दो. कहि न सकहिं कछु प्रेम बस भरि भरि लोचन बारि। सन्मुख चितवहिं राम तन नयन निमेष निवारि ॥ ११८(ग) ॥

Chapter : 36 Number : 156

Chaupai / चोपाई

अतिसय प्रीति देख रघुराई। लिन्हे सकल बिमान चढ़ाई ॥ मन महुँ बिप्र चरन सिरु नायो। उत्तर दिसिहि बिमान चलायो ॥

Chapter : 36 Number : 156

चलत बिमान कोलाहल होई। जय रघुबीर कहइ सबु कोई ॥ सिंहासन अति उच्च मनोहर। श्री समेत प्रभु बैठै ता पर ॥

Chapter : 36 Number : 156

राजत रामु सहित भामिनी। मेरु सृंग जनु घन दामिनी ॥ रुचिर बिमानु चलेउ अति आतुर। कीन्ही सुमन बृष्टि हरषे सुर ॥

Chapter : 36 Number : 156

परम सुखद चलि त्रिबिध बयारी। सागर सर सरि निर्मल बारी ॥ सगुन होहिं सुंदर चहुँ पासा। मन प्रसन्न निर्मल नभ आसा ॥

Chapter : 36 Number : 156

कह रघुबीर देखु रन सीता। लछिमन इहाँ हत्यो इँद्रजीता ॥ हनूमान अंगद के मारे। रन महि परे निसाचर भारे ॥

Chapter : 36 Number : 156

कुंभकरन रावन द्वौ भाई। इहाँ हते सुर मुनि दुखदाई ॥

Chapter : 36 Number : 156

Doha/ दोहा

दो. इहाँ सेतु बाँध्यो अरु थापेउँ सिव सुख धाम। सीता सहित कृपानिधि संभुहि कीन्ह प्रनाम ॥ ११९(क) ॥

Chapter : 36 Number : 157

जहँ जहँ कृपासिंधु बन कीन्ह बास बिश्राम। सकल देखाए जानकिहि कहे सबन्हि के नाम ॥ ११९(ख) ॥

Chapter : 36 Number : 157

Chaupai / चोपाई

तुरत बिमान तहाँ चलि आवा। दंडक बन जहँ परम सुहावा ॥ कुंभजादि मुनिनायक नाना। गए रामु सब कें अस्थाना ॥

Chapter : 36 Number : 157

सकल रिषिन्ह सन पाइ असीसा। चित्रकूट आए जगदीसा ॥ तहँ करि मुनिन्ह केर संतोषा। चला बिमानु तहाँ ते चोखा ॥

Chapter : 36 Number : 157

बहुरि राम जानकिहि देखाई। जमुना कलि मल हरनि सुहाई ॥ पुनि देखी सुरसरी पुनीता। राम कहा प्रनाम करु सीता ॥

Chapter : 36 Number : 157

तीरथपति पुनि देखु प्रयागा। निरखत जन्म कोटि अघ भागा ॥ देखु परम पावनि पुनि बेनी। हरनि सोक हरि लोक निसेनी ॥

Chapter : 36 Number : 157

पुनि देखु अवधपुरी अति पावनि। त्रिबिध ताप भव रोग नसावनि ॥ ।

Chapter : 36 Number : 157

Doha/ दोहा

दो. सीता सहित अवध कहुँ कीन्ह कृपाल प्रनाम। सजल नयन तन पुलकित पुनि पुनि हरषित राम ॥ १२०(क) ॥

Chapter : 36 Number : 158

पुनि प्रभु आइ त्रिबेनीं हरषित मज्जनु कीन्ह। कपिन्ह सहित बिप्रन्ह कहुँ दान बिबिध बिधि दीन्ह ॥ १२०(ख) ॥

Chapter : 36 Number : 158

Chaupai / चोपाई

प्रभु हनुमंतहि कहा बुझाई। धरि बटु रूप अवधपुर जाई ॥ भरतहि कुसल हमारि सुनाएहु। समाचार लै तुम्ह चलि आएहु ॥

Chapter : 36 Number : 158

तुरत पवनसुत गवनत भयउ। तब प्रभु भरद्वाज पहिं गयऊ ॥ नाना बिधि मुनि पूजा कीन्ही। अस्तुती करि पुनि आसिष दीन्ही ॥

Chapter : 36 Number : 158

मुनि पद बंदि जुगल कर जोरी। चढ़ि बिमान प्रभु चले बहोरी ॥ इहाँ निषाद सुना प्रभु आए। नाव नाव कहँ लोग बोलाए ॥

Chapter : 36 Number : 158

सुरसरि नाघि जान तब आयो। उतरेउ तट प्रभु आयसु पायो ॥ तब सीताँ पूजी सुरसरी। बहु प्रकार पुनि चरनन्हि परी ॥

Chapter : 36 Number : 158

दीन्हि असीस हरषि मन गंगा। सुंदरि तव अहिवात अभंगा ॥ सुनत गुहा धायउ प्रेमाकुल। आयउ निकट परम सुख संकुल ॥

Chapter : 36 Number : 158

प्रभुहि सहित बिलोकि बैदेही। परेउ अवनि तन सुधि नहिं तेही ॥ प्रीति परम बिलोकि रघुराई। हरषि उठाइ लियो उर लाई ॥

Chapter : 36 Number : 158

Chanda / छन्द

छं. लियो हृदयँ लाइ कृपा निधान सुजान रायँ रमापती। बैठारि परम समीप बूझी कुसल सो कर बीनती। अब कुसल पद पंकज बिलोकि बिरंचि संकर सेब्य जे। सुख धाम पूरनकाम राम नमामि राम नमामि ते ॥ १ ॥

Chapter : 36 Number : 159

सब भाँति अधम निषाद सो हरि भरत ज्यों उर लाइयो। मतिमंद तुलसीदास सो प्रभु मोह बस बिसराइयो ॥ यह रावनारि चरित्र पावन राम पद रतिप्रद सदा। कामादिहर बिग्यानकर सुर सिद्ध मुनि गावहिं मुदा ॥ २ ॥

Chapter : 36 Number : 159

Doha/ दोहा

दो. समर बिजय रघुबीर के चरित जे सुनहिं सुजान। बिजय बिबेक बिभूति नित तिन्हहि देहिं भगवान ॥ १२१(क) ॥

Chapter : 36 Number : 160

यह कलिकाल मलायतन मन करि देखु बिचार। श्रीरघुनाथ नाम तजि नाहिन आन अधार ॥ १२१(ख) ॥

Chapter : 36 Number : 160

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