ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha/ दोहा
दो. बांध्यो बननिधि नीरनिधि जलधि सिंधु बारीस। सत्य तोयनिधि कंपति उदधि पयोधि नदीस ॥ ५ ॥
Chaupai / चोपाई
निज बिकलता बिचारि बहोरी। बिहँसि गयउ ग्रह करि भय भोरी ॥ मंदोदरीं सुन्यो प्रभु आयो। कौतुकहीं पाथोधि बँधायो ॥
कर गहि पतिहि भवन निज आनी। बोली परम मनोहर बानी ॥ चरन नाइ सिरु अंचलु रोपा। सुनहु बचन पिय परिहरि कोपा ॥
नाथ बयरु कीजे ताही सों। बुधि बल सकिअ जीति जाही सों ॥ तुम्हहि रघुपतिहि अंतर कैसा। खलु खद्योत दिनकरहि जैसा ॥
अतिबल मधु कैटभ जेहिं मारे। महाबीर दितिसुत संघारे ॥ जेहिं बलि बाँधि सहजभुज मारा। सोइ अवतरेउ हरन महि भारा ॥
तासु बिरोध न कीजिअ नाथा। काल करम जिव जाकें हाथा ॥
Doha/ दोहा
दो. रामहि सौपि जानकी नाइ कमल पद माथ। सुत कहुँ राज समर्पि बन जाइ भजिअ रघुनाथ ॥ ६ ॥
Chaupai / चोपाई
नाथ दीनदयाल रघुराई। बाघउ सनमुख गएँ न खाई ॥ चाहिअ करन सो सब करि बीते। तुम्ह सुर असुर चराचर जीते ॥
संत कहहिं असि नीति दसानन। चौथेंपन जाइहि नृप कानन ॥ तासु भजन कीजिअ तहँ भर्ता। जो कर्ता पालक संहर्ता ॥
सोइ रघुवीर प्रनत अनुरागी। भजहु नाथ ममता सब त्यागी ॥ मुनिबर जतनु करहिं जेहि लागी। भूप राजु तजि होहिं बिरागी ॥
सोइ कोसलधीस रघुराया। आयउ करन तोहि पर दाया ॥ जौं पिय मानहु मोर सिखावन। सुजसु होइ तिहुँ पुर अति पावन ॥
Doha/ दोहा
दो. अस कहि नयन नीर भरि गहि पद कंपित गात। नाथ भजहु रघुनाथहि अचल होइ अहिवात ॥ ७ ॥
Chaupai / चोपाई
तब रावन मयसुता उठाई। कहै लाग खल निज प्रभुताई ॥ सुनु तै प्रिया बृथा भय माना। जग जोधा को मोहि समाना ॥
बरुन कुबेर पवन जम काला। भुज बल जितेउँ सकल दिगपाला ॥ देव दनुज नर सब बस मोरें। कवन हेतु उपजा भय तोरें ॥
नाना बिधि तेहि कहेसि बुझाई। सभाँ बहोरि बैठ सो जाई ॥ मंदोदरीं हृदयँ अस जाना। काल बस्य उपजा अभिमाना ॥
सभाँ आइ मंत्रिन्ह तेंहि बूझा। करब कवन बिधि रिपु सैं जूझा ॥ कहहिं सचिव सुनु निसिचर नाहा। बार बार प्रभु पूछहु काहा ॥
कहहु कवन भय करिअ बिचारा। नर कपि भालु अहार हमारा ॥
Doha/ दोहा
दो. सब के बचन श्रवन सुनि कह प्रहस्त कर जोरि। निति बिरोध न करिअ प्रभु मत्रिंन्ह मति अति थोरि ॥ ८ ॥
Chaupai / चोपाई
कहहिं सचिव सठ ठकुरसोहाती। नाथ न पूर आव एहि भाँती ॥ बारिधि नाघि एक कपि आवा। तासु चरित मन महुँ सबु गावा ॥
छुधा न रही तुम्हहि तब काहू। जारत नगरु कस न धरि खाहू ॥ सुनत नीक आगें दुख पावा। सचिवन अस मत प्रभुहि सुनावा ॥
जेहिं बारीस बँधायउ हेला। उतरेउ सेन समेत सुबेला ॥ सो भनु मनुज खाब हम भाई। बचन कहहिं सब गाल फुलाई ॥
तात बचन मम सुनु अति आदर। जनि मन गुनहु मोहि करि कादर ॥ प्रिय बानी जे सुनहिं जे कहहीं। ऐसे नर निकाय जग अहहीं ॥
बचन परम हित सुनत कठोरे। सुनहिं जे कहहिं ते नर प्रभु थोरे ॥ प्रथम बसीठ पठउ सुनु नीती। सीता देइ करहु पुनि प्रीती ॥
Doha/ दोहा
दो. नारि पाइ फिरि जाहिं जौं तौ न बढ़ाइअ रारि। नाहिं त सन्मुख समर महि तात करिअ हठि मारि ॥ ९ ॥
Chaupai / चोपाई
यह मत जौं मानहु प्रभु मोरा। उभय प्रकार सुजसु जग तोरा ॥ सुत सन कह दसकंठ रिसाई। असि मति सठ केहिं तोहि सिखाई ॥
अबहीं ते उर संसय होई। बेनुमूल सुत भयहु घमोई ॥ सुनि पितु गिरा परुष अति घोरा। चला भवन कहि बचन कठोरा ॥
हित मत तोहि न लागत कैसें। काल बिबस कहुँ भेषज जैसें ॥ संध्या समय जानि दससीसा। भवन चलेउ निरखत भुज बीसा ॥
लंका सिखर उपर आगारा। अति बिचित्र तहँ होइ अखारा ॥ बैठ जाइ तेही मंदिर रावन। लागे किंनर गुन गन गावन ॥
बाजहिं ताल पखाउज बीना। नृत्य करहिं अपछरा प्रबीना ॥
Doha/ दोहा
दो. सुनासीर सत सरिस सो संतत करइ बिलास। परम प्रबल रिपु सीस पर तद्यपि सोच न त्रास ॥ १० ॥
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