ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
सयन करहु निज निज गृह जाई। गवने भवन सकल सिर नाई ॥ मंदोदरी सोच उर बसेऊ। जब ते श्रवनपूर महि खसेऊ ॥
सजल नयन कह जुग कर जोरी। सुनहु प्रानपति बिनती मोरी ॥ कंत राम बिरोध परिहरहू। जानि मनुज जनि हठ मन धरहू ॥
Doha/ दोहा
दो. बिस्वरुप रघुबंस मनि करहु बचन बिस्वासु। लोक कल्पना बेद कर अंग अंग प्रति जासु ॥ १४ ॥
Chaupai / चोपाई
पद पाताल सीस अज धामा। अपर लोक अँग अँग बिश्रामा ॥ भृकुटि बिलास भयंकर काला। नयन दिवाकर कच घन माला ॥
जासु घ्रान अस्विनीकुमारा। निसि अरु दिवस निमेष अपारा ॥ श्रवन दिसा दस बेद बखानी। मारुत स्वास निगम निज बानी ॥
अधर लोभ जम दसन कराला। माया हास बाहु दिगपाला ॥ आनन अनल अंबुपति जीहा। उतपति पालन प्रलय समीहा ॥
रोम राजि अष्टादस भारा। अस्थि सैल सरिता नस जारा ॥ उदर उदधि अधगो जातना। जगमय प्रभु का बहु कलपना ॥
Doha/ दोहा
दो. अहंकार सिव बुद्धि अज मन ससि चित्त महान। मनुज बास सचराचर रुप राम भगवान ॥ १५ क ॥
अस बिचारि सुनु प्रानपति प्रभु सन बयरु बिहाइ। प्रीति करहु रघुबीर पद मम अहिवात न जाइ ॥ १५ ख ॥
Chaupai / चोपाई
बिहँसा नारि बचन सुनि काना। अहो मोह महिमा बलवाना ॥ नारि सुभाउ सत्य सब कहहीं। अवगुन आठ सदा उर रहहीं ॥
साहस अनृत चपलता माया। भय अबिबेक असौच अदाया ॥ रिपु कर रुप सकल तैं गावा। अति बिसाल भय मोहि सुनावा ॥
सो सब प्रिया सहज बस मोरें। समुझि परा प्रसाद अब तोरें ॥ जानिउँ प्रिया तोरि चतुराई। एहि बिधि कहहु मोरि प्रभुताई ॥
तव बतकही गूढ़ मृगलोचनि। समुझत सुखद सुनत भय मोचनि ॥ मंदोदरि मन महुँ अस ठयऊ। पियहि काल बस मतिभ्रम भयऊ ॥
Doha/ दोहा
दो. एहि बिधि करत बिनोद बहु प्रात प्रगट दसकंध। सहज असंक लंकपति सभाँ गयउ मद अंध ॥ १६(क) ॥
Sortha/ सोरठा
सो. फूलह फरइ न बेत जदपि सुधा बरषहिं जलद। मूरुख हृदयँ न चेत जौं गुर मिलहिं बिरंचि सम ॥ १६(ख) ॥
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