Ram Charita Manas

Lanka-Kanda

Shri rama sending Angad to Lanka and having a dialogue with Ravana in his assembly hall.

ॐ श्री परमात्मने नमः


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संस्कृत्म
A English

ॐ श्री गणेशाय नमः

Chaupai / चोपाई

इहाँ प्रात जागे रघुराई। पूछा मत सब सचिव बोलाई ॥ कहहु बेगि का करिअ उपाई। जामवंत कह पद सिरु नाई ॥

Chapter : 8 Number : 18

सुनु सर्बग्य सकल उर बासी। बुधि बल तेज धर्म गुन रासी ॥ मंत्र कहउँ निज मति अनुसारा। दूत पठाइअ बालिकुमारा ॥

Chapter : 8 Number : 18

नीक मंत्र सब के मन माना। अंगद सन कह कृपानिधाना ॥ बालितनय बुधि बल गुन धामा। लंका जाहु तात मम कामा ॥

Chapter : 8 Number : 18

बहुत बुझाइ तुम्हहि का कहऊँ। परम चतुर मैं जानत अहऊँ ॥ काजु हमार तासु हित होई। रिपु सन करेहु बतकही सोई ॥

Chapter : 8 Number : 18

Sortha/ सोरठा

सो. प्रभु अग्या धरि सीस चरन बंदि अंगद उठेउ। सोइ गुन सागर ईस राम कृपा जा पर करहु ॥ १७(क) ॥

Chapter : 8 Number : 19

स्वयं सिद्ध सब काज नाथ मोहि आदरु दियउ। अस बिचारि जुबराज तन पुलकित हरषित हियउ ॥ १७(ख) ॥

Chapter : 8 Number : 19

Chaupai / चोपाई

बंदि चरन उर धरि प्रभुताई। अंगद चलेउ सबहि सिरु नाई ॥ प्रभु प्रताप उर सहज असंका। रन बाँकुरा बालिसुत बंका ॥

Chapter : 8 Number : 19

पुर पैठत रावन कर बेटा। खेलत रहा सो होइ गै भैंटा ॥ बातहिं बात करष बढ़ि आई। जुगल अतुल बल पुनि तरुनाई ॥

Chapter : 8 Number : 19

तेहि अंगद कहुँ लात उठाई। गहि पद पटकेउ भूमि भवाँई ॥ निसिचर निकर देखि भट भारी। जहँ तहँ चले न सकहिं पुकारी ॥

Chapter : 8 Number : 19

एक एक सन मरमु न कहहीं। समुझि तासु बध चुप करि रहहीं ॥ भयउ कोलाहल नगर मझारी। आवा कपि लंका जेहीं जारी ॥

Chapter : 8 Number : 19

अब धौं कहा करिहि करतारा। अति सभीत सब करहिं बिचारा ॥ बिनु पूछें मगु देहिं दिखाई। जेहि बिलोक सोइ जाइ सुखाई ॥

Chapter : 8 Number : 19

Doha/ दोहा

दो. गयउ सभा दरबार तब सुमिरि राम पद कंज। सिंह ठवनि इत उत चितव धीर बीर बल पुंज ॥ १८ ॥

Chapter : 8 Number : 20

Chaupai / चोपाई

तुरत निसाचर एक पठावा। समाचार रावनहि जनावा ॥ सुनत बिहँसि बोला दससीसा। आनहु बोलि कहाँ कर कीसा ॥

Chapter : 8 Number : 20

आयसु पाइ दूत बहु धाए। कपिकुंजरहि बोलि लै आए ॥ अंगद दीख दसानन बैंसें। सहित प्रान कज्जलगिरि जैसें ॥

Chapter : 8 Number : 20

भुजा बिटप सिर सृंग समाना। रोमावली लता जनु नाना ॥ मुख नासिका नयन अरु काना। गिरि कंदरा खोह अनुमाना ॥

Chapter : 8 Number : 20

गयउ सभाँ मन नेकु न मुरा। बालितनय अतिबल बाँकुरा ॥ उठे सभासद कपि कहुँ देखी। रावन उर भा क्रौध बिसेषी ॥

Chapter : 8 Number : 20

Doha/ दोहा

दो. जथा मत्त गज जूथ महुँ पंचानन चलि जाइ। राम प्रताप सुमिरि मन बैठ सभाँ सिरु नाइ ॥ १९ ॥

Chapter : 8 Number : 21

Chaupai / चोपाई

कह दसकंठ कवन तैं बंदर। मैं रघुबीर दूत दसकंधर ॥ मम जनकहि तोहि रही मिताई। तव हित कारन आयउँ भाई ॥

Chapter : 8 Number : 21

उत्तम कुल पुलस्ति कर नाती। सिव बिरंचि पूजेहु बहु भाँती ॥ बर पायहु कीन्हेहु सब काजा। जीतेहु लोकपाल सब राजा ॥

Chapter : 8 Number : 21

नृप अभिमान मोह बस किंबा। हरि आनिहु सीता जगदंबा ॥ अब सुभ कहा सुनहु तुम्ह मोरा। सब अपराध छमिहि प्रभु तोरा ॥

Chapter : 8 Number : 21

दसन गहहु तृन कंठ कुठारी। परिजन सहित संग निज नारी ॥ सादर जनकसुता करि आगें। एहि बिधि चलहु सकल भय त्यागें ॥

Chapter : 8 Number : 21

Doha/ दोहा

दो. प्रनतपाल रघुबंसमनि त्राहि त्राहि अब मोहि। आरत गिरा सुनत प्रभु अभय करैगो तोहि ॥ २० ॥

Chapter : 8 Number : 22

Chaupai / चोपाई

रे कपिपोत बोलु संभारी। मूढ़ न जानेहि मोहि सुरारी ॥ कहु निज नाम जनक कर भाई। केहि नातें मानिऐ मिताई ॥

Chapter : 8 Number : 22

अंगद नाम बालि कर बेटा। तासों कबहुँ भई ही भेटा ॥ अंगद बचन सुनत सकुचाना। रहा बालि बानर मैं जाना ॥

Chapter : 8 Number : 22

अंगद तहीं बालि कर बालक। उपजेहु बंस अनल कुल घालक ॥ गर्भ न गयहु ब्यर्थ तुम्ह जायहु। निज मुख तापस दूत कहायहु ॥

Chapter : 8 Number : 22

अब कहु कुसल बालि कहँ अहई। बिहँसि बचन तब अंगद कहई ॥ दिन दस गएँ बालि पहिं जाई। बूझेहु कुसल सखा उर लाई ॥

Chapter : 8 Number : 22

राम बिरोध कुसल जसि होई। सो सब तोहि सुनाइहि सोई ॥ सुनु सठ भेद होइ मन ताकें। श्रीरघुबीर हृदय नहिं जाकें ॥

Chapter : 8 Number : 22

Doha/ दोहा

दो. हम कुल घालक सत्य तुम्ह कुल पालक दससीस। अंधउ बधिर न अस कहहिं नयन कान तव बीस ॥ २१।

Chapter : 8 Number : 23

Chaupai / चोपाई

सिव बिरंचि सुर मुनि समुदाई। चाहत जासु चरन सेवकाई ॥ तासु दूत होइ हम कुल बोरा। अइसिहुँ मति उर बिहर न तोरा ॥

Chapter : 8 Number : 23

सुनि कठोर बानी कपि केरी। कहत दसानन नयन तरेरी ॥ खल तव कठिन बचन सब सहऊँ। नीति धर्म मैं जानत अहऊँ ॥

Chapter : 8 Number : 23

कह कपि धर्मसीलता तोरी। हमहुँ सुनी कृत पर त्रिय चोरी ॥ देखी नयन दूत रखवारी। बूड़ि न मरहु धर्म ब्रतधारी ॥

Chapter : 8 Number : 23

कान नाक बिनु भगिनि निहारी। छमा कीन्हि तुम्ह धर्म बिचारी ॥ धर्मसीलता तव जग जागी। पावा दरसु हमहुँ बड़भागी ॥

Chapter : 8 Number : 23

Doha/ दोहा

दो. जनि जल्पसि जड़ जंतु कपि सठ बिलोकु मम बाहु। लोकपाल बल बिपुल ससि ग्रसन हेतु सब राहु ॥ २२(क) ॥

Chapter : 8 Number : 24

पुनि नभ सर मम कर निकर कमलन्हि पर करि बास। सोभत भयउ मराल इव संभु सहित कैलास ॥ २२(ख) ॥

Chapter : 8 Number : 24

Chaupai / चोपाई

तुम्हरे कटक माझ सुनु अंगद। मो सन भिरिहि कवन जोधा बद ॥ तव प्रभु नारि बिरहँ बलहीना। अनुज तासु दुख दुखी मलीना ॥

Chapter : 8 Number : 24

तुम्ह सुग्रीव कूलद्रुम दोऊ। अनुज हमार भीरु अति सोऊ ॥ जामवंत मंत्री अति बूढ़ा। सो कि होइ अब समरारूढ़ा ॥

Chapter : 8 Number : 24

सिल्पि कर्म जानहिं नल नीला। है कपि एक महा बलसीला ॥ आवा प्रथम नगरु जेंहिं जारा। सुनत बचन कह बालिकुमारा ॥

Chapter : 8 Number : 24

सत्य बचन कहु निसिचर नाहा। साँचेहुँ कीस कीन्ह पुर दाहा ॥ रावन नगर अल्प कपि दहई। सुनि अस बचन सत्य को कहई ॥

Chapter : 8 Number : 24

जो अति सुभट सराहेहु रावन। सो सुग्रीव केर लघु धावन ॥ चलइ बहुत सो बीर न होई। पठवा खबरि लेन हम सोई ॥

Chapter : 8 Number : 24

Doha/ दोहा

दो. सत्य नगरु कपि जारेउ बिनु प्रभु आयसु पाइ। फिरि न गयउ सुग्रीव पहिं तेहिं भय रहा लुकाइ ॥ २३(क) ॥

Chapter : 8 Number : 25

सत्य कहहि दसकंठ सब मोहि न सुनि कछु कोह। कोउ न हमारें कटक अस तो सन लरत जो सोह ॥ २३(ख) ॥

Chapter : 8 Number : 25

प्रीति बिरोध समान सन करिअ नीति असि आहि। जौं मृगपति बध मेड़ुकन्हि भल कि कहइ कोउ ताहि ॥ २३(ग) ॥

Chapter : 8 Number : 25

जद्यपि लघुता राम कहुँ तोहि बधें बड़ दोष। तदपि कठिन दसकंठ सुनु छत्र जाति कर रोष ॥ २३(घ) ॥

Chapter : 8 Number : 25

बक्र उक्ति धनु बचन सर हृदय दहेउ रिपु कीस। प्रतिउत्तर सड़सिन्ह मनहुँ काढ़त भट दससीस ॥ २३(ङ) ॥

Chapter : 8 Number : 25

हँसि बोलेउ दसमौलि तब कपि कर बड़ गुन एक। जो प्रतिपालइ तासु हित करइ उपाय अनेक ॥ २३(छ) ॥

Chapter : 8 Number : 25

Chaupai / चोपाई

धन्य कीस जो निज प्रभु काजा। जहँ तहँ नाचइ परिहरि लाजा ॥ नाचि कूदि करि लोग रिझाई। पति हित करइ धर्म निपुनाई ॥

Chapter : 8 Number : 25

अंगद स्वामिभक्त तव जाती। प्रभु गुन कस न कहसि एहि भाँती ॥ मैं गुन गाहक परम सुजाना। तव कटु रटनि करउँ नहिं काना ॥

Chapter : 8 Number : 25

कह कपि तव गुन गाहकताई। सत्य पवनसुत मोहि सुनाई ॥ बन बिधंसि सुत बधि पुर जारा। तदपि न तेहिं कछु कृत अपकारा ॥

Chapter : 8 Number : 25

सोइ बिचारि तव प्रकृति सुहाई। दसकंधर मैं कीन्हि ढिठाई ॥ देखेउँ आइ जो कछु कपि भाषा। तुम्हरें लाज न रोष न माखा ॥

Chapter : 8 Number : 25

जौं असि मति पितु खाए कीसा। कहि अस बचन हँसा दससीसा ॥ पितहि खाइ खातेउँ पुनि तोही। अबहीं समुझि परा कछु मोही ॥

Chapter : 8 Number : 25

बालि बिमल जस भाजन जानी। हतउँ न तोहि अधम अभिमानी ॥ कहु रावन रावन जग केते। मैं निज श्रवन सुने सुनु जेते ॥

Chapter : 8 Number : 25

बलिहि जितन एक गयउ पताला। राखेउ बाँधि सिसुन्ह हयसाला ॥ खेलहिं बालक मारहिं जाई। दया लागि बलि दीन्ह छोड़ाई ॥

Chapter : 8 Number : 25

एक बहोरि सहसभुज देखा। धाइ धरा जिमि जंतु बिसेषा ॥ कौतुक लागि भवन लै आवा। सो पुलस्ति मुनि जाइ छोड़ावा ॥

Chapter : 8 Number : 25

Doha/ दोहा

दो. एक कहत मोहि सकुच अति रहा बालि की काँख। इन्ह महुँ रावन तैं कवन सत्य बदहि तजि माख ॥ २४ ॥

Chapter : 8 Number : 26

Chaupai / चोपाई

सुनु सठ सोइ रावन बलसीला। हरगिरि जान जासु भुज लीला ॥ जान उमापति जासु सुराई। पूजेउँ जेहि सिर सुमन चढ़ाई ॥

Chapter : 8 Number : 26

सिर सरोज निज करन्हि उतारी। पूजेउँ अमित बार त्रिपुरारी ॥ भुज बिक्रम जानहिं दिगपाला। सठ अजहूँ जिन्ह कें उर साला ॥

Chapter : 8 Number : 26

जानहिं दिग्गज उर कठिनाई। जब जब भिरउँ जाइ बरिआई ॥ जिन्ह के दसन कराल न फूटे। उर लागत मूलक इव टूटे ॥

Chapter : 8 Number : 26

जासु चलत डोलति इमि धरनी। चढ़त मत्त गज जिमि लघु तरनी ॥ सोइ रावन जग बिदित प्रतापी। सुनेहि न श्रवन अलीक प्रलापी ॥

Chapter : 8 Number : 26

Doha/ दोहा

दो. तेहि रावन कहँ लघु कहसि नर कर करसि बखान। रे कपि बर्बर खर्ब खल अब जाना तव ग्यान ॥ २५ ॥

Chapter : 8 Number : 27

Chaupai / चोपाई

सुनि अंगद सकोप कह बानी। बोलु सँभारि अधम अभिमानी ॥ सहसबाहु भुज गहन अपारा। दहन अनल सम जासु कुठारा ॥

Chapter : 8 Number : 27

जासु परसु सागर खर धारा। बूड़े नृप अगनित बहु बारा ॥ तासु गर्ब जेहि देखत भागा। सो नर क्यों दससीस अभागा ॥

Chapter : 8 Number : 27

राम मनुज कस रे सठ बंगा। धन्वी कामु नदी पुनि गंगा ॥ पसु सुरधेनु कल्पतरु रूखा। अन्न दान अरु रस पीयूषा ॥

Chapter : 8 Number : 27

बैनतेय खग अहि सहसानन। चिंतामनि पुनि उपल दसानन ॥ सुनु मतिमंद लोक बैकुंठा। लाभ कि रघुपति भगति अकुंठा ॥

Chapter : 8 Number : 27

Doha/ दोहा

दो. सेन सहित तब मान मथि बन उजारि पुर जारि ॥ कस रे सठ हनुमान कपि गयउ जो तव सुत मारि ॥ २६ ॥

Chapter : 8 Number : 28

Chaupai / चोपाई

सुनु रावन परिहरि चतुराई। भजसि न कृपासिंधु रघुराई ॥ जौ खल भएसि राम कर द्रोही। ब्रह्म रुद्र सक राखि न तोही ॥

Chapter : 8 Number : 28

मूढ़ बृथा जनि मारसि गाला। राम बयर अस होइहि हाला ॥ तव सिर निकर कपिन्ह के आगें। परिहहिं धरनि राम सर लागें ॥

Chapter : 8 Number : 28

ते तव सिर कंदुक सम नाना। खेलहहिं भालु कीस चौगाना ॥ जबहिं समर कोपहि रघुनायक। छुटिहहिं अति कराल बहु सायक ॥

Chapter : 8 Number : 28

तब कि चलिहि अस गाल तुम्हारा। अस बिचारि भजु राम उदारा ॥ सुनत बचन रावन परजरा। जरत महानल जनु घृत परा ॥

Chapter : 8 Number : 28

Doha/ दोहा

दो. कुंभकरन अस बंधु मम सुत प्रसिद्ध सक्रारि। मोर पराक्रम नहिं सुनेहि जितेउँ चराचर झारि ॥ २७ ॥

Chapter : 8 Number : 29

Chaupai / चोपाई

सठ साखामृग जोरि सहाई। बाँधा सिंधु इहइ प्रभुताई ॥ नाघहिं खग अनेक बारीसा। सूर न होहिं ते सुनु सब कीसा ॥

Chapter : 8 Number : 29

मम भुज सागर बल जल पूरा। जहँ बूड़े बहु सुर नर सूरा ॥ बीस पयोधि अगाध अपारा। को अस बीर जो पाइहि पारा ॥

Chapter : 8 Number : 29

दिगपालन्ह मैं नीर भरावा। भूप सुजस खल मोहि सुनावा ॥ जौं पै समर सुभट तव नाथा। पुनि पुनि कहसि जासु गुन गाथा ॥

Chapter : 8 Number : 29

तौ बसीठ पठवत केहि काजा। रिपु सन प्रीति करत नहिं लाजा ॥ हरगिरि मथन निरखु मम बाहू। पुनि सठ कपि निज प्रभुहि सराहू ॥

Chapter : 8 Number : 29

Doha/ दोहा

दो. सूर कवन रावन सरिस स्वकर काटि जेहिं सीस। हुने अनल अति हरष बहु बार साखि गौरीस ॥ २८ ॥

Chapter : 8 Number : 30

Chaupai / चोपाई

जरत बिलोकेउँ जबहिं कपाला। बिधि के लिखे अंक निज भाला ॥ नर कें कर आपन बध बाँची। हसेउँ जानि बिधि गिरा असाँची ॥

Chapter : 8 Number : 30

सोउ मन समुझि त्रास नहिं मोरें। लिखा बिरंचि जरठ मति भोरें ॥ आन बीर बल सठ मम आगें। पुनि पुनि कहसि लाज पति त्यागे ॥

Chapter : 8 Number : 30

कह अंगद सलज्ज जग माहीं। रावन तोहि समान कोउ नाहीं ॥ लाजवंत तव सहज सुभाऊ। निज मुख निज गुन कहसि न काऊ ॥

Chapter : 8 Number : 30

सिर अरु सैल कथा चित रही। ताते बार बीस तैं कही ॥ सो भुजबल राखेउ उर घाली। जीतेहु सहसबाहु बलि बाली ॥

Chapter : 8 Number : 30

सुनु मतिमंद देहि अब पूरा। काटें सीस कि होइअ सूरा ॥ इंद्रजालि कहु कहिअ न बीरा। काटइ निज कर सकल सरीरा ॥

Chapter : 8 Number : 30

Doha/ दोहा

दो. जरहिं पतंग मोह बस भार बहहिं खर बृंद। ते नहिं सूर कहावहिं समुझि देखु मतिमंद ॥ २९ ॥

Chapter : 8 Number : 31

Chaupai / चोपाई

अब जनि बतबढ़ाव खल करही। सुनु मम बचन मान परिहरही ॥ दसमुख मैं न बसीठीं आयउँ। अस बिचारि रघुबीष पठायउँ ॥

Chapter : 8 Number : 31

बार बार अस कहइ कृपाला। नहिं गजारि जसु बधें सृकाला ॥ मन महुँ समुझि बचन प्रभु केरे। सहेउँ कठोर बचन सठ तेरे ॥

Chapter : 8 Number : 31

नाहिं त करि मुख भंजन तोरा। लै जातेउँ सीतहि बरजोरा ॥ जानेउँ तव बल अधम सुरारी। सूनें हरि आनिहि परनारी ॥

Chapter : 8 Number : 31

तैं निसिचर पति गर्ब बहूता। मैं रघुपति सेवक कर दूता ॥ जौं न राम अपमानहि डरउँ। तोहि देखत अस कौतुक करऊँ ॥

Chapter : 8 Number : 31

Doha/ दोहा

दो. तोहि पटकि महि सेन हति चौपट करि तव गाउँ। तव जुबतिन्ह समेत सठ जनकसुतहि लै जाउँ ॥ ३० ॥

Chapter : 8 Number : 32

Chaupai / चोपाई

जौ अस करौं तदपि न बड़ाई। मुएहि बधें नहिं कछु मनुसाई ॥ कौल कामबस कृपिन बिमूढ़ा। अति दरिद्र अजसी अति बूढ़ा ॥

Chapter : 8 Number : 32

सदा रोगबस संतत क्रोधी। बिष्नु बिमूख श्रुति संत बिरोधी ॥ तनु पोषक निंदक अघ खानी। जीवन सव सम चौदह प्रानी ॥

Chapter : 8 Number : 32

अस बिचारि खल बधउँ न तोही। अब जनि रिस उपजावसि मोही ॥ सुनि सकोप कह निसिचर नाथा। अधर दसन दसि मीजत हाथा ॥

Chapter : 8 Number : 32

रे कपि अधम मरन अब चहसी। छोटे बदन बात बड़ि कहसी ॥ कटु जल्पसि जड़ कपि बल जाकें। बल प्रताप बुधि तेज न ताकें ॥

Chapter : 8 Number : 32

Doha/ दोहा

दो. अगुन अमान जानि तेहि दीन्ह पिता बनबास। सो दुख अरु जुबती बिरह पुनि निसि दिन मम त्रास ॥ ३१(क) ॥

Chapter : 8 Number : 33

जिन्ह के बल कर गर्ब तोहि अइसे मनुज अनेक। खाहीं निसाचर दिवस निसि मूढ़ समुझु तजि टेक ॥ ३१(ख) ॥

Chapter : 8 Number : 33

Chaupai / चोपाई

जब तेहिं कीन्ह राम कै निंदा। क्रोधवंत अति भयउ कपिंदा ॥ हरि हर निंदा सुनइ जो काना। होइ पाप गोघात समाना ॥

Chapter : 8 Number : 33

कटकटान कपिकुंजर भारी। दुहु भुजदंड तमकि महि मारी ॥ डोलत धरनि सभासद खसे। चले भाजि भय मारुत ग्रसे ॥

Chapter : 8 Number : 33

गिरत सँभारि उठा दसकंधर। भूतल परे मुकुट अति सुंदर ॥ कछु तेहिं लै निज सिरन्हि सँवारे। कछु अंगद प्रभु पास पबारे ॥

Chapter : 8 Number : 33

आवत मुकुट देखि कपि भागे। दिनहीं लूक परन बिधि लागे ॥ की रावन करि कोप चलाए। कुलिस चारि आवत अति धाए ॥

Chapter : 8 Number : 33

कह प्रभु हँसि जनि हृदयँ डेराहू। लूक न असनि केतु नहिं राहू ॥ ए किरीट दसकंधर केरे। आवत बालितनय के प्रेरे ॥

Chapter : 8 Number : 33

Doha/ दोहा

दो. तरकि पवनसुत कर गहे आनि धरे प्रभु पास। कौतुक देखहिं भालु कपि दिनकर सरिस प्रकास ॥ ३२(क) ॥

Chapter : 8 Number : 34

Chaupai / चोपाई

उहाँ सकोऽपि दसानन सब सन कहत रिसाइ। धरहु कपिहि धरि मारहु सुनि अंगद मुसुकाइ ॥ ३२(ख) ॥

Chapter : 8 Number : 34

एहि बिधि बेगि सूभट सब धावहु। खाहु भालु कपि जहँ जहँ पावहु ॥ मर्कटहीन करहु महि जाई। जिअत धरहु तापस द्वौ भाई ॥

Chapter : 8 Number : 34

पुनि सकोप बोलेउ जुबराजा। गाल बजावत तोहि न लाजा ॥ मरु गर काटि निलज कुलघाती। बल बिलोकि बिहरति नहिं छाती ॥

Chapter : 8 Number : 34

रे त्रिय चोर कुमारग गामी। खल मल रासि मंदमति कामी ॥ सन्यपात जल्पसि दुर्बादा। भएसि कालबस खल मनुजादा ॥

Chapter : 8 Number : 34

याको फलु पावहिगो आगें। बानर भालु चपेटन्हि लागें ॥ रामु मनुज बोलत असि बानी। गिरहिं न तव रसना अभिमानी ॥

Chapter : 8 Number : 34

गिरिहहिं रसना संसय नाहीं। सिरन्हि समेत समर महि माहीं ॥

Chapter : 8 Number : 34

Sortha/ सोरठा

सो. सो नर क्यों दसकंध बालि बध्यो जेहिं एक सर। बीसहुँ लोचन अंध धिग तव जन्म कुजाति जड़ ॥ ३३(क) ॥

Chapter : 8 Number : 35

तब सोनित की प्यास तृषित राम सायक निकर। तजउँ तोहि तेहि त्रास कटु जल्पक निसिचर अधम ॥ ३३(ख) ॥

Chapter : 8 Number : 35

Chaupai / चोपाई

मै तव दसन तोरिबे लायक। आयसु मोहि न दीन्ह रघुनायक ॥ असि रिस होति दसउ मुख तोरौं। लंका गहि समुद्र महँ बोरौं ॥

Chapter : 8 Number : 35

गूलरि फल समान तव लंका। बसहु मध्य तुम्ह जंतु असंका ॥ मैं बानर फल खात न बारा। आयसु दीन्ह न राम उदारा ॥

Chapter : 8 Number : 35

जुगति सुनत रावन मुसुकाई। मूढ़ सिखिहि कहँ बहुत झुठाई ॥ बालि न कबहुँ गाल अस मारा। मिलि तपसिन्ह तैं भएसि लबारा ॥

Chapter : 8 Number : 35

साँचेहुँ मैं लबार भुज बीहा। जौं न उपारिउँ तव दस जीहा ॥ समुझि राम प्रताप कपि कोपा। सभा माझ पन करि पद रोपा ॥

Chapter : 8 Number : 35

जौं मम चरन सकसि सठ टारी। फिरहिं रामु सीता मैं हारी ॥ सुनहु सुभट सब कह दससीसा। पद गहि धरनि पछारहु कीसा ॥

Chapter : 8 Number : 35

इंद्रजीत आदिक बलवाना। हरषि उठे जहँ तहँ भट नाना ॥ झपटहिं करि बल बिपुल उपाई। पद न टरइ बैठहिं सिरु नाई ॥

Chapter : 8 Number : 35

पुनि उठि झपटहीं सुर आराती। टरइ न कीस चरन एहि भाँती ॥ पुरुष कुजोगी जिमि उरगारी। मोह बिटप नहिं सकहिं उपारी ॥

Chapter : 8 Number : 35

Doha/ दोहा

दो. कोटिन्ह मेघनाद सम सुभट उठे हरषाइ। झपटहिं टरै न कपि चरन पुनि बैठहिं सिर नाइ ॥ ३४(क) ॥

Chapter : 8 Number : 36

भूमि न छाँडत कपि चरन देखत रिपु मद भाग ॥ कोटि बिघ्न ते संत कर मन जिमि नीति न त्याग ॥ ३४(ख) ॥

Chapter : 8 Number : 36

Chaupai / चोपाई

कपि बल देखि सकल हियँ हारे। उठा आपु कपि कें परचारे ॥ गहत चरन कह बालिकुमारा। मम पद गहें न तोर उबारा ॥

Chapter : 8 Number : 36

गहसि न राम चरन सठ जाई। सुनत फिरा मन अति सकुचाई ॥ भयउ तेजहत श्री सब गई। मध्य दिवस जिमि ससि सोहई ॥

Chapter : 8 Number : 36

सिंघासन बैठेउ सिर नाई। मानहुँ संपति सकल गँवाई ॥ जगदातमा प्रानपति रामा। तासु बिमुख किमि लह बिश्रामा ॥

Chapter : 8 Number : 36

उमा राम की भृकुटि बिलासा। होइ बिस्व पुनि पावइ नासा ॥ तृन ते कुलिस कुलिस तृन करई। तासु दूत पन कहु किमि टरई ॥

Chapter : 8 Number : 36

पुनि कपि कही नीति बिधि नाना। मान न ताहि कालु निअराना ॥ रिपु मद मथि प्रभु सुजसु सुनायो। यह कहि चल्यो बालि नृप जायो ॥

Chapter : 8 Number : 36

हतौं न खेत खेलाइ खेलाई। तोहि अबहिं का करौं बड़ाई ॥ प्रथमहिं तासु तनय कपि मारा। सो सुनि रावन भयउ दुखारा ॥

Chapter : 8 Number : 36

जातुधान अंगद पन देखी। भय ब्याकुल सब भए बिसेषी ॥

Chapter : 8 Number : 36

Doha/ दोहा

दो. रिपु बल धरषि हरषि कपि बालितनय बल पुंज। पुलक सरीर नयन जल गहे राम पद कंज ॥ ३५(क) ॥

Chapter : 8 Number : 37

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