ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha/ दोहा
साँझ जानि दसकंधर भवन गयउ बिलखाइ। मंदोदरी रावनहि बहुरि कहा समुझाइ ॥ ३५ (ख) ॥
Chaupai / चोपाई
कंत समुझि मन तजहु कुमतिही। सोह न समर तुम्हहि रघुपतिही ॥ रामानुज लघु रेख खचाई। सोउ नहिं नाघेहु असि मनुसाई ॥
पिय तुम्ह ताहि जितब संग्रामा। जाके दूत केर यह कामा ॥ कौतुक सिंधु नाघी तव लंका। आयउ कपि केहरी असंका ॥
रखवारे हति बिपिन उजारा। देखत तोहि अच्छ तेहिं मारा ॥ जारि सकल पुर कीन्हेसि छारा। कहाँ रहा बल गर्ब तुम्हारा ॥
अब पति मृषा गाल जनि मारहु। मोर कहा कछु हृदयँ बिचारहु ॥ पति रघुपतिहि नृपति जनि मानहु। अग जग नाथ अतुल बल जानहु ॥
बान प्रताप जान मारीचा। तासु कहा नहिं मानेहि नीचा ॥ जनक सभाँ अगनित भूपाला। रहे तुम्हउ बल अतुल बिसाला ॥
भंजि धनुष जानकी बिआही। तब संग्राम जितेहु किन ताही ॥ सुरपति सुत जानइ बल थोरा। राखा जिअत आँखि गहि फोरा ॥
सूपनखा कै गति तुम्ह देखी। तदपि हृदयँ नहिं लाज बिषेषी ॥
Doha/ दोहा
दो. बधि बिराध खर दूषनहि लीँलाँ हत्यो कबंध। बालि एक सर मारयो तेहि जानहु दसकंध ॥ ३६ ॥
Chaupai / चोपाई
जेहिं जलनाथ बँधायउ हेला। उतरे प्रभु दल सहित सुबेला ॥ कारुनीक दिनकर कुल केतू। दूत पठायउ तव हित हेतू ॥
सभा माझ जेहिं तव बल मथा। करि बरूथ महुँ मृगपति जथा ॥ अंगद हनुमत अनुचर जाके। रन बाँकुरे बीर अति बाँके ॥
तेहि कहँ पिय पुनि पुनि नर कहहू। मुधा मान ममता मद बहहू ॥ अहह कंत कृत राम बिरोधा। काल बिबस मन उपज न बोधा ॥
काल दंड गहि काहु न मारा। हरइ धर्म बल बुद्धि बिचारा ॥ निकट काल जेहि आवत साईं। तेहि भ्रम होइ तुम्हारिहि नाईं ॥
Doha/ दोहा
दो. दुइ सुत मरे दहेउ पुर अजहुँ पूर पिय देहु। कृपासिंधु रघुनाथ भजि नाथ बिमल जसु लेहु ॥ ३७ ॥
Chaupai / चोपाई
नारि बचन सुनि बिसिख समाना। सभाँ गयउ उठि होत बिहाना ॥ बैठ जाइ सिंघासन फूली। अति अभिमान त्रास सब भूली ॥
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