Ram Charita Manas

Masaparayan 1

ॐ श्री परमात्मने नमः

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Ram Charitra Manas / अथ श्री राम चरित मानस

श्री रामचरित मानस प्रथम सोपान (बालकाण्ड) |

Shloka/ श्लोक्

वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि । मङ्गलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ ॥ १ ॥

भवानीशङ्करौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ । याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाःस्वान्तःस्थमीश्वरम् ॥ २ ॥

वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शङ्कररूपिणम् । यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते ॥ ३ ॥

सीतारामगुणग्रामपुण्यारण्यविहारिणौ । वन्दे विशुद्धविज्ञानौ कबीश्वरकपीश्वरौ ॥ ४ ॥

उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम् । सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम् ॥ ५ ॥

यन्मायावशवर्तिं विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुरायत्सत्वादमृषैव भाति सकलं रज्जौ यथाहेर्भ्रमः । यत्पादप्लवमेकमेव हि भवाम्भोधेस्तितीर्षावतांवन्देऽहं तमशेषकारणपरं रामाख्यमीशं हरिम् ॥ ६ ॥

नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद्रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि । स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा-भाषानिबन्धमतिमञ्जुलमातनोति ॥ ७ ॥

Sortha/ सोरठा

सो. जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन । करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन ॥ १ ॥

मूक होइ बाचाल पंगु चढइ गिरिबर गहन । जासु कृपाँ सो दयाल द्रवउ सकल कलि मल दहन ॥ २ ॥

नील सरोरुह स्याम तरुन अरुन बारिज नयन । करउ सो मम उर धाम सदा छीरसागर सयन ॥ ३ ॥

कुंद इंदु सम देह उमा रमन करुना अयन । जाहि दीन पर नेह करउ कृपा मर्दन मयन ॥ ४ ॥

बंदउ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि । महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर ॥ ५ ॥

Chaupai / चोपाई

बंदउ गुरु पद पदुम परागा । सुरुचि सुबास सरस अनुरागा ॥ अमिय मूरिमय चूरन चारू । समन सकल भव रुज परिवारू ॥

सुकृति संभु तन बिमल बिभूती । मंजुल मंगल मोद प्रसूती ॥ जन मन मंजु मुकुर मल हरनी । किएँ तिलक गुन गन बस करनी ॥

श्रीगुर पद नख मनि गन जोती । सुमिरत दिब्य द्रृष्टि हियँ होती ॥ दलन मोह तम सो सप्रकासू । बड़े भाग उर आवइ जासू ॥

उघरहिं बिमल बिलोचन ही के । मिटहिं दोष दुख भव रजनी के ॥ सूझहिं राम चरित मनि मानिक । गुपुत प्रगट जहँ जो जेहि खानिक ॥

Doha / दोहा

दो. जथा सुअंजन अंजि दृग साधक सिद्ध सुजान । कौतुक देखत सैल बन भूतल भूरि निधान ॥ १ ॥

Chaupai / चोपाई

गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन । नयन अमिअ दृग दोष बिभंजन ॥ तेहिं करि बिमल बिबेक बिलोचन । बरनउँ राम चरित भव मोचन ॥

बंदउँ प्रथम महीसुर चरना । मोह जनित संसय सब हरना ॥ सुजन समाज सकल गुन खानी । करउँ प्रनाम सप्रेम सुबानी ॥

साधु चरित सुभ चरित कपासू । निरस बिसद गुनमय फल जासू ॥ जो सहि दुख परछिद्र दुरावा । बंदनीय जेहिं जग जस पावा ॥

मुद मंगलमय संत समाजू । जो जग जंगम तीरथराजू ॥ राम भक्ति जहँ सुरसरि धारा । सरसइ ब्रह्म बिचार प्रचारा ॥

बिधि निषेधमय कलि मल हरनी । करम कथा रबिनंदनि बरनी ॥ हरि हर कथा बिराजति बेनी । सुनत सकल मुद मंगल देनी ॥

बटु बिस्वास अचल निज धरमा । तीरथराज समाज सुकरमा ॥ सबहिं सुलभ सब दिन सब देसा । सेवत सादर समन कलेसा ॥

अकथ अलौकिक तीरथराऊ । देइ सद्य फल प्रगट प्रभाऊ ॥

Doha / दोहा

दो. सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग । लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग ॥ २ ॥

Chaupai / चोपाई

मज्जन फल पेखिअ ततकाला । काक होहिं पिक बकउ मराला ॥ सुनि आचरज करै जनि कोई । सतसंगति महिमा नहिं गोई ॥

बालमीक नारद घटजोनी । निज निज मुखनि कही निज होनी ॥ जलचर थलचर नभचर नाना । जे जड़ चेतन जीव जहाना ॥

मति कीरति गति भूति भलाई । जब जेहिं जतन जहाँ जेहिं पाई ॥ सो जानब सतसंग प्रभाऊ । लोकहुँ बेद न आन उपाऊ ॥

बिनु सतसंग बिबेक न होई । राम कृपा बिनु सुलभ न सोई ॥ सतसंगत मुद मंगल मूला । सोइ फल सिधि सब साधन फूला ॥

सठ सुधरहिं सतसंगति पाई । पारस परस कुधात सुहाई ॥ बिधि बस सुजन कुसंगत परहीं । फनि मनि सम निज गुन अनुसरहीं ॥

बिधि हरि हर कबि कोबिद बानी । कहत साधु महिमा सकुचानी ॥ सो मो सन कहि जात न कैसें । साक बनिक मनि गुन गन जैसें ॥

Doha / दोहा

दो. बंदउँ संत समान चित हित अनहित नहिं कोइ । अंजलि गत सुभ सुमन जिमि सम सुगंध कर दोइ ॥ ३(क) ॥

संत सरल चित जगत हित जानि सुभाउ सनेहु । बालबिनय सुनि करि कृपा राम चरन रति देहु ॥ ३(ख) ॥

Chaupai / चोपाई

बहुरि बंदि खल गन सतिभाएँ । जे बिनु काज दाहिनेहु बाएँ ॥ पर हित हानि लाभ जिन्ह केरें । उजरें हरष बिषाद बसेरें ॥

हरि हर जस राकेस राहु से । पर अकाज भट सहसबाहु से ॥ जे पर दोष लखहिं सहसाखी । पर हित घृत जिन्ह के मन माखी ॥

तेज कृसानु रोष महिषेसा । अघ अवगुन धन धनी धनेसा ॥ उदय केत सम हित सबही के । कुंभकरन सम सोवत नीके ॥

पर अकाजु लगि तनु परिहरहीं । जिमि हिम उपल कृषी दलि गरहीं ॥ बंदउँ खल जस सेष सरोषा । सहस बदन बरनइ पर दोषा ॥

पुनि प्रनवउँ पृथुराज समाना । पर अघ सुनइ सहस दस काना ॥ बहुरि सक्र सम बिनवउँ तेही । संतत सुरानीक हित जेही ॥

बचन बज्र जेहि सदा पिआरा । सहस नयन पर दोष निहारा ॥

Doha / दोहा

दो. उदासीन अरि मीत हित सुनत जरहिं खल रीति । जानि पानि जुग जोरि जन बिनती करइ सप्रीति ॥ ४ ॥

Chaupai / चोपाई

मैं अपनी दिसि कीन्ह निहोरा । तिन्ह निज ओर न लाउब भोरा ॥ बायस पलिअहिं अति अनुरागा । होहिं निरामिष कबहुँ कि कागा ॥

बंदउँ संत असज्जन चरना । दुखप्रद उभय बीच कछु बरना ॥ बिछुरत एक प्रान हरि लेहीं । मिलत एक दुख दारुन देहीं ॥

उपजहिं एक संग जग माहीं । जलज जोंक जिमि गुन बिलगाहीं ॥ सुधा सुरा सम साधू असाधू । जनक एक जग जलधि अगाधू ॥

भल अनभल निज निज करतूती । लहत सुजस अपलोक बिभूती ॥ सुधा सुधाकर सुरसरि साधू । गरल अनल कलिमल सरि ब्याधू ॥

गुन अवगुन जानत सब कोई । जो जेहि भाव नीक तेहि सोई ॥

Doha / दोहा

दो. भलो भलाइहि पै लहइ लहइ निचाइहि नीचु । सुधा सराहिअ अमरताँ गरल सराहिअ मीचु ॥ ५ ॥

Chaupai / चोपाई

खल अघ अगुन साधू गुन गाहा । उभय अपार उदधि अवगाहा ॥ तेहि तें कछु गुन दोष बखाने । संग्रह त्याग न बिनु पहिचाने ॥

भलेउ पोच सब बिधि उपजाए । गनि गुन दोष बेद बिलगाए ॥ कहहिं बेद इतिहास पुराना । बिधि प्रपंचु गुन अवगुन साना ॥

दुख सुख पाप पुन्य दिन राती । साधु असाधु सुजाति कुजाती ॥ दानव देव ऊँच अरु नीचू । अमिअ सुजीवनु माहुरु मीचू ॥

माया ब्रह्म जीव जगदीसा । लच्छि अलच्छि रंक अवनीसा ॥ कासी मग सुरसरि क्रमनासा । मरु मारव महिदेव गवासा ॥

सरग नरक अनुराग बिरागा । निगमागम गुन दोष बिभागा ॥

Doha / दोहा

दो. जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार । संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार ॥ ६ ॥

Chaupai / चोपाई

अस बिबेक जब देइ बिधाता । तब तजि दोष गुनहिं मनु राता ॥ काल सुभाउ करम बरिआई । भलेउ प्रकृति बस चुकइ भलाई ॥

सो सुधारि हरिजन जिमि लेहीं । दलि दुख दोष बिमल जसु देहीं ॥ खलउ करहिं भल पाइ सुसंगू । मिटइ न मलिन सुभाउ अभंगू ॥

लखि सुबेष जग बंचक जेऊ । बेष प्रताप पूजिअहिं तेऊ ॥ उधरहिं अंत न होइ निबाहू । कालनेमि जिमि रावन राहू ॥

किएहुँ कुबेष साधु सनमानू । जिमि जग जामवंत हनुमानू ॥ हानि कुसंग सुसंगति लाहू । लोकहुँ बेद बिदित सब काहू ॥

गगन चढ़इ रज पवन प्रसंगा । कीचहिं मिलइ नीच जल संगा ॥ साधु असाधु सदन सुक सारीं । सुमिरहिं राम देहिं गनि गारी ॥

धूम कुसंगति कारिख होई । लिखिअ पुरान मंजु मसि सोई ॥ सोइ जल अनल अनिल संघाता । होइ जलद जग जीवन दाता ॥

Doha / दोहा

दो. ग्रह भेषज जल पवन पट पाइ कुजोग सुजोग । होहि कुबस्तु सुबस्तु जग लखहिं सुलच्छन लोग ॥ ७(क) ॥

सम प्रकास तम पाख दुहुँ नाम भेद बिधि कीन्ह । ससि सोषक पोषक समुझि जग जस अपजस दीन्ह ॥ ७(ख) ॥

जड़ चेतन जग जीव जत सकल राममय जानि । बंदउँ सब के पद कमल सदा जोरि जुग पानि ॥ ७(ग) ॥

देव दनुज नर नाग खग प्रेत पितर गंधर्ब । बंदउँ किंनर रजनिचर कृपा करहु अब सर्ब ॥ ७(घ) ॥

Chaupai / चोपाई

आकर चारि लाख चौरासी । जाति जीव जल थल नभ बासी ॥ सीय राममय सब जग जानी । करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी ॥

जानि कृपाकर किंकर मोहू । सब मिलि करहु छाड़ि छल छोहू ॥ निज बुधि बल भरोस मोहि नाहीं । तातें बिनय करउँ सब पाही ॥

करन चहउँ रघुपति गुन गाहा । लघु मति मोरि चरित अवगाहा ॥ सूझ न एकउ अंग उपाऊ । मन मति रंक मनोरथ राऊ ॥

मति अति नीच ऊँचि रुचि आछी । चहिअ अमिअ जग जुरइ न छाछी ॥ छमिहहिं सज्जन मोरि ढिठाई । सुनिहहिं बालबचन मन लाई ॥

जौ बालक कह तोतरि बाता । सुनहिं मुदित मन पितु अरु माता ॥ हँसिहहि कूर कुटिल कुबिचारी । जे पर दूषन भूषनधारी ॥

निज कवित केहि लाग न नीका । सरस होउ अथवा अति फीका ॥ जे पर भनिति सुनत हरषाही । ते बर पुरुष बहुत जग नाहीं ॥

जग बहु नर सर सरि सम भाई । जे निज बाढ़ि बढ़हिं जल पाई ॥ सज्जन सकृत सिंधु सम कोई । देखि पूर बिधु बाढ़इ जोई ॥

Doha / दोहा

दो. भाग छोट अभिलाषु बड़ करउँ एक बिस्वास । पैहहिं सुख सुनि सुजन सब खल करहहिं उपहास ॥ ८ ॥

Chaupai / चोपाई

खल परिहास होइ हित मोरा । काक कहहिं कलकंठ कठोरा ॥ हंसहि बक दादुर चातकही । हँसहिं मलिन खल बिमल बतकही ॥

कबित रसिक न राम पद नेहू । तिन्ह कहँ सुखद हास रस एहू ॥ भाषा भनिति भोरि मति मोरी । हँसिबे जोग हँसें नहिं खोरी ॥

प्रभु पद प्रीति न सामुझि नीकी । तिन्हहि कथा सुनि लागहि फीकी ॥ हरि हर पद रति मति न कुतरकी । तिन्ह कहुँ मधुर कथा रघुवर की ॥

राम भगति भूषित जियँ जानी । सुनिहहिं सुजन सराहि सुबानी ॥ कबि न होउँ नहिं बचन प्रबीनू । सकल कला सब बिद्या हीनू ॥

आखर अरथ अलंकृति नाना । छंद प्रबंध अनेक बिधाना ॥ भाव भेद रस भेद अपारा । कबित दोष गुन बिबिध प्रकारा ॥

कबित बिबेक एक नहिं मोरें । सत्य कहउँ लिखि कागद कोरे ॥

Doha / दोहा

दो. भनिति मोरि सब गुन रहित बिस्व बिदित गुन एक । सो बिचारि सुनिहहिं सुमति जिन्ह कें बिमल बिवेक ॥ ९ ॥

Chaupai / चोपाई

एहि महँ रघुपति नाम उदारा । अति पावन पुरान श्रुति सारा ॥ मंगल भवन अमंगल हारी । उमा सहित जेहि जपत पुरारी ॥

भनिति बिचित्र सुकबि कृत जोऊ । राम नाम बिनु सोह न सोऊ ॥ बिधुबदनी सब भाँति सँवारी । सोन न बसन बिना बर नारी ॥

सब गुन रहित कुकबि कृत बानी । राम नाम जस अंकित जानी ॥ सादर कहहिं सुनहिं बुध ताही । मधुकर सरिस संत गुनग्राही ॥

जदपि कबित रस एकउ नाही । राम प्रताप प्रकट एहि माहीं ॥ सोइ भरोस मोरें मन आवा । केहिं न सुसंग बडप्पनु पावा ॥

धूमउ तजइ सहज करुआई । अगरु प्रसंग सुगंध बसाई ॥ भनिति भदेस बस्तु भलि बरनी । राम कथा जग मंगल करनी ॥

Chanda / छन्द

छं. मंगल करनि कलि मल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की ॥ गति कूर कबिता सरित की ज्यों सरित पावन पाथ की ॥ प्रभु सुजस संगति भनिति भलि होइहि सुजन मन भावनी ॥ भव अंग भूति मसान की सुमिरत सुहावनि पावनी ॥

Doha / दोहा

दो. प्रिय लागिहि अति सबहि मम भनिति राम जस संग । दारु बिचारु कि करइ कोउ बंदिअ मलय प्रसंग ॥ १०(क) ॥

स्याम सुरभि पय बिसद अति गुनद करहिं सब पान । गिरा ग्राम्य सिय राम जस गावहिं सुनहिं सुजान ॥ १०(ख) ॥

Chaupai / चोपाई

मनि मानिक मुकुता छबि जैसी । अहि गिरि गज सिर सोह न तैसी ॥ नृप किरीट तरुनी तनु पाई । लहहिं सकल सोभा अधिकाई ॥

तैसेहिं सुकबि कबित बुध कहहीं । उपजहिं अनत अनत छबि लहहीं ॥ भगति हेतु बिधि भवन बिहाई । सुमिरत सारद आवति धाई ॥

राम चरित सर बिनु अन्हवाएँ । सो श्रम जाइ न कोटि उपाएँ ॥ कबि कोबिद अस हृदयँ बिचारी । गावहिं हरि जस कलि मल हारी ॥

कीन्हें प्राकृत जन गुन गाना । सिर धुनि गिरा लगत पछिताना ॥ हृदय सिंधु मति सीप समाना । स्वाति सारदा कहहिं सुजाना ॥

जौं बरषइ बर बारि बिचारू । होहिं कबित मुकुतामनि चारू ॥

Doha / दोहा

दो. जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग । पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग ॥ ११ ॥

Chaupai / चोपाई

जे जनमे कलिकाल कराला । करतब बायस बेष मराला ॥ चलत कुपंथ बेद मग छाँड़े । कपट कलेवर कलि मल भाँड़ें ॥

बंचक भगत कहाइ राम के । किंकर कंचन कोह काम के ॥ तिन्ह महँ प्रथम रेख जग मोरी । धींग धरमध्वज धंधक धोरी ॥

जौं अपने अवगुन सब कहऊँ । बाढ़इ कथा पार नहिं लहऊँ ॥ ताते मैं अति अलप बखाने । थोरे महुँ जानिहहिं सयाने ॥

समुझि बिबिधि बिधि बिनती मोरी । कोउ न कथा सुनि देइहि खोरी ॥ एतेहु पर करिहहिं जे असंका । मोहि ते अधिक ते जड़ मति रंका ॥

कबि न होउँ नहिं चतुर कहावउँ । मति अनुरूप राम गुन गावउँ ॥ कहँ रघुपति के चरित अपारा । कहँ मति मोरि निरत संसारा ॥

जेहिं मारुत गिरि मेरु उड़ाहीं । कहहु तूल केहि लेखे माहीं ॥ समुझत अमित राम प्रभुताई । करत कथा मन अति कदराई ॥

Doha / दोहा

दो. सारद सेस महेस बिधि आगम निगम पुरान । नेति नेति कहि जासु गुन करहिं निरंतर गान ॥ १२ ॥

Chaupai / चोपाई

सब जानत प्रभु प्रभुता सोई । तदपि कहें बिनु रहा न कोई ॥ तहाँ बेद अस कारन राखा । भजन प्रभाउ भाँति बहु भाषा ॥

एक अनीह अरूप अनामा । अज सच्चिदानंद पर धामा ॥ ब्यापक बिस्वरूप भगवाना । तेहिं धरि देह चरित कृत नाना ॥

सो केवल भगतन हित लागी । परम कृपाल प्रनत अनुरागी ॥ जेहि जन पर ममता अति छोहू । जेहिं करुना करि कीन्ह न कोहू ॥

गई बहोर गरीब नेवाजू । सरल सबल साहिब रघुराजू ॥ बुध बरनहिं हरि जस अस जानी । करहि पुनीत सुफल निज बानी ॥

तेहिं बल मैं रघुपति गुन गाथा । कहिहउँ नाइ राम पद माथा ॥ मुनिन्ह प्रथम हरि कीरति गाई । तेहिं मग चलत सुगम मोहि भाई ॥

Doha / दोहा

दो. अति अपार जे सरित बर जौं नृप सेतु कराहिं । चढि पिपीलिकउ परम लघु बिनु श्रम पारहि जाहिं ॥ १३ ॥

Chaupai / चोपाई

एहि प्रकार बल मनहि देखाई । करिहउँ रघुपति कथा सुहाई ॥ ब्यास आदि कबि पुंगव नाना । जिन्ह सादर हरि सुजस बखाना ॥

चरन कमल बंदउँ तिन्ह केरे । पुरवहुँ सकल मनोरथ मेरे ॥ कलि के कबिन्ह करउँ परनामा । जिन्ह बरने रघुपति गुन ग्रामा ॥

जे प्राकृत कबि परम सयाने । भाषाँ जिन्ह हरि चरित बखाने ॥ भए जे अहहिं जे होइहहिं आगें । प्रनवउँ सबहिं कपट सब त्यागें ॥

होहु प्रसन्न देहु बरदानू । साधु समाज भनिति सनमानू ॥ जो प्रबंध बुध नहिं आदरहीं । सो श्रम बादि बाल कबि करहीं ॥

कीरति भनिति भूति भलि सोई । सुरसरि सम सब कहँ हित होई ॥ राम सुकीरति भनिति भदेसा । असमंजस अस मोहि अँदेसा ॥

तुम्हरी कृपा सुलभ सोउ मोरे । सिअनि सुहावनि टाट पटोरे ॥

Doha / दोहा

दो. सरल कबित कीरति बिमल सोइ आदरहिं सुजान । सहज बयर बिसराइ रिपु जो सुनि करहिं बखान ॥ १४(क) ॥

सो न होइ बिनु बिमल मति मोहि मति बल अति थोर । करहु कृपा हरि जस कहउँ पुनि पुनि करउँ निहोर ॥ १४(ख) ॥

कबि कोबिद रघुबर चरित मानस मंजु मराल । बाल बिनय सुनि सुरुचि लखि मोपर होहु कृपाल ॥ १४(ग) ॥

Sortha/ सोरठा

सो. बंदउँ मुनि पद कंजु रामायन जेहिं निरमयउ । सखर सुकोमल मंजु दोष रहित दूषन सहित ॥ १४(घ) ॥

बंदउँ चारिउ बेद भव बारिधि बोहित सरिस । जिन्हहि न सपनेहुँ खेद बरनत रघुबर बिसद जसु ॥ १४(ङ) ॥

बंदउँ बिधि पद रेनु भव सागर जेहि कीन्ह जहँ । संत सुधा ससि धेनु प्रगटे खल बिष बारुनी ॥ १४(च) ॥

Doha / दोहा

दो. बिबुध बिप्र बुध ग्रह चरन बंदि कहउँ कर जोरि । होइ प्रसन्न पुरवहु सकल मंजु मनोरथ मोरि ॥ १४(छ) ॥

Chaupai / चोपाई

पुनि बंदउँ सारद सुरसरिता । जुगल पुनीत मनोहर चरिता ॥ मज्जन पान पाप हर एका । कहत सुनत एक हर अबिबेका ॥

गुर पितु मातु महेस भवानी । प्रनवउँ दीनबंधु दिन दानी ॥ सेवक स्वामि सखा सिय पी के । हित निरुपधि सब बिधि तुलसीके ॥

कलि बिलोकि जग हित हर गिरिजा । साबर मंत्र जाल जिन्ह सिरिजा ॥ अनमिल आखर अरथ न जापू । प्रगट प्रभाउ महेस प्रतापू ॥

सो उमेस मोहि पर अनुकूला । करिहिं कथा मुद मंगल मूला ॥ सुमिरि सिवा सिव पाइ पसाऊ । बरनउँ रामचरित चित चाऊ ॥

भनिति मोरि सिव कृपाँ बिभाती । ससि समाज मिलि मनहुँ सुराती ॥ जे एहि कथहि सनेह समेता । कहिहहिं सुनिहहिं समुझि सचेता ॥

होइहहिं राम चरन अनुरागी । कलि मल रहित सुमंगल भागी ॥

Doha / दोहा

दो. सपनेहुँ साचेहुँ मोहि पर जौं हर गौरि पसाउ । तौ फुर होउ जो कहेउँ सब भाषा भनिति प्रभाउ ॥ १५ ॥

Chaupai / चोपाई

बंदउँ अवध पुरी अति पावनि । सरजू सरि कलि कलुष नसावनि ॥ प्रनवउँ पुर नर नारि बहोरी । ममता जिन्ह पर प्रभुहि न थोरी ॥

सिय निंदक अघ ओघ नसाए । लोक बिसोक बनाइ बसाए ॥ बंदउँ कौसल्या दिसि प्राची । कीरति जासु सकल जग माची ॥

प्रगटेउ जहँ रघुपति ससि चारू । बिस्व सुखद खल कमल तुसारू ॥ दसरथ राउ सहित सब रानी । सुकृत सुमंगल मूरति मानी ॥

करउँ प्रनाम करम मन बानी । करहु कृपा सुत सेवक जानी ॥ जिन्हहि बिरचि बड़ भयउ बिधाता । महिमा अवधि राम पितु माता ॥

Doha / दोहा

सो. बंदउँ अवध भुआल सत्य प्रेम जेहि राम पद । बिछुरत दीनदयाल प्रिय तनु तृन इव परिहरेउ ॥ १६ ॥

Chaupai / चोपाई

प्रनवउँ परिजन सहित बिदेहू । जाहि राम पद गूढ़ सनेहू ॥ जोग भोग महँ राखेउ गोई । राम बिलोकत प्रगटेउ सोई ॥

प्रनवउँ प्रथम भरत के चरना । जासु नेम ब्रत जाइ न बरना ॥ राम चरन पंकज मन जासू । लुबुध मधुप इव तजइ न पासू ॥

बंदउँ लछिमन पद जलजाता । सीतल सुभग भगत सुख दाता ॥ रघुपति कीरति बिमल पताका । दंड समान भयउ जस जाका ॥

सेष सहस्रसीस जग कारन । जो अवतरेउ भूमि भय टारन ॥ सदा सो सानुकूल रह मो पर । कृपासिंधु सौमित्रि गुनाकर ॥

रिपुसूदन पद कमल नमामी । सूर सुसील भरत अनुगामी ॥ महावीर बिनवउँ हनुमाना । राम जासु जस आप बखाना ॥

Sortha/ सोरठा

सो. प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यानधन । जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर ॥ १७ ॥

Chaupai / चोपाई

कपिपति रीछ निसाचर राजा । अंगदादि जे कीस समाजा ॥ बंदउँ सब के चरन सुहाए । अधम सरीर राम जिन्ह पाए ॥

रघुपति चरन उपासक जेते । खग मृग सुर नर असुर समेते ॥ बंदउँ पद सरोज सब केरे । जे बिनु काम राम के चेरे ॥

सुक सनकादि भगत मुनि नारद । जे मुनिबर बिग्यान बिसारद ॥ प्रनवउँ सबहिं धरनि धरि सीसा । करहु कृपा जन जानि मुनीसा ॥

जनकसुता जग जननि जानकी । अतिसय प्रिय करुना निधान की ॥ ताके जुग पद कमल मनावउँ । जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ ॥

पुनि मन बचन कर्म रघुनायक । चरन कमल बंदउँ सब लायक ॥ राजिवनयन धरें धनु सायक । भगत बिपति भंजन सुख दायक ॥

Doha / दोहा

दो. गिरा अरथ जल बीचि सम कहिअत भिन्न न भिन्न । बदउँ सीता राम पद जिन्हहि परम प्रिय खिन्न ॥ १८ ॥

Chaupai / चोपाई

बंदउँ नाम राम रघुवर को । हेतु कृसानु भानु हिमकर को ॥ बिधि हरि हरमय बेद प्रान सो । अगुन अनूपम गुन निधान सो ॥

महामंत्र जोइ जपत महेसू । कासीं मुकुति हेतु उपदेसू ॥ महिमा जासु जान गनराउ । प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ ॥

जान आदिकबि नाम प्रतापू । भयउ सुद्ध करि उलटा जापू ॥ सहस नाम सम सुनि सिव बानी । जपि जेई पिय संग भवानी ॥

हरषे हेतु हेरि हर ही को । किय भूषन तिय भूषन ती को ॥ नाम प्रभाउ जान सिव नीको । कालकूट फलु दीन्ह अमी को ॥

Doha / दोहा

दो. बरषा रितु रघुपति भगति तुलसी सालि सुदास ॥ राम नाम बर बरन जुग सावन भादव मास ॥ १९ ॥

Chaupai / चोपाई

आखर मधुर मनोहर दोऊ । बरन बिलोचन जन जिय जोऊ ॥ सुमिरत सुलभ सुखद सब काहू । लोक लाहु परलोक निबाहू ॥

कहत सुनत सुमिरत सुठि नीके । राम लखन सम प्रिय तुलसी के ॥ बरनत बरन प्रीति बिलगाती । ब्रह्म जीव सम सहज सँघाती ॥

नर नारायन सरिस सुभ्राता । जग पालक बिसेषि जन त्राता ॥ भगति सुतिय कल करन बिभूषन । जग हित हेतु बिमल बिधु पूषन ।

स्वाद तोष सम सुगति सुधा के । कमठ सेष सम धर बसुधा के ॥ जन मन मंजु कंज मधुकर से । जीह जसोमति हरि हलधर से ॥

Doha / दोहा

दो. एकु छत्रु एकु मुकुटमनि सब बरननि पर जोउ । तुलसी रघुबर नाम के बरन बिराजत दोउ ॥ २० ॥

Chaupai / चोपाई

समुझत सरिस नाम अरु नामी । प्रीति परसपर प्रभु अनुगामी ॥ नाम रूप दुइ ईस उपाधी । अकथ अनादि सुसामुझि साधी ॥

को बड़ छोट कहत अपराधू । सुनि गुन भेद समुझिहहिं साधू ॥ देखिअहिं रूप नाम आधीना । रूप ग्यान नहिं नाम बिहीना ॥

रूप बिसेष नाम बिनु जानें । करतल गत न परहिं पहिचानें ॥ सुमिरिअ नाम रूप बिनु देखें । आवत हृदयँ सनेह बिसेषें ॥

नाम रूप गति अकथ कहानी । समुझत सुखद न परति बखानी ॥ अगुन सगुन बिच नाम सुसाखी । उभय प्रबोधक चतुर दुभाषी ॥

Doha / दोहा

दो. राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरी द्वार । तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर ॥ २१ ॥

Chaupai / चोपाई

नाम जीहँ जपि जागहिं जोगी । बिरति बिरंचि प्रपंच बियोगी ॥ ब्रह्मसुखहि अनुभवहिं अनूपा । अकथ अनामय नाम न रूपा ॥

जाना चहहिं गूढ़ गति जेऊ । नाम जीहँ जपि जानहिं तेऊ ॥ साधक नाम जपहिं लय लाएँ । होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ ॥

जपहिं नामु जन आरत भारी । मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी ॥ राम भगत जग चारि प्रकारा । सुकृती चारिउ अनघ उदारा ॥

चहू चतुर कहुँ नाम अधारा । ग्यानी प्रभुहि बिसेषि पिआरा ॥ चहुँ जुग चहुँ श्रुति ना प्रभाऊ । कलि बिसेषि नहिं आन उपाऊ ॥

Doha / दोहा

दो. सकल कामना हीन जे राम भगति रस लीन । नाम सुप्रेम पियूष हद तिन्हहुँ किए मन मीन ॥ २२ ॥

Chaupai / चोपाई

अगुन सगुन दुइ ब्रह्म सरूपा । अकथ अगाध अनादि अनूपा ॥ मोरें मत बड़ नामु दुहू तें । किए जेहिं जुग निज बस निज बूतें ॥

प्रोढ़ि सुजन जनि जानहिं जन की । कहउँ प्रतीति प्रीति रुचि मन की ॥ एकु दारुगत देखिअ एकू । पावक सम जुग ब्रह्म बिबेकू ॥

उभय अगम जुग सुगम नाम तें । कहेउँ नामु बड़ ब्रह्म राम तें ॥ ब्यापकु एकु ब्रह्म अबिनासी । सत चेतन धन आनँद रासी ॥

अस प्रभु हृदयँ अछत अबिकारी । सकल जीव जग दीन दुखारी ॥ नाम निरूपन नाम जतन तें । सोउ प्रगटत जिमि मोल रतन तें ॥

Doha / दोहा

दो. निरगुन तें एहि भाँति बड़ नाम प्रभाउ अपार । कहउँ नामु बड़ राम तें निज बिचार अनुसार ॥ २३ ॥

Chaupai / चोपाई

राम भगत हित नर तनु धारी । सहि संकट किए साधु सुखारी ॥ नामु सप्रेम जपत अनयासा । भगत होहिं मुद मंगल बासा ॥

राम एक तापस तिय तारी । नाम कोटि खल कुमति सुधारी ॥ रिषि हित राम सुकेतुसुता की । सहित सेन सुत कीन्ह बिबाकी ॥

सहित दोष दुख दास दुरासा । दलइ नामु जिमि रबि निसि नासा ॥ भंजेउ राम आपु भव चापू । भव भय भंजन नाम प्रतापू ॥

दंडक बनु प्रभु कीन्ह सुहावन । जन मन अमित नाम किए पावन ॥ । निसिचर निकर दले रघुनंदन । नामु सकल कलि कलुष निकंदन ॥

Doha / दोहा

दो. सबरी गीध सुसेवकनि सुगति दीन्हि रघुनाथ । नाम उधारे अमित खल बेद बिदित गुन गाथ ॥ २४ ॥

Chaupai / चोपाई

राम सुकंठ बिभीषन दोऊ । राखे सरन जान सबु कोऊ ॥ नाम गरीब अनेक नेवाजे । लोक बेद बर बिरिद बिराजे ॥

राम भालु कपि कटकु बटोरा । सेतु हेतु श्रमु कीन्ह न थोरा ॥ नामु लेत भवसिंधु सुखाहीं । करहु बिचारु सुजन मन माहीं ॥

राम सकुल रन रावनु मारा । सीय सहित निज पुर पगु धारा ॥ राजा रामु अवध रजधानी । गावत गुन सुर मुनि बर बानी ॥

सेवक सुमिरत नामु सप्रीती । बिनु श्रम प्रबल मोह दलु जीती ॥ फिरत सनेहँ मगन सुख अपनें । नाम प्रसाद सोच नहिं सपनें ॥

Doha / दोहा

दो. ब्रह्म राम तें नामु बड़ बर दायक बर दानि । रामचरित सत कोटि महँ लिय महेस जियँ जानि ॥ २५ ॥

Masaparayana 1 Ends

namo namaḥ!

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