Ram Charita Manas

Masaparayan 11

ॐ श्री परमात्मने नमः

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Chaupai / चोपाई

असन सयन बर बसन सुहाए । पावहिं सब निज निज मन भाए ॥ नित नूतन सुख लखि अनुकूले । सकल बरातिन्ह मंदिर भूले ॥

Doha / दोहा

दो. आवत जानि बरात बर सुनि गहगहे निसान । सजि गज रथ पदचर तुरग लेन चले अगवान ॥ ३०४ ॥

Chaupai / चोपाई

कनक कलस भरि कोपर थारा । भाजन ललित अनेक प्रकारा ॥ भरे सुधासम सब पकवाने । नाना भाँति न जाहिं बखाने ॥

फल अनेक बर बस्तु सुहाईं । हरषि भेंट हित भूप पठाईं ॥ भूषन बसन महामनि नाना । खग मृग हय गय बहुबिधि जाना ॥

मंगल सगुन सुगंध सुहाए । बहुत भाँति महिपाल पठाए ॥ दधि चिउरा उपहार अपारा । भरि भरि काँवरि चले कहारा ॥

अगवानन्ह जब दीखि बराता । उर आनंदु पुलक भर गाता ॥ देखि बनाव सहित अगवाना । मुदित बरातिन्ह हने निसाना ॥

Doha / दोहा

दो. हरषि परसपर मिलन हित कछुक चले बगमेल । जनु आनंद समुद्र दुइ मिलत बिहाइ सुबेल ॥ ३०५ ॥

Chaupai / चोपाई

बरषि सुमन सुर सुंदरि गावहिं । मुदित देव दुंदुभीं बजावहिं ॥ बस्तु सकल राखीं नृप आगें । बिनय कीन्ह तिन्ह अति अनुरागें ॥

प्रेम समेत रायँ सबु लीन्हा । भै बकसीस जाचकन्हि दीन्हा ॥ करि पूजा मान्यता बड़ाई । जनवासे कहुँ चले लवाई ॥

बसन बिचित्र पाँवड़े परहीं । देखि धनहु धन मदु परिहरहीं ॥ अति सुंदर दीन्हेउ जनवासा । जहँ सब कहुँ सब भाँति सुपासा ॥

जानी सियँ बरात पुर आई । कछु निज महिमा प्रगटि जनाई ॥ हृदयँ सुमिरि सब सिद्धि बोलाई । भूप पहुनई करन पठाई ॥

Doha / दोहा

दो. सिधि सब सिय आयसु अकनि गईं जहाँ जनवास । लिएँ संपदा सकल सुख सुरपुर भोग बिलास ॥ ३०६ ॥

Chaupai / चोपाई

निज निज बास बिलोकि बराती । सुर सुख सकल सुलभ सब भाँती ॥ बिभव भेद कछु कोउ न जाना । सकल जनक कर करहिं बखाना ॥

सिय महिमा रघुनायक जानी । हरषे हृदयँ हेतु पहिचानी ॥ पितु आगमनु सुनत दोउ भाई । हृदयँ न अति आनंदु अमाई ॥

सकुचन्ह कहि न सकत गुरु पाहीं । पितु दरसन लालचु मन माहीं ॥ बिस्वामित्र बिनय बड़ि देखी । उपजा उर संतोषु बिसेषी ॥

हरषि बंधु दोउ हृदयँ लगाए । पुलक अंग अंबक जल छाए ॥ चले जहाँ दसरथु जनवासे । मनहुँ सरोबर तकेउ पिआसे ॥

Doha / दोहा

दो. भूप बिलोके जबहिं मुनि आवत सुतन्ह समेत । उठे हरषि सुखसिंधु महुँ चले थाह सी लेत ॥ ३०७ ॥

Chaupai / चोपाई

मुनिहि दंडवत कीन्ह महीसा । बार बार पद रज धरि सीसा ॥ कौसिक राउ लिये उर लाई । कहि असीस पूछी कुसलाई ॥

पुनि दंडवत करत दोउ भाई । देखि नृपति उर सुखु न समाई ॥ सुत हियँ लाइ दुसह दुख मेटे । मृतक सरीर प्रान जनु भेंटे ॥

पुनि बसिष्ठ पद सिर तिन्ह नाए । प्रेम मुदित मुनिबर उर लाए ॥ बिप्र बृंद बंदे दुहुँ भाईं । मन भावती असीसें पाईं ॥

भरत सहानुज कीन्ह प्रनामा । लिए उठाइ लाइ उर रामा ॥ हरषे लखन देखि दोउ भ्राता । मिले प्रेम परिपूरित गाता ॥

Doha / दोहा

दो. पुरजन परिजन जातिजन जाचक मंत्री मीत । मिले जथाबिधि सबहि प्रभु परम कृपाल बिनीत ॥ ३०८ ॥

Chaupai / चोपाई

रामहि देखि बरात जुड़ानी । प्रीति कि रीति न जाति बखानी ॥ नृप समीप सोहहिं सुत चारी । जनु धन धरमादिक तनुधारी ॥

सुतन्ह समेत दसरथहि देखी । मुदित नगर नर नारि बिसेषी ॥ सुमन बरिसि सुर हनहिं निसाना । नाकनटीं नाचहिं करि गाना ॥

सतानंद अरु बिप्र सचिव गन । मागध सूत बिदुष बंदीजन ॥ सहित बरात राउ सनमाना । आयसु मागि फिरे अगवाना ॥

प्रथम बरात लगन तें आई । तातें पुर प्रमोदु अधिकाई ॥ ब्रह्मानंदु लोग सब लहहीं । बढ़हुँ दिवस निसि बिधि सन कहहीं ॥

Doha / दोहा

दो. रामु सीय सोभा अवधि सुकृत अवधि दोउ राज । जहँ जहँ पुरजन कहहिं अस मिलि नर नारि समाज ॥ । ३०९ ॥

Chaupai / चोपाई

जनक सुकृत मूरति बैदेही । दसरथ सुकृत रामु धरें देही ॥ इन्ह सम काँहु न सिव अवराधे । काहिँ न इन्ह समान फल लाधे ॥

इन्ह सम कोउ न भयउ जग माहीं । है नहिं कतहूँ होनेउ नाहीं ॥ हम सब सकल सुकृत कै रासी । भए जग जनमि जनकपुर बासी ॥

जिन्ह जानकी राम छबि देखी । को सुकृती हम सरिस बिसेषी ॥ पुनि देखब रघुबीर बिआहू । लेब भली बिधि लोचन लाहू ॥

कहहिं परसपर कोकिलबयनीं । एहि बिआहँ बड़ लाभु सुनयनीं ॥ बड़ें भाग बिधि बात बनाई । नयन अतिथि होइहहिं दोउ भाई ॥

Doha / दोहा

दो. बारहिं बार सनेह बस जनक बोलाउब सीय । लेन आइहहिं बंधु दोउ कोटि काम कमनीय ॥ ३१० ॥

Chaupai / चोपाई

बिबिध भाँति होइहि पहुनाई । प्रिय न काहि अस सासुर माई ॥ तब तब राम लखनहि निहारी । होइहहिं सब पुर लोग सुखारी ॥

सखि जस राम लखनकर जोटा । तैसेइ भूप संग दुइ ढोटा ॥ स्याम गौर सब अंग सुहाए । ते सब कहहिं देखि जे आए ॥

कहा एक मैं आजु निहारे । जनु बिरंचि निज हाथ सँवारे ॥ भरतु रामही की अनुहारी । सहसा लखि न सकहिं नर नारी ॥

लखनु सत्रुसूदनु एकरूपा । नख सिख ते सब अंग अनूपा ॥ मन भावहिं मुख बरनि न जाहीं । उपमा कहुँ त्रिभुवन कोउ नाहीं ॥

Chanda / छन्द

छं. उपमा न कोउ कह दास तुलसी कतहुँ कबि कोबिद कहैं । बल बिनय बिद्या सील सोभा सिंधु इन्ह से एइ अहैं ॥ पुर नारि सकल पसारि अंचल बिधिहि बचन सुनावहीं ॥ ब्याहिअहुँ चारिउ भाइ एहिं पुर हम सुमंगल गावहीं ॥

Sortha/ सोरठा

सो. कहहिं परस्पर नारि बारि बिलोचन पुलक तन । सखि सबु करब पुरारि पुन्य पयोनिधि भूप दोउ ॥ ३११ ॥

Chaupai / चोपाई

एहि बिधि सकल मनोरथ करहीं । आनँद उमगि उमगि उर भरहीं ॥ जे नृप सीय स्वयंबर आए । देखि बंधु सब तिन्ह सुख पाए ॥

कहत राम जसु बिसद बिसाला । निज निज भवन गए महिपाला ॥ गए बीति कुछ दिन एहि भाँती । प्रमुदित पुरजन सकल बराती ॥

मंगल मूल लगन दिनु आवा । हिम रितु अगहनु मासु सुहावा ॥ ग्रह तिथि नखतु जोगु बर बारू । लगन सोधि बिधि कीन्ह बिचारू ॥

पठै दीन्हि नारद सन सोई । गनी जनक के गनकन्ह जोई ॥ सुनी सकल लोगन्ह यह बाता । कहहिं जोतिषी आहिं बिधाता ॥

Doha / दोहा

दो. धेनुधूरि बेला बिमल सकल सुमंगल मूल । बिप्रन्ह कहेउ बिदेह सन जानि सगुन अनुकुल ॥ ३१२ ॥

Chaupai / चोपाई

उपरोहितहि कहेउ नरनाहा । अब बिलंब कर कारनु काहा ॥ सतानंद तब सचिव बोलाए । मंगल सकल साजि सब ल्याए ॥

संख निसान पनव बहु बाजे । मंगल कलस सगुन सुभ साजे ॥ सुभग सुआसिनि गावहिं गीता । करहिं बेद धुनि बिप्र पुनीता ॥

लेन चले सादर एहि भाँती । गए जहाँ जनवास बराती ॥ कोसलपति कर देखि समाजू । अति लघु लाग तिन्हहि सुरराजू ॥

भयउ समउ अब धारिअ पाऊ । यह सुनि परा निसानहिं घाऊ ॥ गुरहि पूछि करि कुल बिधि राजा । चले संग मुनि साधु समाजा ॥

Doha / दोहा

दो. भाग्य बिभव अवधेस कर देखि देव ब्रह्मादि । लगे सराहन सहस मुख जानि जनम निज बादि ॥ ३१३ ॥

Chaupai / चोपाई

सुरन्ह सुमंगल अवसरु जाना । बरषहिं सुमन बजाइ निसाना ॥ सिव ब्रह्मादिक बिबुध बरूथा । चढ़े बिमानन्हि नाना जूथा ॥

प्रेम पुलक तन हृदयँ उछाहू । चले बिलोकन राम बिआहू ॥ देखि जनकपुरु सुर अनुरागे । निज निज लोक सबहिं लघु लागे ॥

चितवहिं चकित बिचित्र बिताना । रचना सकल अलौकिक नाना ॥ नगर नारि नर रूप निधाना । सुघर सुधरम सुसील सुजाना ॥

तिन्हहि देखि सब सुर सुरनारीं । भए नखत जनु बिधु उजिआरीं ॥ बिधिहि भयह आचरजु बिसेषी । निज करनी कछु कतहुँ न देखी ॥

Doha / दोहा

दो. सिवँ समुझाए देव सब जनि आचरज भुलाहु । हृदयँ बिचारहु धीर धरि सिय रघुबीर बिआहु ॥ ३१४ ॥

Chaupai / चोपाई

जिन्ह कर नामु लेत जग माहीं । सकल अमंगल मूल नसाहीं ॥ करतल होहिं पदारथ चारी । तेइ सिय रामु कहेउ कामारी ॥

एहि बिधि संभु सुरन्ह समुझावा । पुनि आगें बर बसह चलावा ॥ देवन्ह देखे दसरथु जाता । महामोद मन पुलकित गाता ॥

साधु समाज संग महिदेवा । जनु तनु धरें करहिं सुख सेवा ॥ सोहत साथ सुभग सुत चारी । जनु अपबरग सकल तनुधारी ॥

मरकत कनक बरन बर जोरी । देखि सुरन्ह भै प्रीति न थोरी ॥ पुनि रामहि बिलोकि हियँ हरषे । नृपहि सराहि सुमन तिन्ह बरषे ॥

Doha / दोहा

दो. राम रूपु नख सिख सुभग बारहिं बार निहारि । पुलक गात लोचन सजल उमा समेत पुरारि ॥ ३१५ ॥

Chaupai / चोपाई

केकि कंठ दुति स्यामल अंगा । तड़ित बिनिंदक बसन सुरंगा ॥ ब्याह बिभूषन बिबिध बनाए । मंगल सब सब भाँति सुहाए ॥

सरद बिमल बिधु बदनु सुहावन । नयन नवल राजीव लजावन ॥ सकल अलौकिक सुंदरताई । कहि न जाइ मनहीं मन भाई ॥

बंधु मनोहर सोहहिं संगा । जात नचावत चपल तुरंगा ॥ राजकुअँर बर बाजि देखावहिं । बंस प्रसंसक बिरिद सुनावहिं ॥

जेहि तुरंग पर रामु बिराजे । गति बिलोकि खगनायकु लाजे ॥ कहि न जाइ सब भाँति सुहावा । बाजि बेषु जनु काम बनावा ॥

Chanda / छन्द

छं. जनु बाजि बेषु बनाइ मनसिजु राम हित अति सोहई । आपनें बय बल रूप गुन गति सकल भुवन बिमोहई ॥ जगमगत जीनु जराव जोति सुमोति मनि मानिक लगे । किंकिनि ललाम लगामु ललित बिलोकि सुर नर मुनि ठगे ॥

Doha / दोहा

दो. प्रभु मनसहिं लयलीन मनु चलत बाजि छबि पाव । भूषित उड़गन तड़ित घनु जनु बर बरहि नचाव ॥ ३१६ ॥

Chaupai / चोपाई

जेहिं बर बाजि रामु असवारा । तेहि सारदउ न बरनै पारा ॥ संकरु राम रूप अनुरागे । नयन पंचदस अति प्रिय लागे ॥

हरि हित सहित रामु जब जोहे । रमा समेत रमापति मोहे ॥ निरखि राम छबि बिधि हरषाने । आठइ नयन जानि पछिताने ॥

सुर सेनप उर बहुत उछाहू । बिधि ते डेवढ़ लोचन लाहू ॥ रामहि चितव सुरेस सुजाना । गौतम श्रापु परम हित माना ॥

देव सकल सुरपतिहि सिहाहीं । आजु पुरंदर सम कोउ नाहीं ॥ मुदित देवगन रामहि देखी । नृपसमाज दुहुँ हरषु बिसेषी ॥

Chanda / छन्द

छं. अति हरषु राजसमाज दुहु दिसि दुंदुभीं बाजहिं घनी । बरषहिं सुमन सुर हरषि कहि जय जयति जय रघुकुलमनी ॥ एहि भाँति जानि बरात आवत बाजने बहु बाजहीं । रानि सुआसिनि बोलि परिछनि हेतु मंगल साजहीं ॥

Doha / दोहा

दो. सजि आरती अनेक बिधि मंगल सकल सँवारि । चलीं मुदित परिछनि करन गजगामिनि बर नारि ॥ ३१७ ॥

Chaupai / चोपाई

बिधुबदनीं सब सब मृगलोचनि । सब निज तन छबि रति मदु मोचनि ॥ पहिरें बरन बरन बर चीरा । सकल बिभूषन सजें सरीरा ॥

सकल सुमंगल अंग बनाएँ । करहिं गान कलकंठि लजाएँ ॥ कंकन किंकिनि नूपुर बाजहिं । चालि बिलोकि काम गज लाजहिं ॥

बाजहिं बाजने बिबिध प्रकारा । नभ अरु नगर सुमंगलचारा ॥ सची सारदा रमा भवानी । जे सुरतिय सुचि सहज सयानी ॥

कपट नारि बर बेष बनाई । मिलीं सकल रनिवासहिं जाई ॥ करहिं गान कल मंगल बानीं । हरष बिबस सब काहुँ न जानी ॥

Chanda / छन्द

छं. को जान केहि आनंद बस सब ब्रह्मु बर परिछन चली । कल गान मधुर निसान बरषहिं सुमन सुर सोभा भली ॥

Doha / दोहा

दो. जो सुख भा सिय मातु मन देखि राम बर बेषु । सो न सकहिं कहि कलप सत सहस सारदा सेषु ॥ ३१८ ॥

Chaupai / चोपाई

नयन नीरु हटि मंगल जानी । परिछनि करहिं मुदित मन रानी ॥ बेद बिहित अरु कुल आचारू । कीन्ह भली बिधि सब ब्यवहारू ॥

पंच सबद धुनि मंगल गाना । पट पाँवड़े परहिं बिधि नाना ॥ करि आरती अरघु तिन्ह दीन्हा । राम गमनु मंडप तब कीन्हा ॥

दसरथु सहित समाज बिराजे । बिभव बिलोकि लोकपति लाजे ॥ समयँ समयँ सुर बरषहिं फूला । सांति पढ़हिं महिसुर अनुकूला ॥

नभ अरु नगर कोलाहल होई । आपनि पर कछु सुनइ न कोई ॥ एहि बिधि रामु मंडपहिं आए । अरघु देइ आसन बैठाए ॥

Chanda / छन्द

छं. बैठारि आसन आरती करि निरखि बरु सुखु पावहीं ॥ मनि बसन भूषन भूरि वारहिं नारि मंगल गावहीं ॥ ब्रह्मादि सुरबर बिप्र बेष बनाइ कौतुक देखहीं । अवलोकि रघुकुल कमल रबि छबि सुफल जीवन लेखहीं ॥

Doha / दोहा

दो. नाऊ बारी भाट नट राम निछावरि पाइ । मुदित असीसहिं नाइ सिर हरषु न हृदयँ समाइ ॥ ३१९ ॥

Chaupai / चोपाई

मिले जनकु दसरथु अति प्रीतीं । करि बैदिक लौकिक सब रीतीं ॥ मिलत महा दोउ राज बिराजे । उपमा खोजि खोजि कबि लाजे ॥

लही न कतहुँ हारि हियँ मानी । इन्ह सम एइ उपमा उर आनी ॥ सामध देखि देव अनुरागे । सुमन बरषि जसु गावन लागे ॥

जगु बिरंचि उपजावा जब तें । देखे सुने ब्याह बहु तब तें ॥ सकल भाँति सम साजु समाजू । सम समधी देखे हम आजू ॥

देव गिरा सुनि सुंदर साँची । प्रीति अलौकिक दुहु दिसि माची ॥ देत पाँवड़े अरघु सुहाए । सादर जनकु मंडपहिं ल्याए ॥

Chanda / छन्द

छं. मंडपु बिलोकि बिचीत्र रचनाँ रुचिरताँ मुनि मन हरे ॥ निज पानि जनक सुजान सब कहुँ आनि सिंघासन धरे ॥ कुल इष्ट सरिस बसिष्ट पूजे बिनय करि आसिष लही । कौसिकहि पूजत परम प्रीति कि रीति तौ न परै कही ॥

Doha / दोहा

दो. बामदेव आदिक रिषय पूजे मुदित महीस । दिए दिब्य आसन सबहि सब सन लही असीस ॥ ३२० ॥

Chaupai / चोपाई

बहुरि कीन्ह कोसलपति पूजा । जानि ईस सम भाउ न दूजा ॥ कीन्ह जोरि कर बिनय बड़ाई । कहि निज भाग्य बिभव बहुताई ॥

पूजे भूपति सकल बराती । समधि सम सादर सब भाँती ॥ आसन उचित दिए सब काहू । कहौं काह मूख एक उछाहू ॥

सकल बरात जनक सनमानी । दान मान बिनती बर बानी ॥ बिधि हरि हरु दिसिपति दिनराऊ । जे जानहिं रघुबीर प्रभाऊ ॥

कपट बिप्र बर बेष बनाएँ । कौतुक देखहिं अति सचु पाएँ ॥ पूजे जनक देव सम जानें । दिए सुआसन बिनु पहिचानें ॥

Chanda / छन्द

छं. पहिचान को केहि जान सबहिं अपान सुधि भोरी भई । आनंद कंदु बिलोकि दूलहु उभय दिसि आनँद मई ॥ सुर लखे राम सुजान पूजे मानसिक आसन दए । अवलोकि सीलु सुभाउ प्रभु को बिबुध मन प्रमुदित भए ॥

Doha / दोहा

दो. रामचंद्र मुख चंद्र छबि लोचन चारु चकोर । करत पान सादर सकल प्रेमु प्रमोदु न थोर ॥ ३२१ ॥

Chaupai / चोपाई

समउ बिलोकि बसिष्ठ बोलाए । सादर सतानंदु सुनि आए ॥ बेगि कुअँरि अब आनहु जाई । चले मुदित मुनि आयसु पाई ॥

रानी सुनि उपरोहित बानी । प्रमुदित सखिन्ह समेत सयानी ॥ बिप्र बधू कुलबृद्ध बोलाईं । करि कुल रीति सुमंगल गाईं ॥

नारि बेष जे सुर बर बामा । सकल सुभायँ सुंदरी स्यामा ॥ तिन्हहि देखि सुखु पावहिं नारीं । बिनु पहिचानि प्रानहु ते प्यारीं ॥

बार बार सनमानहिं रानी । उमा रमा सारद सम जानी ॥ सीय सँवारि समाजु बनाई । मुदित मंडपहिं चलीं लवाई ॥

Chanda / छन्द

छं. चलि ल्याइ सीतहि सखीं सादर सजि सुमंगल भामिनीं । नवसप्त साजें सुंदरी सब मत्त कुंजर गामिनीं ॥ कल गान सुनि मुनि ध्यान त्यागहिं काम कोकिल लाजहीं । मंजीर नूपुर कलित कंकन ताल गती बर बाजहीं ॥

Doha / दोहा

दो. सोहति बनिता बृंद महुँ सहज सुहावनि सीय । छबि ललना गन मध्य जनु सुषमा तिय कमनीय ॥ ३२२ ॥

Chaupai / चोपाई

सिय सुंदरता बरनि न जाई । लघु मति बहुत मनोहरताई ॥ आवत दीखि बरातिन्ह सीता ॥ रूप रासि सब भाँति पुनीता ॥

सबहि मनहिं मन किए प्रनामा । देखि राम भए पूरनकामा ॥ हरषे दसरथ सुतन्ह समेता । कहि न जाइ उर आनँदु जेता ॥

सुर प्रनामु करि बरसहिं फूला । मुनि असीस धुनि मंगल मूला ॥ गान निसान कोलाहलु भारी । प्रेम प्रमोद मगन नर नारी ॥

एहि बिधि सीय मंडपहिं आई । प्रमुदित सांति पढ़हिं मुनिराई ॥ तेहि अवसर कर बिधि ब्यवहारू । दुहुँ कुलगुर सब कीन्ह अचारू ॥

Chanda / छन्द

छं. आचारु करि गुर गौरि गनपति मुदित बिप्र पुजावहीं । सुर प्रगटि पूजा लेहिं देहिं असीस अति सुखु पावहीं ॥ मधुपर्क मंगल द्रब्य जो जेहि समय मुनि मन महुँ चहैं । भरे कनक कोपर कलस सो सब लिएहिं परिचारक रहैं ॥ १ ॥

कुल रीति प्रीति समेत रबि कहि देत सबु सादर कियो । एहि भाँति देव पुजाइ सीतहि सुभग सिंघासनु दियो ॥ सिय राम अवलोकनि परसपर प्रेम काहु न लखि परै ॥ मन बुद्धि बर बानी अगोचर प्रगट कबि कैसें करै ॥ २ ॥

Doha / दोहा

दो. होम समय तनु धरि अनलु अति सुख आहुति लेहिं । बिप्र बेष धरि बेद सब कहि बिबाह बिधि देहिं ॥ ३२३ ॥

Chaupai / चोपाई

जनक पाटमहिषी जग जानी । सीय मातु किमि जाइ बखानी ॥ सुजसु सुकृत सुख सुदंरताई । सब समेटि बिधि रची बनाई ॥

समउ जानि मुनिबरन्ह बोलाई । सुनत सुआसिनि सादर ल्याई ॥ जनक बाम दिसि सोह सुनयना । हिमगिरि संग बनि जनु मयना ॥

कनक कलस मनि कोपर रूरे । सुचि सुंगध मंगल जल पूरे ॥ निज कर मुदित रायँ अरु रानी । धरे राम के आगें आनी ॥

पढ़हिं बेद मुनि मंगल बानी । गगन सुमन झरि अवसरु जानी ॥ बरु बिलोकि दंपति अनुरागे । पाय पुनीत पखारन लागे ॥

Chanda / छन्द

छं. लागे पखारन पाय पंकज प्रेम तन पुलकावली । नभ नगर गान निसान जय धुनि उमगि जनु चहुँ दिसि चली ॥ जे पद सरोज मनोज अरि उर सर सदैव बिराजहीं । जे सकृत सुमिरत बिमलता मन सकल कलि मल भाजहीं ॥ १ ॥

जे परसि मुनिबनिता लही गति रही जो पातकमई । मकरंदु जिन्ह को संभु सिर सुचिता अवधि सुर बरनई ॥ करि मधुप मन मुनि जोगिजन जे सेइ अभिमत गति लहैं । ते पद पखारत भाग्यभाजनु जनकु जय जय सब कहै ॥ २ ॥

बर कुअँरि करतल जोरि साखोचारु दोउ कुलगुर करैं । भयो पानिगहनु बिलोकि बिधि सुर मनुज मुनि आँनद भरैं ॥ सुखमूल दूलहु देखि दंपति पुलक तन हुलस्यो हियो । करि लोक बेद बिधानु कन्यादानु नृपभूषन कियो ॥ ३ ॥

हिमवंत जिमि गिरिजा महेसहि हरिहि श्री सागर दई । तिमि जनक रामहि सिय समरपी बिस्व कल कीरति नई ॥ क्यों करै बिनय बिदेहु कियो बिदेहु मूरति सावँरी । करि होम बिधिवत गाँठि जोरी होन लागी भावँरी ॥ ४ ॥

Doha / दोहा

दो. जय धुनि बंदी बेद धुनि मंगल गान निसान । सुनि हरषहिं बरषहिं बिबुध सुरतरु सुमन सुजान ॥ ३२४ ॥

Chaupai / चोपाई

कुअँरु कुअँरि कल भावँरि देहीं ॥ नयन लाभु सब सादर लेहीं ॥ जाइ न बरनि मनोहर जोरी । जो उपमा कछु कहौं सो थोरी ॥

राम सीय सुंदर प्रतिछाहीं । जगमगात मनि खंभन माहीं । मनहुँ मदन रति धरि बहु रूपा । देखत राम बिआहु अनूपा ॥

दरस लालसा सकुच न थोरी । प्रगटत दुरत बहोरि बहोरी ॥ भए मगन सब देखनिहारे । जनक समान अपान बिसारे ॥

प्रमुदित मुनिन्ह भावँरी फेरी । नेगसहित सब रीति निबेरीं ॥ राम सीय सिर सेंदुर देहीं । सोभा कहि न जाति बिधि केहीं ॥

अरुन पराग जलजु भरि नीकें । ससिहि भूष अहि लोभ अमी कें ॥ बहुरि बसिष्ठ दीन्ह अनुसासन । बरु दुलहिनि बैठे एक आसन ॥

Chanda / छन्द

छं. बैठे बरासन रामु जानकि मुदित मन दसरथु भए । तनु पुलक पुनि पुनि देखि अपनें सुकृत सुरतरु फल नए ॥ भरि भुवन रहा उछाहु राम बिबाहु भा सबहीं कहा । केहि भाँति बरनि सिरात रसना एक यहु मंगलु महा ॥ १ ॥

तब जनक पाइ बसिष्ठ आयसु ब्याह साज सँवारि कै । माँडवी श्रुतिकीरति उरमिला कुअँरि लईं हँकारि के ॥ कुसकेतु कन्या प्रथम जो गुन सील सुख सोभामई । सब रीति प्रीति समेत करि सो ब्याहि नृप भरतहि दई ॥ २ ॥

जानकी लघु भगिनी सकल सुंदरि सिरोमनि जानि कै । सो तनय दीन्ही ब्याहि लखनहि सकल बिधि सनमानि कै ॥ जेहि नामु श्रुतकीरति सुलोचनि सुमुखि सब गुन आगरी । सो दई रिपुसूदनहि भूपति रूप सील उजागरी ॥ ३ ॥

अनुरुप बर दुलहिनि परस्पर लखि सकुच हियँ हरषहीं । सब मुदित सुंदरता सराहहिं सुमन सुर गन बरषहीं ॥ सुंदरी सुंदर बरन्ह सह सब एक मंडप राजहीं । जनु जीव उर चारिउ अवस्था बिमुन सहित बिराजहीं ॥ ४ ॥

Doha / दोहा

दो. मुदित अवधपति सकल सुत बधुन्ह समेत निहारि । जनु पार महिपाल मनि क्रियन्ह सहित फल चारि ॥ ३२५ ॥

Chaupai / चोपाई

जसि रघुबीर ब्याह बिधि बरनी । सकल कुअँर ब्याहे तेहिं करनी ॥ कहि न जाइ कछु दाइज भूरी । रहा कनक मनि मंडपु पूरी ॥

कंबल बसन बिचित्र पटोरे । भाँति भाँति बहु मोल न थोरे ॥ गज रथ तुरग दास अरु दासी । धेनु अलंकृत कामदुहा सी ॥

बस्तु अनेक करिअ किमि लेखा । कहि न जाइ जानहिं जिन्ह देखा ॥ लोकपाल अवलोकि सिहाने । लीन्ह अवधपति सबु सुखु माने ॥

दीन्ह जाचकन्हि जो जेहि भावा । उबरा सो जनवासेहिं आवा ॥ तब कर जोरि जनकु मृदु बानी । बोले सब बरात सनमानी ॥

Chanda / छन्द

छं. सनमानि सकल बरात आदर दान बिनय बड़ाइ कै । प्रमुदित महा मुनि बृंद बंदे पूजि प्रेम लड़ाइ कै ॥ सिरु नाइ देव मनाइ सब सन कहत कर संपुट किएँ । सुर साधु चाहत भाउ सिंधु कि तोष जल अंजलि दिएँ ॥ १ ॥

कर जोरि जनकु बहोरि बंधु समेत कोसलराय सों । बोले मनोहर बयन सानि सनेह सील सुभाय सों ॥ संबंध राजन रावरें हम बड़े अब सब बिधि भए । एहि राज साज समेत सेवक जानिबे बिनु गथ लए ॥ २ ॥

ए दारिका परिचारिका करि पालिबीं करुना नई । अपराधु छमिबो बोलि पठए बहुत हौं ढीट्यो कई ॥ पुनि भानुकुलभूषन सकल सनमान निधि समधी किए । कहि जाति नहिं बिनती परस्पर प्रेम परिपूरन हिए ॥ ३ ॥

बृंदारका गन सुमन बरिसहिं राउ जनवासेहि चले । दुंदुभी जय धुनि बेद धुनि नभ नगर कौतूहल भले ॥ तब सखीं मंगल गान करत मुनीस आयसु पाइ कै । दूलह दुलहिनिन्ह सहित सुंदरि चलीं कोहबर ल्याइ कै ॥ ४ ॥

Doha / दोहा

दो. पुनि पुनि रामहि चितव सिय सकुचति मनु सकुचै न । हरत मनोहर मीन छबि प्रेम पिआसे नैन ॥ ३२६ ॥

Masaparayana 11 Ends

namo namaḥ!

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