Ram Charita Manas

Masaparayan 13

ॐ श्री परमात्मने नमः

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संस्कृत्म
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Ayodhya Kanda Begins / अथ अयोध्या काण्ड

श्रीरामचरितमानस द्वितीय सोपान अयोध्या-काण्ड

Mangalashloka / मंगलश्लोक्

श्लोकयस्याङ्के च विभाति भूधरसुता देवापगा मस्तकेभाले बालविधुर्गले च गरलं यस्योरसि व्यालराट्। सोऽयं भूतिविभूषणः सुरवरः सर्वाधिपः सर्वदाशर्वः सर्वगतः शिवः शशिनिभः श्रीशङ्करः पातु माम् ॥ १ ॥

प्रसन्नतां या न गताभिषेकतस्तथा न मम्ले वनवासदुःखतः।मुखाम्बुजश्री रघुनन्दनस्य मे सदास्तु सा मञ्जुलमंगलप्रदा ॥ २ ॥

नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं सीतासमारोपितवामभागम्।पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम् ॥ ३ ॥

Doha / दोहा

दो. श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि। बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥

Chaupai / चोपाई

जब तें रामु ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए ॥ भुवन चारिदस भूधर भारी। सुकृत मेघ बरषहि सुख बारी ॥

रिधि सिधि संपति नदीं सुहाई। उमगि अवध अंबुधि कहुँ आई ॥ मनिगन पुर नर नारि सुजाती। सुचि अमोल सुंदर सब भाँती ॥

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती। जनु एतनिअ बिरंचि करतूती ॥ सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी ॥

मुदित मातु सब सखीं सहेली। फलित बिलोकि मनोरथ बेली ॥ राम रूपु गुनसीलु सुभाऊ। प्रमुदित होइ देखि सुनि राऊ ॥

Doha / दोहा

दो. सब कें उर अभिलाषु अस कहहिं मनाइ महेसु। आप अछत जुबराज पद रामहि देउ नरेसु ॥ १ ॥

Chaupai / चोपाई

एक समय सब सहित समाजा। राजसभाँ रघुराजु बिराजा ॥ सकल सुकृत मूरति नरनाहू। राम सुजसु सुनि अतिहि उछाहू ॥

नृप सब रहहिं कृपा अभिलाषें। लोकप करहिं प्रीति रुख राखें ॥ तिभुवन तीनि काल जग माहीं। भूरि भाग दसरथ सम नाहीं ॥

मंगलमूल रामु सुत जासू। जो कछु कहिज थोर सबु तासू ॥ रायँ सुभायँ मुकुरु कर लीन्हा। बदनु बिलोकि मुकुट सम कीन्हा ॥

श्रवन समीप भए सित केसा। मनहुँ जरठपनु अस उपदेसा ॥ नृप जुबराज राम कहुँ देहू। जीवन जनम लाहु किन लेहू ॥

Doha / दोहा

दो. यह बिचारु उर आनि नृप सुदिनु सुअवसरु पाइ। प्रेम पुलकि तन मुदित मन गुरहि सुनायउ जाइ ॥ २ ॥

Chaupai / चोपाई

कहइ भुआलु सुनिअ मुनिनायक। भए राम सब बिधि सब लायक ॥ सेवक सचिव सकल पुरबासी। जे हमारे अरि मित्र उदासी ॥

सबहि रामु प्रिय जेहि बिधि मोही। प्रभु असीस जनु तनु धरि सोही ॥ बिप्र सहित परिवार गोसाईं। करहिं छोहु सब रौरिहि नाई ॥

जे गुर चरन रेनु सिर धरहीं। ते जनु सकल बिभव बस करहीं ॥ मोहि सम यहु अनुभयउ न दूजें। सबु पायउँ रज पावनि पूजें ॥

अब अभिलाषु एकु मन मोरें। पूजहि नाथ अनुग्रह तोरें ॥ मुनि प्रसन्न लखि सहज सनेहू। कहेउ नरेस रजायसु देहू ॥

Doha / दोहा

दो. राजन राउर नामु जसु सब अभिमत दातार। फल अनुगामी महिप मनि मन अभिलाषु तुम्हार ॥ ३ ॥

Chaupai / चोपाई

सब बिधि गुरु प्रसन्न जियँ जानी। बोलेउ राउ रहँसि मृदु बानी ॥ नाथ रामु करिअहिं जुबराजू। कहिअ कृपा करि करिअ समाजू ॥

मोहि अछत यहु होइ उछाहू। लहहिं लोग सब लोचन लाहू ॥ प्रभु प्रसाद सिव सबइ निबाहीं। यह लालसा एक मन माहीं ॥

पुनि न सोच तनु रहउ कि जाऊ। जेहिं न होइ पाछें पछिताऊ ॥ सुनि मुनि दसरथ बचन सुहाए। मंगल मोद मूल मन भाए ॥

सुनु नृप जासु बिमुख पछिताहीं। जासु भजन बिनु जरनि न जाहीं ॥ भयउ तुम्हार तनय सोइ स्वामी। रामु पुनीत प्रेम अनुगामी ॥

Doha / दोहा

दो. बेगि बिलंबु न करिअ नृप साजिअ सबुइ समाजु। सुदिन सुमंगलु तबहिं जब रामु होहिं जुबराजु ॥ ४ ॥

Chaupai / चोपाई

मुदित महिपति मंदिर आए। सेवक सचिव सुमंत्रु बोलाए ॥ कहि जयजीव सीस तिन्ह नाए। भूप सुमंगल बचन सुनाए ॥

जौं पाँचहि मत लागै नीका। करहु हरषि हियँ रामहि टीका ॥ मंत्री मुदित सुनत प्रिय बानी। अभिमत बिरवँ परेउ जनु पानी ॥

बिनती सचिव करहि कर जोरी। जिअहु जगतपति बरिस करोरी ॥ जग मंगल भल काजु बिचारा। बेगिअ नाथ न लाइअ बारा ॥

नृपहि मोदु सुनि सचिव सुभाषा। बढ़त बौंड़ जनु लही सुसाखा ॥

Doha / दोहा

दो. कहेउ भूप मुनिराज कर जोइ जोइ आयसु होइ। राम राज अभिषेक हित बेगि करहु सोइ सोइ ॥ ५ ॥

Chaupai / चोपाई

हरषि मुनीस कहेउ मृदु बानी। आनहु सकल सुतीरथ पानी ॥ औषध मूल फूल फल पाना। कहे नाम गनि मंगल नाना ॥

चामर चरम बसन बहु भाँती। रोम पाट पट अगनित जाती ॥ मनिगन मंगल बस्तु अनेका। जो जग जोगु भूप अभिषेका ॥

बेद बिदित कहि सकल बिधाना। कहेउ रचहु पुर बिबिध बिताना ॥ सफल रसाल पूगफल केरा। रोपहु बीथिन्ह पुर चहुँ फेरा ॥

रचहु मंजु मनि चौकें चारू। कहहु बनावन बेगि बजारू ॥ पूजहु गनपति गुर कुलदेवा। सब बिधि करहु भूमिसुर सेवा ॥

Doha / दोहा

दो. ध्वज पताक तोरन कलस सजहु तुरग रथ नाग। सिर धरि मुनिबर बचन सबु निज निज काजहिं लाग ॥ ६ ॥

Chaupai / चोपाई

जो मुनीस जेहि आयसु दीन्हा। सो तेहिं काजु प्रथम जनु कीन्हा ॥ बिप्र साधु सुर पूजत राजा। करत राम हित मंगल काजा ॥

सुनत राम अभिषेक सुहावा। बाज गहागह अवध बधावा ॥ राम सीय तन सगुन जनाए। फरकहिं मंगल अंग सुहाए ॥

पुलकि सप्रेम परसपर कहहीं। भरत आगमनु सूचक अहहीं ॥ भए बहुत दिन अति अवसेरी। सगुन प्रतीति भेंट प्रिय केरी ॥

भरत सरिस प्रिय को जग माहीं। इहइ सगुन फलु दूसर नाहीं ॥ रामहि बंधु सोच दिन राती। अंडन्हि कमठ ह्रदउ जेहि भाँती ॥

Doha / दोहा

दो. एहि अवसर मंगलु परम सुनि रहँसेउ रनिवासु। सोभत लखि बिधु बढ़त जनु बारिधि बीचि बिलासु ॥ ७ ॥

Chaupai / चोपाई

प्रथम जाइ जिन्ह बचन सुनाए। भूषन बसन भूरि तिन्ह पाए ॥ प्रेम पुलकि तन मन अनुरागीं। मंगल कलस सजन सब लागीं ॥

चौकें चारु सुमित्राँ पुरी। मनिमय बिबिध भाँति अति रुरी ॥ आनँद मगन राम महतारी। दिए दान बहु बिप्र हँकारी ॥

पूजीं ग्रामदेबि सुर नागा। कहेउ बहोरि देन बलिभागा ॥ जेहि बिधि होइ राम कल्यानू। देहु दया करि सो बरदानू ॥

गावहिं मंगल कोकिलबयनीं। बिधुबदनीं मृगसावकनयनीं ॥

Doha / दोहा

दो. राम राज अभिषेकु सुनि हियँ हरषे नर नारि। लगे सुमंगल सजन सब बिधि अनुकूल बिचारि ॥ ८ ॥

Chaupai / चोपाई

तब नरनाहँ बसिष्ठु बोलाए। रामधाम सिख देन पठाए ॥ गुर आगमनु सुनत रघुनाथा। द्वार आइ पद नायउ माथा ॥

सादर अरघ देइ घर आने। सोरह भाँति पूजि सनमाने ॥ गहे चरन सिय सहित बहोरी। बोले रामु कमल कर जोरी ॥

सेवक सदन स्वामि आगमनू। मंगल मूल अमंगल दमनू ॥ तदपि उचित जनु बोलि सप्रीती। पठइअ काज नाथ असि नीती ॥

प्रभुता तजि प्रभु कीन्ह सनेहू। भयउ पुनीत आजु यहु गेहू ॥ आयसु होइ सो करौं गोसाई। सेवक लहइ स्वामि सेवकाई ॥

Doha / दोहा

दो. सुनि सनेह साने बचन मुनि रघुबरहि प्रसंस। राम कस न तुम्ह कहहु अस हंस बंस अवतंस ॥ ९ ॥

Chaupai / चोपाई

बरनि राम गुन सीलु सुभाऊ। बोले प्रेम पुलकि मुनिराऊ ॥ भूप सजेउ अभिषेक समाजू। चाहत देन तुम्हहि जुबराजू ॥

राम करहु सब संजम आजू। जौं बिधि कुसल निबाहै काजू ॥ गुरु सिख देइ राय पहिं गयउ। राम हृदयँ अस बिसमउ भयऊ ॥

जनमे एक संग सब भाई। भोजन सयन केलि लरिकाई ॥ करनबेध उपबीत बिआहा। संग संग सब भए उछाहा ॥

बिमल बंस यहु अनुचित एकू। बंधु बिहाइ बड़ेहि अभिषेकू ॥ प्रभु सप्रेम पछितानि सुहाई। हरउ भगत मन कै कुटिलाई ॥

Doha / दोहा

दो. तेहि अवसर आए लखन मगन प्रेम आनंद। सनमाने प्रिय बचन कहि रघुकुल कैरव चंद ॥ १० ॥

Chaupai / चोपाई

बाजहिं बाजने बिबिध बिधाना। पुर प्रमोदु नहिं जाइ बखाना ॥ भरत आगमनु सकल मनावहिं। आवहुँ बेगि नयन फलु पावहिं ॥

हाट बाट घर गलीं अथाई। कहहिं परसपर लोग लोगाई ॥ कालि लगन भलि केतिक बारा। पूजिहि बिधि अभिलाषु हमारा ॥

कनक सिंघासन सीय समेता। बैठहिं रामु होइ चित चेता ॥ सकल कहहिं कब होइहि काली। बिघन मनावहिं देव कुचाली ॥

तिन्हहि सोहाइ न अवध बधावा। चोरहि चंदिनि राति न भावा ॥ सारद बोलि बिनय सुर करहीं। बारहिं बार पाय लै परहीं ॥

Doha / दोहा

दो. बिपति हमारि बिलोकि बड़ि मातु करिअ सोइ आजु। रामु जाहिं बन राजु तजि होइ सकल सुरकाजु ॥ ११ ॥

Chaupai / चोपाई

सुनि सुर बिनय ठाढ़ि पछिताती। भइउँ सरोज बिपिन हिमराती ॥ देखि देव पुनि कहहिं निहोरी। मातु तोहि नहिं थोरिउ खोरी ॥

बिसमय हरष रहित रघुराऊ। तुम्ह जानहु सब राम प्रभाऊ ॥ जीव करम बस सुख दुख भागी। जाइअ अवध देव हित लागी ॥

बार बार गहि चरन सँकोचौ। चली बिचारि बिबुध मति पोची ॥ ऊँच निवासु नीचि करतूती। देखि न सकहिं पराइ बिभूती ॥

आगिल काजु बिचारि बहोरी। करहहिं चाह कुसल कबि मोरी ॥ हरषि हृदयँ दसरथ पुर आई। जनु ग्रह दसा दुसह दुखदाई ॥

Doha / दोहा

दो. नामु मंथरा मंदमति चेरी कैकेइ केरि। अजस पेटारी ताहि करि गई गिरा मति फेरि ॥ १२ ॥

Chaupai / चोपाई

दीख मंथरा नगरु बनावा। मंजुल मंगल बाज बधावा ॥ पूछेसि लोगन्ह काह उछाहू। राम तिलकु सुनि भा उर दाहू ॥

करइ बिचारु कुबुद्धि कुजाती। होइ अकाजु कवनि बिधि राती ॥ देखि लागि मधु कुटिल किराती। जिमि गवँ तकइ लेउँ केहि भाँती ॥

भरत मातु पहिं गइ बिलखानी। का अनमनि हसि कह हँसि रानी ॥ ऊतरु देइ न लेइ उसासू। नारि चरित करि ढारइ आँसू ॥

हँसि कह रानि गालु बड़ तोरें। दीन्ह लखन सिख अस मन मोरें ॥ तबहुँ न बोल चेरि बड़ि पापिनि। छाड़इ स्वास कारि जनु साँपिनि ॥

Doha / दोहा

दो. सभय रानि कह कहसि किन कुसल रामु महिपालु। लखनु भरतु रिपुदमनु सुनि भा कुबरी उर सालु ॥ १३ ॥

Chaupai / चोपाई

कत सिख देइ हमहि कोउ माई। गालु करब केहि कर बलु पाई ॥ रामहि छाड़ि कुसल केहि आजू। जेहि जनेसु देइ जुबराजू ॥

भयउ कौसिलहि बिधि अति दाहिन। देखत गरब रहत उर नाहिन ॥ देखेहु कस न जाइ सब सोभा। जो अवलोकि मोर मनु छोभा ॥

पूतु बिदेस न सोचु तुम्हारें। जानति हहु बस नाहु हमारें ॥ नीद बहुत प्रिय सेज तुराई। लखहु न भूप कपट चतुराई ॥

सुनि प्रिय बचन मलिन मनु जानी। झुकी रानि अब रहु अरगानी ॥ पुनि अस कबहुँ कहसि घरफोरी। तब धरि जीभ कढ़ावउँ तोरी ॥

Doha / दोहा

दो. काने खोरे कूबरे कुटिल कुचाली जानि। तिय बिसेषि पुनि चेरि कहि भरतमातु मुसुकानि ॥ १४ ॥

Chaupai / चोपाई

प्रियबादिनि सिख दीन्हिउँ तोही। सपनेहुँ तो पर कोपु न मोही ॥ सुदिनु सुमंगल दायकु सोई। तोर कहा फुर जेहि दिन होई ॥

जेठ स्वामि सेवक लघु भाई। यह दिनकर कुल रीति सुहाई ॥ राम तिलकु जौं साँचेहुँ काली। देउँ मागु मन भावत आली ॥

कौसल्या सम सब महतारी। रामहि सहज सुभायँ पिआरी ॥ मो पर करहिं सनेहु बिसेषी। मैं करि प्रीति परीछा देखी ॥

जौं बिधि जनमु देइ करि छोहू। होहुँ राम सिय पूत पुतोहू ॥ प्रान तें अधिक रामु प्रिय मोरें। तिन्ह कें तिलक छोभु कस तोरें ॥

Doha / दोहा

दो. भरत सपथ तोहि सत्य कहु परिहरि कपट दुराउ। हरष समय बिसमउ करसि कारन मोहि सुनाउ ॥ १५ ॥

Chaupai / चोपाई

एकहिं बार आस सब पूजी। अब कछु कहब जीभ करि दूजी ॥ फोरै जोगु कपारु अभागा। भलेउ कहत दुख रउरेहि लागा ॥

कहहिं झूठि फुरि बात बनाई। ते प्रिय तुम्हहि करुइ मैं माई ॥ हमहुँ कहबि अब ठकुरसोहाती। नाहिं त मौन रहब दिनु राती ॥

करि कुरूप बिधि परबस कीन्हा। बवा सो लुनिअ लहिअ जो दीन्हा ॥ कोउ नृप होउ हमहि का हानी। चेरि छाड़ि अब होब कि रानी ॥

जारै जोगु सुभाउ हमारा। अनभल देखि न जाइ तुम्हारा ॥ तातें कछुक बात अनुसारी। छमिअ देबि बड़ि चूक हमारी ॥

Doha / दोहा

दो. गूढ़ कपट प्रिय बचन सुनि तीय अधरबुधि रानि। सुरमाया बस बैरिनिहि सुह्द जानि पतिआनि ॥ १६ ॥

Chaupai / चोपाई

सादर पुनि पुनि पूँछति ओही। सबरी गान मृगी जनु मोही ॥ तसि मति फिरी अहइ जसि भाबी। रहसी चेरि घात जनु फाबी ॥

तुम्ह पूँछहु मैं कहत डेराऊँ। धरेउ मोर घरफोरी नाऊँ ॥ सजि प्रतीति बहुबिधि गढ़ि छोली। अवध साढ़साती तब बोली ॥

प्रिय सिय रामु कहा तुम्ह रानी। रामहि तुम्ह प्रिय सो फुरि बानी ॥ रहा प्रथम अब ते दिन बीते। समउ फिरें रिपु होहिं पिंरीते ॥

भानु कमल कुल पोषनिहारा। बिनु जल जारि करइ सोइ छारा ॥ जरि तुम्हारि चह सवति उखारी। रूँधहु करि उपाउ बर बारी ॥

Doha / दोहा

दो. तुम्हहि न सोचु सोहाग बल निज बस जानहु राउ। मन मलीन मुह मीठ नृप राउर सरल सुभाउ ॥ १७ ॥

Chaupai / चोपाई

चतुर गँभीर राम महतारी। बीचु पाइ निज बात सँवारी ॥ पठए भरतु भूप ननिअउरें। राम मातु मत जानव रउरें ॥

सेवहिं सकल सवति मोहि नीकें। गरबित भरत मातु बल पी कें ॥ सालु तुम्हार कौसिलहि माई। कपट चतुर नहिं होइ जनाई ॥

राजहि तुम्ह पर प्रेमु बिसेषी। सवति सुभाउ सकइ नहिं देखी ॥ रची प्रंपचु भूपहि अपनाई। राम तिलक हित लगन धराई ॥

यह कुल उचित राम कहुँ टीका। सबहि सोहाइ मोहि सुठि नीका ॥ आगिलि बात समुझि डरु मोही। देउ दैउ फिरि सो फलु ओही ॥

Doha / दोहा

दो. रचि पचि कोटिक कुटिलपन कीन्हेसि कपट प्रबोधु ॥ कहिसि कथा सत सवति कै जेहि बिधि बाढ़ बिरोधु ॥ १८ ॥

Chaupai / चोपाई

भावी बस प्रतीति उर आई। पूँछ रानि पुनि सपथ देवाई ॥ का पूछहुँ तुम्ह अबहुँ न जाना। निज हित अनहित पसु पहिचाना ॥

भयउ पाखु दिन सजत समाजू। तुम्ह पाई सुधि मोहि सन आजू ॥ खाइअ पहिरिअ राज तुम्हारें। सत्य कहें नहिं दोषु हमारें ॥

जौं असत्य कछु कहब बनाई। तौ बिधि देइहि हमहि सजाई ॥ रामहि तिलक कालि जौं भयऊ।þ तुम्ह कहुँ बिपति बीजु बिधि बयऊ ॥

रेख खँचाइ कहउँ बलु भाषी। भामिनि भइहु दूध कइ माखी ॥ जौं सुत सहित करहु सेवकाई। तौ घर रहहु न आन उपाई ॥

Doha / दोहा

दो. कद्रूँ बिनतहि दीन्ह दुखु तुम्हहि कौसिलाँ देब। भरतु बंदिगृह सेइहहिं लखनु राम के नेब ॥ १९ ॥

Chaupai / चोपाई

कैकयसुता सुनत कटु बानी। कहि न सकइ कछु सहमि सुखानी ॥ तन पसेउ कदली जिमि काँपी। कुबरीं दसन जीभ तब चाँपी ॥

कहि कहि कोटिक कपट कहानी। धीरजु धरहु प्रबोधिसि रानी ॥ फिरा करमु प्रिय लागि कुचाली। बकिहि सराहइ मानि मराली ॥

सुनु मंथरा बात फुरि तोरी। दहिनि आँखि नित फरकइ मोरी ॥ दिन प्रति देखउँ राति कुसपने। कहउँ न तोहि मोह बस अपने ॥

काह करौ सखि सूध सुभाऊ। दाहिन बाम न जानउँ काऊ ॥

Doha / दोहा

दो. अपने चलत न आजु लगि अनभल काहुक कीन्ह। केहिं अघ एकहि बार मोहि दैअँ दुसह दुखु दीन्ह ॥ २० ॥

Chaupai / चोपाई

नैहर जनमु भरब बरु जाइ। जिअत न करबि सवति सेवकाई ॥ अरि बस दैउ जिआवत जाही। मरनु नीक तेहि जीवन चाही ॥

दीन बचन कह बहुबिधि रानी। सुनि कुबरीं तियमाया ठानी ॥ अस कस कहहु मानि मन ऊना। सुखु सोहागु तुम्ह कहुँ दिन दूना ॥

जेहिं राउर अति अनभल ताका। सोइ पाइहि यहु फलु परिपाका ॥ जब तें कुमत सुना मैं स्वामिनि। भूख न बासर नींद न जामिनि ॥

पूँछेउ गुनिन्ह रेख तिन्ह खाँची। भरत भुआल होहिं यह साँची ॥ भामिनि करहु त कहौं उपाऊ। है तुम्हरीं सेवा बस राऊ ॥

Doha / दोहा

दो. परउँ कूप तुअ बचन पर सकउँ पूत पति त्यागि। कहसि मोर दुखु देखि बड़ कस न करब हित लागि ॥ २१ ॥

Chaupai / चोपाई

कुबरीं करि कबुली कैकेई। कपट छुरी उर पाहन टेई ॥ लखइ न रानि निकट दुखु कैंसे। चरइ हरित तिन बलिपसु जैसें ॥

सुनत बात मृदु अंत कठोरी। देति मनहुँ मधु माहुर घोरी ॥ कहइ चेरि सुधि अहइ कि नाही। स्वामिनि कहिहु कथा मोहि पाहीं ॥

दुइ बरदान भूप सन थाती। मागहु आजु जुड़ावहु छाती ॥ सुतहि राजु रामहि बनवासू। देहु लेहु सब सवति हुलासु ॥

भूपति राम सपथ जब करई। तब मागेहु जेहिं बचनु न टरई ॥ होइ अकाजु आजु निसि बीतें। बचनु मोर प्रिय मानेहु जी तें ॥

Doha / दोहा

दो. बड़ कुघातु करि पातकिनि कहेसि कोपगृहँ जाहु। काजु सँवारेहु सजग सबु सहसा जनि पतिआहु ॥ २२ ॥

Chaupai / चोपाई

कुबरिहि रानि प्रानप्रिय जानी। बार बार बड़ि बुद्धि बखानी ॥ तोहि सम हित न मोर संसारा। बहे जात कइ भइसि अधारा ॥

जौं बिधि पुरब मनोरथु काली। करौं तोहि चख पूतरि आली ॥ बहुबिधि चेरिहि आदरु देई। कोपभवन गवनि कैकेई ॥

बिपति बीजु बरषा रितु चेरी। भुइँ भइ कुमति कैकेई केरी ॥ पाइ कपट जलु अंकुर जामा। बर दोउ दल दुख फल परिनामा ॥

कोप समाजु साजि सबु सोई। राजु करत निज कुमति बिगोई ॥ राउर नगर कोलाहलु होई। यह कुचालि कछु जान न कोई ॥

Doha / दोहा

दो. प्रमुदित पुर नर नारि। सब सजहिं सुमंगलचार। एक प्रबिसहिं एक निर्गमहिं भीर भूप दरबार ॥ २३ ॥

Chaupai / चोपाई

बाल सखा सुन हियँ हरषाहीं। मिलि दस पाँच राम पहिं जाहीं ॥ प्रभु आदरहिं प्रेमु पहिचानी। पूँछहिं कुसल खेम मृदु बानी ॥

फिरहिं भवन प्रिय आयसु पाई। करत परसपर राम बड़ाई ॥ को रघुबीर सरिस संसारा। सीलु सनेह निबाहनिहारा।

जेंहि जेंहि जोनि करम बस भ्रमहीं। तहँ तहँ ईसु देउ यह हमहीं ॥ सेवक हम स्वामी सियनाहू। होउ नात यह ओर निबाहू ॥

अस अभिलाषु नगर सब काहू। कैकयसुता ह्दयँ अति दाहू ॥ को न कुसंगति पाइ नसाई। रहइ न नीच मतें चतुराई ॥

Doha / दोहा

दो. साँस समय सानंद नृपु गयउ कैकेई गेहँ। गवनु निठुरता निकट किय जनु धरि देह सनेहँ ॥ २४ ॥

Chaupai / चोपाई

कोपभवन सुनि सकुचेउ राउ। भय बस अगहुड़ परइ न पाऊ ॥ सुरपति बसइ बाहँबल जाके। नरपति सकल रहहिं रुख ताकें ॥

सो सुनि तिय रिस गयउ सुखाई। देखहु काम प्रताप बड़ाई ॥ सूल कुलिस असि अँगवनिहारे। ते रतिनाथ सुमन सर मारे ॥

सभय नरेसु प्रिया पहिं गयऊ। देखि दसा दुखु दारुन भयऊ ॥ भूमि सयन पटु मोट पुराना। दिए डारि तन भूषण नाना ॥

कुमतिहि कसि कुबेषता फाबी। अन अहिवातु सूच जनु भाबी ॥ जाइ निकट नृपु कह मृदु बानी। प्रानप्रिया केहि हेतु रिसानी ॥

Chanda / छन्द

छं. केहि हेतु रानि रिसानि परसत पानि पतिहि नेवारई। मानहुँ सरोष भुअंग भामिनि बिषम भाँति निहारई ॥ दोउ बासना रसना दसन बर मरम ठाहरु देखई। तुलसी नृपति भवतब्यता बस काम कौतुक लेखई ॥

Sortha / सोरठा

सो. बार बार कह राउ सुमुखि सुलोचिनि पिकबचनि। कारन मोहि सुनाउ गजगामिनि निज कोप कर ॥ २५ ॥

Chaupai / चोपाई

अनहित तोर प्रिया केइँ कीन्हा। केहि दुइ सिर केहि जमु चह लीन्हा ॥ कहु केहि रंकहि करौ नरेसू। कहु केहि नृपहि निकासौं देसू ॥

सकउँ तोर अरि अमरउ मारी। काह कीट बपुरे नर नारी ॥ जानसि मोर सुभाउ बरोरू। मनु तव आनन चंद चकोरू ॥

प्रिया प्रान सुत सरबसु मोरें। परिजन प्रजा सकल बस तोरें ॥ जौं कछु कहौ कपटु करि तोही। भामिनि राम सपथ सत मोही ॥

बिहसि मागु मनभावति बाता। भूषन सजहि मनोहर गाता ॥ घरी कुघरी समुझि जियँ देखू। बेगि प्रिया परिहरहि कुबेषू ॥

Doha / दोहा

दो. यह सुनि मन गुनि सपथ बड़ि बिहसि उठी मतिमंद। भूषन सजति बिलोकि मृगु मनहुँ किरातिनि फंद ॥ २६ ॥

Chaupai / चोपाई

पुनि कह राउ सुह्रद जियँ जानी। प्रेम पुलकि मृदु मंजुल बानी ॥ भामिनि भयउ तोर मनभावा। घर घर नगर अनंद बधावा ॥

रामहि देउँ कालि जुबराजू। सजहि सुलोचनि मंगल साजू ॥ दलकि उठेउ सुनि ह्रदउ कठोरू। जनु छुइ गयउ पाक बरतोरू ॥

ऐसिउ पीर बिहसि तेहि गोई। चोर नारि जिमि प्रगटि न रोई ॥ लखहिं न भूप कपट चतुराई। कोटि कुटिल मनि गुरू पढ़ाई ॥

जद्यपि नीति निपुन नरनाहू। नारिचरित जलनिधि अवगाहू ॥ कपट सनेहु बढ़ाइ बहोरी। बोली बिहसि नयन मुहु मोरी ॥

Doha / दोहा

दो. मागु मागु पै कहहु पिय कबहुँ न देहु न लेहु। देन कहेहु बरदान दुइ तेउ पावत संदेहु ॥ २७ ॥

Chaupai / चोपाई

जानेउँ मरमु राउ हँसि कहई। तुम्हहि कोहाब परम प्रिय अहई ॥ थाति राखि न मागिहु काऊ। बिसरि गयउ मोहि भोर सुभाऊ ॥

झूठेहुँ हमहि दोषु जनि देहू। दुइ कै चारि मागि मकु लेहू ॥ रघुकुल रीति सदा चलि आई। प्रान जाहुँ बरु बचनु न जाई ॥

नहिं असत्य सम पातक पुंजा। गिरि सम होहिं कि कोटिक गुंजा ॥ सत्यमूल सब सुकृत सुहाए। बेद पुरान बिदित मनु गाए ॥

तेहि पर राम सपथ करि आई। सुकृत सनेह अवधि रघुराई ॥ बात दृढ़ाइ कुमति हँसि बोली। कुमत कुबिहग कुलह जनु खोली ॥

Doha / दोहा

दो. भूप मनोरथ सुभग बनु सुख सुबिहंग समाजु। भिल्लनि जिमि छाड़न चहति बचनु भयंकरु बाजु ॥ २८ ॥

Masaparayana 13 Ends

namo namaḥ!

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