Ram Charita Manas

Masaparayan 14

ॐ श्री परमात्मने नमः

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संस्कृत्म
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Chaupai / चोपाई

सुनहु प्रानप्रिय भावत जी का। देहु एक बर भरतहि टीका ॥ मागउँ दूसर बर कर जोरी। पुरवहु नाथ मनोरथ मोरी ॥

तापस बेष बिसेषि उदासी। चौदह बरिस रामु बनबासी ॥ सुनि मृदु बचन भूप हियँ सोकू। ससि कर छुअत बिकल जिमि कोकू ॥

गयउ सहमि नहिं कछु कहि आवा। जनु सचान बन झपटेउ लावा ॥ बिबरन भयउ निपट नरपालू। दामिनि हनेउ मनहुँ तरु तालू ॥

माथे हाथ मूदि दोउ लोचन। तनु धरि सोचु लाग जनु सोचन ॥ मोर मनोरथु सुरतरु फूला। फरत करिनि जिमि हतेउ समूला ॥

अवध उजारि कीन्हि कैकेईं। दीन्हसि अचल बिपति कै नेईं ॥

Doha / दोहा

दो. कवनें अवसर का भयउ गयउँ नारि बिस्वास। जोग सिद्धि फल समय जिमि जतिहि अबिद्या नास ॥ २९ ॥

Chaupai / चोपाई

एहि बिधि राउ मनहिं मन झाँखा। देखि कुभाँति कुमति मन माखा ॥ भरतु कि राउर पूत न होहीं। आनेहु मोल बेसाहि कि मोही ॥

जो सुनि सरु अस लाग तुम्हारें। काहे न बोलहु बचनु सँभारे ॥ देहु उतरु अनु करहु कि नाहीं। सत्यसंध तुम्ह रघुकुल माहीं ॥

देन कहेहु अब जनि बरु देहू। तजहुँ सत्य जग अपजसु लेहू ॥ सत्य सराहि कहेहु बरु देना। जानेहु लेइहि मागि चबेना ॥

सिबि दधीचि बलि जो कछु भाषा। तनु धनु तजेउ बचन पनु राखा ॥ अति कटु बचन कहति कैकेई। मानहुँ लोन जरे पर देई ॥

Doha / दोहा

दो. धरम धुरंधर धीर धरि नयन उघारे रायँ। सिरु धुनि लीन्हि उसास असि मारेसि मोहि कुठायँ ॥ ३० ॥

Chaupai / चोपाई

आगें दीखि जरत रिस भारी। मनहुँ रोष तरवारि उघारी ॥ मूठि कुबुद्धि धार निठुराई। धरी कूबरीं सान बनाई ॥

लखी महीप कराल कठोरा। सत्य कि जीवनु लेइहि मोरा ॥ बोले राउ कठिन करि छाती। बानी सबिनय तासु सोहाती ॥

प्रिया बचन कस कहसि कुभाँती। भीर प्रतीति प्रीति करि हाँती ॥ मोरें भरतु रामु दुइ आँखी। सत्य कहउँ करि संकरू साखी ॥

अवसि दूतु मैं पठइब प्राता। ऐहहिं बेगि सुनत दोउ भ्राता ॥ सुदिन सोधि सबु साजु सजाई। देउँ भरत कहुँ राजु बजाई ॥

Doha / दोहा

दो. लोभु न रामहि राजु कर बहुत भरत पर प्रीति। मैं बड़ छोट बिचारि जियँ करत रहेउँ नृपनीति ॥ ३१ ॥

Chaupai / चोपाई

राम सपथ सत कहूँ सुभाऊ। राममातु कछु कहेउ न काऊ ॥ मैं सबु कीन्ह तोहि बिनु पूँछें। तेहि तें परेउ मनोरथु छूछें ॥

रिस परिहरू अब मंगल साजू। कछु दिन गएँ भरत जुबराजू ॥ एकहि बात मोहि दुखु लागा। बर दूसर असमंजस मागा ॥

अजहुँ हृदय जरत तेहि आँचा। रिस परिहास कि साँचेहुँ साँचा ॥ कहु तजि रोषु राम अपराधू। सबु कोउ कहइ रामु सुठि साधू ॥

तुहूँ सराहसि करसि सनेहू। अब सुनि मोहि भयउ संदेहू ॥ जासु सुभाउ अरिहि अनुकूला। सो किमि करिहि मातु प्रतिकूला ॥

Doha / दोहा

दो. प्रिया हास रिस परिहरहि मागु बिचारि बिबेकु। जेहिं देखाँ अब नयन भरि भरत राज अभिषेकु ॥ ३२ ॥

Chaupai / चोपाई

जिऐ मीन बरू बारि बिहीना। मनि बिनु फनिकु जिऐ दुख दीना ॥ कहउँ सुभाउ न छलु मन माहीं। जीवनु मोर राम बिनु नाहीं ॥

समुझि देखु जियँ प्रिया प्रबीना। जीवनु राम दरस आधीना ॥ सुनि म्रदु बचन कुमति अति जरई। मनहुँ अनल आहुति घृत परई ॥

कहइ करहु किन कोटि उपाया। इहाँ न लागिहि राउरि माया ॥ देहु कि लेहु अजसु करि नाहीं। मोहि न बहुत प्रपंच सोहाहीं।

रामु साधु तुम्ह साधु सयाने। राममातु भलि सब पहिचाने ॥ जस कौसिलाँ मोर भल ताका। तस फलु उन्हहि देउँ करि साका ॥

Doha / दोहा

दो. होत प्रात मुनिबेष धरि जौं न रामु बन जाहिं। मोर मरनु राउर अजस नृप समुझिअ मन माहिं ॥ ३३ ॥

Chaupai / चोपाई

अस कहि कुटिल भई उठि ठाढ़ी। मानहुँ रोष तरंगिनि बाढ़ी ॥ पाप पहार प्रगट भइ सोई। भरी क्रोध जल जाइ न जोई ॥

दोउ बर कूल कठिन हठ धारा। भवँर कूबरी बचन प्रचारा ॥ ढाहत भूपरूप तरु मूला। चली बिपति बारिधि अनुकूला ॥

लखी नरेस बात फुरि साँची। तिय मिस मीचु सीस पर नाची ॥ गहि पद बिनय कीन्ह बैठारी। जनि दिनकर कुल होसि कुठारी ॥

मागु माथ अबहीं देउँ तोही। राम बिरहँ जनि मारसि मोही ॥ राखु राम कहुँ जेहि तेहि भाँती। नाहिं त जरिहि जनम भरि छाती ॥

Doha / दोहा

दो. देखी ब्याधि असाध नृपु परेउ धरनि धुनि माथ। कहत परम आरत बचन राम राम रघुनाथ ॥ ३४ ॥

Chaupai / चोपाई

ब्याकुल राउ सिथिल सब गाता। करिनि कलपतरु मनहुँ निपाता ॥ कंठु सूख मुख आव न बानी। जनु पाठीनु दीन बिनु पानी ॥

पुनि कह कटु कठोर कैकेई। मनहुँ घाय महुँ माहुर देई ॥ जौं अंतहुँ अस करतबु रहेऊ। मागु मागु तुम्ह केहिं बल कहेऊ ॥

दुइ कि होइ एक समय भुआला। हँसब ठठाइ फुलाउब गाला ॥ दानि कहाउब अरु कृपनाई। होइ कि खेम कुसल रौताई ॥

छाड़हु बचनु कि धीरजु धरहू। जनि अबला जिमि करुना करहू ॥ तनु तिय तनय धामु धनु धरनी। सत्यसंध कहुँ तृन सम बरनी ॥

Doha / दोहा

दो. मरम बचन सुनि राउ कह कहु कछु दोषु न तोर। लागेउ तोहि पिसाच जिमि कालु कहावत मोर ॥ ३५ ॥ û

Chaupai / चोपाई

चहत न भरत भूपतहि भोरें। बिधि बस कुमति बसी जिय तोरें ॥ सो सबु मोर पाप परिनामू। भयउ कुठाहर जेहिं बिधि बामू ॥

सुबस बसिहि फिरि अवध सुहाई। सब गुन धाम राम प्रभुताई ॥ करिहहिं भाइ सकल सेवकाई। होइहि तिहुँ पुर राम बड़ाई ॥

तोर कलंकु मोर पछिताऊ। मुएहुँ न मिटहि न जाइहि काऊ ॥ अब तोहि नीक लाग करु सोई। लोचन ओट बैठु मुहु गोई ॥

जब लगि जिऔं कहउँ कर जोरी। तब लगि जनि कछु कहसि बहोरी ॥ फिरि पछितैहसि अंत अभागी। मारसि गाइ नहारु लागी ॥

Doha / दोहा

दो. परेउ राउ कहि कोटि बिधि काहे करसि निदानु। कपट सयानि न कहति कछु जागति मनहुँ मसानु ॥ ३६ ॥

Chaupai / चोपाई

राम राम रट बिकल भुआलू। जनु बिनु पंख बिहंग बेहालू ॥ हृदयँ मनाव भोरु जनि होई। रामहि जाइ कहै जनि कोई ॥

उदउ करहु जनि रबि रघुकुल गुर। अवध बिलोकि सूल होइहि उर ॥ भूप प्रीति कैकइ कठिनाई। उभय अवधि बिधि रची बनाई ॥

बिलपत नृपहि भयउ भिनुसारा। बीना बेनु संख धुनि द्वारा ॥ पढ़हिं भाट गुन गावहिं गायक। सुनत नृपहि जनु लागहिं सायक ॥

मंगल सकल सोहाहिं न कैसें। सहगामिनिहि बिभूषन जैसें ॥ तेहिं निसि नीद परी नहि काहू। राम दरस लालसा उछाहू ॥

Doha / दोहा

दो. द्वार भीर सेवक सचिव कहहिं उदित रबि देखि। जागेउ अजहुँ न अवधपति कारनु कवनु बिसेषि ॥ ३७ ॥

Chaupai / चोपाई

पछिले पहर भूपु नित जागा। आजु हमहि बड़ अचरजु लागा ॥ जाहु सुमंत्र जगावहु जाई। कीजिअ काजु रजायसु पाई ॥

गए सुमंत्रु तब राउर माही। देखि भयावन जात डेराहीं ॥ धाइ खाइ जनु जाइ न हेरा। मानहुँ बिपति बिषाद बसेरा ॥

पूछें कोउ न ऊतरु देई। गए जेंहिं भवन भूप कैकैई ॥ कहि जयजीव बैठ सिरु नाई। दैखि भूप गति गयउ सुखाई ॥

सोच बिकल बिबरन महि परेऊ। मानहुँ कमल मूलु परिहरेऊ ॥ सचिउ सभीत सकइ नहिं पूँछी। बोली असुभ भरी सुभ छूछी ॥

Doha / दोहा

दो. परी न राजहि नीद निसि हेतु जान जगदीसु। रामु रामु रटि भोरु किय कहइ न मरमु महीसु ॥ ३८ ॥

Chaupai / चोपाई

आनहु रामहि बेगि बोलाई। समाचार तब पूँछेहु आई ॥ चलेउ सुमंत्र राय रूख जानी। लखी कुचालि कीन्हि कछु रानी ॥

सोच बिकल मग परइ न पाऊ। रामहि बोलि कहिहि का राऊ ॥ उर धरि धीरजु गयउ दुआरें। पूछँहिं सकल देखि मनु मारें ॥

समाधानु करि सो सबही का। गयउ जहाँ दिनकर कुल टीका ॥ रामु सुमंत्रहि आवत देखा। आदरु कीन्ह पिता सम लेखा ॥

निरखि बदनु कहि भूप रजाई। रघुकुलदीपहि चलेउ लेवाई ॥ रामु कुभाँति सचिव सँग जाहीं। देखि लोग जहँ तहँ बिलखाहीं ॥

Doha / दोहा

दो. जाइ दीख रघुबंसमनि नरपति निपट कुसाजु ॥ सहमि परेउ लखि सिंघिनिहि मनहुँ बृद्ध गजराजु ॥ ३९ ॥

Chaupai / चोपाई

सूखहिं अधर जरइ सबु अंगू। मनहुँ दीन मनिहीन भुअंगू ॥ सरुष समीप दीखि कैकेई। मानहुँ मीचु घरी गनि लेई ॥

करुनामय मृदु राम सुभाऊ। प्रथम दीख दुखु सुना न काऊ ॥ तदपि धीर धरि समउ बिचारी। पूँछी मधुर बचन महतारी ॥

मोहि कहु मातु तात दुख कारन। करिअ जतन जेहिं होइ निवारन ॥ सुनहु राम सबु कारन एहू। राजहि तुम पर बहुत सनेहू ॥

देन कहेन्हि मोहि दुइ बरदाना। मागेउँ जो कछु मोहि सोहाना।सो सुनि भयउ भूप उर सोचू। छाड़ि न सकहिं तुम्हार सँकोचू ॥

Doha / दोहा

दो. सुत सनेह इत बचनु उत संकट परेउ नरेसु। सकहु न आयसु धरहु सिर मेटहु कठिन कलेसु ॥ ४० ॥

Chaupai / चोपाई

निधरक बैठि कहइ कटु बानी। सुनत कठिनता अति अकुलानी ॥ जीभ कमान बचन सर नाना। मनहुँ महिप मृदु लच्छ समाना ॥

जनु कठोरपनु धरें सरीरू। सिखइ धनुषबिद्या बर बीरू ॥ सब प्रसंगु रघुपतिहि सुनाई। बैठि मनहुँ तनु धरि निठुराई ॥

मन मुसकाइ भानुकुल भानु। रामु सहज आनंद निधानू ॥ बोले बचन बिगत सब दूषन। मृदु मंजुल जनु बाग बिभूषन ॥

सुनु जननी सोइ सुतु बड़भागी। जो पितु मातु बचन अनुरागी ॥ तनय मातु पितु तोषनिहारा। दुर्लभ जननि सकल संसारा ॥

Doha / दोहा

दो. मुनिगन मिलनु बिसेषि बन सबहि भाँति हित मोर। तेहि महँ पितु आयसु बहुरि संमत जननी तोर ॥ ४१ ॥

Chaupai / चोपाई

भरत प्रानप्रिय पावहिं राजू। बिधि सब बिधि मोहि सनमुख आजु।जों न जाउँ बन ऐसेहु काजा। प्रथम गनिअ मोहि मूढ़ समाजा ॥

सेवहिं अरँडु कलपतरु त्यागी। परिहरि अमृत लेहिं बिषु मागी ॥ तेउ न पाइ अस समउ चुकाहीं। देखु बिचारि मातु मन माहीं ॥

अंब एक दुखु मोहि बिसेषी। निपट बिकल नरनायकु देखी ॥ थोरिहिं बात पितहि दुख भारी। होति प्रतीति न मोहि महतारी ॥

राउ धीर गुन उदधि अगाधू। भा मोहि ते कछु बड़ अपराधू ॥ जातें मोहि न कहत कछु राऊ। मोरि सपथ तोहि कहु सतिभाऊ ॥

Doha / दोहा

दो. सहज सरल रघुबर बचन कुमति कुटिल करि जान। चलइ जोंक जल बक्रगति जद्यपि सलिलु समान ॥ ४२ ॥

Chaupai / चोपाई

रहसी रानि राम रुख पाई। बोली कपट सनेहु जनाई ॥ सपथ तुम्हार भरत कै आना। हेतु न दूसर मै कछु जाना ॥

तुम्ह अपराध जोगु नहिं ताता। जननी जनक बंधु सुखदाता ॥ राम सत्य सबु जो कछु कहहू। तुम्ह पितु मातु बचन रत अहहू ॥

पितहि बुझाइ कहहु बलि सोई। चौथेंपन जेहिं अजसु न होई ॥ तुम्ह सम सुअन सुकृत जेहिं दीन्हे। उचित न तासु निरादरु कीन्हे ॥

लागहिं कुमुख बचन सुभ कैसे। मगहँ गयादिक तीरथ जैसे ॥ रामहि मातु बचन सब भाए। जिमि सुरसरि गत सलिल सुहाए ॥

Doha / दोहा

दो. गइ मुरुछा रामहि सुमिरि नृप फिरि करवट लीन्ह। सचिव राम आगमन कहि बिनय समय सम कीन्ह ॥ ४३ ॥

Chaupai / चोपाई

अवनिप अकनि रामु पगु धारे। धरि धीरजु तब नयन उघारे ॥ सचिवँ सँभारि राउ बैठारे। चरन परत नृप रामु निहारे ॥

लिए सनेह बिकल उर लाई। गै मनि मनहुँ फनिक फिरि पाई ॥ रामहि चितइ रहेउ नरनाहू। चला बिलोचन बारि प्रबाहू ॥

सोक बिबस कछु कहै न पारा। हृदयँ लगावत बारहिं बारा ॥ बिधिहि मनाव राउ मन माहीं। जेहिं रघुनाथ न कानन जाहीं ॥

सुमिरि महेसहि कहइ निहोरी। बिनती सुनहु सदासिव मोरी ॥ आसुतोष तुम्ह अवढर दानी। आरति हरहु दीन जनु जानी ॥

Doha / दोहा

दो. तुम्ह प्रेरक सब के हृदयँ सो मति रामहि देहु। बचनु मोर तजि रहहि घर परिहरि सीलु सनेहु ॥ ४४ ॥

Chaupai / चोपाई

अजसु होउ जग सुजसु नसाऊ। नरक परौ बरु सुरपुरु जाऊ ॥ सब दुख दुसह सहावहु मोही। लोचन ओट रामु जनि होंही ॥

अस मन गुनइ राउ नहिं बोला। पीपर पात सरिस मनु डोला ॥ रघुपति पितहि प्रेमबस जानी। पुनि कछु कहिहि मातु अनुमानी ॥

देस काल अवसर अनुसारी। बोले बचन बिनीत बिचारी ॥ तात कहउँ कछु करउँ ढिठाई। अनुचितु छमब जानि लरिकाई ॥

अति लघु बात लागि दुखु पावा। काहुँ न मोहि कहि प्रथम जनावा ॥ देखि गोसाइँहि पूँछिउँ माता। सुनि प्रसंगु भए सीतल गाता ॥

Doha / दोहा

दो. मंगल समय सनेह बस सोच परिहरिअ तात। आयसु देइअ हरषि हियँ कहि पुलके प्रभु गात ॥ ४५ ॥

Chaupai / चोपाई

धन्य जनमु जगतीतल तासू। पितहि प्रमोदु चरित सुनि जासू ॥ चारि पदारथ करतल ताकें। प्रिय पितु मातु प्रान सम जाकें ॥

आयसु पालि जनम फलु पाई। ऐहउँ बेगिहिं होउ रजाई ॥ बिदा मातु सन आवउँ मागी। चलिहउँ बनहि बहुरि पग लागी ॥

अस कहि राम गवनु तब कीन्हा। भूप सोक बसु उतरु न दीन्हा ॥ नगर ब्यापि गइ बात सुतीछी। छुअत चढ़ी जनु सब तन बीछी ॥

सुनि भए बिकल सकल नर नारी। बेलि बिटप जिमि देखि दवारी ॥ जो जहँ सुनइ धुनइ सिरु सोई। बड़ बिषादु नहिं धीरजु होई ॥

Doha / दोहा

दो. मुख सुखाहिं लोचन स्त्रवहि सोकु न हृदयँ समाइ। मनहुँ करुन रस कटकई उतरी अवध बजाइ ॥ ४६ ॥

Chaupai / चोपाई

मिलेहि माझ बिधि बात बेगारी। जहँ तहँ देहिं कैकेइहि गारी ॥ एहि पापिनिहि बूझि का परेऊ। छाइ भवन पर पावकु धरेऊ ॥

निज कर नयन काढ़ि चह दीखा। डारि सुधा बिषु चाहत चीखा ॥ कुटिल कठोर कुबुद्धि अभागी। भइ रघुबंस बेनु बन आगी ॥

पालव बैठि पेड़ु एहिं काटा। सुख महुँ सोक ठाटु धरि ठाटा ॥ सदा रामु एहि प्रान समाना। कारन कवन कुटिलपनु ठाना ॥

सत्य कहहिं कबि नारि सुभाऊ। सब बिधि अगहु अगाध दुराऊ ॥ निज प्रतिबिंबु बरुकु गहि जाई। जानि न जाइ नारि गति भाई ॥

Doha / दोहा

दो. काह न पावकु जारि सक का न समुद्र समाइ। का न करै अबला प्रबल केहि जग कालु न खाइ ॥ ४७ ॥

Chaupai / चोपाई

का सुनाइ बिधि काह सुनावा। का देखाइ चह काह देखावा ॥ एक कहहिं भल भूप न कीन्हा। बरु बिचारि नहिं कुमतिहि दीन्हा ॥

जो हठि भयउ सकल दुख भाजनु। अबला बिबस ग्यानु गुनु गा जनु ॥ एक धरम परमिति पहिचाने। नृपहि दोसु नहिं देहिं सयाने ॥

सिबि दधीचि हरिचंद कहानी। एक एक सन कहहिं बखानी ॥ एक भरत कर संमत कहहीं। एक उदास भायँ सुनि रहहीं ॥

कान मूदि कर रद गहि जीहा। एक कहहिं यह बात अलीहा ॥ सुकृत जाहिं अस कहत तुम्हारे। रामु भरत कहुँ प्रानपिआरे ॥

Doha / दोहा

दो. चंदु चवै बरु अनल कन सुधा होइ बिषतूल। सपनेहुँ कबहुँ न करहिं किछु भरतु राम प्रतिकूल ॥ ४८ ॥

Chaupai / चोपाई

एक बिधातहिं दूषनु देंहीं। सुधा देखाइ दीन्ह बिषु जेहीं ॥ खरभरु नगर सोचु सब काहू। दुसह दाहु उर मिटा उछाहू ॥

बिप्रबधू कुलमान्य जठेरी। जे प्रिय परम कैकेई केरी ॥ लगीं देन सिख सीलु सराही। बचन बानसम लागहिं ताही ॥

भरतु न मोहि प्रिय राम समाना। सदा कहहु यहु सबु जगु जाना ॥ करहु राम पर सहज सनेहू। केहिं अपराध आजु बनु देहू ॥

कबहुँ न कियहु सवति आरेसू। प्रीति प्रतीति जान सबु देसू ॥ कौसल्याँ अब काह बिगारा। तुम्ह जेहि लागि बज्र पुर पारा ॥

Doha / दोहा

दो. सीय कि पिय सँगु परिहरिहि लखनु कि रहिहहिं धाम। राजु कि भूँजब भरत पुर नृपु कि जीहि बिनु राम ॥ ४९ ॥

Chaupai / चोपाई

अस बिचारि उर छाड़हु कोहू। सोक कलंक कोठि जनि होहू ॥ भरतहि अवसि देहु जुबराजू। कानन काह राम कर काजू ॥

नाहिन रामु राज के भूखे। धरम धुरीन बिषय रस रूखे ॥ गुर गृह बसहुँ रामु तजि गेहू। नृप सन अस बरु दूसर लेहू ॥

जौं नहिं लगिहहु कहें हमारे। नहिं लागिहि कछु हाथ तुम्हारे ॥ जौं परिहास कीन्हि कछु होई। तौ कहि प्रगट जनावहु सोई ॥

राम सरिस सुत कानन जोगू। काह कहिहि सुनि तुम्ह कहुँ लोगू ॥ उठहु बेगि सोइ करहु उपाई। जेहि बिधि सोकु कलंकु नसाई ॥

Chanda / छन्द

छं. जेहि भाँति सोकु कलंकु जाइ उपाय करि कुल पालही। हठि फेरु रामहि जात बन जनि बात दूसरि चालही ॥ जिमि भानु बिनु दिनु प्रान बिनु तनु चंद बिनु जिमि जामिनी। तिमि अवध तुलसीदास प्रभु बिनु समुझि धौं जियँ भामिनी ॥

Sortha / सोरठा

सो. सखिन्ह सिखावनु दीन्ह सुनत मधुर परिनाम हित। तेइँ कछु कान न कीन्ह कुटिल प्रबोधी कूबरी ॥ ५० ॥

Chaupai / चोपाई

उतरु न देइ दुसह रिस रूखी। मृगिन्ह चितव जनु बाघिनि भूखी ॥ ब्याधि असाधि जानि तिन्ह त्यागी। चलीं कहत मतिमंद अभागी ॥

राजु करत यह दैअँ बिगोई। कीन्हेसि अस जस करइ न कोई ॥ एहि बिधि बिलपहिं पुर नर नारीं। देहिं कुचालिहि कोटिक गारीं ॥

जरहिं बिषम जर लेहिं उसासा। कवनि राम बिनु जीवन आसा ॥ बिपुल बियोग प्रजा अकुलानी। जनु जलचर गन सूखत पानी ॥

अति बिषाद बस लोग लोगाई। गए मातु पहिं रामु गोसाई ॥ मुख प्रसन्न चित चौगुन चाऊ। मिटा सोचु जनि राखै राऊ ॥

Doha / दोहा

दो. नव गयंदु रघुबीर मनु राजु अलान समान। छूट जानि बन गवनु सुनि उर अनंदु अधिकान ॥ ५१ ॥

Chaupai / चोपाई

रघुकुलतिलक जोरि दोउ हाथा। मुदित मातु पद नायउ माथा ॥ दीन्हि असीस लाइ उर लीन्हे। भूषन बसन निछावरि कीन्हे ॥

बार बार मुख चुंबति माता। नयन नेह जलु पुलकित गाता ॥ गोद राखि पुनि हृदयँ लगाए। स्त्रवत प्रेनरस पयद सुहाए ॥

प्रेमु प्रमोदु न कछु कहि जाई। रंक धनद पदबी जनु पाई ॥ सादर सुंदर बदनु निहारी। बोली मधुर बचन महतारी ॥

कहहु तात जननी बलिहारी। कबहिं लगन मुद मंगलकारी ॥ सुकृत सील सुख सीवँ सुहाई। जनम लाभ कइ अवधि अघाई ॥

Doha / दोहा

दो. जेहि चाहत नर नारि सब अति आरत एहि भाँति। जिमि चातक चातकि तृषित बृष्टि सरद रितु स्वाति ॥ ५२ ॥

Chaupai / चोपाई

तात जाउँ बलि बेगि नहाहू। जो मन भाव मधुर कछु खाहू ॥ पितु समीप तब जाएहु भैआ। भइ बड़ि बार जाइ बलि मैआ ॥

मातु बचन सुनि अति अनुकूला। जनु सनेह सुरतरु के फूला ॥ सुख मकरंद भरे श्रियमूला। निरखि राम मनु भवरुँ न भूला ॥

धरम धुरीन धरम गति जानी। कहेउ मातु सन अति मृदु बानी ॥ पिताँ दीन्ह मोहि कानन राजू। जहँ सब भाँति मोर बड़ काजू ॥

आयसु देहि मुदित मन माता। जेहिं मुद मंगल कानन जाता ॥ जनि सनेह बस डरपसि भोरें। आनँदु अंब अनुग्रह तोरें ॥

Doha / दोहा

दो. बरष चारिदस बिपिन बसि करि पितु बचन प्रमान। आइ पाय पुनि देखिहउँ मनु जनि करसि मलान ॥ ५३ ॥

Chaupai / चोपाई

बचन बिनीत मधुर रघुबर के। सर सम लगे मातु उर करके ॥ सहमि सूखि सुनि सीतलि बानी। जिमि जवास परें पावस पानी ॥

कहि न जाइ कछु हृदय बिषादू। मनहुँ मृगी सुनि केहरि नादू ॥ नयन सजल तन थर थर काँपी। माजहि खाइ मीन जनु मापी ॥

धरि धीरजु सुत बदनु निहारी। गदगद बचन कहति महतारी ॥ तात पितहि तुम्ह प्रानपिआरे। देखि मुदित नित चरित तुम्हारे ॥

राजु देन कहुँ सुभ दिन साधा। कहेउ जान बन केहिं अपराधा ॥ तात सुनावहु मोहि निदानू। को दिनकर कुल भयउ कृसानू ॥

Doha / दोहा

दो. निरखि राम रुख सचिवसुत कारनु कहेउ बुझाइ। सुनि प्रसंगु रहि मूक जिमि दसा बरनि नहिं जाइ ॥ ५४ ॥

Chaupai / चोपाई

राखि न सकइ न कहि सक जाहू। दुहूँ भाँति उर दारुन दाहू ॥ लिखत सुधाकर गा लिखि राहू। बिधि गति बाम सदा सब काहू ॥

धरम सनेह उभयँ मति घेरी। भइ गति साँप छुछुंदरि केरी ॥ राखउँ सुतहि करउँ अनुरोधू। धरमु जाइ अरु बंधु बिरोधू ॥

कहउँ जान बन तौ बड़ि हानी। संकट सोच बिबस भइ रानी ॥ बहुरि समुझि तिय धरमु सयानी। रामु भरतु दोउ सुत सम जानी ॥

सरल सुभाउ राम महतारी। बोली बचन धीर धरि भारी ॥ तात जाउँ बलि कीन्हेहु नीका। पितु आयसु सब धरमक टीका ॥

Doha / दोहा

दो. राजु देन कहि दीन्ह बनु मोहि न सो दुख लेसु। तुम्ह बिनु भरतहि भूपतिहि प्रजहि प्रचंड कलेसु ॥ ५५ ॥

Chaupai / चोपाई

जौं केवल पितु आयसु ताता। तौ जनि जाहु जानि बड़ि माता ॥ जौं पितु मातु कहेउ बन जाना। तौं कानन सत अवध समाना ॥

पितु बनदेव मातु बनदेवी। खग मृग चरन सरोरुह सेवी ॥ अंतहुँ उचित नृपहि बनबासू। बय बिलोकि हियँ होइ हराँसू ॥

बड़भागी बनु अवध अभागी। जो रघुबंसतिलक तुम्ह त्यागी ॥ जौं सुत कहौ संग मोहि लेहू। तुम्हरे हृदयँ होइ संदेहू ॥

पूत परम प्रिय तुम्ह सबही के। प्रान प्रान के जीवन जी के ॥ ते तुम्ह कहहु मातु बन जाऊँ। मैं सुनि बचन बैठि पछिताऊँ ॥

Doha / दोहा

दो. यह बिचारि नहिं करउँ हठ झूठ सनेहु बढ़ाइ। मानि मातु कर नात बलि सुरति बिसरि जनि जाइ ॥ ५६ ॥

Chaupai / चोपाई

देव पितर सब तुन्हहि गोसाई। राखहुँ पलक नयन की नाई ॥ अवधि अंबु प्रिय परिजन मीना। तुम्ह करुनाकर धरम धुरीना ॥

अस बिचारि सोइ करहु उपाई। सबहि जिअत जेहिं भेंटेहु आई ॥ जाहु सुखेन बनहि बलि जाऊँ। करि अनाथ जन परिजन गाऊँ ॥

सब कर आजु सुकृत फल बीता। भयउ कराल कालु बिपरीता ॥ बहुबिधि बिलपि चरन लपटानी। परम अभागिनि आपुहि जानी ॥

दारुन दुसह दाहु उर ब्यापा। बरनि न जाहिं बिलाप कलापा ॥ राम उठाइ मातु उर लाई। कहि मृदु बचन बहुरि समुझाई ॥

Doha / दोहा

दो. समाचार तेहि समय सुनि सीय उठी अकुलाइ। जाइ सासु पद कमल जुग बंदि बैठि सिरु नाइ ॥ ५७ ॥

Chaupai / चोपाई

दीन्हि असीस सासु मृदु बानी। अति सुकुमारि देखि अकुलानी ॥ बैठि नमितमुख सोचति सीता। रूप रासि पति प्रेम पुनीता ॥

चलन चहत बन जीवननाथू। केहि सुकृती सन होइहि साथू ॥ की तनु प्रान कि केवल प्राना। बिधि करतबु कछु जाइ न जाना ॥

चारु चरन नख लेखति धरनी। नूपुर मुखर मधुर कबि बरनी ॥ मनहुँ प्रेम बस बिनती करहीं। हमहि सीय पद जनि परिहरहीं ॥

मंजु बिलोचन मोचति बारी। बोली देखि राम महतारी ॥ तात सुनहु सिय अति सुकुमारी। सासु ससुर परिजनहि पिआरी ॥

Doha / दोहा

दो. पिता जनक भूपाल मनि ससुर भानुकुल भानु। पति रबिकुल कैरव बिपिन बिधु गुन रूप निधानु ॥ ५८ ॥

Chaupai / चोपाई

मैं पुनि पुत्रबधू प्रिय पाई। रूप रासि गुन सील सुहाई ॥ नयन पुतरि करि प्रीति बढ़ाई। राखेउँ प्रान जानिकिहिं लाई ॥

कलपबेलि जिमि बहुबिधि लाली। सींचि सनेह सलिल प्रतिपाली ॥ फूलत फलत भयउ बिधि बामा। जानि न जाइ काह परिनामा ॥

पलँग पीठ तजि गोद हिंड़ोरा। सियँ न दीन्ह पगु अवनि कठोरा ॥ जिअनमूरि जिमि जोगवत रहऊँ। दीप बाति नहिं टारन कहऊँ ॥

सोइ सिय चलन चहति बन साथा। आयसु काह होइ रघुनाथा।चंद किरन रस रसिक चकोरी। रबि रुख नयन सकइ किमि जोरी ॥

Doha / दोहा

दो. करि केहरि निसिचर चरहिं दुष्ट जंतु बन भूरि। बिष बाटिकाँ कि सोह सुत सुभग सजीवनि मूरि ॥ ५९ ॥

Chaupai / चोपाई

बन हित कोल किरात किसोरी। रचीं बिरंचि बिषय सुख भोरी ॥ पाइन कृमि जिमि कठिन सुभाऊ। तिन्हहि कलेसु न कानन काऊ ॥

कै तापस तिय कानन जोगू। जिन्ह तप हेतु तजा सब भोगू ॥ सिय बन बसिहि तात केहि भाँती। चित्रलिखित कपि देखि डेराती ॥

सुरसर सुभग बनज बन चारी। डाबर जोगु कि हंसकुमारी ॥ अस बिचारि जस आयसु होई। मैं सिख देउँ जानकिहि सोई ॥

जौं सिय भवन रहै कह अंबा। मोहि कहँ होइ बहुत अवलंबा ॥ सुनि रघुबीर मातु प्रिय बानी। सील सनेह सुधाँ जनु सानी ॥

Doha / दोहा

दो. कहि प्रिय बचन बिबेकमय कीन्हि मातु परितोष। लगे प्रबोधन जानकिहि प्रगटि बिपिन गुन दोष ॥ ६० ॥

Masaparayana 14 Ends

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