Chaupai / चोपाई
मातु समीप कहत सकुचाहीं। बोले समउ समुझि मन माहीं ॥ राजकुमारि सिखावन सुनहू। आन भाँति जियँ जनि कछु गुनहू ॥
आपन मोर नीक जौं चहहू। बचनु हमार मानि गृह रहहू ॥ आयसु मोर सासु सेवकाई। सब बिधि भामिनि भवन भलाई ॥
एहि ते अधिक धरमु नहिं दूजा। सादर सासु ससुर पद पूजा ॥ जब जब मातु करिहि सुधि मोरी। होइहि प्रेम बिकल मति भोरी ॥
तब तब तुम्ह कहि कथा पुरानी। सुंदरि समुझाएहु मृदु बानी ॥ कहउँ सुभायँ सपथ सत मोही। सुमुखि मातु हित राखउँ तोही ॥
Doha / दोहा
दो. गुर श्रुति संमत धरम फलु पाइअ बिनहिं कलेस। हठ बस सब संकट सहे गालव नहुष नरेस ॥ ६१ ॥
Chaupai / चोपाई
मैं पुनि करि प्रवान पितु बानी। बेगि फिरब सुनु सुमुखि सयानी ॥ दिवस जात नहिं लागिहि बारा। सुंदरि सिखवनु सुनहु हमारा ॥
जौ हठ करहु प्रेम बस बामा। तौ तुम्ह दुखु पाउब परिनामा ॥ काननु कठिन भयंकरु भारी। घोर घामु हिम बारि बयारी ॥
कुस कंटक मग काँकर नाना। चलब पयादेहिं बिनु पदत्राना ॥ चरन कमल मुदु मंजु तुम्हारे। मारग अगम भूमिधर भारे ॥
कंदर खोह नदीं नद नारे। अगम अगाध न जाहिं निहारे ॥ भालु बाघ बृक केहरि नागा। करहिं नाद सुनि धीरजु भागा ॥
Doha / दोहा
दो. भूमि सयन बलकल बसन असनु कंद फल मूल। ते कि सदा सब दिन मिलिहिं सबुइ समय अनुकूल ॥ ६२ ॥
Chaupai / चोपाई
नर अहार रजनीचर चरहीं। कपट बेष बिधि कोटिक करहीं ॥ लागइ अति पहार कर पानी। बिपिन बिपति नहिं जाइ बखानी ॥
ब्याल कराल बिहग बन घोरा। निसिचर निकर नारि नर चोरा ॥ डरपहिं धीर गहन सुधि आएँ। मृगलोचनि तुम्ह भीरु सुभाएँ ॥
हंसगवनि तुम्ह नहिं बन जोगू। सुनि अपजसु मोहि देइहि लोगू ॥ मानस सलिल सुधाँ प्रतिपाली। जिअइ कि लवन पयोधि मराली ॥
नव रसाल बन बिहरनसीला। सोह कि कोकिल बिपिन करीला ॥ रहहु भवन अस हृदयँ बिचारी। चंदबदनि दुखु कानन भारी ॥
Doha / दोहा
दो. सहज सुह्द गुर स्वामि सिख जो न करइ सिर मानि ॥ सो पछिताइ अघाइ उर अवसि होइ हित हानि ॥ ६३ ॥
Chaupai / चोपाई
सुनि मृदु बचन मनोहर पिय के। लोचन ललित भरे जल सिय के ॥ सीतल सिख दाहक भइ कैंसें। चकइहि सरद चंद निसि जैंसें ॥
उतरु न आव बिकल बैदेही। तजन चहत सुचि स्वामि सनेही ॥ बरबस रोकि बिलोचन बारी। धरि धीरजु उर अवनिकुमारी ॥
लागि सासु पग कह कर जोरी। छमबि देबि बड़ि अबिनय मोरी ॥ दीन्हि प्रानपति मोहि सिख सोई। जेहि बिधि मोर परम हित होई ॥
मैं पुनि समुझि दीखि मन माहीं। पिय बियोग सम दुखु जग नाहीं ॥
Doha / दोहा
दो. प्राननाथ करुनायतन सुंदर सुखद सुजान। तुम्ह बिनु रघुकुल कुमुद बिधु सुरपुर नरक समान ॥ ६४ ॥
Chaupai / चोपाई
मातु पिता भगिनी प्रिय भाई। प्रिय परिवारु सुह्रद समुदाई ॥ सासु ससुर गुर सजन सहाई। सुत सुंदर सुसील सुखदाई ॥
जहँ लगि नाथ नेह अरु नाते। पिय बिनु तियहि तरनिहु ते ताते ॥ तनु धनु धामु धरनि पुर राजू। पति बिहीन सबु सोक समाजू ॥
भोग रोगसम भूषन भारू। जम जातना सरिस संसारू ॥ प्राननाथ तुम्ह बिनु जग माहीं। मो कहुँ सुखद कतहुँ कछु नाहीं ॥
जिय बिनु देह नदी बिनु बारी। तैसिअ नाथ पुरुष बिनु नारी ॥ नाथ सकल सुख साथ तुम्हारें। सरद बिमल बिधु बदनु निहारें ॥
Doha / दोहा
दो. खग मृग परिजन नगरु बनु बलकल बिमल दुकूल। नाथ साथ सुरसदन सम परनसाल सुख मूल ॥ ६५ ॥
Chaupai / चोपाई
बनदेवीं बनदेव उदारा। करिहहिं सासु ससुर सम सारा ॥ कुस किसलय साथरी सुहाई। प्रभु सँग मंजु मनोज तुराई ॥
कंद मूल फल अमिअ अहारू। अवध सौध सत सरिस पहारू ॥ छिनु छिनु प्रभु पद कमल बिलोकि। रहिहउँ मुदित दिवस जिमि कोकी ॥
बन दुख नाथ कहे बहुतेरे। भय बिषाद परिताप घनेरे ॥ प्रभु बियोग लवलेस समाना। सब मिलि होहिं न कृपानिधाना ॥
अस जियँ जानि सुजान सिरोमनि। लेइअ संग मोहि छाड़िअ जनि ॥ बिनती बहुत करौं का स्वामी। करुनामय उर अंतरजामी ॥
Doha / दोहा
दो. राखिअ अवध जो अवधि लगि रहत न जनिअहिं प्रान। दीनबंधु संदर सुखद सील सनेह निधान ॥ ६६ ॥
Chaupai / चोपाई
मोहि मग चलत न होइहि हारी। छिनु छिनु चरन सरोज निहारी ॥ सबहि भाँति पिय सेवा करिहौं। मारग जनित सकल श्रम हरिहौं ॥
पाय पखारी बैठि तरु छाहीं। करिहउँ बाउ मुदित मन माहीं ॥ श्रम कन सहित स्याम तनु देखें। कहँ दुख समउ प्रानपति पेखें ॥
सम महि तृन तरुपल्लव डासी। पाग पलोटिहि सब निसि दासी ॥ बारबार मृदु मूरति जोही। लागहि तात बयारि न मोही।
को प्रभु सँग मोहि चितवनिहारा। सिंघबधुहि जिमि ससक सिआरा ॥ मैं सुकुमारि नाथ बन जोगू। तुम्हहि उचित तप मो कहुँ भोगू ॥
Doha / दोहा
दो. ऐसेउ बचन कठोर सुनि जौं न ह्रदउ बिलगान। तौ प्रभु बिषम बियोग दुख सहिहहिं पावँर प्रान ॥ ६७ ॥
Chaupai / चोपाई
अस कहि सीय बिकल भइ भारी। बचन बियोगु न सकी सँभारी ॥ देखि दसा रघुपति जियँ जाना। हठि राखें नहिं राखिहि प्राना ॥
कहेउ कृपाल भानुकुलनाथा। परिहरि सोचु चलहु बन साथा ॥ नहिं बिषाद कर अवसरु आजू। बेगि करहु बन गवन समाजू ॥
कहि प्रिय बचन प्रिया समुझाई। लगे मातु पद आसिष पाई ॥ बेगि प्रजा दुख मेटब आई। जननी निठुर बिसरि जनि जाई ॥
फिरहि दसा बिधि बहुरि कि मोरी। देखिहउँ नयन मनोहर जोरी ॥ सुदिन सुघरी तात कब होइहि। जननी जिअत बदन बिधु जोइहि ॥
Doha / दोहा
दो. बहुरि बच्छ कहि लालु कहि रघुपति रघुबर तात। कबहिं बोलाइ लगाइ हियँ हरषि निरखिहउँ गात ॥ ६८ ॥
Chaupai / चोपाई
लखि सनेह कातरि महतारी। बचनु न आव बिकल भइ भारी ॥ राम प्रबोधु कीन्ह बिधि नाना। समउ सनेहु न जाइ बखाना ॥
तब जानकी सासु पग लागी। सुनिअ माय मैं परम अभागी ॥ सेवा समय दैअँ बनु दीन्हा। मोर मनोरथु सफल न कीन्हा ॥
तजब छोभु जनि छाड़िअ छोहू। करमु कठिन कछु दोसु न मोहू ॥ सुनि सिय बचन सासु अकुलानी। दसा कवनि बिधि कहौं बखानी ॥
बारहि बार लाइ उर लीन्ही। धरि धीरजु सिख आसिष दीन्ही ॥ अचल होउ अहिवातु तुम्हारा। जब लगि गंग जमुन जल धारा ॥
Doha / दोहा
दो. सीतहि सासु असीस सिख दीन्हि अनेक प्रकार। चली नाइ पद पदुम सिरु अति हित बारहिं बार ॥ ६९ ॥
Chaupai / चोपाई
समाचार जब लछिमन पाए। ब्याकुल बिलख बदन उठि धाए ॥ कंप पुलक तन नयन सनीरा। गहे चरन अति प्रेम अधीरा ॥
कहि न सकत कछु चितवत ठाढ़े। मीनु दीन जनु जल तें काढ़े ॥ सोचु हृदयँ बिधि का होनिहारा। सबु सुखु सुकृत सिरान हमारा ॥
मो कहुँ काह कहब रघुनाथा। रखिहहिं भवन कि लेहहिं साथा ॥ राम बिलोकि बंधु कर जोरें। देह गेह सब सन तृनु तोरें ॥
बोले बचनु राम नय नागर। सील सनेह सरल सुख सागर ॥ तात प्रेम बस जनि कदराहू। समुझि हृदयँ परिनाम उछाहू ॥
Doha / दोहा
दो. मातु पिता गुरु स्वामि सिख सिर धरि करहि सुभायँ। लहेउ लाभु तिन्ह जनम कर नतरु जनमु जग जायँ ॥ ७० ॥
Chaupai / चोपाई
अस जियँ जानि सुनहु सिख भाई। करहु मातु पितु पद सेवकाई ॥ भवन भरतु रिपुसूदन नाहीं। राउ बृद्ध मम दुखु मन माहीं ॥
मैं बन जाउँ तुम्हहि लेइ साथा। होइ सबहि बिधि अवध अनाथा ॥ गुरु पितु मातु प्रजा परिवारू। सब कहुँ परइ दुसह दुख भारू ॥
रहहु करहु सब कर परितोषू। नतरु तात होइहि बड़ दोषू ॥ जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी। सो नृपु अवसि नरक अधिकारी ॥
रहहु तात असि नीति बिचारी। सुनत लखनु भए ब्याकुल भारी ॥ सिअरें बचन सूखि गए कैंसें। परसत तुहिन तामरसु जैसें ॥
Doha / दोहा
दो. उतरु न आवत प्रेम बस गहे चरन अकुलाइ। नाथ दासु मैं स्वामि तुम्ह तजहु त काह बसाइ ॥ ७१ ॥
Chaupai / चोपाई
दीन्हि मोहि सिख नीकि गोसाईं। लागि अगम अपनी कदराईं ॥ नरबर धीर धरम धुर धारी। निगम नीति कहुँ ते अधिकारी ॥
मैं सिसु प्रभु सनेहँ प्रतिपाला। मंदरु मेरु कि लेहिं मराला ॥ गुर पितु मातु न जानउँ काहू। कहउँ सुभाउ नाथ पतिआहू ॥
जहँ लगि जगत सनेह सगाई। प्रीति प्रतीति निगम निजु गाई ॥ मोरें सबइ एक तुम्ह स्वामी। दीनबंधु उर अंतरजामी ॥
धरम नीति उपदेसिअ ताही। कीरति भूति सुगति प्रिय जाही ॥ मन क्रम बचन चरन रत होई। कृपासिंधु परिहरिअ कि सोई ॥
Doha / दोहा
दो. करुनासिंधु सुबंध के सुनि मृदु बचन बिनीत। समुझाए उर लाइ प्रभु जानि सनेहँ सभीत ॥ ७२ ॥
Chaupai / चोपाई
मागहु बिदा मातु सन जाई। आवहु बेगि चलहु बन भाई ॥ मुदित भए सुनि रघुबर बानी। भयउ लाभ बड़ गइ बड़ि हानी ॥
हरषित ह्दयँ मातु पहिं आए। मनहुँ अंध फिरि लोचन पाए।जाइ जननि पग नायउ माथा। मनु रघुनंदन जानकि साथा ॥
पूँछे मातु मलिन मन देखी। लखन कही सब कथा बिसेषी ॥ गई सहमि सुनि बचन कठोरा। मृगी देखि दव जनु चहु ओरा ॥
लखन लखेउ भा अनरथ आजू। एहिं सनेह बस करब अकाजू ॥ मागत बिदा सभय सकुचाहीं। जाइ संग बिधि कहिहि कि नाही ॥
Doha / दोहा
दो. समुझि सुमित्राँ राम सिय रूप सुसीलु सुभाउ। नृप सनेहु लखि धुनेउ सिरु पापिनि दीन्ह कुदाउ ॥ ७३ ॥
Chaupai / चोपाई
धीरजु धरेउ कुअवसर जानी। सहज सुह्द बोली मृदु बानी ॥ तात तुम्हारि मातु बैदेही। पिता रामु सब भाँति सनेही ॥
अवध तहाँ जहँ राम निवासू। तहँइँ दिवसु जहँ भानु प्रकासू ॥ जौ पै सीय रामु बन जाहीं। अवध तुम्हार काजु कछु नाहिं ॥
गुर पितु मातु बंधु सुर साई। सेइअहिं सकल प्रान की नाईं ॥ रामु प्रानप्रिय जीवन जी के। स्वारथ रहित सखा सबही कै ॥
पूजनीय प्रिय परम जहाँ तें। सब मानिअहिं राम के नातें ॥ अस जियँ जानि संग बन जाहू। लेहु तात जग जीवन लाहू ॥
Doha / दोहा
दो. भूरि भाग भाजनु भयहु मोहि समेत बलि जाउँ। जौम तुम्हरें मन छाड़ि छलु कीन्ह राम पद ठाउँ ॥ ७४ ॥
Chaupai / चोपाई
पुत्रवती जुबती जग सोई। रघुपति भगतु जासु सुतु होई ॥ नतरु बाँझ भलि बादि बिआनी। राम बिमुख सुत तें हित जानी ॥
तुम्हरेहिं भाग रामु बन जाहीं। दूसर हेतु तात कछु नाहीं ॥ सकल सुकृत कर बड़ फलु एहू। राम सीय पद सहज सनेहू ॥
राग रोषु इरिषा मदु मोहू। जनि सपनेहुँ इन्ह के बस होहू ॥ सकल प्रकार बिकार बिहाई। मन क्रम बचन करेहु सेवकाई ॥
तुम्ह कहुँ बन सब भाँति सुपासू। सँग पितु मातु रामु सिय जासू ॥ जेहिं न रामु बन लहहिं कलेसू। सुत सोइ करेहु इहइ उपदेसू ॥
Chanda / छन्द
छं. उपदेसु यहु जेहिं तात तुम्हरे राम सिय सुख पावहीं। पितु मातु प्रिय परिवार पुर सुख सुरति बन बिसरावहीं। तुलसी प्रभुहि सिख देइ आयसु दीन्ह पुनि आसिष दई। रति होउ अबिरल अमल सिय रघुबीर पद नित नित नई ॥
Sortha / सोरठा
सो. मातु चरन सिरु नाइ चले तुरत संकित हृदयँ। बागुर बिषम तोराइ मनहुँ भाग मृगु भाग बस ॥ ७५ ॥
Chaupai / चोपाई
गए लखनु जहँ जानकिनाथू। भे मन मुदित पाइ प्रिय साथू ॥ बंदि राम सिय चरन सुहाए। चले संग नृपमंदिर आए ॥
कहहिं परसपर पुर नर नारी। भलि बनाइ बिधि बात बिगारी ॥ तन कृस दुखु बदन मलीने। बिकल मनहुँ माखी मधु छीने ॥
कर मीजहिं सिरु धुनि पछिताहीं। जनु बिन पंख बिहग अकुलाहीं ॥ भइ बड़ि भीर भूप दरबारा। बरनि न जाइ बिषादु अपारा ॥
सचिवँ उठाइ राउ बैठारे। कहि प्रिय बचन रामु पगु धारे ॥ सिय समेत दोउ तनय निहारी। ब्याकुल भयउ भूमिपति भारी ॥
Doha / दोहा
दो. सीय सहित सुत सुभग दोउ देखि देखि अकुलाइ। बारहिं बार सनेह बस राउ लेइ उर लाइ ॥ ७६ ॥
Chaupai / चोपाई
सकइ न बोलि बिकल नरनाहू। सोक जनित उर दारुन दाहू ॥ नाइ सीसु पद अति अनुरागा। उठि रघुबीर बिदा तब मागा ॥
पितु असीस आयसु मोहि दीजै। हरष समय बिसमउ कत कीजै ॥ तात किएँ प्रिय प्रेम प्रमादू। जसु जग जाइ होइ अपबादू ॥
सुनि सनेह बस उठि नरनाहाँ। बैठारे रघुपति गहि बाहाँ ॥ सुनहु तात तुम्ह कहुँ मुनि कहहीं। रामु चराचर नायक अहहीं ॥
सुभ अरु असुभ करम अनुहारी। ईस देइ फलु ह्दयँ बिचारी ॥ करइ जो करम पाव फल सोई। निगम नीति असि कह सबु कोई ॥
Doha / दोहा
दो. -औरु करै अपराधु कोउ और पाव फल भोगु। अति बिचित्र भगवंत गति को जग जानै जोगु ॥ ७७ ॥
Chaupai / चोपाई
रायँ राम राखन हित लागी। बहुत उपाय किए छलु त्यागी ॥ लखी राम रुख रहत न जाने। धरम धुरंधर धीर सयाने ॥
तब नृप सीय लाइ उर लीन्ही। अति हित बहुत भाँति सिख दीन्ही ॥ कहि बन के दुख दुसह सुनाए। सासु ससुर पितु सुख समुझाए ॥
सिय मनु राम चरन अनुरागा। घरु न सुगमु बनु बिषमु न लागा ॥ औरउ सबहिं सीय समुझाई। कहि कहि बिपिन बिपति अधिकाई ॥
सचिव नारि गुर नारि सयानी। सहित सनेह कहहिं मृदु बानी ॥ तुम्ह कहुँ तौ न दीन्ह बनबासू। करहु जो कहहिं ससुर गुर सासू ॥
Doha / दोहा
दो. -सिख सीतलि हित मधुर मृदु सुनि सीतहि न सोहानि। सरद चंद चंदनि लगत जनु चकई अकुलानि ॥ ७८ ॥
Chaupai / चोपाई
सीय सकुच बस उतरु न देई। सो सुनि तमकि उठी कैकेई ॥ मुनि पट भूषन भाजन आनी। आगें धरि बोली मृदु बानी ॥
नृपहि प्रान प्रिय तुम्ह रघुबीरा। सील सनेह न छाड़िहि भीरा ॥ सुकृत सुजसु परलोकु नसाऊ। तुम्हहि जान बन कहिहि न काऊ ॥
अस बिचारि सोइ करहु जो भावा। राम जननि सिख सुनि सुखु पावा ॥ भूपहि बचन बानसम लागे। करहिं न प्रान पयान अभागे ॥
लोग बिकल मुरुछित नरनाहू। काह करिअ कछु सूझ न काहू ॥ रामु तुरत मुनि बेषु बनाई। चले जनक जननिहि सिरु नाई ॥
Doha / दोहा
दो. सजि बन साजु समाजु सबु बनिता बंधु समेत। बंदि बिप्र गुर चरन प्रभु चले करि सबहि अचेत ॥ ७९ ॥
Chaupai / चोपाई
निकसि बसिष्ठ द्वार भए ठाढ़े। देखे लोग बिरह दव दाढ़े ॥ कहि प्रिय बचन सकल समुझाए। बिप्र बृंद रघुबीर बोलाए ॥
गुर सन कहि बरषासन दीन्हे। आदर दान बिनय बस कीन्हे ॥ जाचक दान मान संतोषे। मीत पुनीत प्रेम परितोषे ॥
दासीं दास बोलाइ बहोरी। गुरहि सौंपि बोले कर जोरी ॥ सब कै सार सँभार गोसाईं। करबि जनक जननी की नाई ॥
बारहिं बार जोरि जुग पानी। कहत रामु सब सन मृदु बानी ॥ सोइ सब भाँति मोर हितकारी। जेहि तें रहै भुआल सुखारी ॥
Doha / दोहा
दो. मातु सकल मोरे बिरहँ जेहिं न होहिं दुख दीन। सोइ उपाउ तुम्ह करेहु सब पुर जन परम प्रबीन ॥ ८० ॥
Chaupai / चोपाई
एहि बिधि राम सबहि समुझावा। गुर पद पदुम हरषि सिरु नावा।गनपती गौरि गिरीसु मनाई। चले असीस पाइ रघुराई ॥
राम चलत अति भयउ बिषादू। सुनि न जाइ पुर आरत नादू ॥ कुसगुन लंक अवध अति सोकू। हहरष बिषाद बिबस सुरलोकू ॥
गइ मुरुछा तब भूपति जागे। बोलि सुमंत्रु कहन अस लागे ॥ रामु चले बन प्रान न जाहीं। केहि सुख लागि रहत तन माहीं।
एहि तें कवन ब्यथा बलवाना। जो दुखु पाइ तजहिं तनु प्राना ॥ पुनि धरि धीर कहइ नरनाहू। लै रथु संग सखा तुम्ह जाहू ॥
Doha / दोहा
दो. -सुठि सुकुमार कुमार दोउ जनकसुता सुकुमारि। रथ चढ़ाइ देखराइ बनु फिरेहु गएँ दिन चारि ॥ ८१ ॥
Chaupai / चोपाई
जौ नहिं फिरहिं धीर दोउ भाई। सत्यसंध दृढ़ब्रत रघुराई ॥ तौ तुम्ह बिनय करेहु कर जोरी। फेरिअ प्रभु मिथिलेसकिसोरी ॥
जब सिय कानन देखि डेराई। कहेहु मोरि सिख अवसरु पाई ॥ सासु ससुर अस कहेउ सँदेसू। पुत्रि फिरिअ बन बहुत कलेसू ॥
पितृगृह कबहुँ कबहुँ ससुरारी। रहेहु जहाँ रुचि होइ तुम्हारी ॥ एहि बिधि करेहु उपाय कदंबा। फिरइ त होइ प्रान अवलंबा ॥
नाहिं त मोर मरनु परिनामा। कछु न बसाइ भएँ बिधि बामा ॥ अस कहि मुरुछि परा महि राऊ। रामु लखनु सिय आनि देखाऊ ॥
Doha / दोहा
दो. -पाइ रजायसु नाइ सिरु रथु अति बेग बनाइ। गयउ जहाँ बाहेर नगर सीय सहित दोउ भाइ ॥ ८२ ॥
Chaupai / चोपाई
तब सुमंत्र नृप बचन सुनाए। करि बिनती रथ रामु चढ़ाए ॥ चढ़ि रथ सीय सहित दोउ भाई। चले हृदयँ अवधहि सिरु नाई ॥
चलत रामु लखि अवध अनाथा। बिकल लोग सब लागे साथा ॥ कृपासिंधु बहुबिधि समुझावहिं। फिरहिं प्रेम बस पुनि फिरि आवहिं ॥
लागति अवध भयावनि भारी। मानहुँ कालराति अँधिआरी ॥ घोर जंतु सम पुर नर नारी। डरपहिं एकहि एक निहारी ॥
घर मसान परिजन जनु भूता। सुत हित मीत मनहुँ जमदूता ॥ बागन्ह बिटप बेलि कुम्हिलाहीं। सरित सरोवर देखि न जाहीं ॥
Doha / दोहा
दो. हय गय कोटिन्ह केलिमृग पुरपसु चातक मोर। पिक रथांग सुक सारिका सारस हंस चकोर ॥ ८३ ॥
Chaupai / चोपाई
राम बियोग बिकल सब ठाढ़े। जहँ तहँ मनहुँ चित्र लिखि काढ़े ॥ नगरु सफल बनु गहबर भारी। खग मृग बिपुल सकल नर नारी ॥
बिधि कैकेई किरातिनि कीन्ही। जेंहि दव दुसह दसहुँ दिसि दीन्ही ॥ सहि न सके रघुबर बिरहागी। चले लोग सब ब्याकुल भागी ॥
सबहिं बिचार कीन्ह मन माहीं। राम लखन सिय बिनु सुखु नाहीं ॥ जहाँ रामु तहँ सबुइ समाजू। बिनु रघुबीर अवध नहिं काजू ॥
चले साथ अस मंत्रु दृढ़ाई। सुर दुर्लभ सुख सदन बिहाई ॥ राम चरन पंकज प्रिय जिन्हही। बिषय भोग बस करहिं कि तिन्हही ॥
Doha / दोहा
दो. बालक बृद्ध बिहाइ गृँह लगे लोग सब साथ। तमसा तीर निवासु किय प्रथम दिवस रघुनाथ ॥ ८४ ॥
Chaupai / चोपाई
रघुपति प्रजा प्रेमबस देखी। सदय हृदयँ दुखु भयउ बिसेषी ॥ करुनामय रघुनाथ गोसाँई। बेगि पाइअहिं पीर पराई ॥
कहि सप्रेम मृदु बचन सुहाए। बहुबिधि राम लोग समुझाए ॥ किए धरम उपदेस घनेरे। लोग प्रेम बस फिरहिं न फेरे ॥
सीलु सनेहु छाड़ि नहिं जाई। असमंजस बस भे रघुराई ॥ लोग सोग श्रम बस गए सोई। कछुक देवमायाँ मति मोई ॥
जबहिं जाम जुग जामिनि बीती। राम सचिव सन कहेउ सप्रीती ॥ खोज मारि रथु हाँकहु ताता। आन उपायँ बनिहि नहिं बाता ॥
Doha / दोहा
दो. राम लखन सुय जान चढ़ि संभु चरन सिरु नाइ ॥ सचिवँ चलायउ तुरत रथु इत उत खोज दुराइ ॥ ८५ ॥
Chaupai / चोपाई
जागे सकल लोग भएँ भोरू। गे रघुनाथ भयउ अति सोरू ॥ रथ कर खोज कतहहुँ नहिं पावहिं। राम राम कहि चहु दिसि धावहिं ॥
मनहुँ बारिनिधि बूड़ जहाजू। भयउ बिकल बड़ बनिक समाजू ॥ एकहि एक देंहिं उपदेसू। तजे राम हम जानि कलेसू ॥
निंदहिं आपु सराहहिं मीना। धिग जीवनु रघुबीर बिहीना ॥ जौं पै प्रिय बियोगु बिधि कीन्हा। तौ कस मरनु न मागें दीन्हा ॥
एहि बिधि करत प्रलाप कलापा। आए अवध भरे परितापा ॥ बिषम बियोगु न जाइ बखाना। अवधि आस सब राखहिं प्राना ॥
Doha / दोहा
दो. राम दरस हित नेम ब्रत लगे करन नर नारि। मनहुँ कोक कोकी कमल दीन बिहीन तमारि ॥ ८६ ॥
Chaupai / चोपाई
सीता सचिव सहित दोउ भाई। सृंगबेरपुर पहुँचे जाई ॥ उतरे राम देवसरि देखी। कीन्ह दंडवत हरषु बिसेषी ॥
लखन सचिवँ सियँ किए प्रनामा। सबहि सहित सुखु पायउ रामा ॥ गंग सकल मुद मंगल मूला। सब सुख करनि हरनि सब सूला ॥
कहि कहि कोटिक कथा प्रसंगा। रामु बिलोकहिं गंग तरंगा ॥ सचिवहि अनुजहि प्रियहि सुनाई। बिबुध नदी महिमा अधिकाई ॥
मज्जनु कीन्ह पंथ श्रम गयऊ। सुचि जलु पिअत मुदित मन भयऊ ॥ सुमिरत जाहि मिटइ श्रम भारू। तेहि श्रम यह लौकिक ब्यवहारू ॥
Doha / दोहा
दो. सुध्द सचिदानंदमय कंद भानुकुल केतु। चरित करत नर अनुहरत संसृति सागर सेतु ॥ ८७ ॥
Chaupai / चोपाई
यह सुधि गुहँ निषाद जब पाई। मुदित लिए प्रिय बंधु बोलाई ॥ लिए फल मूल भेंट भरि भारा। मिलन चलेउ हिँयँ हरषु अपारा ॥
करि दंडवत भेंट धरि आगें। प्रभुहि बिलोकत अति अनुरागें ॥ सहज सनेह बिबस रघुराई। पूँछी कुसल निकट बैठाई ॥
नाथ कुसल पद पंकज देखें। भयउँ भागभाजन जन लेखें ॥ देव धरनि धनु धामु तुम्हारा। मैं जनु नीचु सहित परिवारा ॥
कृपा करिअ पुर धारिअ पाऊ। थापिय जनु सबु लोगु सिहाऊ ॥ कहेहु सत्य सबु सखा सुजाना। मोहि दीन्ह पितु आयसु आना ॥
Doha / दोहा
दो. बरष चारिदस बासु बन मुनि ब्रत बेषु अहारु। ग्राम बासु नहिं उचित सुनि गुहहि भयउ दुखु भारु ॥ ८८ ॥
Chaupai / चोपाई
राम लखन सिय रूप निहारी। कहहिं सप्रेम ग्राम नर नारी ॥ ते पितु मातु कहहु सखि कैसे। जिन्ह पठए बन बालक ऐसे ॥
एक कहहिं भल भूपति कीन्हा। लोयन लाहु हमहि बिधि दीन्हा ॥ तब निषादपति उर अनुमाना। तरु सिंसुपा मनोहर जाना ॥
लै रघुनाथहि ठाउँ देखावा। कहेउ राम सब भाँति सुहावा ॥ पुरजन करि जोहारु घर आए। रघुबर संध्या करन सिधाए ॥
गुहँ सँवारि साँथरी डसाई। कुस किसलयमय मृदुल सुहाई ॥ सुचि फल मूल मधुर मृदु जानी। दोना भरि भरि राखेसि पानी ॥
Doha / दोहा
दो. सिय सुमंत्र भ्राता सहित कंद मूल फल खाइ। सयन कीन्ह रघुबंसमनि पाय पलोटत भाइ ॥ ८९ ॥
Chaupai / चोपाई
उठे लखनु प्रभु सोवत जानी। कहि सचिवहि सोवन मृदु बानी ॥ कछुक दूर सजि बान सरासन। जागन लगे बैठि बीरासन ॥
गुँह बोलाइ पाहरू प्रतीती। ठावँ ठाँव राखे अति प्रीती ॥ आपु लखन पहिं बैठेउ जाई। कटि भाथी सर चाप चढ़ाई ॥
सोवत प्रभुहि निहारि निषादू। भयउ प्रेम बस ह्दयँ बिषादू ॥ तनु पुलकित जलु लोचन बहई। बचन सप्रेम लखन सन कहई ॥
भूपति भवन सुभायँ सुहावा। सुरपति सदनु न पटतर पावा ॥ मनिमय रचित चारु चौबारे। जनु रतिपति निज हाथ सँवारे ॥
Doha / दोहा
दो. सुचि सुबिचित्र सुभोगमय सुमन सुगंध सुबास। पलँग मंजु मनिदीप जहँ सब बिधि सकल सुपास ॥ ९० ॥
Chaupai / चोपाई
बिबिध बसन उपधान तुराई। छीर फेन मृदु बिसद सुहाई ॥ तहँ सिय रामु सयन निसि करहीं। निज छबि रति मनोज मदु हरहीं ॥
ते सिय रामु साथरीं सोए। श्रमित बसन बिनु जाहिं न जोए ॥ मातु पिता परिजन पुरबासी। सखा सुसील दास अरु दासी ॥
जोगवहिं जिन्हहि प्रान की नाई। महि सोवत तेइ राम गोसाईं ॥ पिता जनक जग बिदित प्रभाऊ। ससुर सुरेस सखा रघुराऊ ॥
रामचंदु पति सो बैदेही। सोवत महि बिधि बाम न केही ॥ सिय रघुबीर कि कानन जोगू। करम प्रधान सत्य कह लोगू ॥
Doha / दोहा
दो. कैकयनंदिनि मंदमति कठिन कुटिलपनु कीन्ह। जेहीं रघुनंदन जानकिहि सुख अवसर दुखु दीन्ह ॥ ९१ ॥
Chaupai / चोपाई
भइ दिनकर कुल बिटप कुठारी। कुमति कीन्ह सब बिस्व दुखारी ॥ भयउ बिषादु निषादहि भारी। राम सीय महि सयन निहारी ॥
बोले लखन मधुर मृदु बानी। ग्यान बिराग भगति रस सानी ॥ काहु न कोउ सुख दुख कर दाता। निज कृत करम भोग सबु भ्राता ॥
जोग बियोग भोग भल मंदा। हित अनहित मध्यम भ्रम फंदा ॥ जनमु मरनु जहँ लगि जग जालू। संपती बिपति करमु अरु कालू ॥
धरनि धामु धनु पुर परिवारू। सरगु नरकु जहँ लगि ब्यवहारू ॥ देखिअ सुनिअ गुनिअ मन माहीं। मोह मूल परमारथु नाहीं ॥
Doha / दोहा
दो. सपनें होइ भिखारि नृप रंकु नाकपति होइ। जागें लाभु न हानि कछु तिमि प्रपंच जियँ जोइ ॥ ९२ ॥
Chaupai / चोपाई
अस बिचारि नहिं कीजा रोसू। काहुहि बादि न देइअ दोसू ॥ मोह निसाँ सबु सोवनिहारा। देखिअ सपन अनेक प्रकारा ॥
एहिं जग जामिनि जागहिं जोगी। परमारथी प्रपंच बियोगी ॥ जानिअ तबहिं जीव जग जागा। जब जब बिषय बिलास बिरागा ॥
होइ बिबेकु मोह भ्रम भागा। तब रघुनाथ चरन अनुरागा ॥ सखा परम परमारथु एहू। मन क्रम बचन राम पद नेहू ॥
राम ब्रह्म परमारथ रूपा। अबिगत अलख अनादि अनूपा ॥ सकल बिकार रहित गतभेदा। कहि नित नेति निरूपहिं बेदा।
Doha / दोहा
दो. भगत भूमि भूसुर सुरभि सुर हित लागि कृपाल। करत चरित धरि मनुज तनु सुनत मिटहि जग जाल ॥ ९३ ॥