Ram Charita Manas

Masaparayan 27

ॐ श्री परमात्मने नमः

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Chaupai / चोपाई

तेही निसि सीता पहिं जाई। त्रिजटा कहि सब कथा सुनाई ॥ सिर भुज बाढ़ि सुनत रिपु केरी। सीता उर भइ त्रास घनेरी ॥

मुख मलीन उपजी मन चिंता। त्रिजटा सन बोली तब सीता ॥ होइहि कहा कहसि किन माता। केहि बिधि मरिहि बिस्व दुखदाता ॥

रघुपति सर सिर कटेहुँ न मरई। बिधि बिपरीत चरित सब करई ॥ मोर अभाग्य जिआवत ओही। जेहिं हौ हरि पद कमल बिछोही ॥

जेहिं कृत कपट कनक मृग झूठा। अजहुँ सो दैव मोहि पर रूठा ॥ जेहिं बिधि मोहि दुख दुसह सहाए। लछिमन कहुँ कटु बचन कहाए ॥

रघुपति बिरह सबिष सर भारी। तकि तकि मार बार बहु मारी ॥ ऐसेहुँ दुख जो राख मम प्राना। सोइ बिधि ताहि जिआव न आना ॥

बहु बिधि कर बिलाप जानकी। करि करि सुरति कृपानिधान की ॥ कह त्रिजटा सुनु राजकुमारी। उर सर लागत मरइ सुरारी ॥

प्रभु ताते उर हतइ न तेही। एहि के हृदयँ बसति बैदेही ॥

Chanda / छन्द

छं. एहि के हृदयँ बस जानकी जानकी उर मम बास है। मम उदर भुअन अनेक लागत बान सब कर नास है ॥ सुनि बचन हरष बिषाद मन अति देखि पुनि त्रिजटाँ कहा। अब मरिहि रिपु एहि बिधि सुनहि सुंदरि तजहि संसय महा ॥

Doha/ दोहा

दो. काटत सिर होइहि बिकल छुटि जाइहि तव ध्यान। तब रावनहि हृदय महुँ मरिहहिं रामु सुजान ॥ ९९ ॥

Chaupai / चोपाई

अस कहि बहुत भाँति समुझाई। पुनि त्रिजटा निज भवन सिधाई ॥ राम सुभाउ सुमिरि बैदेही। उपजी बिरह बिथा अति तेही ॥

निसिहि ससिहि निंदति बहु भाँती। जुग सम भई सिराति न राती ॥ करति बिलाप मनहिं मन भारी। राम बिरहँ जानकी दुखारी ॥

जब अति भयउ बिरह उर दाहू। फरकेउ बाम नयन अरु बाहू ॥ सगुन बिचारि धरी मन धीरा। अब मिलिहहिं कृपाल रघुबीरा ॥

इहाँ अर्धनिसि रावनु जागा। निज सारथि सन खीझन लागा ॥ सठ रनभूमि छड़ाइसि मोही। धिग धिग अधम मंदमति तोही ॥

तेहिं पद गहि बहु बिधि समुझावा। भौरु भएँ रथ चढ़ि पुनि धावा ॥ सुनि आगवनु दसानन केरा। कपि दल खरभर भयउ घनेरा ॥

जहँ तहँ भूधर बिटप उपारी। धाए कटकटाइ भट भारी ॥

Chanda / छन्द

छं. धाए जो मर्कट बिकट भालु कराल कर भूधर धरा। अति कोप करहिं प्रहार मारत भजि चले रजनीचरा ॥ बिचलाइ दल बलवंत कीसन्ह घेरि पुनि रावनु लियो। चहुँ दिसि चपेटन्हि मारि नखन्हि बिदारि तनु ब्याकुल कियो ॥

Doha/ दोहा

दो. देखि महा मर्कट प्रबल रावन कीन्ह बिचार। अंतरहित होइ निमिष महुँ कृत माया बिस्तार ॥ १०० ॥

Chanda / छन्द

छं. जब कीन्ह तेहिं पाषंड। भए प्रगट जंतु प्रचंड ॥ बेताल भूत पिसाच। कर धरें धनु नाराच ॥ १ ॥

जोगिनि गहें करबाल। एक हाथ मनुज कपाल ॥ करि सद्य सोनित पान। नाचहिं करहिं बहु गान ॥ २ ॥

धरु मारु बोलहिं घोर। रहि पूरि धुनि चहुँ ओर ॥ मुख बाइ धावहिं खान। तब लगे कीस परान ॥ ३ ॥

जहँ जाहिं मर्कट भागि। तहँ बरत देखहिं आगि ॥ भए बिकल बानर भालु। पुनि लाग बरषै बालु ॥ ४ ॥

जहँ तहँ थकित करि कीस। गर्जेउ बहुरि दससीस ॥ लछिमन कपीस समेत। भए सकल बीर अचेत ॥ ५ ॥

हा राम हा रघुनाथ। कहि सुभट मीजहिं हाथ ॥ एहि बिधि सकल बल तोरि। तेहिं कीन्ह कपट बहोरि ॥ ६ ॥

प्रगटेसि बिपुल हनुमान। धाए गहे पाषान ॥ तिन्ह रामु घेरे जाइ। चहुँ दिसि बरूथ बनाइ ॥ ७ ॥

मारहु धरहु जनि जाइ। कटकटहिं पूँछ उठाइ ॥ दहँ दिसि लँगूर बिराज। तेहिं मध्य कोसलराज ॥ ८ ॥

Chanda / छन्द

छं. तेहिं मध्य कोसलराज सुंदर स्याम तन सोभा लही। जनु इंद्रधनुष अनेक की बर बारि तुंग तमालही ॥ प्रभु देखि हरष बिषाद उर सुर बदत जय जय जय करी। रघुबीर एकहि तीर कोऽपि निमेष महुँ माया हरी ॥ १ ॥

माया बिगत कपि भालु हरषे बिटप गिरि गहि सब फिरे। सर निकर छाड़े राम रावन बाहु सिर पुनि महि गिरे ॥ श्रीराम रावन समर चरित अनेक कल्प जो गावहीं। सत सेष सारद निगम कबि तेउ तदपि पार न पावहीं ॥ २ ॥

Doha/ दोहा

दो. ताके गुन गन कछु कहे जड़मति तुलसीदास। जिमि निज बल अनुरूप ते माछी उड़इ अकास ॥ १०१(क) ॥

काटे सिर भुज बार बहु मरत न भट लंकेस। प्रभु क्रीड़त सुर सिद्ध मुनि ब्याकुल देखि कलेस ॥ १०१(ख) ॥

Chaupai / चोपाई

काटत बढ़हिं सीस समुदाई। जिमि प्रति लाभ लोभ अधिकाई ॥ मरइ न रिपु श्रम भयउ बिसेषा। राम बिभीषन तन तब देखा ॥

उमा काल मर जाकीं ईछा। सो प्रभु जन कर प्रीति परीछा ॥ सुनु सरबग्य चराचर नायक। प्रनतपाल सुर मुनि सुखदायक ॥

नाभिकुंड पियूष बस याकें। नाथ जिअत रावनु बल ताकें ॥ सुनत बिभीषन बचन कृपाला। हरषि गहे कर बान कराला ॥

असुभ होन लागे तब नाना। रोवहिं खर सृकाल बहु स्वाना ॥ बोलहि खग जग आरति हेतू। प्रगट भए नभ जहँ तहँ केतू ॥

दस दिसि दाह होन अति लागा। भयउ परब बिनु रबि उपरागा ॥ मंदोदरि उर कंपति भारी। प्रतिमा स्त्रवहिं नयन मग बारी ॥

Chanda / छन्द

छं. प्रतिमा रुदहिं पबिपात नभ अति बात बह डोलति मही। बरषहिं बलाहक रुधिर कच रज असुभ अति सक को कही ॥ उतपात अमित बिलोकि नभ सुर बिकल बोलहि जय जए। सुर सभय जानि कृपाल रघुपति चाप सर जोरत भए ॥

Doha/ दोहा

दो. खैचि सरासन श्रवन लगि छाड़े सर एकतीस। रघुनायक सायक चले मानहुँ काल फनीस ॥ १०२ ॥

Chaupai / चोपाई

सायक एक नाभि सर सोषा। अपर लगे भुज सिर करि रोषा ॥ लै सिर बाहु चले नाराचा। सिर भुज हीन रुंड महि नाचा ॥

धरनि धसइ धर धाव प्रचंडा। तब सर हति प्रभु कृत दुइ खंडा ॥ गर्जेउ मरत घोर रव भारी। कहाँ रामु रन हतौं पचारी ॥

डोली भूमि गिरत दसकंधर। छुभित सिंधु सरि दिग्गज भूधर ॥ धरनि परेउ द्वौ खंड बढ़ाई। चापि भालु मर्कट समुदाई ॥

मंदोदरि आगें भुज सीसा। धरि सर चले जहाँ जगदीसा ॥ प्रबिसे सब निषंग महु जाई। देखि सुरन्ह दुंदुभीं बजाई ॥

तासु तेज समान प्रभु आनन। हरषे देखि संभु चतुरानन ॥ जय जय धुनि पूरी ब्रह्मंडा। जय रघुबीर प्रबल भुजदंडा ॥

बरषहि सुमन देव मुनि बृंदा। जय कृपाल जय जयति मुकुंदा ॥

Chanda / छन्द

छं. जय कृपा कंद मुकंद द्वंद हरन सरन सुखप्रद प्रभो। खल दल बिदारन परम कारन कारुनीक सदा बिभो ॥

सुर सुमन बरषहिं हरष संकुल बाज दुंदुभि गहगही। संग्राम अंगन राम अंग अनंग बहु सोभा लही ॥

सिर जटा मुकुट प्रसून बिच बिच अति मनोहर राजहीं। जनु नीलगिरि पर तड़ित पटल समेत उड़ुगन भ्राजहीं ॥

भुजदंड सर कोदंड फेरत रुधिर कन तन अति बने। जनु रायमुनीं तमाल पर बैठीं बिपुल सुख आपने ॥

Doha/ दोहा

दो. कृपादृष्टि करि प्रभु अभय किए सुर बृंद। भालु कीस सब हरषे जय सुख धाम मुकंद ॥ १०३ ॥

Chaupai / चोपाई

पति सिर देखत मंदोदरी। मुरुछित बिकल धरनि खसि परी ॥ जुबति बृंद रोवत उठि धाईं। तेहि उठाइ रावन पहिं आई ॥

पति गति देखि ते करहिं पुकारा। छूटे कच नहिं बपुष सँभारा ॥ उर ताड़ना करहिं बिधि नाना। रोवत करहिं प्रताप बखाना ॥

तव बल नाथ डोल नित धरनी। तेज हीन पावक ससि तरनी ॥ सेष कमठ सहि सकहिं न भारा। सो तनु भूमि परेउ भरि छारा ॥

बरुन कुबेर सुरेस समीरा। रन सन्मुख धरि काहुँ न धीरा ॥ भुजबल जितेहु काल जम साईं। आजु परेहु अनाथ की नाईं ॥

जगत बिदित तुम्हारी प्रभुताई। सुत परिजन बल बरनि न जाई ॥ राम बिमुख अस हाल तुम्हारा। रहा न कोउ कुल रोवनिहारा ॥

तव बस बिधि प्रपंच सब नाथा। सभय दिसिप नित नावहिं माथा ॥ अब तव सिर भुज जंबुक खाहीं। राम बिमुख यह अनुचित नाहीं ॥

काल बिबस पति कहा न माना। अग जग नाथु मनुज करि जाना ॥

Chanda / छन्द

छं. जान्यो मनुज करि दनुज कानन दहन पावक हरि स्वयं। जेहि नमत सिव ब्रह्मादि सुर पिय भजेहु नहिं करुनामयं ॥ आजन्म ते परद्रोह रत पापौघमय तव तनु अयं। तुम्हहू दियो निज धाम राम नमामि ब्रह्म निरामयं ॥

Doha/ दोहा

दो. अहह नाथ रघुनाथ सम कृपासिंधु नहिं आन। जोगि बृंद दुर्लभ गति तोहि दीन्हि भगवान ॥ १०४ ॥

Chaupai / चोपाई

मंदोदरी बचन सुनि काना। सुर मुनि सिद्ध सबन्हि सुख माना ॥ अज महेस नारद सनकादी। जे मुनिबर परमारथबादी ॥

भरि लोचन रघुपतिहि निहारी। प्रेम मगन सब भए सुखारी ॥ रुदन करत देखीं सब नारी। गयउ बिभीषनु मन दुख भारी ॥

बंधु दसा बिलोकि दुख कीन्हा। तब प्रभु अनुजहि आयसु दीन्हा ॥ लछिमन तेहि बहु बिधि समुझायो। बहुरि बिभीषन प्रभु पहिं आयो ॥

कृपादृष्टि प्रभु ताहि बिलोका। करहु क्रिया परिहरि सब सोका ॥ कीन्हि क्रिया प्रभु आयसु मानी। बिधिवत देस काल जियँ जानी ॥

Doha/ दोहा

दो. मंदोदरी आदि सब देइ तिलांजलि ताहि। भवन गई रघुपति गुन गन बरनत मन माहि ॥ १०५ ॥

Chaupai / चोपाई

आइ बिभीषन पुनि सिरु नायो। कृपासिंधु तब अनुज बोलायो ॥ तुम्ह कपीस अंगद नल नीला। जामवंत मारुति नयसीला ॥

सब मिलि जाहु बिभीषन साथा। सारेहु तिलक कहेउ रघुनाथा ॥ पिता बचन मैं नगर न आवउँ। आपु सरिस कपि अनुज पठावउँ ॥

तुरत चले कपि सुनि प्रभु बचना। कीन्ही जाइ तिलक की रचना ॥ सादर सिंहासन बैठारी। तिलक सारि अस्तुति अनुसारी ॥

जोरि पानि सबहीं सिर नाए। सहित बिभीषन प्रभु पहिं आए ॥ तब रघुबीर बोलि कपि लीन्हे। कहि प्रिय बचन सुखी सब कीन्हे ॥

Chanda / छन्द

छं. किए सुखी कहि बानी सुधा सम बल तुम्हारें रिपु हयो। पायो बिभीषन राज तिहुँ पुर जसु तुम्हारो नित नयो ॥ मोहि सहित सुभ कीरति तुम्हारी परम प्रीति जो गाइहैं। संसार सिंधु अपार पार प्रयास बिनु नर पाइहैं ॥

Doha/ दोहा

दो. प्रभु के बचन श्रवन सुनि नहिं अघाहिं कपि पुंज। बार बार सिर नावहिं गहहिं सकल पद कंज ॥ १०६ ॥

Chaupai / चोपाई

पुनि प्रभु बोलि लियउ हनुमाना। लंका जाहु कहेउ भगवाना ॥ समाचार जानकिहि सुनावहु। तासु कुसल लै तुम्ह चलि आवहु ॥

तब हनुमंत नगर महुँ आए। सुनि निसिचरी निसाचर धाए ॥ बहु प्रकार तिन्ह पूजा कीन्ही। जनकसुता देखाइ पुनि दीन्ही ॥

दूरहि ते प्रनाम कपि कीन्हा। रघुपति दूत जानकीं चीन्हा ॥ कहहु तात प्रभु कृपानिकेता। कुसल अनुज कपि सेन समेता ॥

सब बिधि कुसल कोसलाधीसा। मातु समर जीत्यो दससीसा ॥ अबिचल राजु बिभीषन पायो। सुनि कपि बचन हरष उर छायो ॥

Chanda / छन्द

छं. अति हरष मन तन पुलक लोचन सजल कह पुनि पुनि रमा। का देउँ तोहि त्रेलोक महुँ कपि किमपि नहिं बानी समा ॥ सुनु मातु मैं पायो अखिल जग राजु आजु न संसयं। रन जीति रिपुदल बंधु जुत पस्यामि राममनामयं ॥

Doha/ दोहा

दो. सुनु सुत सदगुन सकल तव हृदयँ बसहुँ हनुमंत। सानुकूल कोसलपति रहहुँ समेत अनंत ॥ १०७ ॥

Chaupai / चोपाई

अब सोइ जतन करहु तुम्ह ताता। देखौं नयन स्याम मृदु गाता ॥ तब हनुमान राम पहिं जाई। जनकसुता कै कुसल सुनाई ॥

सुनि संदेसु भानुकुलभूषन। बोलि लिए जुबराज बिभीषन ॥ मारुतसुत के संग सिधावहु। सादर जनकसुतहि लै आवहु ॥

तुरतहिं सकल गए जहँ सीता। सेवहिं सब निसिचरीं बिनीता ॥ बेगि बिभीषन तिन्हहि सिखायो। तिन्ह बहु बिधि मज्जन करवायो ॥

बहु प्रकार भूषन पहिराए। सिबिका रुचिर साजि पुनि ल्याए ॥ ता पर हरषि चढ़ी बैदेही। सुमिरि राम सुखधाम सनेही ॥

बेतपानि रच्छक चहुँ पासा। चले सकल मन परम हुलासा ॥ देखन भालु कीस सब आए। रच्छक कोऽपि निवारन धाए ॥

कह रघुबीर कहा मम मानहु। सीतहि सखा पयादें आनहु ॥ देखहुँ कपि जननी की नाईं। बिहसि कहा रघुनाथ गोसाई ॥

सुनि प्रभु बचन भालु कपि हरषे। नभ ते सुरन्ह सुमन बहु बरषे ॥ सीता प्रथम अनल महुँ राखी। प्रगट कीन्हि चह अंतर साखी ॥

Doha/ दोहा

दो. तेहि कारन करुनानिधि कहे कछुक दुर्बाद। सुनत जातुधानीं सब लागीं करै बिषाद ॥ १०८ ॥

Chaupai / चोपाई

प्रभु के बचन सीस धरि सीता। बोली मन क्रम बचन पुनीता ॥ लछिमन होहु धरम के नेगी। पावक प्रगट करहु तुम्ह बेगी ॥

सुनि लछिमन सीता कै बानी। बिरह बिबेक धरम निति सानी ॥ लोचन सजल जोरि कर दोऊ। प्रभु सन कछु कहि सकत न ओऊ ॥

देखि राम रुख लछिमन धाए। पावक प्रगटि काठ बहु लाए ॥ पावक प्रबल देखि बैदेही। हृदयँ हरष नहिं भय कछु तेही ॥

जौं मन बच क्रम मम उर माहीं। तजि रघुबीर आन गति नाहीं ॥ तौ कृसानु सब कै गति जाना। मो कहुँ होउ श्रीखंड समाना ॥

Chanda / छन्द

छं. श्रीखंड सम पावक प्रबेस कियो सुमिरि प्रभु मैथिली। जय कोसलेस महेस बंदित चरन रति अति निर्मली ॥ प्रतिबिंब अरु लौकिक कलंक प्रचंड पावक महुँ जरे। प्रभु चरित काहुँ न लखे नभ सुर सिद्ध मुनि देखहिं खरे ॥ १ ॥

धरि रूप पावक पानि गहि श्री सत्य श्रुति जग बिदित जो। जिमि छीरसागर इंदिरा रामहि समर्पी आनि सो ॥ सो राम बाम बिभाग राजति रुचिर अति सोभा भली। नव नील नीरज निकट मानहुँ कनक पंकज की कली ॥ २ ॥

Doha/ दोहा

दो. बरषहिं सुमन हरषि सुन बाजहिं गगन निसान। गावहिं किंनर सुरबधू नाचहिं चढ़ीं बिमान ॥ १०९(क) ॥

जनकसुता समेत प्रभु सोभा अमित अपार। देखि भालु कपि हरषे जय रघुपति सुख सार ॥ १०९(ख) ॥

Chaupai / चोपाई

तब रघुपति अनुसासन पाई। मातलि चलेउ चरन सिरु नाई ॥ आए देव सदा स्वारथी। बचन कहहिं जनु परमारथी ॥

दीन बंधु दयाल रघुराया। देव कीन्हि देवन्ह पर दाया ॥ बिस्व द्रोह रत यह खल कामी। निज अघ गयउ कुमारगगामी ॥

तुम्ह समरूप ब्रह्म अबिनासी। सदा एकरस सहज उदासी ॥ अकल अगुन अज अनघ अनामय। अजित अमोघसक्ति करुनामय ॥

मीन कमठ सूकर नरहरी। बामन परसुराम बपु धरी ॥ जब जब नाथ सुरन्ह दुखु पायो। नाना तनु धरि तुम्हइँ नसायो ॥

यह खल मलिन सदा सुरद्रोही। काम लोभ मद रत अति कोही ॥ अधम सिरोमनि तव पद पावा। यह हमरे मन बिसमय आवा ॥

हम देवता परम अधिकारी। स्वारथ रत प्रभु भगति बिसारी ॥ भव प्रबाहँ संतत हम परे। अब प्रभु पाहि सरन अनुसरे ॥

Doha/ दोहा

दो. करि बिनती सुर सिद्ध सब रहे जहँ तहँ कर जोरि। अति सप्रेम तन पुलकि बिधि अस्तुति करत बहोरि ॥ ११० ॥

Chanda / छन्द

छं. जय राम सदा सुखधाम हरे। रघुनायक सायक चाप धरे ॥ भव बारन दारन सिंह प्रभो। गुन सागर नागर नाथ बिभो ॥

तन काम अनेक अनूप छबी। गुन गावत सिद्ध मुनींद्र कबी ॥ जसु पावन रावन नाग महा। खगनाथ जथा करि कोप गहा ॥

जन रंजन भंजन सोक भयं। गतक्रोध सदा प्रभु बोधमयं ॥ अवतार उदार अपार गुनं। महि भार बिभंजन ग्यानघनं ॥

अज ब्यापकमेकमनादि सदा। करुनाकर राम नमामि मुदा ॥ रघुबंस बिभूषन दूषन हा। कृत भूप बिभीषन दीन रहा ॥

गुन ग्यान निधान अमान अजं। नित राम नमामि बिभुं बिरजं ॥ भुजदंड प्रचंड प्रताप बलं। खल बृंद निकंद महा कुसलं ॥

बिनु कारन दीन दयाल हितं। छबि धाम नमामि रमा सहितं ॥ भव तारन कारन काज परं। मन संभव दारुन दोष हरं ॥

सर चाप मनोहर त्रोन धरं। जरजारुन लोचन भूपबरं ॥ सुख मंदिर सुंदर श्रीरमनं। मद मार मुधा ममता समनं ॥

अनवद्य अखंड न गोचर गो। सबरूप सदा सब होइ न गो ॥ इति बेद बदंति न दंतकथा। रबि आतप भिन्नमभिन्न जथा ॥

कृतकृत्य बिभो सब बानर ए। निरखंति तवानन सादर ए ॥ धिग जीवन देव सरीर हरे। तव भक्ति बिना भव भूलि परे ॥

अब दीन दयाल दया करिऐ। मति मोरि बिभेदकरी हरिऐ ॥ जेहि ते बिपरीत क्रिया करिऐ। दुख सो सुख मानि सुखी चरिऐ ॥

खल खंडन मंडन रम्य छमा। पद पंकज सेवित संभु उमा ॥ नृप नायक दे बरदानमिदं। चरनांबुज प्रेम सदा सुभदं ॥

Doha/ दोहा

दो. बिनय कीन्हि चतुरानन प्रेम पुलक अति गात। सोभासिंधु बिलोकत लोचन नहीं अघात ॥ १११ ॥

Chaupai / चोपाई

तेहि अवसर दसरथ तहँ आए। तनय बिलोकि नयन जल छाए ॥ अनुज सहित प्रभु बंदन कीन्हा। आसिरबाद पिताँ तब दीन्हा ॥

तात सकल तव पुन्य प्रभाऊ। जीत्यों अजय निसाचर राऊ ॥ सुनि सुत बचन प्रीति अति बाढ़ी। नयन सलिल रोमावलि ठाढ़ी ॥

रघुपति प्रथम प्रेम अनुमाना। चितइ पितहि दीन्हेउ दृढ़ ग्याना ॥ ताते उमा मोच्छ नहिं पायो। दसरथ भेद भगति मन लायो ॥

सगुनोपासक मोच्छ न लेहीं। तिन्ह कहुँ राम भगति निज देहीं ॥ बार बार करि प्रभुहि प्रनामा। दसरथ हरषि गए सुरधामा ॥

Doha/ दोहा

दो. अनुज जानकी सहित प्रभु कुसल कोसलाधीस। सोभा देखि हरषि मन अस्तुति कर सुर ईस ॥ ११२ ॥

Chanda / छन्द

छं. जय राम सोभा धाम। दायक प्रनत बिश्राम ॥ धृत त्रोन बर सर चाप। भुजदंड प्रबल प्रताप ॥ १ ॥

जय दूषनारि खरारि। मर्दन निसाचर धारि ॥ यह दुष्ट मारेउ नाथ। भए देव सकल सनाथ ॥ २ ॥

जय हरन धरनी भार। महिमा उदार अपार ॥ जय रावनारि कृपाल। किए जातुधान बिहाल ॥ ३ ॥

लंकेस अति बल गर्ब। किए बस्य सुर गंधर्ब ॥ मुनि सिद्ध नर खग नाग। हठि पंथ सब कें लाग ॥ ४ ॥

परद्रोह रत अति दुष्ट। पायो सो फलु पापिष्ट ॥ अब सुनहु दीन दयाल। राजीव नयन बिसाल ॥ ५ ॥

मोहि रहा अति अभिमान। नहिं कोउ मोहि समान ॥ अब देखि प्रभु पद कंज। गत मान प्रद दुख पुंज ॥ ६ ॥

कोउ ब्रह्म निर्गुन ध्याव। अब्यक्त जेहि श्रुति गाव ॥ मोहि भाव कोसल भूप। श्रीराम सगुन सरूप ॥ ७ ॥

बैदेहि अनुज समेत। मम हृदयँ करहु निकेत ॥ मोहि जानिए निज दास। दे भक्ति रमानिवास ॥ ८ ॥

दे भक्ति रमानिवास त्रास हरन सरन सुखदायकं। सुख धाम राम नमामि काम अनेक छबि रघुनायकं ॥ सुर बृंद रंजन द्वंद भंजन मनुज तनु अतुलितबलं। ब्रह्मादि संकर सेब्य राम नमामि करुना कोमलं ॥

Doha/ दोहा

दो. अब करि कृपा बिलोकि मोहि आयसु देहु कृपाल। काह करौं सुनि प्रिय बचन बोले दीनदयाल ॥ ११३ ॥

Chaupai / चोपाई

सुनु सुरपति कपि भालु हमारे। परे भूमि निसचरन्हि जे मारे ॥ मम हित लागि तजे इन्ह प्राना। सकल जिआउ सुरेस सुजाना ॥

सुनु खगेस प्रभु कै यह बानी। अति अगाध जानहिं मुनि ग्यानी ॥ प्रभु सक त्रिभुअन मारि जिआई। केवल सक्रहि दीन्हि बड़ाई ॥

सुधा बरषि कपि भालु जिआए। हरषि उठे सब प्रभु पहिं आए ॥ सुधाबृष्टि भै दुहु दल ऊपर। जिए भालु कपि नहिं रजनीचर ॥

रामाकार भए तिन्ह के मन। मुक्त भए छूटे भव बंधन ॥ सुर अंसिक सब कपि अरु रीछा। जिए सकल रघुपति कीं ईछा ॥

राम सरिस को दीन हितकारी। कीन्हे मुकुत निसाचर झारी ॥ खल मल धाम काम रत रावन। गति पाई जो मुनिबर पाव न ॥

Doha/ दोहा

दो. सुमन बरषि सब सुर चले चढ़ि चढ़ि रुचिर बिमान। देखि सुअवसरु प्रभु पहिं आयउ संभु सुजान ॥ ११४(क) ॥

परम प्रीति कर जोरि जुग नलिन नयन भरि बारि। पुलकित तन गदगद गिराँ बिनय करत त्रिपुरारि ॥ ११४(ख) ॥

Chanda / छन्द

छं. मामभिरक्षय रघुकुल नायक। धृत बर चाप रुचिर कर सायक ॥ मोह महा घन पटल प्रभंजन। संसय बिपिन अनल सुर रंजन ॥ १ ॥

अगुन सगुन गुन मंदिर सुंदर। भ्रम तम प्रबल प्रताप दिवाकर ॥ काम क्रोध मद गज पंचानन। बसहु निरंतर जन मन कानन ॥ २ ॥

बिषय मनोरथ पुंज कंज बन। प्रबल तुषार उदार पार मन ॥ भव बारिधि मंदर परमं दर। बारय तारय संसृति दुस्तर ॥ ३ ॥

स्याम गात राजीव बिलोचन। दीन बंधु प्रनतारति मोचन ॥ अनुज जानकी सहित निरंतर। बसहु राम नृप मम उर अंतर ॥ ४ ॥

मुनि रंजन महि मंडल मंडन। तुलसिदास प्रभु त्रास बिखंडन ॥ ५ ॥

Doha/ दोहा

दो. नाथ जबहिं कोसलपुरीं होइहि तिलक तुम्हार। कृपासिंधु मैं आउब देखन चरित उदार ॥ ११५ ॥

Chaupai / चोपाई

करि बिनती जब संभु सिधाए। तब प्रभु निकट बिभीषनु आए ॥ नाइ चरन सिरु कह मृदु बानी। बिनय सुनहु प्रभु सारँगपानी ॥

सकुल सदल प्रभु रावन मार् यो। पावन जस त्रिभुवन बिस्तार् यो ॥ दीन मलीन हीन मति जाती। मो पर कृपा कीन्हि बहु भाँती ॥

अब जन गृह पुनीत प्रभु कीजे। मज्जनु करिअ समर श्रम छीजे ॥ देखि कोस मंदिर संपदा। देहु कृपाल कपिन्ह कहुँ मुदा ॥

सब बिधि नाथ मोहि अपनाइअ। पुनि मोहि सहित अवधपुर जाइअ ॥ सुनत बचन मृदु दीनदयाला। सजल भए द्वौ नयन बिसाला ॥

Doha/ दोहा

दो. तोर कोस गृह मोर सब सत्य बचन सुनु भ्रात। भरत दसा सुमिरत मोहि निमिष कल्प सम जात ॥ ११६(क) ॥

तापस बेष गात कृस जपत निरंतर मोहि। देखौं बेगि सो जतनु करु सखा निहोरउँ तोहि ॥ ११६(ख) ॥

बीतें अवधि जाउँ जौं जिअत न पावउँ बीर। सुमिरत अनुज प्रीति प्रभु पुनि पुनि पुलक सरीर ॥ ११६(ग) ॥

करेहु कल्प भरि राजु तुम्ह मोहि सुमिरेहु मन माहिं। पुनि मम धाम पाइहहु जहाँ संत सब जाहिं ॥ ११६(घ) ॥

Chaupai / चोपाई

सुनत बिभीषन बचन राम के। हरषि गहे पद कृपाधाम के ॥ बानर भालु सकल हरषाने। गहि प्रभु पद गुन बिमल बखाने ॥

बहुरि बिभीषन भवन सिधायो। मनि गन बसन बिमान भरायो ॥ लै पुष्पक प्रभु आगें राखा। हँसि करि कृपासिंधु तब भाषा ॥

चढ़ि बिमान सुनु सखा बिभीषन। गगन जाइ बरषहु पट भूषन ॥ नभ पर जाइ बिभीषन तबही। बरषि दिए मनि अंबर सबही ॥

जोइ जोइ मन भावइ सोइ लेहीं। मनि मुख मेलि डारि कपि देहीं ॥ हँसे रामु श्री अनुज समेता। परम कौतुकी कृपा निकेता ॥

Doha/ दोहा

दो. मुनि जेहि ध्यान न पावहिं नेति नेति कह बेद। कृपासिंधु सोइ कपिन्ह सन करत अनेक बिनोद ॥ ११७(क) ॥

उमा जोग जप दान तप नाना मख ब्रत नेम। राम कृपा नहि करहिं तसि जसि निष्केवल प्रेम ॥ ११७(ख) ॥

Chaupai / चोपाई

भालु कपिन्ह पट भूषन पाए। पहिरि पहिरि रघुपति पहिं आए ॥ नाना जिनस देखि सब कीसा। पुनि पुनि हँसत कोसलाधीसा ॥

चितइ सबन्हि पर कीन्हि दाया। बोले मृदुल बचन रघुराया ॥ तुम्हरें बल मैं रावनु मार् यो। तिलक बिभीषन कहँ पुनि सार् यो ॥

निज निज गृह अब तुम्ह सब जाहू। सुमिरेहु मोहि डरपहु जनि काहू ॥ सुनत बचन प्रेमाकुल बानर। जोरि पानि बोले सब सादर ॥

प्रभु जोइ कहहु तुम्हहि सब सोहा। हमरे होत बचन सुनि मोहा ॥ दीन जानि कपि किए सनाथा। तुम्ह त्रेलोक ईस रघुनाथा ॥

सुनि प्रभु बचन लाज हम मरहीं। मसक कहूँ खगपति हित करहीं ॥ देखि राम रुख बानर रीछा। प्रेम मगन नहिं गृह कै ईछा ॥

Doha/ दोहा

दो. प्रभु प्रेरित कपि भालु सब राम रूप उर राखि। हरष बिषाद सहित चले बिनय बिबिध बिधि भाषि ॥ ११८(क) ॥

कपिपति नील रीछपति अंगद नल हनुमान। सहित बिभीषन अपर जे जूथप कपि बलवान ॥ ११८(ख) ॥

दो. कहि न सकहिं कछु प्रेम बस भरि भरि लोचन बारि। सन्मुख चितवहिं राम तन नयन निमेष निवारि ॥ ११८(ग) ॥

Chaupai / चोपाई

अतिसय प्रीति देख रघुराई। लिन्हे सकल बिमान चढ़ाई ॥ मन महुँ बिप्र चरन सिरु नायो। उत्तर दिसिहि बिमान चलायो ॥

चलत बिमान कोलाहल होई। जय रघुबीर कहइ सबु कोई ॥ सिंहासन अति उच्च मनोहर। श्री समेत प्रभु बैठै ता पर ॥

राजत रामु सहित भामिनी। मेरु सृंग जनु घन दामिनी ॥ रुचिर बिमानु चलेउ अति आतुर। कीन्ही सुमन बृष्टि हरषे सुर ॥

परम सुखद चलि त्रिबिध बयारी। सागर सर सरि निर्मल बारी ॥ सगुन होहिं सुंदर चहुँ पासा। मन प्रसन्न निर्मल नभ आसा ॥

कह रघुबीर देखु रन सीता। लछिमन इहाँ हत्यो इँद्रजीता ॥ हनूमान अंगद के मारे। रन महि परे निसाचर भारे ॥

कुंभकरन रावन द्वौ भाई। इहाँ हते सुर मुनि दुखदाई ॥

Doha/ दोहा

दो. इहाँ सेतु बाँध्यो अरु थापेउँ सिव सुख धाम। सीता सहित कृपानिधि संभुहि कीन्ह प्रनाम ॥ ११९(क) ॥

जहँ जहँ कृपासिंधु बन कीन्ह बास बिश्राम। सकल देखाए जानकिहि कहे सबन्हि के नाम ॥ ११९(ख) ॥

Chaupai / चोपाई

तुरत बिमान तहाँ चलि आवा। दंडक बन जहँ परम सुहावा ॥ कुंभजादि मुनिनायक नाना। गए रामु सब कें अस्थाना ॥

सकल रिषिन्ह सन पाइ असीसा। चित्रकूट आए जगदीसा ॥ तहँ करि मुनिन्ह केर संतोषा। चला बिमानु तहाँ ते चोखा ॥

बहुरि राम जानकिहि देखाई। जमुना कलि मल हरनि सुहाई ॥ पुनि देखी सुरसरी पुनीता। राम कहा प्रनाम करु सीता ॥

तीरथपति पुनि देखु प्रयागा। निरखत जन्म कोटि अघ भागा ॥ देखु परम पावनि पुनि बेनी। हरनि सोक हरि लोक निसेनी ॥

पुनि देखु अवधपुरी अति पावनि। त्रिबिध ताप भव रोग नसावनि ॥ ।

Doha/ दोहा

दो. सीता सहित अवध कहुँ कीन्ह कृपाल प्रनाम। सजल नयन तन पुलकित पुनि पुनि हरषित राम ॥ १२०(क) ॥

पुनि प्रभु आइ त्रिबेनीं हरषित मज्जनु कीन्ह। कपिन्ह सहित बिप्रन्ह कहुँ दान बिबिध बिधि दीन्ह ॥ १२०(ख) ॥

Chaupai / चोपाई

प्रभु हनुमंतहि कहा बुझाई। धरि बटु रूप अवधपुर जाई ॥ भरतहि कुसल हमारि सुनाएहु। समाचार लै तुम्ह चलि आएहु ॥

तुरत पवनसुत गवनत भयउ। तब प्रभु भरद्वाज पहिं गयऊ ॥ नाना बिधि मुनि पूजा कीन्ही। अस्तुती करि पुनि आसिष दीन्ही ॥

मुनि पद बंदि जुगल कर जोरी। चढ़ि बिमान प्रभु चले बहोरी ॥ इहाँ निषाद सुना प्रभु आए। नाव नाव कहँ लोग बोलाए ॥

सुरसरि नाघि जान तब आयो। उतरेउ तट प्रभु आयसु पायो ॥ तब सीताँ पूजी सुरसरी। बहु प्रकार पुनि चरनन्हि परी ॥

दीन्हि असीस हरषि मन गंगा। सुंदरि तव अहिवात अभंगा ॥ सुनत गुहा धायउ प्रेमाकुल। आयउ निकट परम सुख संकुल ॥

प्रभुहि सहित बिलोकि बैदेही। परेउ अवनि तन सुधि नहिं तेही ॥ प्रीति परम बिलोकि रघुराई। हरषि उठाइ लियो उर लाई ॥

Chanda / छन्द

छं. लियो हृदयँ लाइ कृपा निधान सुजान रायँ रमापती। बैठारि परम समीप बूझी कुसल सो कर बीनती। अब कुसल पद पंकज बिलोकि बिरंचि संकर सेब्य जे। सुख धाम पूरनकाम राम नमामि राम नमामि ते ॥ १ ॥

सब भाँति अधम निषाद सो हरि भरत ज्यों उर लाइयो। मतिमंद तुलसीदास सो प्रभु मोह बस बिसराइयो ॥ यह रावनारि चरित्र पावन राम पद रतिप्रद सदा। कामादिहर बिग्यानकर सुर सिद्ध मुनि गावहिं मुदा ॥ २ ॥

Doha/ दोहा

दो. समर बिजय रघुबीर के चरित जे सुनहिं सुजान। बिजय बिबेक बिभूति नित तिन्हहि देहिं भगवान ॥ १२१(क) ॥

यह कलिकाल मलायतन मन करि देखु बिचार। श्रीरघुनाथ नाम तजि नाहिन आन अधार ॥ १२१(ख) ॥

Lanka Kanda Ends

इति श्रीमद्रामचरितमानसे सकलकलिकलुषविध्वंसने षष्ठः सोपानः समाप्तः।

(लंकाकाण्ड समाप्त)

Masaparayana 27 Ends

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