Ram Charita Manas

Masaparayan 28

ॐ श्री परमात्मने नमः

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संस्कृत्म
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Uttara Kanda Begins / अथ उत्तर काण्ड

श्रीरामचरितमानस सप्तम सोपान (उत्तरकाण्ड)

Mangalashloka / मंगलश्लोक्

केकीकण्ठाभनीलं सुरवरविलसद्विप्रपादाब्जचिह्नं शोभाढ्यं पीतवस्त्रं सरसिजनयनं सर्वदा सुप्रसन्नम्।पाणौ नाराचचापं कपिनिकरयुतं बन्धुना सेव्यमानं नौमीड्यं जानकीशं रघुवरमनिशं पुष्पकारूढरामम् ॥ १ ॥

कोसलेन्द्रपदकञ्जमञ्जुलौ कोमलावजमहेशवन्दितौ । जानकीकरसरोजलालितौ चिन्तकस्य मनभृङ्गसड्गिनौ ॥ २ ॥

कुन्दइन्दुदरगौरसुन्दरं अम्बिकापतिमभीष्टसिद्धिदम् । कारुणीककलकञ्जलोचनं नौमि शंकरमनंगमोचनम् ॥ ३ ॥

Doha / दोहा

दो. रहा एक दिन अवधि कर अति आरत पुर लोग । जहँ तहँ सोचहिं नारि नर कृस तन राम बियोग ॥

Chaupai / चोपाई

सगुन होहिं सुंदर सकल मन प्रसन्न सब केर । प्रभु आगवन जनाव जनु नगर रम्य चहुँ फेर ॥

कौसल्यादि मातु सब मन अनंद अस होइ। आयउ प्रभु श्री अनुज जुत कहन चहत अब कोइ ॥

भरत नयन भुज दच्छिन फरकत बारहिं बार। जानि सगुन मन हरष अति लागे करन बिचार ॥

रहेउ एक दिन अवधि अधारा। समुझत मन दुख भयउ अपारा ॥ कारन कवन नाथ नहिं आयउ। जानि कुटिल किधौं मोहि बिसरायउ ॥

अहह धन्य लछिमन बड़भागी। राम पदारबिंदु अनुरागी ॥ कपटी कुटिल मोहि प्रभु चीन्हा। ताते नाथ संग नहिं लीन्हा ॥

जौं करनी समुझै प्रभु मोरी। नहिं निस्तार कलप सत कोरी ॥ जन अवगुन प्रभु मान न काऊ। दीन बंधु अति मृदुल सुभाऊ ॥

मोरि जियँ भरोस दृढ़ सोई। मिलिहहिं राम सगुन सुभ होई ॥ बीतें अवधि रहहि जौं प्राना। अधम कवन जग मोहि समाना ॥

Doha / दोहा

दो. राम बिरह सागर महँ भरत मगन मन होत । बिप्र रूप धरि पवन सुत आइ गयउ जनु पोत ॥ १(क) ॥

Chaupai / चोपाई

बैठि देखि कुसासन जटा मुकुट कृस गात। राम राम रघुपति जपत स्त्रवत नयन जलजात ॥ १(ख) ॥

देखत हनूमान अति हरषेउ। पुलक गात लोचन जल बरषेउ ॥ मन महँ बहुत भाँति सुख मानी। बोलेउ श्रवन सुधा सम बानी ॥

जासु बिरहँ सोचहु दिन राती। रटहु निरंतर गुन गन पाँती ॥ रघुकुल तिलक सुजन सुखदाता। आयउ कुसल देव मुनि त्राता ॥

रिपु रन जीति सुजस सुर गावत। सीता सहित अनुज प्रभु आवत ॥ सुनत बचन बिसरे सब दूखा। तृषावंत जिमि पाइ पियूषा ॥

को तुम्ह तात कहाँ ते आए। मोहि परम प्रिय बचन सुनाए ॥ मारुत सुत मैं कपि हनुमाना। नामु मोर सुनु कृपानिधाना ॥

दीनबंधु रघुपति कर किंकर। सुनत भरत भेंटेउ उठि सादर ॥ मिलत प्रेम नहिं हृदयँ समाता। नयन स्त्रवत जल पुलकित गाता ॥

कपि तव दरस सकल दुख बीते। मिले आजु मोहि राम पिरीते ॥ बार बार बूझी कुसलाता। तो कहुँ देउँ काह सुनु भ्राता ॥

एहि संदेस सरिस जग माहीं। करि बिचार देखेउँ कछु नाहीं ॥ नाहिन तात उरिन मैं तोही। अब प्रभु चरित सुनावहु मोही ॥

तब हनुमंत नाइ पद माथा। कहे सकल रघुपति गुन गाथा ॥ कहु कपि कबहुँ कृपाल गोसाईं। सुमिरहिं मोहि दास की नाईं ॥

Chanda / छन्द

छं. निज दास ज्यों रघुबंसभूषन कबहुँ मम सुमिरन कर् यो । सुनि भरत बचन बिनीत अति कपि पुलकित तन चरनन्हि पर् यो ॥

रघुबीर निज मुख जासु गुन गन कहत अग जग नाथ जो । काहे न होइ बिनीत परम पुनीत सदगुन सिंधु सो ॥

Doha / दोहा

दो. राम प्रान प्रिय नाथ तुम्ह सत्य बचन मम तात । पुनि पुनि मिलत भरत सुनि हरष न हृदयँ समात ॥ २(क) ॥

Sortha / सोरठा

सो. भरत चरन सिरु नाइ तुरित गयउ कपि राम पहिं । कही कुसल सब जाइ हरषि चलेउ प्रभु जान चढ़ि ॥ २(ख) ॥

Chaupai / चोपाई

हरषि भरत कोसलपुर आए। समाचार सब गुरहि सुनाए ॥ पुनि मंदिर महँ बात जनाई। आवत नगर कुसल रघुराई ॥

सुनत सकल जननीं उठि धाईं। कहि प्रभु कुसल भरत समुझाई ॥ समाचार पुरबासिंह पाए। नर अरु नारि हरषि सब धाए ॥

दधि दुर्बा रोचन फल फूला। नव तुलसी दल मंगल मूला ॥ भरि भरि हेम थार भामिनी। गावत चलिं सिंधु सिंधुरगामिनी ॥

जे जैसेहिं तैसेहिं उटि धावहिं। बाल बृद्ध कहँ संग न लावहिं ॥ एक एकन्ह कहँ बूझहिं भाई। तुम्ह देखे दयाल रघुराई ॥

अवधपुरी प्रभु आवत जानी। भई सकल सोभा कै खानी ॥ बहइ सुहावन त्रिबिध समीरा। भइ सरजू अति निर्मल नीरा ॥

Doha / दोहा

दो. हरषित गुर परिजन अनुज भूसुर बृंद समेत । चले भरत मन प्रेम अति सन्मुख कृपानिकेत ॥ ३(क) ॥

बहुतक चढ़ी अटारिन्ह निरखहिं गगन बिमान । देखि मधुर सुर हरषित करहिं सुमंगल गान ॥ ३(ख) ॥

राका ससि रघुपति पुर सिंधु देखि हरषान । बढ़यो कोलाहल करत जनु नारि तरंग समान ॥ ३(ग) ॥

Chaupai / चोपाई

इहाँ भानुकुल कमल दिवाकर। कपिन्ह देखावत नगर मनोहर ॥ सुनु कपीस अंगद लंकेसा। पावन पुरी रुचिर यह देसा ॥

जद्यपि सब बैकुंठ बखाना। बेद पुरान बिदित जगु जाना ॥ अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ। यह प्रसंग जानइ कोउ कोऊ ॥

जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि। उत्तर दिसि बह सरजू पावनि ॥ जा मज्जन ते बिनहिं प्रयासा। मम समीप नर पावहिं बासा ॥

अति प्रिय मोहि इहाँ के बासी। मम धामदा पुरी सुख रासी ॥ हरषे सब कपि सुनि प्रभु बानी। धन्य अवध जो राम बखानी ॥

Doha / दोहा

दो. आवत देखि लोग सब कृपासिंधु भगवान । नगर निकट प्रभु प्रेरेउ उतरेउ भूमि बिमान ॥ ४(क) ॥

उतरि कहेउ प्रभु पुष्पकहि तुम्ह कुबेर पहिं जाहु । प्रेरित राम चलेउ सो हरषु बिरहु अति ताहु ॥ ४(ख) ॥

Chaupai / चोपाई

आए भरत संग सब लोगा। कृस तन श्रीरघुबीर बियोगा ॥ बामदेव बसिष्ठ मुनिनायक। देखे प्रभु महि धरि धनु सायक ॥

धाइ धरे गुर चरन सरोरुह। अनुज सहित अति पुलक तनोरुह ॥ भेंटि कुसल बूझी मुनिराया। हमरें कुसल तुम्हारिहिं दाया ॥

सकल द्विजन्ह मिलि नायउ माथा। धर्म धुरंधर रघुकुलनाथा ॥ गहे भरत पुनि प्रभु पद पंकज। नमत जिन्हहि सुर मुनि संकर अज ॥

परे भूमि नहिं उठत उठाए। बर करि कृपासिंधु उर लाए ॥ स्यामल गात रोम भए ठाढ़े। नव राजीव नयन जल बाढ़े ॥

Chanda / छन्द

छं. राजीव लोचन स्त्रवत जल तन ललित पुलकावलि बनी । अति प्रेम हृदयँ लगाइ अनुजहि मिले प्रभु त्रिभुअन धनी ॥

प्रभु मिलत अनुजहि सोह मो पहिं जाति नहिं उपमा कही । जनु प्रेम अरु सिंगार तनु धरि मिले बर सुषमा लही ॥ १ ॥

बूझत कृपानिधि कुसल भरतहि बचन बेगि न आवई । सुनु सिवा सो सुख बचन मन ते भिन्न जान जो पावई ॥

अब कुसल कौसलनाथ आरत जानि जन दरसन दियो । बूड़त बिरह बारीस कृपानिधान मोहि कर गहि लियो ॥ २ ॥

Doha / दोहा

दो. पुनि प्रभु हरषि सत्रुहन भेंटे हृदयँ लगाइ । लछिमन भरत मिले तब परम प्रेम दोउ भाइ ॥ ५ ॥

Chaupai / चोपाई

भरतानुज लछिमन पुनि भेंटे। दुसह बिरह संभव दुख मेटे ॥ सीता चरन भरत सिरु नावा। अनुज समेत परम सुख पावा ॥

प्रभु बिलोकि हरषे पुरबासी। जनित बियोग बिपति सब नासी ॥ प्रेमातुर सब लोग निहारी। कौतुक कीन्ह कृपाल खरारी ॥

अमित रूप प्रगटे तेहि काला। जथाजोग मिले सबहि कृपाला ॥ कृपादृष्टि रघुबीर बिलोकी। किए सकल नर नारि बिसोकी ॥

छन महिं सबहि मिले भगवाना। उमा मरम यह काहुँ न जाना ॥ एहि बिधि सबहि सुखी करि रामा। आगें चले सील गुन धामा ॥

कौसल्यादि मातु सब धाई। निरखि बच्छ जनु धेनु लवाई ॥

Chanda / छन्द

छं. जनु धेनु बालक बच्छ तजि गृहँ चरन बन परबस गईं । दिन अंत पुर रुख स्त्रवत थन हुंकार करि धावत भई ॥

अति प्रेम सब मातु भेटीं बचन मृदु बहुबिधि कहे । गइ बिषम बियोग भव तिन्ह हरष सुख अगनित लहे ॥

Doha / दोहा

दो. भेटेउ तनय सुमित्राँ राम चरन रति जानि । रामहि मिलत कैकेई हृदयँ बहुत सकुचानि ॥ ६(क) ॥

लछिमन सब मातन्ह मिलि हरषे आसिष पाइ । कैकेइ कहँ पुनि पुनि मिले मन कर छोभु न जाइ ॥ ६ ॥

Chaupai / चोपाई

सासुन्ह सबनि मिली बैदेही। चरनन्हि लागि हरषु अति तेही ॥ देहिं असीस बूझि कुसलाता। होइ अचल तुम्हार अहिवाता ॥

सब रघुपति मुख कमल बिलोकहिं। मंगल जानि नयन जल रोकहिं ॥ कनक थार आरति उतारहिं। बार बार प्रभु गात निहारहिं ॥

नाना भाँति निछावरि करहीं। परमानंद हरष उर भरहीं ॥ कौसल्या पुनि पुनि रघुबीरहि। चितवति कृपासिंधु रनधीरहि ॥

हृदयँ बिचारति बारहिं बारा। कवन भाँति लंकापति मारा ॥ अति सुकुमार जुगल मेरे बारे। निसिचर सुभट महाबल भारे ॥

Doha / दोहा

दो. लछिमन अरु सीता सहित प्रभुहि बिलोकति मातु । परमानंद मगन मन पुनि पुनि पुलकित गातु ॥ ७ ॥

Chaupai / चोपाई

लंकापति कपीस नल नीला। जामवंत अंगद सुभसीला ॥ हनुमदादि सब बानर बीरा। धरे मनोहर मनुज सरीरा ॥

भरत सनेह सील ब्रत नेमा। सादर सब बरनहिं अति प्रेमा ॥ देखि नगरबासिंह कै रीती। सकल सराहहि प्रभु पद प्रीती ॥

पुनि रघुपति सब सखा बोलाए। मुनि पद लागहु सकल सिखाए ॥ गुर बसिष्ट कुलपूज्य हमारे। इन्ह की कृपाँ दनुज रन मारे ॥

ए सब सखा सुनहु मुनि मेरे। भए समर सागर कहँ बेरे ॥ मम हित लागि जन्म इन्ह हारे। भरतहु ते मोहि अधिक पिआरे ॥

सुनि प्रभु बचन मगन सब भए। निमिष निमिष उपजत सुख नए ॥

Doha / दोहा

दो. कौसल्या के चरनन्हि पुनि तिन्ह नायउ माथ ॥ आसिष दीन्हे हरषि तुम्ह प्रिय मम जिमि रघुनाथ ॥ ८(क) ॥

सुमन बृष्टि नभ संकुल भवन चले सुखकंद । चढ़ी अटारिन्ह देखहिं नगर नारि नर बृंद ॥ ८(ख) ॥

Chaupai / चोपाई

कंचन कलस बिचित्र सँवारे। सबहिं धरे सजि निज निज द्वारे ॥ बंदनवार पताका केतू। सबन्हि बनाए मंगल हेतू ॥

बीथीं सकल सुगंध सिंचाई। गजमनि रचि बहु चौक पुराई ॥ नाना भाँति सुमंगल साजे। हरषि नगर निसान बहु बाजे ॥

जहँ तहँ नारि निछावर करहीं। देहिं असीस हरष उर भरहीं ॥ कंचन थार आरती नाना। जुबती सजें करहिं सुभ गाना ॥

करहिं आरती आरतिहर कें। रघुकुल कमल बिपिन दिनकर कें ॥ पुर सोभा संपति कल्याना। निगम सेष सारदा बखाना ॥

तेउ यह चरित देखि ठगि रहहीं। उमा तासु गुन नर किमि कहहीं ॥

Doha / दोहा

दो. नारि कुमुदिनीं अवध सर रघुपति बिरह दिनेस । अस्त भएँ बिगसत भईं निरखि राम राकेस ॥ ९(क) ॥

होहिं सगुन सुभ बिबिध बिधि बाजहिं गगन निसान । पुर नर नारि सनाथ करि भवन चले भगवान ॥ ९(ख) ॥

Chaupai / चोपाई

प्रभु जानी कैकेई लजानी। प्रथम तासु गृह गए भवानी ॥ ताहि प्रबोधि बहुत सुख दीन्हा। पुनि निज भवन गवन हरि कीन्हा ॥

कृपासिंधु जब मंदिर गए। पुर नर नारि सुखी सब भए ॥ गुर बसिष्ट द्विज लिए बुलाई। आजु सुघरी सुदिन समुदाई ॥

सब द्विज देहु हरषि अनुसासन। रामचंद्र बैठहिं सिंघासन ॥ मुनि बसिष्ट के बचन सुहाए। सुनत सकल बिप्रन्ह अति भाए ॥

कहहिं बचन मृदु बिप्र अनेका। जग अभिराम राम अभिषेका ॥ अब मुनिबर बिलंब नहिं कीजे। महाराज कहँ तिलक करीजै ॥

Doha / दोहा

दो. तब मुनि कहेउ सुमंत्र सन सुनत चलेउ हरषाइ । रथ अनेक बहु बाजि गज तुरत सँवारे जाइ ॥ १०(क) ॥

जहँ तहँ धावन पठइ पुनि मंगल द्रब्य मगाइ । हरष समेत बसिष्ट पद पुनि सिरु नायउ आइ ॥ १०(ख) ॥

Chaupai / चोपाई

अवधपुरी अति रुचिर बनाई। देवन्ह सुमन बृष्टि झरि लाई ॥ राम कहा सेवकन्ह बुलाई। प्रथम सखन्ह अन्हवावहु जाई ॥

सुनत बचन जहँ तहँ जन धाए। सुग्रीवादि तुरत अन्हवाए ॥ पुनि करुनानिधि भरतु हँकारे। निज कर राम जटा निरुआरे ॥

अन्हवाए प्रभु तीनिउ भाई। भगत बछल कृपाल रघुराई ॥ भरत भाग्य प्रभु कोमलताई। सेष कोटि सत सकहिं न गाई ॥

पुनि निज जटा राम बिबराए। गुर अनुसासन मागि नहाए ॥ करि मज्जन प्रभु भूषन साजे। अंग अनंग देखि सत लाजे ॥

Doha / दोहा

दो. सासुन्ह सादर जानकिहि मज्जन तुरत कराइ । दिब्य बसन बर भूषन अँग अँग सजे बनाइ ॥ ११(क) ॥

राम बाम दिसि सोभति रमा रूप गुन खानि । देखि मातु सब हरषीं जन्म सुफल निज जानि ॥ ११(ख) ॥

सुनु खगेस तेहि अवसर ब्रह्मा सिव मुनि बृंद । चढ़ि बिमान आए सब सुर देखन सुखकंद ॥ ११(ग) ॥

Chaupai / चोपाई

प्रभु बिलोकि मुनि मन अनुरागा। तुरत दिब्य सिंघासन मागा ॥ रबि सम तेज सो बरनि न जाई। बैठे राम द्विजन्ह सिरु नाई ॥

जनकसुता समेत रघुराई। पेखि प्रहरषे मुनि समुदाई ॥ बेद मंत्र तब द्विजन्ह उचारे। नभ सुर मुनि जय जयति पुकारे ॥

प्रथम तिलक बसिष्ट मुनि कीन्हा। पुनि सब बिप्रन्ह आयसु दीन्हा ॥ सुत बिलोकि हरषीं महतारी। बार बार आरती उतारी ॥

बिप्रन्ह दान बिबिध बिधि दीन्हे। जाचक सकल अजाचक कीन्हे ॥ सिंघासन पर त्रिभुअन साई। देखि सुरन्ह दुंदुभीं बजाईं ॥

Chanda / छन्द

छं. नभ दुंदुभीं बाजहिं बिपुल गंधर्ब किंनर गावहीं । नाचहिं अपछरा बृंद परमानंद सुर मुनि पावहीं ॥

भरतादि अनुज बिभीषनांगद हनुमदादि समेत ते । गहें छत्र चामर ब्यजन धनु असि चर्म सक्ति बिराजते ॥ १ ॥

श्री सहित दिनकर बंस बूषन काम बहु छबि सोहई । नव अंबुधर बर गात अंबर पीत सुर मन मोहई ॥

मुकुटांगदादि बिचित्र भूषन अंग अंगन्हि प्रति सजे । अंभोज नयन बिसाल उर भुज धन्य नर निरखंति जे ॥ २ ॥

Doha / दोहा

दो. वह सोभा समाज सुख कहत न बनइ खगेस । बरनहिं सारद सेष श्रुति सो रस जान महेस ॥ १२(क) ॥

भिन्न भिन्न अस्तुति करि गए सुर निज निज धाम । बंदी बेष बेद तब आए जहँ श्रीराम ॥ १२(ख) ॥

प्रभु सर्बग्य कीन्ह अति आदर कृपानिधान । लखेउ न काहूँ मरम कछु लगे करन गुन गान ॥ १२(ग) ॥

Chanda / छन्द

छं. जय सगुन निर्गुन रूप अनूप भूप सिरोमने । दसकंधरादि प्रचंड निसिचर प्रबल खल भुज बल हने ॥

अवतार नर संसार भार बिभंजि दारुन दुख दहे । जय प्रनतपाल दयाल प्रभु संजुक्त सक्ति नमामहे ॥ १ ॥

तव बिषम माया बस सुरासुर नाग नर अग जग हरे । भव पंथ भ्रमत अमित दिवस निसि काल कर्म गुननि भरे ॥

जे नाथ करि करुना बिलोके त्रिबिधि दुख ते निर्बहे । भव खेद छेदन दच्छ हम कहुँ रच्छ राम नमामहे ॥ २ ॥

जे ग्यान मान बिमत्त तव भव हरनि भक्ति न आदरी । ते पाइ सुर दुर्लभ पदादपि परत हम देखत हरी ॥

बिस्वास करि सब आस परिहरि दास तव जे होइ रहे । जपि नाम तव बिनु श्रम तरहिं भव नाथ सो समरामहे ॥ ३ ॥

जे चरन सिव अज पूज्य रज सुभ परसि मुनिपतिनी तरी । नख निर्गता मुनि बंदिता त्रेलोक पावनि सुरसरी ॥

ध्वज कुलिस अंकुस कंज जुत बन फिरत कंटक किन लहे । पद कंज द्वंद मुकुंद राम रमेस नित्य भजामहे ॥ ४ ॥

अब्यक्तमूलमनादि तरु त्वच चारि निगमागम भने । षट कंध साखा पंच बीस अनेक पर्न सुमन घने ॥

फल जुगल बिधि कटु मधुर बेलि अकेलि जेहि आश्रित रहे । पल्लवत फूलत नवल नित संसार बिटप नमामहे ॥ ५ ॥

जे ब्रह्म अजमद्वैतमनुभवगम्य मनपर ध्यावहीं । ते कहहुँ जानहुँ नाथ हम तव सगुन जस नित गावहीं ॥

करुनायतन प्रभु सदगुनाकर देव यह बर मागहीं । मन बचन कर्म बिकार तजि तव चरन हम अनुरागहीं ॥ ६ ॥

Doha / दोहा

दो. सब के देखत बेदन्ह बिनती कीन्हि उदार । अंतर्धान भए पुनि गए ब्रह्म आगार ॥ १३(क) ॥

बैनतेय सुनु संभु तब आए जहँ रघुबीर । बिनय करत गदगद गिरा पूरित पुलक सरीर ॥ १३(ख) ॥

Chanda / छन्द

छं. जय राम रमारमनं समनं। भव ताप भयाकुल पाहि जनं ॥ अवधेस सुरेस रमेस बिभो। सरनागत मागत पाहि प्रभो ॥ १ ॥

दससीस बिनासन बीस भुजा। कृत दूरि महा महि भूरि रुजा ॥ रजनीचर बृंद पतंग रहे। सर पावक तेज प्रचंड दहे ॥ २ ॥

महि मंडल मंडन चारुतरं। धृत सायक चाप निषंग बरं ॥ मद मोह महा ममता रजनी। तम पुंज दिवाकर तेज अनी ॥ ३ ॥

मनजात किरात निपात किए। मृग लोग कुभोग सरेन हिए ॥ हति नाथ अनाथनि पाहि हरे। बिषया बन पावँर भूलि परे ॥ ४ ॥

बहु रोग बियोगन्हि लोग हए। भवदंघ्रि निरादर के फल ए ॥ भव सिंधु अगाध परे नर ते। पद पंकज प्रेम न जे करते ॥ ५ ॥

अति दीन मलीन दुखी नितहीं। जिन्ह के पद पंकज प्रीति नहीं ॥ अवलंब भवंत कथा जिन्ह के ॥ प्रिय संत अनंत सदा तिन्ह कें ॥ ६ ॥

नहिं राग न लोभ न मान मदा ॥ तिन्ह कें सम बैभव वा बिपदा ॥ एहि ते तव सेवक होत मुदा। मुनि त्यागत जोग भरोस सदा ॥ ७ ॥

करि प्रेम निरंतर नेम लिएँ। पद पंकज सेवत सुद्ध हिएँ ॥ सम मानि निरादर आदरही। सब संत सुखी बिचरंति मही ॥ ८ ॥

मुनि मानस पंकज भृंग भजे। रघुबीर महा रनधीर अजे ॥ तव नाम जपामि नमामि हरी। भव रोग महागद मान अरी ॥ ९ ॥

गुन सील कृपा परमायतनं। प्रनमामि निरंतर श्रीरमनं ॥ रघुनंद निकंदय द्वंद्वघनं। महिपाल बिलोकय दीन जनं ॥ १० ॥

Doha / दोहा

दो. बार बार बर मागउँ हरषि देहु श्रीरंग । पद सरोज अनपायनी भगति सदा सतसंग ॥ १४(क) ॥

बरनि उमापति राम गुन हरषि गए कैलास । तब प्रभु कपिन्ह दिवाए सब बिधि सुखप्रद बास ॥ १४(ख) ॥

Chaupai / चोपाई

सुनु खगपति यह कथा पावनी। त्रिबिध ताप भव भय दावनी ॥ महाराज कर सुभ अभिषेका। सुनत लहहिं नर बिरति बिबेका ॥

जे सकाम नर सुनहिं जे गावहिं। सुख संपति नाना बिधि पावहिं ॥ सुर दुर्लभ सुख करि जग माहीं। अंतकाल रघुपति पुर जाहीं ॥

सुनहिं बिमुक्त बिरत अरु बिषई। लहहिं भगति गति संपति नई ॥ खगपति राम कथा मैं बरनी। स्वमति बिलास त्रास दुख हरनी ॥

बिरति बिबेक भगति दृढ़ करनी। मोह नदी कहँ सुंदर तरनी ॥ नित नव मंगल कौसलपुरी। हरषित रहहिं लोग सब कुरी ॥

नित नइ प्रीति राम पद पंकज। सबकें जिन्हहि नमत सिव मुनि अज ॥ मंगन बहु प्रकार पहिराए। द्विजन्ह दान नाना बिधि पाए ॥

Doha / दोहा

दो. ब्रह्मानंद मगन कपि सब कें प्रभु पद प्रीति । जात न जाने दिवस तिन्ह गए मास षट बीति ॥ १५ ॥

Chaupai / चोपाई

बिसरे गृह सपनेहुँ सुधि नाहीं। जिमि परद्रोह संत मन माही ॥ तब रघुपति सब सखा बोलाए। आइ सबन्हि सादर सिरु नाए ॥

परम प्रीति समीप बैठारे। भगत सुखद मृदु बचन उचारे ॥ तुम्ह अति कीन्ह मोरि सेवकाई। मुख पर केहि बिधि करौं बड़ाई ॥

ताते मोहि तुम्ह अति प्रिय लागे। मम हित लागि भवन सुख त्यागे ॥ अनुज राज संपति बैदेही। देह गेह परिवार सनेही ॥

सब मम प्रिय नहिं तुम्हहि समाना। मृषा न कहउँ मोर यह बाना ॥ सब के प्रिय सेवक यह नीती। मोरें अधिक दास पर प्रीती ॥

Doha / दोहा

दो. अब गृह जाहु सखा सब भजेहु मोहि दृढ़ नेम । सदा सर्बगत सर्बहित जानि करेहु अति प्रेम ॥ १६ ॥

Chaupai / चोपाई

सुनि प्रभु बचन मगन सब भए। को हम कहाँ बिसरि तन गए ॥ एकटक रहे जोरि कर आगे। सकहिं न कछु कहि अति अनुरागे ॥

परम प्रेम तिन्ह कर प्रभु देखा। कहा बिबिध बिधि ग्यान बिसेषा ॥ प्रभु सन्मुख कछु कहन न पारहिं। पुनि पुनि चरन सरोज निहारहिं ॥

तब प्रभु भूषन बसन मगाए। नाना रंग अनूप सुहाए ॥ सुग्रीवहि प्रथमहिं पहिराए। बसन भरत निज हाथ बनाए ॥

प्रभु प्रेरित लछिमन पहिराए। लंकापति रघुपति मन भाए ॥ अंगद बैठ रहा नहिं डोला। प्रीति देखि प्रभु ताहि न बोला ॥

Doha / दोहा

दो. जामवंत नीलादि सब पहिराए रघुनाथ । हियँ धरि राम रूप सब चले नाइ पद माथ ॥ १७(क) ॥

तब अंगद उठि नाइ सिरु सजल नयन कर जोरि । अति बिनीत बोलेउ बचन मनहुँ प्रेम रस बोरि ॥ १७(ख) ॥

Chaupai / चोपाई

सुनु सर्बग्य कृपा सुख सिंधो। दीन दयाकर आरत बंधो ॥ मरती बेर नाथ मोहि बाली। गयउ तुम्हारेहि कोंछें घाली ॥

असरन सरन बिरदु संभारी। मोहि जनि तजहु भगत हितकारी ॥ मोरें तुम्ह प्रभु गुर पितु माता। जाउँ कहाँ तजि पद जलजाता ॥

तुम्हहि बिचारि कहहु नरनाहा। प्रभु तजि भवन काज मम काहा ॥ बालक ग्यान बुद्धि बल हीना। राखहु सरन नाथ जन दीना ॥

नीचि टहल गृह कै सब करिहउँ। पद पंकज बिलोकि भव तरिहउँ ॥ अस कहि चरन परेउ प्रभु पाही। अब जनि नाथ कहहु गृह जाही ॥

Doha / दोहा

दो. अंगद बचन बिनीत सुनि रघुपति करुना सींव । प्रभु उठाइ उर लायउ सजल नयन राजीव ॥ १८(क) ॥

निज उर माल बसन मनि बालितनय पहिराइ । बिदा कीन्हि भगवान तब बहु प्रकार समुझाइ ॥ १८(ख) ॥

Chaupai / चोपाई

भरत अनुज सौमित्र समेता। पठवन चले भगत कृत चेता ॥ अंगद हृदयँ प्रेम नहिं थोरा। फिरि फिरि चितव राम कीं ओरा ॥

बार बार कर दंड प्रनामा। मन अस रहन कहहिं मोहि रामा ॥ राम बिलोकनि बोलनि चलनी। सुमिरि सुमिरि सोचत हँसि मिलनी ॥

प्रभु रुख देखि बिनय बहु भाषी। चलेउ हृदयँ पद पंकज राखी ॥ अति आदर सब कपि पहुँचाए। भाइन्ह सहित भरत पुनि आए ॥

तब सुग्रीव चरन गहि नाना। भाँति बिनय कीन्हे हनुमाना ॥ दिन दस करि रघुपति पद सेवा। पुनि तव चरन देखिहउँ देवा ॥

पुन्य पुंज तुम्ह पवनकुमारा। सेवहु जाइ कृपा आगारा ॥ अस कहि कपि सब चले तुरंता। अंगद कहइ सुनहु हनुमंता ॥

Doha / दोहा

दो. कहेहु दंडवत प्रभु सैं तुम्हहि कहउँ कर जोरि । बार बार रघुनायकहि सुरति कराएहु मोरि ॥ १९(क) ॥

अस कहि चलेउ बालिसुत फिरि आयउ हनुमंत । तासु प्रीति प्रभु सन कहि मगन भए भगवंत ॥ !९(ख) ॥

कुलिसहु चाहि कठोर अति कोमल कुसुमहु चाहि । चित्त खगेस राम कर समुझि परइ कहु काहि ॥ १९(ग) ॥

Chaupai / चोपाई

पुनि कृपाल लियो बोलि निषादा। दीन्हे भूषन बसन प्रसादा ॥ जाहु भवन मम सुमिरन करेहू। मन क्रम बचन धर्म अनुसरेहू ॥

तुम्ह मम सखा भरत सम भ्राता। सदा रहेहु पुर आवत जाता ॥ बचन सुनत उपजा सुख भारी। परेउ चरन भरि लोचन बारी ॥

चरन नलिन उर धरि गृह आवा। प्रभु सुभाउ परिजनन्हि सुनावा ॥ रघुपति चरित देखि पुरबासी। पुनि पुनि कहहिं धन्य सुखरासी ॥

राम राज बैंठें त्रेलोका। हरषित भए गए सब सोका ॥ बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप बिषमता खोई ॥

Doha / दोहा

दो. बरनाश्रम निज निज धरम बनिरत बेद पथ लोग । चलहिं सदा पावहिं सुखहि नहिं भय सोक न रोग ॥ २० ॥

Chaupai / चोपाई

दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा ॥ सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती ॥

चारिउ चरन धर्म जग माहीं। पूरि रहा सपनेहुँ अघ नाहीं ॥ राम भगति रत नर अरु नारी। सकल परम गति के अधिकारी ॥

अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा। सब सुंदर सब बिरुज सरीरा ॥ नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना। नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना ॥

सब निर्दंभ धर्मरत पुनी। नर अरु नारि चतुर सब गुनी ॥ सब गुनग्य पंडित सब ग्यानी। सब कृतग्य नहिं कपट सयानी ॥

Doha / दोहा

दो. राम राज नभगेस सुनु सचराचर जग माहिं ॥ काल कर्म सुभाव गुन कृत दुख काहुहि नाहिं ॥ २१ ॥

Chaupai / चोपाई

भूमि सप्त सागर मेखला। एक भूप रघुपति कोसला ॥ भुअन अनेक रोम प्रति जासू। यह प्रभुता कछु बहुत न तासू ॥

सो महिमा समुझत प्रभु केरी। यह बरनत हीनता घनेरी ॥ सोउ महिमा खगेस जिन्ह जानी। फिरी एहिं चरित तिन्हहुँ रति मानी ॥

सोउ जाने कर फल यह लीला। कहहिं महा मुनिबर दमसीला ॥ राम राज कर सुख संपदा। बरनि न सकइ फनीस सारदा ॥

सब उदार सब पर उपकारी। बिप्र चरन सेवक नर नारी ॥ एकनारि ब्रत रत सब झारी। ते मन बच क्रम पति हितकारी ॥

Doha / दोहा

दो. दंड जतिन्ह कर भेद जहँ नर्तक नृत्य समाज । जीतहु मनहि सुनिअ अस रामचंद्र कें राज ॥ २२ ॥

Chaupai / चोपाई

फूलहिं फरहिं सदा तरु कानन। रहहि एक सँग गज पंचानन ॥ खग मृग सहज बयरु बिसराई। सबन्हि परस्पर प्रीति बढ़ाई ॥

कूजहिं खग मृग नाना बृंदा। अभय चरहिं बन करहिं अनंदा ॥ सीतल सुरभि पवन बह मंदा। गूंजत अलि लै चलि मकरंदा ॥

लता बिटप मागें मधु चवहीं। मनभावतो धेनु पय स्त्रवहीं ॥ ससि संपन्न सदा रह धरनी। त्रेताँ भइ कृतजुग कै करनी ॥

प्रगटीं गिरिन्ह बिबिध मनि खानी। जगदातमा भूप जग जानी ॥ सरिता सकल बहहिं बर बारी। सीतल अमल स्वाद सुखकारी ॥

सागर निज मरजादाँ रहहीं। डारहिं रत्न तटन्हि नर लहहीं ॥ सरसिज संकुल सकल तड़ागा। अति प्रसन्न दस दिसा बिभागा ॥

Doha / दोहा

दो. बिधु महि पूर मयूखन्हि रबि तप जेतनेहि काज । मागें बारिद देहिं जल रामचंद्र के राज ॥ २३ ॥

Chaupai / चोपाई

कोटिन्ह बाजिमेध प्रभु कीन्हे। दान अनेक द्विजन्ह कहँ दीन्हे ॥ श्रुति पथ पालक धर्म धुरंधर। गुनातीत अरु भोग पुरंदर ॥

पति अनुकूल सदा रह सीता। सोभा खानि सुसील बिनीता ॥ जानति कृपासिंधु प्रभुताई। सेवति चरन कमल मन लाई ॥

जद्यपि गृहँ सेवक सेवकिनी। बिपुल सदा सेवा बिधि गुनी ॥ निज कर गृह परिचरजा करई। रामचंद्र आयसु अनुसरई ॥

जेहि बिधि कृपासिंधु सुख मानइ। सोइ कर श्री सेवा बिधि जानइ ॥ कौसल्यादि सासु गृह माहीं। सेवइ सबन्हि मान मद नाहीं ॥

उमा रमा ब्रह्मादि बंदिता। जगदंबा संततमनिंदिता ॥

Doha / दोहा

दो. जासु कृपा कटाच्छु सुर चाहत चितव न सोइ । राम पदारबिंद रति करति सुभावहि खोइ ॥ २४ ॥

Chaupai / चोपाई

सेवहिं सानकूल सब भाई। राम चरन रति अति अधिकाई ॥ प्रभु मुख कमल बिलोकत रहहीं। कबहुँ कृपाल हमहि कछु कहहीं ॥

राम करहिं भ्रातन्ह पर प्रीती। नाना भाँति सिखावहिं नीती ॥ हरषित रहहिं नगर के लोगा। करहिं सकल सुर दुर्लभ भोगा ॥

अहनिसि बिधिहि मनावत रहहीं। श्रीरघुबीर चरन रति चहहीं ॥ दुइ सुत सुन्दर सीताँ जाए। लव कुस बेद पुरानन्ह गाए ॥

दोउ बिजई बिनई गुन मंदिर। हरि प्रतिबिंब मनहुँ अति सुंदर ॥ दुइ दुइ सुत सब भ्रातन्ह केरे। भए रूप गुन सील घनेरे ॥

Doha / दोहा

दो. ग्यान गिरा गोतीत अज माया मन गुन पार । सोइ सच्चिदानंद घन कर नर चरित उदार ॥ २५ ॥

Chaupai / चोपाई

प्रातकाल सरऊ करि मज्जन। बैठहिं सभाँ संग द्विज सज्जन ॥ बेद पुरान बसिष्ट बखानहिं। सुनहिं राम जद्यपि सब जानहिं ॥

अनुजन्ह संजुत भोजन करहीं। देखि सकल जननीं सुख भरहीं ॥ भरत सत्रुहन दोनउ भाई। सहित पवनसुत उपबन जाई ॥

बूझहिं बैठि राम गुन गाहा। कह हनुमान सुमति अवगाहा ॥ सुनत बिमल गुन अति सुख पावहिं। बहुरि बहुरि करि बिनय कहावहिं ॥

सब कें गृह गृह होहिं पुराना। रामचरित पावन बिधि नाना ॥ नर अरु नारि राम गुन गानहिं। करहिं दिवस निसि जात न जानहिं ॥

Doha / दोहा

दो. अवधपुरी बासिंह कर सुख संपदा समाज । सहस सेष नहिं कहि सकहिं जहँ नृप राम बिराज ॥ २६ ॥

Chaupai / चोपाई

नारदादि सनकादि मुनीसा। दरसन लागि कोसलाधीसा ॥ दिन प्रति सकल अजोध्या आवहिं। देखि नगरु बिरागु बिसरावहिं ॥

जातरूप मनि रचित अटारीं। नाना रंग रुचिर गच ढारीं ॥ पुर चहुँ पास कोट अति सुंदर। रचे कँगूरा रंग रंग बर ॥

नव ग्रह निकर अनीक बनाई। जनु घेरी अमरावति आई ॥ महि बहु रंग रचित गच काँचा। जो बिलोकि मुनिबर मन नाचा ॥

धवल धाम ऊपर नभ चुंबत। कलस मनहुँ रबि ससि दुति निंदत ॥ बहु मनि रचित झरोखा भ्राजहिं। गृह गृह प्रति मनि दीप बिराजहिं ॥

Chanda / छन्द

छं. मनि दीप राजहिं भवन भ्राजहिं देहरीं बिद्रुम रची । मनि खंभ भीति बिरंचि बिरची कनक मनि मरकत खची ॥

सुंदर मनोहर मंदिरायत अजिर रुचिर फटिक रचे । प्रति द्वार द्वार कपाट पुरट बनाइ बहु बज्रन्हि खचे ॥

Doha / दोहा

दो. चारु चित्रसाला गृह गृह प्रति लिखे बनाइ । राम चरित जे निरख मुनि ते मन लेहिं चोराइ ॥ २७ ॥

Chaupai / चोपाई

सुमन बाटिका सबहिं लगाई। बिबिध भाँति करि जतन बनाई ॥ लता ललित बहु जाति सुहाई। फूलहिं सदा बंसत कि नाई ॥

गुंजत मधुकर मुखर मनोहर। मारुत त्रिबिध सदा बह सुंदर ॥ नाना खग बालकन्हि जिआए। बोलत मधुर उड़ात सुहाए ॥

मोर हंस सारस पारावत। भवननि पर सोभा अति पावत ॥ जहँ तहँ देखहिं निज परिछाहीं। बहु बिधि कूजहिं नृत्य कराहीं ॥

सुक सारिका पढ़ावहिं बालक। कहहु राम रघुपति जनपालक ॥ राज दुआर सकल बिधि चारू। बीथीं चौहट रूचिर बजारू ॥

Chanda / छन्द

छं. बाजार रुचिर न बनइ बरनत बस्तु बिनु गथ पाइए । जहँ भूप रमानिवास तहँ की संपदा किमि गाइए ॥

बैठे बजाज सराफ बनिक अनेक मनहुँ कुबेर ते । सब सुखी सब सच्चरित सुंदर नारि नर सिसु जरठ जे ॥

Doha / दोहा

दो. उत्तर दिसि सरजू बह निर्मल जल गंभीर । बाँधे घाट मनोहर स्वल्प पंक नहिं तीर ॥ २८ ॥

Chaupai / चोपाई

दूरि फराक रुचिर सो घाटा। जहँ जल पिअहिं बाजि गज ठाटा ॥ पनिघट परम मनोहर नाना। तहाँ न पुरुष करहिं अस्नाना ॥

राजघाट सब बिधि सुंदर बर। मज्जहिं तहाँ बरन चारिउ नर ॥ तीर तीर देवन्ह के मंदिर। चहुँ दिसि तिन्ह के उपबन सुंदर ॥

कहुँ कहुँ सरिता तीर उदासी। बसहिं ग्यान रत मुनि संन्यासी ॥ तीर तीर तुलसिका सुहाई। बृंद बृंद बहु मुनिन्ह लगाई ॥

पुर सोभा कछु बरनि न जाई। बाहेर नगर परम रुचिराई ॥ देखत पुरी अखिल अघ भागा। बन उपबन बापिका तड़ागा ॥

Chanda / छन्द

छं. बापीं तड़ाग अनूप कूप मनोहरायत सोहहीं । सोपान सुंदर नीर निर्मल देखि सुर मुनि मोहहीं ॥

बहु रंग कंज अनेक खग कूजहिं मधुप गुंजारहीं । आराम रम्य पिकादि खग रव जनु पथिक हंकारहीं ॥

Doha / दोहा

दो. रमानाथ जहँ राजा सो पुर बरनि कि जाइ । अनिमादिक सुख संपदा रहीं अवध सब छाइ ॥ २९ ॥

Chaupai / चोपाई

जहँ तहँ नर रघुपति गुन गावहिं। बैठि परसपर इहइ सिखावहिं ॥ भजहु प्रनत प्रतिपालक रामहि। सोभा सील रूप गुन धामहि ॥

जलज बिलोचन स्यामल गातहि। पलक नयन इव सेवक त्रातहि ॥ धृत सर रुचिर चाप तूनीरहि। संत कंज बन रबि रनधीरहि ॥

काल कराल ब्याल खगराजहि। नमत राम अकाम ममता जहि ॥ लोभ मोह मृगजूथ किरातहि। मनसिज करि हरि जन सुखदातहि ॥

संसय सोक निबिड़ तम भानुहि। दनुज गहन घन दहन कृसानुहि ॥ जनकसुता समेत रघुबीरहि। कस न भजहु भंजन भव भीरहि ॥

बहु बासना मसक हिम रासिहि। सदा एकरस अज अबिनासिहि ॥ मुनि रंजन भंजन महि भारहि। तुलसिदास के प्रभुहि उदारहि ॥

Doha / दोहा

दो. एहि बिधि नगर नारि नर करहिं राम गुन गान । सानुकूल सब पर रहहिं संतत कृपानिधान ॥ ३० ॥

Chaupai / चोपाई

जब ते राम प्रताप खगेसा। उदित भयउ अति प्रबल दिनेसा ॥ पूरि प्रकास रहेउ तिहुँ लोका। बहुतेन्ह सुख बहुतन मन सोका ॥

जिन्हहि सोक ते कहउँ बखानी। प्रथम अबिद्या निसा नसानी ॥ अघ उलूक जहँ तहाँ लुकाने। काम क्रोध कैरव सकुचाने ॥

बिबिध कर्म गुन काल सुभाऊ। ए चकोर सुख लहहिं न काऊ ॥ मत्सर मान मोह मद चोरा। इन्ह कर हुनर न कवनिहुँ ओरा ॥

धरम तड़ाग ग्यान बिग्याना। ए पंकज बिकसे बिधि नाना ॥ सुख संतोष बिराग बिबेका। बिगत सोक ए कोक अनेका ॥

Doha / दोहा

दो. यह प्रताप रबि जाकें उर जब करइ प्रकास । पछिले बाढ़हिं प्रथम जे कहे ते पावहिं नास ॥ ३१ ॥

Chaupai / चोपाई

भ्रातन्ह सहित रामु एक बारा। संग परम प्रिय पवनकुमारा ॥ सुंदर उपबन देखन गए। सब तरु कुसुमित पल्लव नए ॥

जानि समय सनकादिक आए। तेज पुंज गुन सील सुहाए ॥ ब्रह्मानंद सदा लयलीना। देखत बालक बहुकालीना ॥

रूप धरें जनु चारिउ बेदा। समदरसी मुनि बिगत बिभेदा ॥ आसा बसन ब्यसन यह तिन्हहीं। रघुपति चरित होइ तहँ सुनहीं ॥

तहाँ रहे सनकादि भवानी। जहँ घटसंभव मुनिबर ग्यानी ॥ राम कथा मुनिबर बहु बरनी। ग्यान जोनि पावक जिमि अरनी ॥

Doha / दोहा

दो. देखि राम मुनि आवत हरषि दंडवत कीन्ह । स्वागत पूँछि पीत पट प्रभु बैठन कहँ दीन्ह ॥ ३२ ॥

Chaupai / चोपाई

कीन्ह दंडवत तीनिउँ भाई। सहित पवनसुत सुख अधिकाई ॥ मुनि रघुपति छबि अतुल बिलोकी। भए मगन मन सके न रोकी ॥

स्यामल गात सरोरुह लोचन। सुंदरता मंदिर भव मोचन ॥ एकटक रहे निमेष न लावहिं। प्रभु कर जोरें सीस नवावहिं ॥

तिन्ह कै दसा देखि रघुबीरा। स्त्रवत नयन जल पुलक सरीरा ॥ कर गहि प्रभु मुनिबर बैठारे। परम मनोहर बचन उचारे ॥

आजु धन्य मैं सुनहु मुनीसा। तुम्हरें दरस जाहिं अघ खीसा ॥ बड़े भाग पाइब सतसंगा। बिनहिं प्रयास होहिं भव भंगा ॥

Doha / दोहा

दो. संत संग अपबर्ग कर कामी भव कर पंथ । कहहि संत कबि कोबिद श्रुति पुरान सदग्रंथ ॥ ३३ ॥

Chaupai / चोपाई

सुनि प्रभु बचन हरषि मुनि चारी। पुलकित तन अस्तुति अनुसारी ॥ जय भगवंत अनंत अनामय। अनघ अनेक एक करुनामय ॥

जय निर्गुन जय जय गुन सागर। सुख मंदिर सुंदर अति नागर ॥ जय इंदिरा रमन जय भूधर। अनुपम अज अनादि सोभाकर ॥

ग्यान निधान अमान मानप्रद। पावन सुजस पुरान बेद बद ॥ तग्य कृतग्य अग्यता भंजन। नाम अनेक अनाम निरंजन ॥

सर्ब सर्बगत सर्ब उरालय। बससि सदा हम कहुँ परिपालय ॥ द्वंद बिपति भव फंद बिभंजय। ह्रदि बसि राम काम मद गंजय ॥

Doha / दोहा

दो. परमानंद कृपायतन मन परिपूरन काम । प्रेम भगति अनपायनी देहु हमहि श्रीराम ॥ ३४ ॥

Chaupai / चोपाई

देहु भगति रघुपति अति पावनि। त्रिबिध ताप भव दाप नसावनि ॥ प्रनत काम सुरधेनु कलपतरु। होइ प्रसन्न दीजै प्रभु यह बरु ॥

भव बारिधि कुंभज रघुनायक। सेवत सुलभ सकल सुख दायक ॥ मन संभव दारुन दुख दारय। दीनबंधु समता बिस्तारय ॥

आस त्रास इरिषादि निवारक। बिनय बिबेक बिरति बिस्तारक ॥ भूप मौलि मन मंडन धरनी। देहि भगति संसृति सरि तरनी ॥

मुनि मन मानस हंस निरंतर। चरन कमल बंदित अज संकर ॥ रघुकुल केतु सेतु श्रुति रच्छक। काल करम सुभाउ गुन भच्छक ॥

तारन तरन हरन सब दूषन। तुलसिदास प्रभु त्रिभुवन भूषन ॥

Doha / दोहा

दो. बार बार अस्तुति करि प्रेम सहित सिरु नाइ । ब्रह्म भवन सनकादि गे अति अभीष्ट बर पाइ ॥ ३५ ॥

Chaupai / चोपाई

सनकादिक बिधि लोक सिधाए। भ्रातन्ह राम चरन सिरु नाए ॥ पूछत प्रभुहि सकल सकुचाहीं। चितवहिं सब मारुतसुत पाहीं ॥

सुनि चहहिं प्रभु मुख कै बानी। जो सुनि होइ सकल भ्रम हानी ॥ अंतरजामी प्रभु सभ जाना। बूझत कहहु काह हनुमाना ॥

जोरि पानि कह तब हनुमंता। सुनहु दीनदयाल भगवंता ॥ नाथ भरत कछु पूँछन चहहीं। प्रस्न करत मन सकुचत अहहीं ॥

तुम्ह जानहु कपि मोर सुभाऊ। भरतहि मोहि कछु अंतर काऊ ॥ सुनि प्रभु बचन भरत गहे चरना। सुनहु नाथ प्रनतारति हरना ॥

Doha / दोहा

दो. नाथ न मोहि संदेह कछु सपनेहुँ सोक न मोह । केवल कृपा तुम्हारिहि कृपानंद संदोह ॥ ३६ ॥

Chaupai / चोपाई

करउँ कृपानिधि एक ढिठाई। मैं सेवक तुम्ह जन सुखदाई ॥ संतन्ह कै महिमा रघुराई। बहु बिधि बेद पुरानन्ह गाई ॥

श्रीमुख तुम्ह पुनि कीन्हि बड़ाई। तिन्ह पर प्रभुहि प्रीति अधिकाई ॥ सुना चहउँ प्रभु तिन्ह कर लच्छन। कृपासिंधु गुन ग्यान बिचच्छन ॥

संत असंत भेद बिलगाई। प्रनतपाल मोहि कहहु बुझाई ॥ संतन्ह के लच्छन सुनु भ्राता। अगनित श्रुति पुरान बिख्याता ॥

संत असंतन्हि कै असि करनी। जिमि कुठार चंदन आचरनी ॥ काटइ परसु मलय सुनु भाई। निज गुन देइ सुगंध बसाई ॥

Doha / दोहा

दो. ताते सुर सीसन्ह चढ़त जग बल्लभ श्रीखंड । अनल दाहि पीटत घनहिं परसु बदन यह दंड ॥ ३७ ॥

Chaupai / चोपाई

बिषय अलंपट सील गुनाकर। पर दुख दुख सुख सुख देखे पर ॥ सम अभूतरिपु बिमद बिरागी। लोभामरष हरष भय त्यागी ॥

कोमलचित दीनन्ह पर दाया। मन बच क्रम मम भगति अमाया ॥ सबहि मानप्रद आपु अमानी। भरत प्रान सम मम ते प्रानी ॥

बिगत काम मम नाम परायन। सांति बिरति बिनती मुदितायन ॥ सीतलता सरलता मयत्री। द्विज पद प्रीति धर्म जनयत्री ॥

ए सब लच्छन बसहिं जासु उर। जानेहु तात संत संतत फुर ॥ सम दम नियम नीति नहिं डोलहिं। परुष बचन कबहूँ नहिं बोलहिं ॥

Doha / दोहा

दो. निंदा अस्तुति उभय सम ममता मम पद कंज । ते सज्जन मम प्रानप्रिय गुन मंदिर सुख पुंज ॥ ३८ ॥

Chaupai / चोपाई

सनहु असंतन्ह केर सुभाऊ। भूलेहुँ संगति करिअ न काऊ ॥ तिन्ह कर संग सदा दुखदाई। जिमि कलपहि घालइ हरहाई ॥

खलन्ह हृदयँ अति ताप बिसेषी। जरहिं सदा पर संपति देखी ॥ जहँ कहुँ निंदा सुनहिं पराई। हरषहिं मनहुँ परी निधि पाई ॥

काम क्रोध मद लोभ परायन। निर्दय कपटी कुटिल मलायन ॥ बयरु अकारन सब काहू सों। जो कर हित अनहित ताहू सों ॥

झूठइ लेना झूठइ देना। झूठइ भोजन झूठ चबेना ॥ बोलहिं मधुर बचन जिमि मोरा। खाइ महा अति हृदय कठोरा ॥

Doha / दोहा

दो. पर द्रोही पर दार रत पर धन पर अपबाद । ते नर पाँवर पापमय देह धरें मनुजाद ॥ ३९ ॥

Chaupai / चोपाई

लोभइ ओढ़न लोभइ डासन। सिस्त्रोदर पर जमपुर त्रास न ॥ काहू की जौं सुनहिं बड़ाई। स्वास लेहिं जनु जूड़ी आई ॥

जब काहू कै देखहिं बिपती। सुखी भए मानहुँ जग नृपती ॥ स्वारथ रत परिवार बिरोधी। लंपट काम लोभ अति क्रोधी ॥

मातु पिता गुर बिप्र न मानहिं। आपु गए अरु घालहिं आनहिं ॥ करहिं मोह बस द्रोह परावा। संत संग हरि कथा न भावा ॥

अवगुन सिंधु मंदमति कामी। बेद बिदूषक परधन स्वामी ॥ बिप्र द्रोह पर द्रोह बिसेषा। दंभ कपट जियँ धरें सुबेषा ॥

Doha / दोहा

दो. ऐसे अधम मनुज खल कृतजुग त्रेता नाहिं । द्वापर कछुक बृंद बहु होइहहिं कलिजुग माहिं ॥ ४० ॥

Chaupai / चोपाई

पर हित सरिस धर्म नहिं भाई। पर पीड़ा सम नहिं अधमाई ॥ निर्नय सकल पुरान बेद कर। कहेउँ तात जानहिं कोबिद नर ॥

नर सरीर धरि जे पर पीरा। करहिं ते सहहिं महा भव भीरा ॥ करहिं मोह बस नर अघ नाना। स्वारथ रत परलोक नसाना ॥

कालरूप तिन्ह कहँ मैं भ्राता। सुभ अरु असुभ कर्म फल दाता ॥ अस बिचारि जे परम सयाने। भजहिं मोहि संसृत दुख जाने ॥

त्यागहिं कर्म सुभासुभ दायक। भजहिं मोहि सुर नर मुनि नायक ॥ संत असंतन्ह के गुन भाषे। ते न परहिं भव जिन्ह लखि राखे ॥

Doha / दोहा

दो. सुनहु तात माया कृत गुन अरु दोष अनेक । गुन यह उभय न देखिअहिं देखिअ सो अबिबेक ॥ ४१ ॥

Chaupai / चोपाई

श्रीमुख बचन सुनत सब भाई। हरषे प्रेम न हृदयँ समाई ॥ करहिं बिनय अति बारहिं बारा। हनूमान हियँ हरष अपारा ॥

पुनि रघुपति निज मंदिर गए। एहि बिधि चरित करत नित नए ॥ बार बार नारद मुनि आवहिं। चरित पुनीत राम के गावहिं ॥

नित नव चरन देखि मुनि जाहीं। ब्रह्मलोक सब कथा कहाहीं ॥ सुनि बिरंचि अतिसय सुख मानहिं। पुनि पुनि तात करहु गुन गानहिं ॥

सनकादिक नारदहि सराहहिं। जद्यपि ब्रह्म निरत मुनि आहहिं ॥ सुनि गुन गान समाधि बिसारी ॥ सादर सुनहिं परम अधिकारी ॥

Doha / दोहा

दो. जीवनमुक्त ब्रह्मपर चरित सुनहिं तजि ध्यान । जे हरि कथाँ न करहिं रति तिन्ह के हिय पाषान ॥ ४२ ॥

Chaupai / चोपाई

एक बार रघुनाथ बोलाए। गुर द्विज पुरबासी सब आए ॥ बैठे गुर मुनि अरु द्विज सज्जन। बोले बचन भगत भव भंजन ॥

सनहु सकल पुरजन मम बानी। कहउँ न कछु ममता उर आनी ॥ नहिं अनीति नहिं कछु प्रभुताई। सुनहु करहु जो तुम्हहि सोहाई ॥

सोइ सेवक प्रियतम मम सोई। मम अनुसासन मानै जोई ॥ जौं अनीति कछु भाषौं भाई। तौं मोहि बरजहु भय बिसराई ॥

बड़ें भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथिन्ह गावा ॥ साधन धाम मोच्छ कर द्वारा। पाइ न जेहिं परलोक सँवारा ॥

Doha / दोहा

दो. सो परत्र दुख पावइ सिर धुनि धुनि पछिताइ । कालहि कर्महि ईस्वरहि मिथ्या दोष लगाइ ॥ ४३ ॥

Chaupai / चोपाई

एहि तन कर फल बिषय न भाई। स्वर्गउ स्वल्प अंत दुखदाई ॥ नर तनु पाइ बिषयँ मन देहीं। पलटि सुधा ते सठ बिष लेहीं ॥

ताहि कबहुँ भल कहइ न कोई। गुंजा ग्रहइ परस मनि खोई ॥ आकर चारि लच्छ चौरासी। जोनि भ्रमत यह जिव अबिनासी ॥

फिरत सदा माया कर प्रेरा। काल कर्म सुभाव गुन घेरा ॥ कबहुँक करि करुना नर देही। देत ईस बिनु हेतु सनेही ॥

नर तनु भव बारिधि कहुँ बेरो। सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो ॥ करनधार सदगुर दृढ़ नावा। दुर्लभ साज सुलभ करि पावा ॥

Doha / दोहा

दो. जो न तरै भव सागर नर समाज अस पाइ । सो कृत निंदक मंदमति आत्माहन गति जाइ ॥ ४४ ॥

Chaupai / चोपाई

जौं परलोक इहाँ सुख चहहू। सुनि मम बचन ह्रृदयँ दृढ़ गहहू ॥ सुलभ सुखद मारग यह भाई। भगति मोरि पुरान श्रुति गाई ॥

ग्यान अगम प्रत्यूह अनेका। साधन कठिन न मन कहुँ टेका ॥ करत कष्ट बहु पावइ कोऊ। भक्ति हीन मोहि प्रिय नहिं सोऊ ॥

भक्ति सुतंत्र सकल सुख खानी। बिनु सतसंग न पावहिं प्रानी ॥ पुन्य पुंज बिनु मिलहिं न संता। सतसंगति संसृति कर अंता ॥

पुन्य एक जग महुँ नहिं दूजा। मन क्रम बचन बिप्र पद पूजा ॥ सानुकूल तेहि पर मुनि देवा। जो तजि कपटु करइ द्विज सेवा ॥

Doha / दोहा

दो. औरउ एक गुपुत मत सबहि कहउँ कर जोरि । संकर भजन बिना नर भगति न पावइ मोरि ॥ ४५ ॥

Chaupai / चोपाई

कहहु भगति पथ कवन प्रयासा। जोग न मख जप तप उपवासा ॥ सरल सुभाव न मन कुटिलाई। जथा लाभ संतोष सदाई ॥

मोर दास कहाइ नर आसा। करइ तौ कहहु कहा बिस्वासा ॥ बहुत कहउँ का कथा बढ़ाई। एहि आचरन बस्य मैं भाई ॥

बैर न बिग्रह आस न त्रासा। सुखमय ताहि सदा सब आसा ॥ अनारंभ अनिकेत अमानी। अनघ अरोष दच्छ बिग्यानी ॥

प्रीति सदा सज्जन संसर्गा। तृन सम बिषय स्वर्ग अपबर्गा ॥ भगति पच्छ हठ नहिं सठताई। दुष्ट तर्क सब दूरि बहाई ॥

Doha / दोहा

दो. मम गुन ग्राम नाम रत गत ममता मद मोह । ता कर सुख सोइ जानइ परानंद संदोह ॥ ४६ ॥

Chaupai / चोपाई

सुनत सुधासम बचन राम के। गहे सबनि पद कृपाधाम के ॥ जननि जनक गुर बंधु हमारे। कृपा निधान प्रान ते प्यारे ॥

तनु धनु धाम राम हितकारी। सब बिधि तुम्ह प्रनतारति हारी ॥ असि सिख तुम्ह बिनु देइ न कोऊ। मातु पिता स्वारथ रत ओऊ ॥

हेतु रहित जग जुग उपकारी। तुम्ह तुम्हार सेवक असुरारी ॥ स्वारथ मीत सकल जग माहीं। सपनेहुँ प्रभु परमारथ नाहीं ॥

सबके बचन प्रेम रस साने। सुनि रघुनाथ हृदयँ हरषाने ॥ निज निज गृह गए आयसु पाई। बरनत प्रभु बतकही सुहाई ॥

Doha / दोहा

दो. -उमा अवधबासी नर नारि कृतारथ रूप । ब्रह्म सच्चिदानंद घन रघुनायक जहँ भूप ॥ ४७ ॥

Chaupai / चोपाई

एक बार बसिष्ट मुनि आए। जहाँ राम सुखधाम सुहाए ॥ अति आदर रघुनायक कीन्हा। पद पखारि पादोदक लीन्हा ॥

राम सुनहु मुनि कह कर जोरी। कृपासिंधु बिनती कछु मोरी ॥ देखि देखि आचरन तुम्हारा। होत मोह मम हृदयँ अपारा ॥

महिमा अमित बेद नहिं जाना। मैं केहि भाँति कहउँ भगवाना ॥ उपरोहित्य कर्म अति मंदा। बेद पुरान सुमृति कर निंदा ॥

जब न लेउँ मैं तब बिधि मोही। कहा लाभ आगें सुत तोही ॥ परमातमा ब्रह्म नर रूपा। होइहि रघुकुल भूषन भूपा ॥

Doha / दोहा

दो. -तब मैं हृदयँ बिचारा जोग जग्य ब्रत दान । जा कहुँ करिअ सो पैहउँ धर्म न एहि सम आन ॥ ४८ ॥

Chaupai / चोपाई

जप तप नियम जोग निज धर्मा। श्रुति संभव नाना सुभ कर्मा ॥ ग्यान दया दम तीरथ मज्जन। जहँ लगि धर्म कहत श्रुति सज्जन ॥

आगम निगम पुरान अनेका। पढ़े सुने कर फल प्रभु एका ॥ तब पद पंकज प्रीति निरंतर। सब साधन कर यह फल सुंदर ॥

छूटइ मल कि मलहि के धोएँ। घृत कि पाव कोइ बारि बिलोएँ ॥ प्रेम भगति जल बिनु रघुराई। अभिअंतर मल कबहुँ न जाई ॥

सोइ सर्बग्य तग्य सोइ पंडित। सोइ गुन गृह बिग्यान अखंडित ॥ दच्छ सकल लच्छन जुत सोई। जाकें पद सरोज रति होई ॥

Doha / दोहा

दो. नाथ एक बर मागउँ राम कृपा करि देहु । जन्म जन्म प्रभु पद कमल कबहुँ घटै जनि नेहु ॥ ४९ ॥

Chaupai / चोपाई

अस कहि मुनि बसिष्ट गृह आए। कृपासिंधु के मन अति भाए ॥ हनूमान भरतादिक भ्राता। संग लिए सेवक सुखदाता ॥

पुनि कृपाल पुर बाहेर गए। गज रथ तुरग मगावत भए ॥ देखि कृपा करि सकल सराहे। दिए उचित जिन्ह जिन्ह तेइ चाहे ॥

हरन सकल श्रम प्रभु श्रम पाई। गए जहाँ सीतल अवँराई ॥ भरत दीन्ह निज बसन डसाई। बैठे प्रभु सेवहिं सब भाई ॥

मारुतसुत तब मारूत करई। पुलक बपुष लोचन जल भरई ॥ हनूमान सम नहिं बड़भागी। नहिं कोउ राम चरन अनुरागी ॥

गिरिजा जासु प्रीति सेवकाई। बार बार प्रभु निज मुख गाई ॥

Doha / दोहा

दो. तेहिं अवसर मुनि नारद आए करतल बीन । गावन लगे राम कल कीरति सदा नबीन ॥ ५० ॥

Chaupai / चोपाई

मामवलोकय पंकज लोचन। कृपा बिलोकनि सोच बिमोचन ॥ नील तामरस स्याम काम अरि। हृदय कंज मकरंद मधुप हरि ॥

जातुधान बरूथ बल भंजन। मुनि सज्जन रंजन अघ गंजन ॥ भूसुर ससि नव बृंद बलाहक। असरन सरन दीन जन गाहक ॥

भुज बल बिपुल भार महि खंडित। खर दूषन बिराध बध पंडित ॥ रावनारि सुखरूप भूपबर। जय दसरथ कुल कुमुद सुधाकर ॥

सुजस पुरान बिदित निगमागम। गावत सुर मुनि संत समागम ॥ कारुनीक ब्यलीक मद खंडन। सब बिधि कुसल कोसला मंडन ॥

कलि मल मथन नाम ममताहन। तुलसीदास प्रभु पाहि प्रनत जन ॥

Doha / दोहा

दो. प्रेम सहित मुनि नारद बरनि राम गुन ग्राम । सोभासिंधु हृदयँ धरि गए जहाँ बिधि धाम ॥ ५१ ॥

Chaupai / चोपाई

गिरिजा सुनहु बिसद यह कथा। मैं सब कही मोरि मति जथा ॥ राम चरित सत कोटि अपारा। श्रुति सारदा न बरनै पारा ॥

राम अनंत अनंत गुनानी। जन्म कर्म अनंत नामानी ॥ जल सीकर महि रज गनि जाहीं। रघुपति चरित न बरनि सिराहीं ॥

बिमल कथा हरि पद दायनी। भगति होइ सुनि अनपायनी ॥ उमा कहिउँ सब कथा सुहाई। जो भुसुंडि खगपतिहि सुनाई ॥

कछुक राम गुन कहेउँ बखानी। अब का कहौं सो कहहु भवानी ॥ सुनि सुभ कथा उमा हरषानी। बोली अति बिनीत मृदु बानी ॥

धन्य धन्य मैं धन्य पुरारी। सुनेउँ राम गुन भव भय हारी ॥

Doha / दोहा

दो. तुम्हरी कृपाँ कृपायतन अब कृतकृत्य न मोह । जानेउँ राम प्रताप प्रभु चिदानंद संदोह ॥ ५२(क) ॥

नाथ तवानन ससि स्रवत कथा सुधा रघुबीर । श्रवन पुटन्हि मन पान करि नहिं अघात मतिधीर ॥ ५२(ख) ॥

Chaupai / चोपाई

राम चरित जे सुनत अघाहीं। रस बिसेष जाना तिन्ह नाहीं ॥ जीवनमुक्त महामुनि जेऊ। हरि गुन सुनहीं निरंतर तेऊ ॥

भव सागर चह पार जो पावा। राम कथा ता कहँ दृढ़ नावा ॥ बिषइन्ह कहँ पुनि हरि गुन ग्रामा। श्रवन सुखद अरु मन अभिरामा ॥

श्रवनवंत अस को जग माहीं। जाहि न रघुपति चरित सोहाहीं ॥ ते जड़ जीव निजात्मक घाती। जिन्हहि न रघुपति कथा सोहाती ॥

हरिचरित्र मानस तुम्ह गावा। सुनि मैं नाथ अमिति सुख पावा ॥ तुम्ह जो कही यह कथा सुहाई। कागभसुंडि गरुड़ प्रति गाई ॥

Doha / दोहा

दो. बिरति ग्यान बिग्यान दृढ़ राम चरन अति नेह । बायस तन रघुपति भगति मोहि परम संदेह ॥ ५३ ॥

Chaupai / चोपाई

नर सहस्र महँ सुनहु पुरारी। कोउ एक होइ धर्म ब्रतधारी ॥ धर्मसील कोटिक महँ कोई। बिषय बिमुख बिराग रत होई ॥

कोटि बिरक्त मध्य श्रुति कहई। सम्यक ग्यान सकृत कोउ लहई ॥ ग्यानवंत कोटिक महँ कोऊ। जीवनमुक्त सकृत जग सोऊ ॥

तिन्ह सहस्र महुँ सब सुख खानी। दुर्लभ ब्रह्मलीन बिग्यानी ॥ धर्मसील बिरक्त अरु ग्यानी। जीवनमुक्त ब्रह्मपर प्रानी ॥

सब ते सो दुर्लभ सुरराया। राम भगति रत गत मद माया ॥ सो हरिभगति काग किमि पाई। बिस्वनाथ मोहि कहहु बुझाई ॥

Doha / दोहा

दो. राम परायन ग्यान रत गुनागार मति धीर । नाथ कहहु केहि कारन पायउ काक सरीर ॥ ५४ ॥

Chaupai / चोपाई

यह प्रभु चरित पवित्र सुहावा। कहहु कृपाल काग कहँ पावा ॥ तुम्ह केहि भाँति सुना मदनारी। कहहु मोहि अति कौतुक भारी ॥

गरुड़ महाग्यानी गुन रासी। हरि सेवक अति निकट निवासी ॥ तेहिं केहि हेतु काग सन जाई। सुनी कथा मुनि निकर बिहाई ॥

कहहु कवन बिधि भा संबादा। दोउ हरिभगत काग उरगादा ॥ गौरि गिरा सुनि सरल सुहाई। बोले सिव सादर सुख पाई ॥

धन्य सती पावन मति तोरी। रघुपति चरन प्रीति नहिं थोरी ॥ सुनहु परम पुनीत इतिहासा। जो सुनि सकल लोक भ्रम नासा ॥

उपजइ राम चरन बिस्वासा। भव निधि तर नर बिनहिं प्रयासा ॥

Doha / दोहा

दो. ऐसिअ प्रस्न बिहंगपति कीन्ह काग सन जाइ । सो सब सादर कहिहउँ सुनहु उमा मन लाइ ॥ ५५ ॥

Chaupai / चोपाई

मैं जिमि कथा सुनी भव मोचनि। सो प्रसंग सुनु सुमुखि सुलोचनि ॥ प्रथम दच्छ गृह तव अवतारा। सती नाम तब रहा तुम्हारा ॥

दच्छ जग्य तब भा अपमाना। तुम्ह अति क्रोध तजे तब प्राना ॥ मम अनुचरन्ह कीन्ह मख भंगा। जानहु तुम्ह सो सकल प्रसंगा ॥

तब अति सोच भयउ मन मोरें। दुखी भयउँ बियोग प्रिय तोरें ॥ सुंदर बन गिरि सरित तड़ागा। कौतुक देखत फिरउँ बेरागा ॥

गिरि सुमेर उत्तर दिसि दूरी। नील सैल एक सुन्दर भूरी ॥ तासु कनकमय सिखर सुहाए। चारि चारु मोरे मन भाए ॥

तिन्ह पर एक एक बिटप बिसाला। बट पीपर पाकरी रसाला ॥ सैलोपरि सर सुंदर सोहा। मनि सोपान देखि मन मोहा ॥

Doha / दोहा

दो. -सीतल अमल मधुर जल जलज बिपुल बहुरंग । कूजत कल रव हंस गन गुंजत मजुंल भृंग ॥ ५६ ॥

Chaupai / चोपाई

तेहिं गिरि रुचिर बसइ खग सोई। तासु नास कल्पांत न होई ॥ माया कृत गुन दोष अनेका। मोह मनोज आदि अबिबेका ॥

रहे ब्यापि समस्त जग माहीं। तेहि गिरि निकट कबहुँ नहिं जाहीं ॥ तहँ बसि हरिहि भजइ जिमि कागा। सो सुनु उमा सहित अनुरागा ॥

पीपर तरु तर ध्यान सो धरई। जाप जग्य पाकरि तर करई ॥ आँब छाहँ कर मानस पूजा। तजि हरि भजनु काजु नहिं दूजा ॥

बर तर कह हरि कथा प्रसंगा। आवहिं सुनहिं अनेक बिहंगा ॥ राम चरित बिचीत्र बिधि नाना। प्रेम सहित कर सादर गाना ॥

सुनहिं सकल मति बिमल मराला। बसहिं निरंतर जे तेहिं ताला ॥ जब मैं जाइ सो कौतुक देखा। उर उपजा आनंद बिसेषा ॥

Doha / दोहा

दो. तब कछु काल मराल तनु धरि तहँ कीन्ह निवास । सादर सुनि रघुपति गुन पुनि आयउँ कैलास ॥ ५७ ॥

Chaupai / चोपाई

गिरिजा कहेउँ सो सब इतिहासा। मैं जेहि समय गयउँ खग पासा ॥ अब सो कथा सुनहु जेही हेतू। गयउ काग पहिं खग कुल केतू ॥

जब रघुनाथ कीन्हि रन क्रीड़ा। समुझत चरित होति मोहि ब्रीड़ा ॥ इंद्रजीत कर आपु बँधायो। तब नारद मुनि गरुड़ पठायो ॥

बंधन काटि गयो उरगादा। उपजा हृदयँ प्रचंड बिषादा ॥ प्रभु बंधन समुझत बहु भाँती। करत बिचार उरग आराती ॥

ब्यापक ब्रह्म बिरज बागीसा। माया मोह पार परमीसा ॥ सो अवतार सुनेउँ जग माहीं। देखेउँ सो प्रभाव कछु नाहीं ॥

Doha / दोहा

दो. -भव बंधन ते छूटहिं नर जपि जा कर नाम । खर्च निसाचर बाँधेउ नागपास सोइ राम ॥ ५८ ॥

Chaupai / चोपाई

नाना भाँति मनहि समुझावा। प्रगट न ग्यान हृदयँ भ्रम छावा ॥ खेद खिन्न मन तर्क बढ़ाई। भयउ मोहबस तुम्हरिहिं नाई ॥

ब्याकुल गयउ देवरिषि पाहीं। कहेसि जो संसय निज मन माहीं ॥ सुनि नारदहि लागि अति दाया। सुनु खग प्रबल राम कै माया ॥

जो ग्यानिन्ह कर चित अपहरई। बरिआई बिमोह मन करई ॥ जेहिं बहु बार नचावा मोही। सोइ ब्यापी बिहंगपति तोही ॥

महामोह उपजा उर तोरें। मिटिहि न बेगि कहें खग मोरें ॥ चतुरानन पहिं जाहु खगेसा। सोइ करेहु जेहि होइ निदेसा ॥

Doha / दोहा

दो. अस कहि चले देवरिषि करत राम गुन गान । हरि माया बल बरनत पुनि पुनि परम सुजान ॥ ५९ ॥

Chaupai / चोपाई

तब खगपति बिरंचि पहिं गयऊ। निज संदेह सुनावत भयऊ ॥ सुनि बिरंचि रामहि सिरु नावा। समुझि प्रताप प्रेम अति छावा ॥

मन महुँ करइ बिचार बिधाता। माया बस कबि कोबिद ग्याता ॥ हरि माया कर अमिति प्रभावा। बिपुल बार जेहिं मोहि नचावा ॥

अग जगमय जग मम उपराजा। नहिं आचरज मोह खगराजा ॥ तब बोले बिधि गिरा सुहाई। जान महेस राम प्रभुताई ॥

बैनतेय संकर पहिं जाहू। तात अनत पूछहु जनि काहू ॥ तहँ होइहि तव संसय हानी। चलेउ बिहंग सुनत बिधि बानी ॥

Doha / दोहा

दो. परमातुर बिहंगपति आयउ तब मो पास । जात रहेउँ कुबेर गृह रहिहु उमा कैलास ॥ ६० ॥

Chaupai / चोपाई

तेहिं मम पद सादर सिरु नावा। पुनि आपन संदेह सुनावा ॥ सुनि ता करि बिनती मृदु बानी। परेम सहित मैं कहेउँ भवानी ॥

मिलेहु गरुड़ मारग महँ मोही। कवन भाँति समुझावौं तोही ॥ तबहि होइ सब संसय भंगा। जब बहु काल करिअ सतसंगा ॥

सुनिअ तहाँ हरि कथा सुहाई। नाना भाँति मुनिन्ह जो गाई ॥ जेहि महुँ आदि मध्य अवसाना। प्रभु प्रतिपाद्य राम भगवाना ॥

नित हरि कथा होत जहँ भाई। पठवउँ तहाँ सुनहि तुम्ह जाई ॥ जाइहि सुनत सकल संदेहा। राम चरन होइहि अति नेहा ॥

Doha / दोहा

दो. बिनु सतसंग न हरि कथा तेहि बिनु मोह न भाग । मोह गएँ बिनु राम पद होइ न दृढ़ अनुराग ॥ ६१ ॥

Chaupai / चोपाई

मिलहिं न रघुपति बिनु अनुरागा। किएँ जोग तप ग्यान बिरागा ॥ उत्तर दिसि सुंदर गिरि नीला। तहँ रह काकभुसुंडि सुसीला ॥

राम भगति पथ परम प्रबीना। ग्यानी गुन गृह बहु कालीना ॥ राम कथा सो कहइ निरंतर। सादर सुनहिं बिबिध बिहंगबर ॥

जाइ सुनहु तहँ हरि गुन भूरी। होइहि मोह जनित दुख दूरी ॥ मैं जब तेहि सब कहा बुझाई। चलेउ हरषि मम पद सिरु नाई ॥

ताते उमा न मैं समुझावा। रघुपति कृपाँ मरमु मैं पावा ॥ होइहि कीन्ह कबहुँ अभिमाना। सो खौवै चह कृपानिधाना ॥

कछु तेहि ते पुनि मैं नहिं राखा। समुझइ खग खगही कै भाषा ॥ प्रभु माया बलवंत भवानी। जाहि न मोह कवन अस ग्यानी ॥

Doha / दोहा

दो. ग्यानि भगत सिरोमनि त्रिभुवनपति कर जान । ताहि मोह माया नर पावँर करहिं गुमान ॥ ६२(क) ॥

Masaparayana 28 Ends

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