Chaupai / चोपाई
            
            
                
                  
                    
                      सतीं समुझि रघुबीर प्रभाऊ ।  भय बस सिव सन कीन्ह दुराऊ ॥ कछु न परीछा लीन्हि गोसाई ।  कीन्ह प्रनामु तुम्हारिहि नाई ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      जो तुम्ह कहा सो मृषा न होई ।  मोरें मन प्रतीति अति सोई ॥ तब संकर देखेउ धरि ध्याना ।  सतीं जो कीन्ह चरित सब जाना ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      बहुरि राममायहि सिरु नावा ।  प्रेरि सतिहि जेहिं झूँठ कहावा ॥ हरि इच्छा भावी बलवाना ।  हृदयँ बिचारत संभु सुजाना ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      सतीं कीन्ह सीता कर बेषा ।  सिव उर भयउ बिषाद बिसेषा ॥ जौं अब करउँ सती सन प्रीती ।  मिटइ भगति पथु होइ अनीती ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Doha / दोहा
            
            
                
                  
                    
                       दो.  परम पुनीत न जाइ तजि किएँ प्रेम बड़ पापु ।   प्रगटि न कहत महेसु कछु हृदयँ अधिक संतापु ॥ ५६ ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
            
              Chaupai / चोपाई
            
            
                
                  
                    
                      तब संकर प्रभु पद सिरु नावा ।  सुमिरत रामु हृदयँ अस आवा ॥ एहिं तन सतिहि भेट मोहि नाहीं ।  सिव संकल्पु कीन्ह मन माहीं ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      अस बिचारि संकरु मतिधीरा ।  चले भवन सुमिरत रघुबीरा ॥ चलत गगन भै गिरा सुहाई ।  जय महेस भलि भगति दृढ़ाई ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      अस पन तुम्ह बिनु करइ को आना ।  रामभगत समरथ भगवाना ॥ सुनि नभगिरा सती उर सोचा ।  पूछा सिवहि समेत सकोचा ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      कीन्ह कवन पन कहहु कृपाला ।  सत्यधाम प्रभु दीनदयाला ॥ जदपि सतीं पूछा बहु भाँती ।  तदपि न कहेउ त्रिपुर आराती ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Doha / दोहा
            
            
                
                  
                    
                       दो.  सतीं हृदय अनुमान किय सबु जानेउ सर्बग्य ।   कीन्ह कपटु मैं संभु सन नारि सहज जड़ अग्य ॥ ५७क ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
            
              Chaupai / चोपाई
            
            
                
                  
                    
                      हृदयँ सोचु समुझत निज करनी ।  चिंता अमित जाइ नहि बरनी ॥ कृपासिंधु सिव परम अगाधा ।  प्रगट न कहेउ मोर अपराधा ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      संकर रुख अवलोकि भवानी ।  प्रभु मोहि तजेउ हृदयँ अकुलानी ॥ निज अघ समुझि न कछु कहि जाई ।  तपइ अवाँ इव उर अधिकाई ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      सतिहि ससोच जानि बृषकेतू ।  कहीं कथा सुंदर सुख हेतू ॥ बरनत पंथ बिबिध इतिहासा ।  बिस्वनाथ पहुँचे कैलासा ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      तहँ पुनि संभु समुझि पन आपन ।  बैठे बट तर करि कमलासन ॥ संकर सहज सरुप संहारा ।  लागि समाधि अखंड अपारा ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Doha / दोहा
            
            
                
                  
                    
                       दो.  सती बसहि कैलास तब अधिक सोचु मन माहिं ।   मरमु न कोऊ जान कछु जुग सम दिवस सिराहिं ॥ ५८ ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
            
              Chaupai / चोपाई
            
            
                
                  
                    
                      नित नव सोचु सतीं उर भारा ।  कब जैहउँ दुख सागर पारा ॥ मैं जो कीन्ह रघुपति अपमाना ।  पुनिपति बचनु मृषा करि जाना ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      सो फलु मोहि बिधाताँ दीन्हा ।  जो कछु उचित रहा सोइ कीन्हा ॥ अब बिधि अस बूझिअ नहि तोही ।  संकर बिमुख जिआवसि मोही ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      कहि न जाई कछु हृदय गलानी ।  मन महुँ रामाहि सुमिर सयानी ॥ जौ प्रभु दीनदयालु कहावा ।  आरती हरन बेद जसु गावा ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      तौ मैं बिनय करउँ कर जोरी ।  छूटउ बेगि देह यह मोरी ॥ जौं मोरे सिव चरन सनेहू ।  मन क्रम बचन सत्य ब्रतु एहू ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Doha / दोहा
            
            
                
                  
                    
                       दो.   तौ सबदरसी सुनिअ प्रभु करउ सो बेगि उपाइ ।   होइ मरनु जेही बिनहिं श्रम दुसह बिपत्ति बिहाइ ॥ ५९ ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
            
              Sortha/ सोरठा
            
            
                
                  
                    
                       सो.  जलु पय सरिस बिकाइ देखहु प्रीति कि रीति भलि ।  बिलग होइ रसु जाइ कपट खटाई परत पुनि ॥ ५७ख ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
            
              Chaupai / चोपाई
            
            
                
                  
                    
                      एहि बिधि दुखित प्रजेसकुमारी ।  अकथनीय दारुन दुखु भारी ॥ बीतें संबत सहस सतासी ।  तजी समाधि संभु अबिनासी ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      राम नाम सिव सुमिरन लागे ।  जानेउ सतीं जगतपति जागे ॥ जाइ संभु पद बंदनु कीन्ही ।  सनमुख संकर आसनु दीन्हा ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      लगे कहन हरिकथा रसाला ।  दच्छ प्रजेस भए तेहि काला ॥ देखा बिधि बिचारि सब लायक ।  दच्छहि कीन्ह प्रजापति नायक ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      बड़ अधिकार दच्छ जब पावा ।  अति अभिमानु हृदयँ तब आवा ॥ नहिं कोउ अस जनमा जग माहीं ।  प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Doha / दोहा
            
            
                
                  
                    
                       दो.   दच्छ लिए मुनि बोलि सब करन लगे बड़ जाग ।   नेवते सादर सकल सुर जे पावत मख भाग ॥ ६० ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
            
              Chaupai / चोपाई
            
            
                
                  
                    
                      किंनर नाग सिद्ध गंधर्बा ।  बधुन्ह समेत चले सुर सर्बा ॥ बिष्नु बिरंचि महेसु बिहाई ।  चले सकल सुर जान बनाई ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      सतीं बिलोके ब्योम बिमाना ।  जात चले सुंदर बिधि नाना ॥ सुर सुंदरी करहिं कल गाना ।  सुनत श्रवन छूटहिं मुनि ध्याना ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      पूछेउ तब सिवँ कहेउ बखानी ।  पिता जग्य सुनि कछु हरषानी ॥ जौं महेसु मोहि आयसु देहीं ।  कुछ दिन जाइ रहौं मिस एहीं ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      पति परित्याग हृदय दुखु भारी ।  कहइ न निज अपराध बिचारी ॥ बोली सती मनोहर बानी ।  भय संकोच प्रेम रस सानी ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Doha / दोहा
            
            
                
                  
                    
                       दो.  पिता भवन उत्सव परम जौं प्रभु आयसु होइ ।   तौ मै जाउँ कृपायतन सादर देखन सोइ ॥ ६१ ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
            
              Chaupai / चोपाई
            
            
                
                  
                    
                      कहेहु नीक मोरेहुँ मन भावा ।  यह अनुचित नहिं नेवत पठावा ॥ दच्छ सकल निज सुता बोलाई ।  हमरें बयर तुम्हउ बिसराई ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      ब्रह्मसभाँ हम सन दुखु माना ।  तेहि तें अजहुँ करहिं अपमाना ॥ जौं बिनु बोलें जाहु भवानी ।  रहइ न सीलु सनेहु न कानी ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      जदपि मित्र प्रभु पितु गुर गेहा ।  जाइअ बिनु बोलेहुँ न सँदेहा ॥ तदपि बिरोध मान जहँ कोई ।  तहाँ गएँ कल्यानु न होई ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      भाँति अनेक संभु समुझावा ।  भावी बस न ग्यानु उर आवा ॥ कह प्रभु जाहु जो बिनहिं बोलाएँ ।  नहिं भलि बात हमारे भाएँ ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Doha / दोहा
            
            
                
                  
                    
                       दो.  कहि देखा हर जतन बहु रहइ न दच्छकुमारि ।   दिए मुख्य गन संग तब बिदा कीन्ह त्रिपुरारि ॥ ६२ ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
            
              Chaupai / चोपाई
            
            
                
                  
                    
                      पिता भवन जब गई भवानी ।  दच्छ त्रास काहुँ न सनमानी ॥ सादर भलेहिं मिली एक माता ।  भगिनीं मिलीं बहुत मुसुकाता ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      दच्छ न कछु पूछी कुसलाता ।  सतिहि बिलोकि जरे सब गाता ॥ सतीं जाइ देखेउ तब जागा ।  कतहुँ न दीख संभु कर भागा ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      तब चित चढ़ेउ जो संकर कहेऊ ।  प्रभु अपमानु समुझि उर दहेऊ ॥ पाछिल दुखु न हृदयँ अस ब्यापा ।  जस यह भयउ महा परितापा ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      जद्यपि जग दारुन दुख नाना ।  सब तें कठिन जाति अवमाना ॥ समुझि सो सतिहि भयउ अति क्रोधा ।  बहु बिधि जननीं कीन्ह प्रबोधा ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Doha / दोहा
            
            
                
                  
                    
                       दो.  सिव अपमानु न जाइ सहि हृदयँ न होइ प्रबोध ।   सकल सभहि हठि हटकि तब बोलीं बचन सक्रोध ॥ ६३ ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
            
              Chaupai / चोपाई
            
            
                
                  
                    
                      सुनहु सभासद सकल मुनिंदा ।  कही सुनी जिन्ह संकर निंदा ॥ सो फलु तुरत लहब सब काहूँ ।  भली भाँति पछिताब पिताहूँ ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      संत संभु श्रीपति अपबादा ।  सुनिअ जहाँ तहँ असि मरजादा ॥ काटिअ तासु जीभ जो बसाई ।  श्रवन मूदि न त चलिअ पराई ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      जगदातमा महेसु पुरारी ।  जगत जनक सब के हितकारी ॥ पिता मंदमति निंदत तेही ।  दच्छ सुक्र संभव यह देही ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      तजिहउँ तुरत देह तेहि हेतू ।  उर धरि चंद्रमौलि बृषकेतू ॥ अस कहि जोग अगिनि तनु जारा ।  भयउ सकल मख हाहाकारा ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Doha / दोहा
            
            
                
                  
                    
                        दो.  सती मरनु सुनि संभु गन लगे करन मख खीस ।    जग्य बिधंस बिलोकि भृगु रच्छा कीन्हि मुनीस ॥ ६४ ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
            
              Chaupai / चोपाई
            
            
                
                  
                    
                      समाचार सब संकर पाए ।  बीरभद्रु करि कोप पठाए ॥ जग्य बिधंस जाइ तिन्ह कीन्हा ।  सकल सुरन्ह बिधिवत फलु दीन्हा ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      भे जगबिदित दच्छ गति सोई ।  जसि कछु संभु बिमुख कै होई ॥ यह इतिहास सकल जग जानी ।  ताते मैं संछेप बखानी ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      सतीं मरत हरि सन बरु मागा ।  जनम जनम सिव पद अनुरागा ॥ तेहि कारन हिमगिरि गृह जाई ।  जनमीं पारबती तनु पाई ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      जब तें उमा सैल गृह जाईं ।  सकल सिद्धि संपति तहँ छाई ॥ जहँ तहँ मुनिन्ह सुआश्रम कीन्हे ।  उचित बास हिम भूधर दीन्हे ॥    
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Doha / दोहा
            
            
                
                  
                    
                       दो.  सदा सुमन फल सहित सब द्रुम नव नाना जाति ।   प्रगटीं सुंदर सैल पर मनि आकर बहु भाँति ॥ ६५ ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
            
              Chaupai / चोपाई
            
            
                
                  
                    
                      सरिता सब पुनित जलु बहहीं ।  खग मृग मधुप सुखी सब रहहीं ॥ सहज बयरु सब जीवन्ह त्यागा ।  गिरि पर सकल करहिं अनुरागा ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      सोह सैल गिरिजा गृह आएँ ।  जिमि जनु रामभगति के पाएँ ॥ नित नूतन मंगल गृह तासू ।  ब्रह्मादिक गावहिं जसु जासू ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      नारद समाचार सब पाए ।  कौतुकहीं गिरि गेह सिधाए ॥ सैलराज बड़ आदर कीन्हा ।  पद पखारि बर आसनु दीन्हा ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      नारि सहित मुनि पद सिरु नावा ।  चरन सलिल सबु भवनु सिंचावा ॥ निज सौभाग्य बहुत गिरि बरना ।  सुता बोलि मेली मुनि चरना ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Doha / दोहा
            
            
                
                  
                    
                        दो.  त्रिकालग्य सर्बग्य तुम्ह गति सर्बत्र तुम्हारि ॥ कहहु सुता के दोष गुन मुनिबर हृदयँ बिचारि ॥ ६६ ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
            
              Chaupai / चोपाई
            
            
                
                  
                    
                      कह मुनि बिहसि गूढ़ मृदु बानी ।  सुता तुम्हारि सकल गुन खानी ॥ सुंदर सहज सुसील सयानी ।  नाम उमा अंबिका भवानी ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      सब लच्छन संपन्न कुमारी ।  होइहि संतत पियहि पिआरी ॥ सदा अचल एहि कर अहिवाता ।  एहि तें जसु पैहहिं पितु माता ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      होइहि पूज्य सकल जग माहीं ।  एहि सेवत कछु दुर्लभ नाहीं ॥ एहि कर नामु सुमिरि संसारा ।  त्रिय चढ़हहिँ पतिब्रत असिधारा ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      सैल सुलच्छन सुता तुम्हारी ।  सुनहु जे अब अवगुन दुइ चारी ॥ अगुन अमान मातु पितु हीना ।  उदासीन सब संसय छीना ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Doha / दोहा
            
            
                
                  
                    
                       दो.  जोगी जटिल अकाम मन नगन अमंगल बेष ॥ अस स्वामी एहि कहँ मिलिहि परी हस्त असि रेख ॥ ६७ ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
            
              Chaupai / चोपाई
            
            
                
                  
                    
                      सुनि मुनि गिरा सत्य जियँ जानी ।  दुख दंपतिहि उमा हरषानी ॥ नारदहुँ यह भेदु न जाना ।  दसा एक समुझब बिलगाना ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      सकल सखीं गिरिजा गिरि मैना ।  पुलक सरीर भरे जल नैना ॥ होइ न मृषा देवरिषि भाषा ।  उमा सो बचनु हृदयँ धरि राखा ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      उपजेउ सिव पद कमल सनेहू ।  मिलन कठिन मन भा संदेहू ॥ जानि कुअवसरु प्रीति दुराई ।  सखी उछँग बैठी पुनि जाई ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      झूठि न होइ देवरिषि बानी ।  सोचहि दंपति सखीं सयानी ॥ उर धरि धीर कहइ गिरिराऊ ।  कहहु नाथ का करिअ उपाऊ ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Doha / दोहा
            
            
                
                  
                    
                       दो.  कह मुनीस हिमवंत सुनु जो बिधि लिखा लिलार ।   देव दनुज नर नाग मुनि कोउ न मेटनिहार ॥ ६८ ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
            
              Chaupai / चोपाई
            
            
                
                  
                    
                      तदपि एक मैं कहउँ उपाई ।  होइ करै जौं दैउ सहाई ॥ जस बरु मैं बरनेउँ तुम्ह पाहीं ।  मिलहि उमहि तस संसय नाहीं ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      जे जे बर के दोष बखाने ।  ते सब सिव पहि मैं अनुमाने ॥ जौं बिबाहु संकर सन होई ।  दोषउ गुन सम कह सबु कोई ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      जौं अहि सेज सयन हरि करहीं ।  बुध कछु तिन्ह कर दोषु न धरहीं ॥ भानु कृसानु सर्ब रस खाहीं ।  तिन्ह कहँ मंद कहत कोउ नाहीं ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      सुभ अरु असुभ सलिल सब बहई ।  सुरसरि कोउ अपुनीत न कहई ॥ समरथ कहुँ नहिं दोषु गोसाई ।  रबि पावक सुरसरि की नाई ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Doha / दोहा
            
            
                
                  
                    
                       दो.  जौं अस हिसिषा करहिं नर जड़ि बिबेक अभिमान ।   परहिं कलप भरि नरक महुँ जीव कि ईस समान ॥ ६९ ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
            
              Chaupai / चोपाई
            
            
                
                  
                    
                      सुरसरि जल कृत बारुनि जाना ।  कबहुँ न संत करहिं तेहि पाना ॥ सुरसरि मिलें सो पावन जैसें ।  ईस अनीसहि अंतरु तैसें ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      संभु सहज समरथ भगवाना ।  एहि बिबाहँ सब बिधि कल्याना ॥ दुराराध्य पै अहहिं महेसू ।  आसुतोष पुनि किएँ कलेसू ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      जौं तपु करै कुमारि तुम्हारी ।  भाविउ मेटि सकहिं त्रिपुरारी ॥ जद्यपि बर अनेक जग माहीं ।  एहि कहँ सिव तजि दूसर नाहीं ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      बर दायक प्रनतारति भंजन ।  कृपासिंधु सेवक मन रंजन ॥ इच्छित फल बिनु सिव अवराधे ।  लहिअ न कोटि जोग जप साधें ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Doha / दोहा
            
            
                
                  
                    
                       दो.  अस कहि नारद सुमिरि हरि गिरिजहि दीन्हि असीस ।   होइहि यह कल्यान अब संसय तजहु गिरीस ॥ ७० ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
            
              Chaupai / चोपाई
            
            
                
                  
                    
                      कहि अस ब्रह्मभवन मुनि गयऊ ।  आगिल चरित सुनहु जस भयऊ ॥ पतिहि एकांत पाइ कह मैना ।  नाथ न मैं समुझे मुनि बैना ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      जौं घरु बरु कुलु होइ अनूपा ।  करिअ बिबाहु सुता अनुरुपा ॥ न त कन्या बरु रहउ कुआरी ।  कंत उमा मम प्रानपिआरी ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      जौं न मिलहि बरु गिरिजहि जोगू ।  गिरि जड़ सहज कहिहि सबु लोगू ॥ सोइ बिचारि पति करेहु बिबाहू ।  जेहिं न बहोरि होइ उर दाहू ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      अस कहि परि चरन धरि सीसा ।  बोले सहित सनेह गिरीसा ॥ बरु पावक प्रगटै ससि माहीं ।  नारद बचनु अन्यथा नाहीं ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Doha / दोहा
            
            
                
                  
                    
                       दो.  प्रिया सोचु परिहरहु सबु सुमिरहु श्रीभगवान ।   पारबतिहि निरमयउ जेहिं सोइ करिहि कल्यान ॥ ७१ ॥      
                    
                    
                  
                
             
            
            
              Chaupai / चोपाई
            
            
                
                  
                    
                      अब जौ तुम्हहि सुता पर नेहू ।  तौ अस जाइ सिखावन देहू ॥ करै सो तपु जेहिं मिलहिं महेसू ।  आन उपायँ न मिटहि कलेसू ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      नारद बचन सगर्भ सहेतू ।  सुंदर सब गुन निधि बृषकेतू ॥ अस बिचारि तुम्ह तजहु असंका ।  सबहि भाँति संकरु अकलंका ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      सुनि पति बचन हरषि मन माहीं ।  गई तुरत उठि गिरिजा पाहीं ॥ उमहि बिलोकि नयन भरे बारी ।  सहित सनेह गोद बैठारी ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      बारहिं बार लेति उर लाई ।  गदगद कंठ न कछु कहि जाई ॥ जगत मातु सर्बग्य भवानी ।  मातु सुखद बोलीं मृदु बानी ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Doha / दोहा
            
            
                
                  
                    
                       दो.  सुनहि मातु मैं दीख अस सपन सुनावउँ तोहि ।   सुंदर गौर सुबिप्रबर अस उपदेसेउ मोहि ॥ ७२ ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
            
              Chaupai / चोपाई
            
            
                
                  
                    
                      करहि जाइ तपु सैलकुमारी ।  नारद कहा सो सत्य बिचारी ॥ मातु पितहि पुनि यह मत भावा ।  तपु सुखप्रद दुख दोष नसावा ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      तपबल रचइ प्रपंच बिधाता ।  तपबल बिष्नु सकल जग त्राता ॥ तपबल संभु करहिं संघारा ।  तपबल सेषु धरइ महिभारा ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      तप अधार सब सृष्टि भवानी ।  करहि जाइ तपु अस जियँ जानी ॥ सुनत बचन बिसमित महतारी ।  सपन सुनायउ गिरिहि हँकारी ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      मातु पितुहि बहुबिधि समुझाई ।  चलीं उमा तप हित हरषाई ॥ प्रिय परिवार पिता अरु माता ।  भए बिकल मुख आव न बाता ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Doha / दोहा
            
            
                
                  
                    
                       दो.  बेदसिरा मुनि आइ तब सबहि कहा समुझाइ ॥ पारबती महिमा सुनत रहे प्रबोधहि पाइ ॥ ७३ ॥   
                    
                    
                  
                
             
            
            
              Chaupai / चोपाई
            
            
                
                  
                    
                      उर धरि उमा प्रानपति चरना ।  जाइ बिपिन लागीं तपु करना ॥ अति सुकुमार न तनु तप जोगू ।  पति पद सुमिरि तजेउ सबु भोगू ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      नित नव चरन उपज अनुरागा ।  बिसरी देह तपहिं मनु लागा ॥ संबत सहस मूल फल खाए ।  सागु खाइ सत बरष गवाँए ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      कछु दिन भोजनु बारि बतासा ।  किए कठिन कछु दिन उपबासा ॥ बेल पाती महि परइ सुखाई ।  तीनि सहस संबत सोई खाई ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      पुनि परिहरे सुखानेउ परना ।  उमहि नाम तब भयउ अपरना ॥ देखि उमहि तप खीन सरीरा ।  ब्रह्मगिरा भै गगन गभीरा ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Doha / दोहा
            
            
                
                  
                    
                       दो.  भयउ मनोरथ सुफल तव सुनु गिरिजाकुमारि ।   परिहरु दुसह कलेस सब अब मिलिहहिं त्रिपुरारि ॥ ७४ ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
            
              Chaupai / चोपाई
            
            
                
                  
                    
                      अस तपु काहुँ न कीन्ह भवानी ।  भउ अनेक धीर मुनि ग्यानी ॥ अब उर धरहु ब्रह्म बर बानी ।  सत्य सदा संतत सुचि जानी ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      आवै पिता बोलावन जबहीं ।  हठ परिहरि घर जाएहु तबहीं ॥ मिलहिं तुम्हहि जब सप्त रिषीसा ।  जानेहु तब प्रमान बागीसा ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      सुनत गिरा बिधि गगन बखानी ।  पुलक गात गिरिजा हरषानी ॥ उमा चरित सुंदर मैं गावा ।  सुनहु संभु कर चरित सुहावा ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      जब तें सती जाइ तनु त्यागा ।  तब सें सिव मन भयउ बिरागा ॥ जपहिं सदा रघुनायक नामा ।  जहँ तहँ सुनहिं राम गुन ग्रामा ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Doha / दोहा
            
            
                
                  
                    
                        दो.  चिदानन्द सुखधाम सिव बिगत मोह मद काम ।   बिचरहिं महि धरि हृदयँ हरि सकल लोक अभिराम ॥ ७५ ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
            
              Chaupai / चोपाई
            
            
                
                  
                    
                      कतहुँ मुनिन्ह उपदेसहिं ग्याना ।  कतहुँ राम गुन करहिं बखाना ॥ जदपि अकाम तदपि भगवाना ।  भगत बिरह दुख दुखित सुजाना ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      एहि बिधि गयउ कालु बहु बीती ।  नित नै होइ राम पद प्रीती ॥ नैमु प्रेमु संकर कर देखा ।  अबिचल हृदयँ भगति कै रेखा ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      प्रगटै रामु कृतग्य कृपाला ।  रूप सील निधि तेज बिसाला ॥ बहु प्रकार संकरहि सराहा ।  तुम्ह बिनु अस ब्रतु को निरबाहा ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      बहुबिधि राम सिवहि समुझावा ।  पारबती कर जन्मु सुनावा ॥ अति पुनीत गिरिजा कै करनी ।  बिस्तर सहित कृपानिधि बरनी ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Doha / दोहा
            
            
                
                  
                    
                       दो.  अब बिनती मम सुनेहु सिव जौं मो पर निज नेहु ।   जाइ बिबाहहु सैलजहि यह मोहि मागें देहु ॥ ७६ ॥      
                    
                    
                  
                
             
            
            
              Chaupai / चोपाई
            
            
                
                  
                    
                      कह सिव जदपि उचित अस नाहीं ।  नाथ बचन पुनि मेटि न जाहीं ॥ सिर धरि आयसु करिअ तुम्हारा ।  परम धरमु यह नाथ हमारा ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      मातु पिता गुर प्रभु कै बानी ।  बिनहिं बिचार करिअ सुभ जानी ॥ तुम्ह सब भाँति परम हितकारी ।  अग्या सिर पर नाथ तुम्हारी ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      प्रभु तोषेउ सुनि संकर बचना ।  भक्ति बिबेक धर्म जुत रचना ॥ कह प्रभु हर तुम्हार पन रहेऊ ।  अब उर राखेहु जो हम कहेऊ ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      अंतरधान भए अस भाषी ।  संकर सोइ मूरति उर राखी ॥ तबहिं सप्तरिषि सिव पहिं आए ।  बोले प्रभु अति बचन सुहाए ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Doha / दोहा
            
            
                
                  
                    
                       दो.  पारबती पहिं जाइ तुम्ह प्रेम परिच्छा लेहु ।   गिरिहि प्रेरि पठएहु भवन दूरि करेहु संदेहु ॥ ७७ ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
            
              Chaupai / चोपाई
            
            
                
                  
                    
                      रिषिन्ह गौरि देखी तहँ कैसी ।  मूरतिमंत तपस्या जैसी ॥ बोले मुनि सुनु सैलकुमारी ।  करहु कवन कारन तपु भारी ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      केहि अवराधहु का तुम्ह चहहू ।  हम सन सत्य मरमु किन कहहू ॥ कहत बचत मनु अति सकुचाई ।  हँसिहहु सुनि हमारि जड़ताई ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      मनु हठ परा न सुनइ सिखावा ।  चहत बारि पर भीति उठावा ॥ नारद कहा सत्य सोइ जाना ।  बिनु पंखन्ह हम चहहिं उड़ाना ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      देखहु मुनि अबिबेकु हमारा ।  चाहिअ सदा सिवहि भरतारा ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Doha / दोहा
            
            
                
                  
                    
                       दो.  सुनत बचन बिहसे रिषय गिरिसंभव तब देह ।   नारद कर उपदेसु सुनि कहहु बसेउ किसु गेह ॥ ७८ ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
            
              Chaupai / चोपाई
            
            
                
                  
                    
                      दच्छसुतन्ह उपदेसेन्हि जाई ।  तिन्ह फिरि भवनु न देखा आई ॥ चित्रकेतु कर घरु उन घाला ।  कनककसिपु कर पुनि अस हाला ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      नारद सिख जे सुनहिं नर नारी ।  अवसि होहिं तजि भवनु भिखारी ॥ मन कपटी तन सज्जन चीन्हा ।  आपु सरिस सबही चह कीन्हा ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      तेहि कें बचन मानि बिस्वासा ।  तुम्ह चाहहु पति सहज उदासा ॥ निर्गुन निलज कुबेष कपाली ।  अकुल अगेह दिगंबर ब्याली ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      कहहु कवन सुखु अस बरु पाएँ ।  भल भूलिहु ठग के बौराएँ ॥ पंच कहें सिवँ सती बिबाही ।  पुनि अवडेरि मराएन्हि ताही ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Doha / दोहा
            
            
                
                  
                    
                       दो.  अब सुख सोवत सोचु नहि भीख मागि भव खाहिं ।   सहज एकाकिन्ह के भवन कबहुँ कि नारि खटाहिं ॥ ७९ ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
            
              Chaupai / चोपाई
            
            
                
                  
                    
                      अजहूँ मानहु कहा हमारा ।  हम तुम्ह कहुँ बरु नीक बिचारा ॥ अति सुंदर सुचि सुखद सुसीला ।  गावहिं बेद जासु जस लीला ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      दूषन रहित सकल गुन रासी ।  श्रीपति पुर बैकुंठ निवासी ॥ अस बरु तुम्हहि मिलाउब आनी ।  सुनत बिहसि कह बचन भवानी ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      सत्य कहेहु गिरिभव तनु एहा ।  हठ न छूट छूटै बरु देहा ॥ कनकउ पुनि पषान तें होई ।  जारेहुँ सहजु न परिहर सोई ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      नारद बचन न मैं परिहरऊँ ।  बसउ भवनु उजरउ नहिं डरऊँ ॥ गुर कें बचन प्रतीति न जेही ।  सपनेहुँ सुगम न सुख सिधि तेही ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Doha / दोहा
            
            
                
                  
                    
                       दो.  महादेव अवगुन भवन बिष्नु सकल गुन धाम ।   जेहि कर मनु रम जाहि सन तेहि तेही सन काम ॥ ८० ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
            
              Chaupai / चोपाई
            
            
                
                  
                    
                      जौं तुम्ह मिलतेहु प्रथम मुनीसा ।  सुनतिउँ सिख तुम्हारि धरि सीसा ॥ अब मैं जन्मु संभु हित हारा ।  को गुन दूषन करै बिचारा ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      जौं तुम्हरे हठ हृदयँ बिसेषी ।  रहि न जाइ बिनु किएँ बरेषी ॥ तौ कौतुकिअन्ह आलसु नाहीं ।  बर कन्या अनेक जग माहीं ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      जन्म कोटि लगि रगर हमारी ।  बरउँ संभु न त रहउँ कुआरी ॥ तजउँ न नारद कर उपदेसू ।  आपु कहहि सत बार महेसू ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      मैं पा परउँ कहइ जगदंबा ।  तुम्ह गृह गवनहु भयउ बिलंबा ॥ देखि प्रेमु बोले मुनि ग्यानी ।  जय जय जगदंबिके भवानी ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Doha / दोहा
            
            
                
                  
                    
                       दो.  तुम्ह माया भगवान सिव सकल जगत पितु मातु ।   नाइ चरन सिर मुनि चले पुनि पुनि हरषत गातु ॥ ८१ ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
            
              Chaupai / चोपाई
            
            
                
                  
                    
                      जाइ मुनिन्ह हिमवंतु पठाए ।  करि बिनती गिरजहिं गृह ल्याए ॥ बहुरि सप्तरिषि सिव पहिं जाई ।  कथा उमा कै सकल सुनाई ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      भए मगन सिव सुनत सनेहा ।  हरषि सप्तरिषि गवने गेहा ॥ मनु थिर करि तब संभु सुजाना ।  लगे करन रघुनायक ध्याना ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      तारकु असुर भयउ तेहि काला ।  भुज प्रताप बल तेज बिसाला ॥ तेंहि सब लोक लोकपति जीते ।  भए देव सुख संपति रीते ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      अजर अमर सो जीति न जाई ।  हारे सुर करि बिबिध लराई ॥ तब बिरंचि सन जाइ पुकारे ।  देखे बिधि सब देव दुखारे ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Doha / दोहा
            
            
                
                  
                    
                       दो.  सब सन कहा बुझाइ बिधि दनुज निधन तब होइ ।   संभु सुक्र संभूत सुत एहि जीतइ रन सोइ ॥ ८२ ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
            
              Chaupai / चोपाई
            
            
                
                  
                    
                      मोर कहा सुनि करहु उपाई ।  होइहि ईस्वर करिहि सहाई ॥ सतीं जो तजी दच्छ मख देहा ।  जनमी जाइ हिमाचल गेहा ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      तेहिं तपु कीन्ह संभु पति लागी ।  सिव समाधि बैठे सबु त्यागी ॥ जदपि अहइ असमंजस भारी ।  तदपि बात एक सुनहु हमारी ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      पठवहु कामु जाइ सिव पाहीं ।  करै छोभु संकर मन माहीं ॥ तब हम जाइ सिवहि सिर नाई ।  करवाउब बिबाहु बरिआई ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      एहि बिधि भलेहि देवहित होई ।  मर अति नीक कहइ सबु कोई ॥ अस्तुति सुरन्ह कीन्हि अति हेतू ।  प्रगटेउ बिषमबान झषकेतू ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Doha / दोहा
            
            
                
                  
                    
                       दो.  सुरन्ह कहीं निज बिपति सब सुनि मन कीन्ह बिचार ।   संभु बिरोध न कुसल मोहि बिहसि कहेउ अस मार ॥ ८३ ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
            
              Chaupai / चोपाई
            
            
                
                  
                    
                      तदपि करब मैं काजु तुम्हारा ।  श्रुति कह परम धरम उपकारा ॥ पर हित लागि तजइ जो देही ।  संतत संत प्रसंसहिं तेही ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      अस कहि चलेउ सबहि सिरु नाई ।  सुमन धनुष कर सहित सहाई ॥ चलत मार अस हृदयँ बिचारा ।  सिव बिरोध ध्रुव मरनु हमारा ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      तब आपन प्रभाउ बिस्तारा ।  निज बस कीन्ह सकल संसारा ॥ कोपेउ जबहि बारिचरकेतू ।  छन महुँ मिटे सकल श्रुति सेतू ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      ब्रह्मचर्ज ब्रत संजम नाना ।  धीरज धरम ग्यान बिग्याना ॥ सदाचार जप जोग बिरागा ।  सभय बिबेक कटकु सब भागा ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Chanda / छन्द
            
            
                
                  
                    
                       छं.  भागेउ बिबेक सहाय सहित सो सुभट संजुग महि मुरे ।   सदग्रंथ पर्बत कंदरन्हि महुँ जाइ तेहि अवसर दुरे ॥ होनिहार का करतार को रखवार जग खरभरु परा ।   दुइ माथ केहि रतिनाथ जेहि कहुँ कोऽपि कर धनु सरु धरा ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Doha / दोहा
            
            
                
                  
                    
                       दो.  जे सजीव जग अचर चर नारि पुरुष अस नाम ।   ते निज निज मरजाद तजि भए सकल बस काम ॥ ८४ ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
            
              Chaupai / चोपाई
            
            
                
                  
                    
                      सब के हृदयँ मदन अभिलाषा ।  लता निहारि नवहिं तरु साखा ॥ नदीं उमगि अंबुधि कहुँ धाई ।  संगम करहिं तलाव तलाई ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      जहँ असि दसा जड़न्ह कै बरनी ।  को कहि सकइ सचेतन करनी ॥ पसु पच्छी नभ जल थलचारी ।  भए कामबस समय बिसारी ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      मदन अंध ब्याकुल सब लोका ।  निसि दिनु नहिं अवलोकहिं कोका ॥ देव दनुज नर किंनर ब्याला ।  प्रेत पिसाच भूत बेताला ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      इन्ह कै दसा न कहेउँ बखानी ।  सदा काम के चेरे जानी ॥ सिद्ध बिरक्त महामुनि जोगी ।  तेपि कामबस भए बियोगी ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Chanda / छन्द
            
            
                
                  
                    
                       छं.  भए कामबस जोगीस तापस पावँरन्हि की को कहै ।   देखहिं चराचर नारिमय जे ब्रह्ममय देखत रहे ॥ अबला बिलोकहिं पुरुषमय जगु पुरुष सब अबलामयं ।   दुइ दंड भरि ब्रह्मांड भीतर कामकृत कौतुक अयं ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Sortha/ सोरठा
            
            
                
                  
                    
                       सो.  धरी न काहूँ धिर सबके मन मनसिज हरे ।    जे राखे रघुबीर ते उबरे तेहि काल महुँ ॥ ८५ ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
            
              Chaupai / चोपाई
            
            
                
                  
                    
                      उभय घरी अस कौतुक भयऊ ।  जौ लगि कामु संभु पहिं गयऊ ॥ सिवहि बिलोकि ससंकेउ मारू ।  भयउ जथाथिति सबु संसारू ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      भए तुरत सब जीव सुखारे ।  जिमि मद उतरि गएँ मतवारे ॥ रुद्रहि देखि मदन भय माना ।  दुराधरष दुर्गम भगवाना ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      फिरत लाज कछु करि नहिं जाई ।  मरनु ठानि मन रचेसि उपाई ॥ प्रगटेसि तुरत रुचिर रितुराजा ।  कुसुमित नव तरु राजि बिराजा ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      बन उपबन बापिका तड़ागा ।  परम सुभग सब दिसा बिभागा ॥ जहँ तहँ जनु उमगत अनुरागा ।  देखि मुएहुँ मन मनसिज जागा ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Chanda / छन्द
            
            
                
                  
                    
                       छं.  जागइ मनोभव मुएहुँ मन बन सुभगता न परै कही ।   सीतल सुगंध सुमंद मारुत मदन अनल सखा सही ॥ बिकसे सरन्हि बहु कंज गुंजत पुंज मंजुल मधुकरा ।   कलहंस पिक सुक सरस रव करि गान नाचहिं अपछरा ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Doha / दोहा
            
            
                
                  
                    
                        दो.  सकल कला करि कोटि बिधि हारेउ सेन समेत ।    चली न अचल समाधि सिव कोपेउ हृदयनिकेत ॥ ८६ ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
            
              Chaupai / चोपाई
            
            
                
                  
                    
                      देखि रसाल बिटप बर साखा ।  तेहि पर चढ़ेउ मदनु मन माखा ॥ सुमन चाप निज सर संधाने ।  अति रिस ताकि श्रवन लगि ताने ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      छाड़े बिषम बिसिख उर लागे ।  छुटि समाधि संभु तब जागे ॥ भयउ ईस मन छोभु बिसेषी ।  नयन उघारि सकल दिसि देखी ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      सौरभ पल्लव मदनु बिलोका ।  भयउ कोपु कंपेउ त्रैलोका ॥ तब सिवँ तीसर नयन उघारा ।  चितवत कामु भयउ जरि छारा ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      हाहाकार भयउ जग भारी ।  डरपे सुर भए असुर सुखारी ॥ समुझि कामसुखु सोचहिं भोगी ।  भए अकंटक साधक जोगी ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Chanda / छन्द
            
            
                
                  
                    
                       छं.  जोगि अकंटक भए पति गति सुनत रति मुरुछित भई ।   रोदति बदति बहु भाँति करुना करति संकर पहिं गई ।   अति प्रेम करि बिनती बिबिध बिधि जोरि कर सन्मुख रही ।   प्रभु आसुतोष कृपाल सिव अबला निरखि बोले सही ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Doha / दोहा
            
            
                
                  
                    
                        दो.  अब तें रति तव नाथ कर होइहि नामु अनंगु ।    बिनु बपु ब्यापिहि सबहि पुनि सुनु निज मिलन प्रसंगु ॥ ८७ ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
            
              Chaupai / चोपाई
            
            
                
                  
                    
                      जब जदुबंस कृष्न अवतारा ।  होइहि हरन महा महिभारा ॥ कृष्न तनय होइहि पति तोरा ।  बचनु अन्यथा होइ न मोरा ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      रति गवनी सुनि संकर बानी ।  कथा अपर अब कहउँ बखानी ॥ देवन्ह समाचार सब पाए ।  ब्रह्मादिक बैकुंठ सिधाए ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      सब सुर बिष्नु बिरंचि समेता ।  गए जहाँ सिव कृपानिकेता ॥ पृथक पृथक तिन्ह कीन्हि प्रसंसा ।  भए प्रसन्न चंद्र अवतंसा ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      बोले कृपासिंधु बृषकेतू ।  कहहु अमर आए केहि हेतू ॥ कह बिधि तुम्ह प्रभु अंतरजामी ।  तदपि भगति बस बिनवउँ स्वामी ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Doha / दोहा
            
            
                
                  
                    
                       दो.  सकल सुरन्ह के हृदयँ अस संकर परम उछाहु ।   निज नयनन्हि देखा चहहिं नाथ तुम्हार बिबाहु ॥ ८८ ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
            
              Chaupai / चोपाई
            
            
                
                  
                    
                      यह उत्सव देखिअ भरि लोचन ।  सोइ कछु करहु मदन मद मोचन । कामु जारि रति कहुँ बरु दीन्हा ।  कृपासिंधु यह अति भल कीन्हा ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      सासति करि पुनि करहिं पसाऊ ।  नाथ प्रभुन्ह कर सहज सुभाऊ ॥ पारबतीं तपु कीन्ह अपारा ।  करहु तासु अब अंगीकारा ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      सुनि बिधि बिनय समुझि प्रभु बानी ।  ऐसेइ होउ कहा सुखु मानी ॥ तब देवन्ह दुंदुभीं बजाईं ।  बरषि सुमन जय जय सुर साई ॥ 
                    
                    
                  
                
                  
                    
                      अवसरु जानि सप्तरिषि आए ।  तुरतहिं बिधि गिरिभवन पठाए ॥ प्रथम गए जहँ रही भवानी ।  बोले मधुर बचन छल सानी ॥ 
                    
                    
                  
                
             
            
         
        
        
            
            
            
            
              Doha / दोहा
            
            
                
                  
                    
                       दो.  कहा हमार न सुनेहु तब नारद कें उपदेस ।   अब भा झूठ तुम्हार पन जारेउ कामु महेस ॥ ८९ ॥