Ram Charita Manas

Masaparayan 4

ॐ श्री परमात्मने नमः

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संस्कृत्म
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Chaupai / चोपाई

सुनि बोलीं मुसकाइ भवानी । उचित कहेहु मुनिबर बिग्यानी ॥ तुम्हरें जान कामु अब जारा । अब लगि संभु रहे सबिकारा ॥

हमरें जान सदा सिव जोगी । अज अनवद्य अकाम अभोगी ॥ जौं मैं सिव सेये अस जानी । प्रीति समेत कर्म मन बानी ॥

तौ हमार पन सुनहु मुनीसा । करिहहिं सत्य कृपानिधि ईसा ॥ तुम्ह जो कहा हर जारेउ मारा । सोइ अति बड़ अबिबेकु तुम्हारा ॥

तात अनल कर सहज सुभाऊ । हिम तेहि निकट जाइ नहिं काऊ ॥ गएँ समीप सो अवसि नसाई । असि मन्मथ महेस की नाई ॥

Doha / दोहा

दो. हियँ हरषे मुनि बचन सुनि देखि प्रीति बिस्वास ॥ चले भवानिहि नाइ सिर गए हिमाचल पास ॥ ९० ॥

Chaupai / चोपाई

सबु प्रसंगु गिरिपतिहि सुनावा । मदन दहन सुनि अति दुखु पावा ॥ बहुरि कहेउ रति कर बरदाना । सुनि हिमवंत बहुत सुखु माना ॥

हृदयँ बिचारि संभु प्रभुताई । सादर मुनिबर लिए बोलाई ॥ सुदिनु सुनखतु सुघरी सोचाई । बेगि बेदबिधि लगन धराई ॥

पत्री सप्तरिषिन्ह सोइ दीन्ही । गहि पद बिनय हिमाचल कीन्ही ॥ जाइ बिधिहि दीन्हि सो पाती । बाचत प्रीति न हृदयँ समाती ॥

लगन बाचि अज सबहि सुनाई । हरषे मुनि सब सुर समुदाई ॥ सुमन बृष्टि नभ बाजन बाजे । मंगल कलस दसहुँ दिसि साजे ॥

Doha / दोहा

दो. लगे सँवारन सकल सुर बाहन बिबिध बिमान । होहि सगुन मंगल सुभद करहिं अपछरा गान ॥ ९१ ॥

Chaupai / चोपाई

सिवहि संभु गन करहिं सिंगारा । जटा मुकुट अहि मौरु सँवारा ॥ कुंडल कंकन पहिरे ब्याला । तन बिभूति पट केहरि छाला ॥

ससि ललाट सुंदर सिर गंगा । नयन तीनि उपबीत भुजंगा ॥ गरल कंठ उर नर सिर माला । असिव बेष सिवधाम कृपाला ॥

कर त्रिसूल अरु डमरु बिराजा । चले बसहँ चढ़ि बाजहिं बाजा ॥ देखि सिवहि सुरत्रिय मुसुकाहीं । बर लायक दुलहिनि जग नाहीं ॥

बिष्नु बिरंचि आदि सुरब्राता । चढ़ि चढ़ि बाहन चले बराता ॥ सुर समाज सब भाँति अनूपा । नहिं बरात दूलह अनुरूपा ॥

Doha / दोहा

दो. बिष्नु कहा अस बिहसि तब बोलि सकल दिसिराज । बिलग बिलग होइ चलहु सब निज निज सहित समाज ॥ ९२ ॥

Chaupai / चोपाई

बर अनुहारि बरात न भाई । हँसी करैहहु पर पुर जाई ॥ बिष्नु बचन सुनि सुर मुसकाने । निज निज सेन सहित बिलगाने ॥

मनहीं मन महेसु मुसुकाहीं । हरि के बिंग्य बचन नहिं जाहीं ॥ अति प्रिय बचन सुनत प्रिय केरे । भृंगिहि प्रेरि सकल गन टेरे ॥

सिव अनुसासन सुनि सब आए । प्रभु पद जलज सीस तिन्ह नाए ॥ नाना बाहन नाना बेषा । बिहसे सिव समाज निज देखा ॥

कोउ मुखहीन बिपुल मुख काहू । बिनु पद कर कोउ बहु पद बाहू ॥ बिपुल नयन कोउ नयन बिहीना । रिष्टपुष्ट कोउ अति तनखीना ॥

Chanda / छन्द

छं. तन खीन कोउ अति पीन पावन कोउ अपावन गति धरें । भूषन कराल कपाल कर सब सद्य सोनित तन भरें ॥ खर स्वान सुअर सृकाल मुख गन बेष अगनित को गनै । बहु जिनस प्रेत पिसाच जोगि जमात बरनत नहिं बनै ॥

Sortha/ सोरठा

सो. नाचहिं गावहिं गीत परम तरंगी भूत सब । देखत अति बिपरीत बोलहिं बचन बिचित्र बिधि ॥ ९३ ॥

Chaupai / चोपाई

जस दूलहु तसि बनी बराता । कौतुक बिबिध होहिं मग जाता ॥ इहाँ हिमाचल रचेउ बिताना । अति बिचित्र नहिं जाइ बखाना ॥

सैल सकल जहँ लगि जग माहीं । लघु बिसाल नहिं बरनि सिराहीं ॥ बन सागर सब नदीं तलावा । हिमगिरि सब कहुँ नेवत पठावा ॥

कामरूप सुंदर तन धारी । सहित समाज सहित बर नारी ॥ गए सकल तुहिनाचल गेहा । गावहिं मंगल सहित सनेहा ॥

प्रथमहिं गिरि बहु गृह सँवराए । जथाजोगु तहँ तहँ सब छाए ॥ पुर सोभा अवलोकि सुहाई । लागइ लघु बिरंचि निपुनाई ॥

Chanda / छन्द

छं. लघु लाग बिधि की निपुनता अवलोकि पुर सोभा सही । बन बाग कूप तड़ाग सरिता सुभग सब सक को कही ॥ मंगल बिपुल तोरन पताका केतु गृह गृह सोहहीं ॥ बनिता पुरुष सुंदर चतुर छबि देखि मुनि मन मोहहीं ॥

Doha / दोहा

दो. जगदंबा जहँ अवतरी सो पुरु बरनि कि जाइ । रिद्धि सिद्धि संपत्ति सुख नित नूतन अधिकाइ ॥ ९४ ॥

Chaupai / चोपाई

नगर निकट बरात सुनि आई । पुर खरभरु सोभा अधिकाई ॥ करि बनाव सजि बाहन नाना । चले लेन सादर अगवाना ॥

हियँ हरषे सुर सेन निहारी । हरिहि देखि अति भए सुखारी ॥ सिव समाज जब देखन लागे । बिडरि चले बाहन सब भागे ॥

धरि धीरजु तहँ रहे सयाने । बालक सब लै जीव पराने ॥ गएँ भवन पूछहिं पितु माता । कहहिं बचन भय कंपित गाता ॥

कहिअ काह कहि जाइ न बाता । जम कर धार किधौं बरिआता ॥ बरु बौराह बसहँ असवारा । ब्याल कपाल बिभूषन छारा ॥

Chanda / छन्द

छं. तन छार ब्याल कपाल भूषन नगन जटिल भयंकरा । सँग भूत प्रेत पिसाच जोगिनि बिकट मुख रजनीचरा ॥ जो जिअत रहिहि बरात देखत पुन्य बड़ तेहि कर सही । देखिहि सो उमा बिबाहु घर घर बात असि लरिकन्ह कही ॥

Doha / दोहा

दो. समुझि महेस समाज सब जननि जनक मुसुकाहिं । बाल बुझाए बिबिध बिधि निडर होहु डरु नाहिं ॥ ९५ ॥

Chaupai / चोपाई

लै अगवान बरातहि आए । दिए सबहि जनवास सुहाए ॥ मैनाँ सुभ आरती सँवारी । संग सुमंगल गावहिं नारी ॥

कंचन थार सोह बर पानी । परिछन चली हरहि हरषानी ॥ बिकट बेष रुद्रहि जब देखा । अबलन्ह उर भय भयउ बिसेषा ॥

भागि भवन पैठीं अति त्रासा । गए महेसु जहाँ जनवासा ॥ मैना हृदयँ भयउ दुखु भारी । लीन्ही बोलि गिरीसकुमारी ॥

अधिक सनेहँ गोद बैठारी । स्याम सरोज नयन भरे बारी ॥ जेहिं बिधि तुम्हहि रूपु अस दीन्हा । तेहिं जड़ बरु बाउर कस कीन्हा ॥

Chanda / छन्द

छं. कस कीन्ह बरु बौराह बिधि जेहिं तुम्हहि सुंदरता दई । जो फलु चहिअ सुरतरुहिं सो बरबस बबूरहिं लागई ॥ तुम्ह सहित गिरि तें गिरौं पावक जरौं जलनिधि महुँ परौं ॥ घरु जाउ अपजसु होउ जग जीवत बिबाहु न हौं करौं ॥

Doha / दोहा

दो. भई बिकल अबला सकल दुखित देखि गिरिनारि । करि बिलापु रोदति बदति सुता सनेहु सँभारि ॥ ९६ ॥

Chaupai / चोपाई

नारद कर मैं काह बिगारा । भवनु मोर जिन्ह बसत उजारा ॥ अस उपदेसु उमहि जिन्ह दीन्हा । बौरे बरहि लगि तपु कीन्हा ॥

साचेहुँ उन्ह के मोह न माया । उदासीन धनु धामु न जाया ॥ पर घर घालक लाज न भीरा । बाझँ कि जान प्रसव कैं पीरा ॥

जननिहि बिकल बिलोकि भवानी । बोली जुत बिबेक मृदु बानी ॥ अस बिचारि सोचहि मति माता । सो न टरइ जो रचइ बिधाता ॥

करम लिखा जौ बाउर नाहू । तौ कत दोसु लगाइअ काहू ॥ तुम्ह सन मिटहिं कि बिधि के अंका । मातु ब्यर्थ जनि लेहु कलंका ॥

Chanda / छन्द

छं. जनि लेहु मातु कलंकु करुना परिहरहु अवसर नहीं । दुखु सुखु जो लिखा लिलार हमरें जाब जहँ पाउब तहीं ॥ सुनि उमा बचन बिनीत कोमल सकल अबला सोचहीं ॥ बहु भाँति बिधिहि लगाइ दूषन नयन बारि बिमोचहीं ॥

Doha / दोहा

दो. तेहि अवसर नारद सहित अरु रिषि सप्त समेत । समाचार सुनि तुहिनगिरि गवने तुरत निकेत ॥ ९७ ॥

Chaupai / चोपाई

तब नारद सबहि समुझावा । पूरुब कथाप्रसंगु सुनावा ॥ मयना सत्य सुनहु मम बानी । जगदंबा तव सुता भवानी ॥

अजा अनादि सक्ति अबिनासिनि । सदा संभु अरधंग निवासिनि ॥ जग संभव पालन लय कारिनि । निज इच्छा लीला बपु धारिनि ॥

जनमीं प्रथम दच्छ गृह जाई । नामु सती सुंदर तनु पाई ॥ तहँहुँ सती संकरहि बिबाहीं । कथा प्रसिद्ध सकल जग माहीं ॥

एक बार आवत सिव संगा । देखेउ रघुकुल कमल पतंगा ॥ भयउ मोहु सिव कहा न कीन्हा । भ्रम बस बेषु सीय कर लीन्हा ॥

Chanda / छन्द

छं. सिय बेषु सती जो कीन्ह तेहि अपराध संकर परिहरीं । हर बिरहँ जाइ बहोरि पितु कें जग्य जोगानल जरीं ॥ अब जनमि तुम्हरे भवन निज पति लागि दारुन तपु किया । अस जानि संसय तजहु गिरिजा सर्बदा संकर प्रिया ॥

Doha / दोहा

दो. सुनि नारद के बचन तब सब कर मिटा बिषाद । छन महुँ ब्यापेउ सकल पुर घर घर यह संबाद ॥ ९८ ॥

Chaupai / चोपाई

तब मयना हिमवंतु अनंदे । पुनि पुनि पारबती पद बंदे ॥ नारि पुरुष सिसु जुबा सयाने । नगर लोग सब अति हरषाने ॥

लगे होन पुर मंगलगाना । सजे सबहि हाटक घट नाना ॥ भाँति अनेक भई जेवराना । सूपसास्त्र जस कछु ब्यवहारा ॥

सो जेवनार कि जाइ बखानी । बसहिं भवन जेहिं मातु भवानी ॥ सादर बोले सकल बराती । बिष्नु बिरंचि देव सब जाती ॥

बिबिधि पाँति बैठी जेवनारा । लागे परुसन निपुन सुआरा ॥ नारिबृंद सुर जेवँत जानी । लगीं देन गारीं मृदु बानी ॥

Chanda / छन्द

छं. गारीं मधुर स्वर देहिं सुंदरि बिंग्य बचन सुनावहीं । भोजनु करहिं सुर अति बिलंबु बिनोदु सुनि सचु पावहीं ॥ जेवँत जो बढ़्यो अनंदु सो मुख कोटिहूँ न परै कह्यो । अचवाँइ दीन्हे पान गवने बास जहँ जाको रह्यो ॥

Doha / दोहा

दो. बहुरि मुनिन्ह हिमवंत कहुँ लगन सुनाई आइ । समय बिलोकि बिबाह कर पठए देव बोलाइ ॥ ९९ ॥

Chaupai / चोपाई

बोलि सकल सुर सादर लीन्हे । सबहि जथोचित आसन दीन्हे ॥ बेदी बेद बिधान सँवारी । सुभग सुमंगल गावहिं नारी ॥

सिंघासनु अति दिब्य सुहावा । जाइ न बरनि बिरंचि बनावा ॥ बैठे सिव बिप्रन्ह सिरु नाई । हृदयँ सुमिरि निज प्रभु रघुराई ॥

बहुरि मुनीसन्ह उमा बोलाई । करि सिंगारु सखीं लै आई ॥ देखत रूपु सकल सुर मोहे । बरनै छबि अस जग कबि को है ॥

जगदंबिका जानि भव भामा । सुरन्ह मनहिं मन कीन्ह प्रनामा ॥ सुंदरता मरजाद भवानी । जाइ न कोटिहुँ बदन बखानी ॥

Chanda / छन्द

छं. कोटिहुँ बदन नहिं बनै बरनत जग जननि सोभा महा । सकुचहिं कहत श्रुति सेष सारद मंदमति तुलसी कहा ॥ छबिखानि मातु भवानि गवनी मध्य मंडप सिव जहाँ ॥ अवलोकि सकहिं न सकुच पति पद कमल मनु मधुकरु तहाँ ॥

Doha / दोहा

दो. मुनि अनुसासन गनपतिहि पूजेउ संभु भवानि । कोउ सुनि संसय करै जनि सुर अनादि जियँ जानि ॥ १०० ॥

Chaupai / चोपाई

जसि बिबाह कै बिधि श्रुति गाई । महामुनिन्ह सो सब करवाई ॥ गहि गिरीस कुस कन्या पानी । भवहि समरपीं जानि भवानी ॥

पानिग्रहन जब कीन्ह महेसा । हिंयँ हरषे तब सकल सुरेसा ॥ बेद मंत्र मुनिबर उच्चरहीं । जय जय जय संकर सुर करहीं ॥

बाजहिं बाजन बिबिध बिधाना । सुमनबृष्टि नभ भै बिधि नाना ॥ हर गिरिजा कर भयउ बिबाहू । सकल भुवन भरि रहा उछाहू ॥

दासीं दास तुरग रथ नागा । धेनु बसन मनि बस्तु बिभागा ॥ अन्न कनकभाजन भरि जाना । दाइज दीन्ह न जाइ बखाना ॥

Chanda / छन्द

छं. दाइज दियो बहु भाँति पुनि कर जोरि हिमभूधर कह्यो । का देउँ पूरनकाम संकर चरन पंकज गहि रह्यो ॥ सिवँ कृपासागर ससुर कर संतोषु सब भाँतिहिं कियो । पुनि गहे पद पाथोज मयनाँ प्रेम परिपूरन हियो ॥

Doha / दोहा

दो. नाथ उमा मन प्रान सम गृहकिंकरी करेहु । छमेहु सकल अपराध अब होइ प्रसन्न बरु देहु ॥ १०१ ॥

Chaupai / चोपाई

बहु बिधि संभु सास समुझाई । गवनी भवन चरन सिरु नाई ॥ जननीं उमा बोलि तब लीन्ही । लै उछंग सुंदर सिख दीन्ही ॥

करेहु सदा संकर पद पूजा । नारिधरमु पति देउ न दूजा ॥ बचन कहत भरे लोचन बारी । बहुरि लाइ उर लीन्हि कुमारी ॥

कत बिधि सृजीं नारि जग माहीं । पराधीन सपनेहुँ सुखु नाहीं ॥ भै अति प्रेम बिकल महतारी । धीरजु कीन्ह कुसमय बिचारी ॥

पुनि पुनि मिलति परति गहि चरना । परम प्रेम कछु जाइ न बरना ॥ सब नारिन्ह मिलि भेटि भवानी । जाइ जननि उर पुनि लपटानी ॥

Chanda / छन्द

छं. जननिहि बहुरि मिलि चली उचित असीस सब काहूँ दईं । फिरि फिरि बिलोकति मातु तन तब सखीं लै सिव पहिं गई ॥ जाचक सकल संतोषि संकरु उमा सहित भवन चले । सब अमर हरषे सुमन बरषि निसान नभ बाजे भले ॥

Doha / दोहा

दो. चले संग हिमवंतु तब पहुँचावन अति हेतु । बिबिध भाँति परितोषु करि बिदा कीन्ह बृषकेतु ॥ १०२ ॥

Chaupai / चोपाई

तुरत भवन आए गिरिराई । सकल सैल सर लिए बोलाई ॥ आदर दान बिनय बहुमाना । सब कर बिदा कीन्ह हिमवाना ॥

जबहिं संभु कैलासहिं आए । सुर सब निज निज लोक सिधाए ॥ जगत मातु पितु संभु भवानी । तेही सिंगारु न कहउँ बखानी ॥

करहिं बिबिध बिधि भोग बिलासा । गनन्ह समेत बसहिं कैलासा ॥ हर गिरिजा बिहार नित नयऊ । एहि बिधि बिपुल काल चलि गयऊ ॥

तब जनमेउ षटबदन कुमारा । तारकु असुर समर जेहिं मारा ॥ आगम निगम प्रसिद्ध पुराना । षन्मुख जन्मु सकल जग जाना ॥

Chanda / छन्द

छं. जगु जान षन्मुख जन्मु कर्मु प्रतापु पुरुषारथु महा । तेहि हेतु मैं बृषकेतु सुत कर चरित संछेपहिं कहा ॥ यह उमा संगु बिबाहु जे नर नारि कहहिं जे गावहीं । कल्यान काज बिबाह मंगल सर्बदा सुखु पावहीं ॥

Doha / दोहा

दो. चरित सिंधु गिरिजा रमन बेद न पावहिं पारु । बरनै तुलसीदासु किमि अति मतिमंद गवाँरु ॥ १०३ ॥

Chaupai / चोपाई

संभु चरित सुनि सरस सुहावा । भरद्वाज मुनि अति सुख पावा ॥ बहु लालसा कथा पर बाढ़ी । नयनन्हि नीरु रोमावलि ठाढ़ी ॥

प्रेम बिबस मुख आव न बानी । दसा देखि हरषे मुनि ग्यानी ॥ अहो धन्य तव जन्मु मुनीसा । तुम्हहि प्रान सम प्रिय गौरीसा ॥

सिव पद कमल जिन्हहि रति नाहीं । रामहि ते सपनेहुँ न सोहाहीं ॥ बिनु छल बिस्वनाथ पद नेहू । राम भगत कर लच्छन एहू ॥

सिव सम को रघुपति ब्रतधारी । बिनु अघ तजी सती असि नारी ॥ पनु करि रघुपति भगति देखाई । को सिव सम रामहि प्रिय भाई ॥

Doha / दोहा

दो. प्रथमहिं मै कहि सिव चरित बूझा मरमु तुम्हार । सुचि सेवक तुम्ह राम के रहित समस्त बिकार ॥ १०४ ॥

Chaupai / चोपाई

मैं जाना तुम्हार गुन सीला । कहउँ सुनहु अब रघुपति लीला ॥ सुनु मुनि आजु समागम तोरें । कहि न जाइ जस सुखु मन मोरें ॥

राम चरित अति अमित मुनिसा । कहि न सकहिं सत कोटि अहीसा ॥ तदपि जथाश्रुत कहउँ बखानी । सुमिरि गिरापति प्रभु धनुपानी ॥

सारद दारुनारि सम स्वामी । रामु सूत्रधर अंतरजामी ॥ जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी । कबि उर अजिर नचावहिं बानी ॥

प्रनवउँ सोइ कृपाल रघुनाथा । बरनउँ बिसद तासु गुन गाथा ॥ परम रम्य गिरिबरु कैलासू । सदा जहाँ सिव उमा निवासू ॥

Doha / दोहा

दो. सिद्ध तपोधन जोगिजन सूर किंनर मुनिबृंद । बसहिं तहाँ सुकृती सकल सेवहिं सिब सुखकंद ॥ १०५ ॥

Chaupai / चोपाई

हरि हर बिमुख धर्म रति नाहीं । ते नर तहँ सपनेहुँ नहिं जाहीं ॥ तेहि गिरि पर बट बिटप बिसाला । नित नूतन सुंदर सब काला ॥

त्रिबिध समीर सुसीतलि छाया । सिव बिश्राम बिटप श्रुति गाया ॥ एक बार तेहि तर प्रभु गयऊ । तरु बिलोकि उर अति सुखु भयऊ ॥

निज कर डासि नागरिपु छाला । बैठै सहजहिं संभु कृपाला ॥ कुंद इंदु दर गौर सरीरा । भुज प्रलंब परिधन मुनिचीरा ॥

तरुन अरुन अंबुज सम चरना । नख दुति भगत हृदय तम हरना ॥ भुजग भूति भूषन त्रिपुरारी । आननु सरद चंद छबि हारी ॥

Doha / दोहा

दो. जटा मुकुट सुरसरित सिर लोचन नलिन बिसाल । नीलकंठ लावन्यनिधि सोह बालबिधु भाल ॥ १०६ ॥

Chaupai / चोपाई

बैठे सोह कामरिपु कैसें । धरें सरीरु सांतरसु जैसें ॥ पारबती भल अवसरु जानी । गई संभु पहिं मातु भवानी ॥

जानि प्रिया आदरु अति कीन्हा । बाम भाग आसनु हर दीन्हा ॥ बैठीं सिव समीप हरषाई । पूरुब जन्म कथा चित आई ॥

पति हियँ हेतु अधिक अनुमानी । बिहसि उमा बोलीं प्रिय बानी ॥ कथा जो सकल लोक हितकारी । सोइ पूछन चह सैलकुमारी ॥

बिस्वनाथ मम नाथ पुरारी । त्रिभुवन महिमा बिदित तुम्हारी ॥ चर अरु अचर नाग नर देवा । सकल करहिं पद पंकज सेवा ॥

Doha / दोहा

दो. प्रभु समरथ सर्बग्य सिव सकल कला गुन धाम ॥ जोग ग्यान बैराग्य निधि प्रनत कलपतरु नाम ॥ १०७ ॥

Chaupai / चोपाई

जौं मो पर प्रसन्न सुखरासी । जानिअ सत्य मोहि निज दासी ॥ तौं प्रभु हरहु मोर अग्याना । कहि रघुनाथ कथा बिधि नाना ॥

जासु भवनु सुरतरु तर होई । सहि कि दरिद्र जनित दुखु सोई ॥ ससिभूषन अस हृदयँ बिचारी । हरहु नाथ मम मति भ्रम भारी ॥

प्रभु जे मुनि परमारथबादी । कहहिं राम कहुँ ब्रह्म अनादी ॥ सेस सारदा बेद पुराना । सकल करहिं रघुपति गुन गाना ॥

तुम्ह पुनि राम राम दिन राती । सादर जपहु अनँग आराती ॥ रामु सो अवध नृपति सुत सोई । की अज अगुन अलखगति कोई ॥

Doha / दोहा

दो. जौं नृप तनय त ब्रह्म किमि नारि बिरहँ मति भोरि । देख चरित महिमा सुनत भ्रमति बुद्धि अति मोरि ॥ १०८ ॥

Chaupai / चोपाई

जौं अनीह ब्यापक बिभु कोऊ । कबहु बुझाइ नाथ मोहि सोऊ ॥ अग्य जानि रिस उर जनि धरहू । जेहि बिधि मोह मिटै सोइ करहू ॥

मै बन दीखि राम प्रभुताई । अति भय बिकल न तुम्हहि सुनाई ॥ तदपि मलिन मन बोधु न आवा । सो फलु भली भाँति हम पावा ॥

अजहूँ कछु संसउ मन मोरे । करहु कृपा बिनवउँ कर जोरें ॥ प्रभु तब मोहि बहु भाँति प्रबोधा । नाथ सो समुझि करहु जनि क्रोधा ॥

तब कर अस बिमोह अब नाहीं । रामकथा पर रुचि मन माहीं ॥ कहहु पुनीत राम गुन गाथा । भुजगराज भूषन सुरनाथा ॥

Doha / दोहा

दो. बंदउ पद धरि धरनि सिरु बिनय करउँ कर जोरि । बरनहु रघुबर बिसद जसु श्रुति सिद्धांत निचोरि ॥ १०९ ॥

Chaupai / चोपाई

जदपि जोषिता नहिं अधिकारी । दासी मन क्रम बचन तुम्हारी ॥ गूढ़उ तत्त्व न साधु दुरावहिं । आरत अधिकारी जहँ पावहिं ॥

अति आरति पूछउँ सुरराया । रघुपति कथा कहहु करि दाया ॥ प्रथम सो कारन कहहु बिचारी । निर्गुन ब्रह्म सगुन बपु धारी ॥

पुनि प्रभु कहहु राम अवतारा । बालचरित पुनि कहहु उदारा ॥ कहहु जथा जानकी बिबाहीं । राज तजा सो दूषन काहीं ॥

बन बसि कीन्हे चरित अपारा । कहहु नाथ जिमि रावन मारा ॥ राज बैठि कीन्हीं बहु लीला । सकल कहहु संकर सुखलीला ॥

Doha / दोहा

दो. बहुरि कहहु करुनायतन कीन्ह जो अचरज राम । प्रजा सहित रघुबंसमनि किमि गवने निज धाम ॥ ११० ॥

Chaupai / चोपाई

पुनि प्रभु कहहु सो तत्त्व बखानी । जेहिं बिग्यान मगन मुनि ग्यानी ॥ भगति ग्यान बिग्यान बिरागा । पुनि सब बरनहु सहित बिभागा ॥

औरउ राम रहस्य अनेका । कहहु नाथ अति बिमल बिबेका ॥ जो प्रभु मैं पूछा नहि होई । सोउ दयाल राखहु जनि गोई ॥

तुम्ह त्रिभुवन गुर बेद बखाना । आन जीव पाँवर का जाना ॥ प्रस्न उमा कै सहज सुहाई । छल बिहीन सुनि सिव मन भाई ॥

हर हियँ रामचरित सब आए । प्रेम पुलक लोचन जल छाए ॥ श्रीरघुनाथ रूप उर आवा । परमानंद अमित सुख पावा ॥

Doha / दोहा

दो. मगन ध्यानरस दंड जुग पुनि मन बाहेर कीन्ह । रघुपति चरित महेस तब हरषित बरनै लीन्ह ॥ १११ ॥

Chaupai / चोपाई

झूठेउ सत्य जाहि बिनु जानें । जिमि भुजंग बिनु रजु पहिचानें ॥ जेहि जानें जग जाइ हेराई । जागें जथा सपन भ्रम जाई ॥

बंदउँ बालरूप सोई रामू । सब सिधि सुलभ जपत जिसु नामू ॥ मंगल भवन अमंगल हारी । द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी ॥

करि प्रनाम रामहि त्रिपुरारी । हरषि सुधा सम गिरा उचारी ॥ धन्य धन्य गिरिराजकुमारी । तुम्ह समान नहिं कोउ उपकारी ॥

पूँछेहु रघुपति कथा प्रसंगा । सकल लोक जग पावनि गंगा ॥ तुम्ह रघुबीर चरन अनुरागी । कीन्हहु प्रस्न जगत हित लागी ॥

Doha / दोहा

दो. रामकृपा तें पारबति सपनेहुँ तव मन माहिं । सोक मोह संदेह भ्रम मम बिचार कछु नाहिं ॥ ११२ ॥

Chaupai / चोपाई

तदपि असंका कीन्हिहु सोई । कहत सुनत सब कर हित होई ॥ जिन्ह हरि कथा सुनी नहिं काना । श्रवन रंध्र अहिभवन समाना ॥

नयनन्हि संत दरस नहिं देखा । लोचन मोरपंख कर लेखा ॥ ते सिर कटु तुंबरि समतूला । जे न नमत हरि गुर पद मूला ॥

जिन्ह हरिभगति हृदयँ नहिं आनी । जीवत सव समान तेइ प्रानी ॥ जो नहिं करइ राम गुन गाना । जीह सो दादुर जीह समाना ॥

कुलिस कठोर निठुर सोइ छाती । सुनि हरिचरित न जो हरषाती ॥ गिरिजा सुनहु राम कै लीला । सुर हित दनुज बिमोहनसीला ॥

Doha / दोहा

दो. रामकथा सुरधेनु सम सेवत सब सुख दानि । सतसमाज सुरलोक सब को न सुनै अस जानि ॥ ११३ ॥

Chaupai / चोपाई

रामकथा सुंदर कर तारी । संसय बिहग उडावनिहारी ॥ रामकथा कलि बिटप कुठारी । सादर सुनु गिरिराजकुमारी ॥

राम नाम गुन चरित सुहाए । जनम करम अगनित श्रुति गाए ॥ जथा अनंत राम भगवाना । तथा कथा कीरति गुन नाना ॥

तदपि जथा श्रुत जसि मति मोरी । कहिहउँ देखि प्रीति अति तोरी ॥ उमा प्रस्न तव सहज सुहाई । सुखद संतसंमत मोहि भाई ॥

एक बात नहि मोहि सोहानी । जदपि मोह बस कहेहु भवानी ॥ तुम जो कहा राम कोउ आना । जेहि श्रुति गाव धरहिं मुनि ध्याना ॥

Doha / दोहा

दो. कहहि सुनहि अस अधम नर ग्रसे जे मोह पिसाच । पाषंडी हरि पद बिमुख जानहिं झूठ न साच ॥ ११४ ॥

Chaupai / चोपाई

अग्य अकोबिद अंध अभागी । काई बिषय मुकर मन लागी ॥ लंपट कपटी कुटिल बिसेषी । सपनेहुँ संतसभा नहिं देखी ॥

कहहिं ते बेद असंमत बानी । जिन्ह कें सूझ लाभु नहिं हानी ॥ मुकर मलिन अरु नयन बिहीना । राम रूप देखहिं किमि दीना ॥

जिन्ह कें अगुन न सगुन बिबेका । जल्पहिं कल्पित बचन अनेका ॥ हरिमाया बस जगत भ्रमाहीं । तिन्हहि कहत कछु अघटित नाहीं ॥

बातुल भूत बिबस मतवारे । ते नहिं बोलहिं बचन बिचारे ॥ जिन्ह कृत महामोह मद पाना । तिन् कर कहा करिअ नहिं काना ॥

Doha / दोहा

सो. अस निज हृदयँ बिचारि तजु संसय भजु राम पद । सुनु गिरिराज कुमारि भ्रम तम रबि कर बचन मम ॥ ११५ ॥

Chaupai / चोपाई

सगुनहि अगुनहि नहिं कछु भेदा । गावहिं मुनि पुरान बुध बेदा ॥ अगुन अरुप अलख अज जोई । भगत प्रेम बस सगुन सो होई ॥

जो गुन रहित सगुन सोइ कैसें । जलु हिम उपल बिलग नहिं जैसें ॥ जासु नाम भ्रम तिमिर पतंगा । तेहि किमि कहिअ बिमोह प्रसंगा ॥

राम सच्चिदानंद दिनेसा । नहिं तहँ मोह निसा लवलेसा ॥ सहज प्रकासरुप भगवाना । नहिं तहँ पुनि बिग्यान बिहाना ॥

हरष बिषाद ग्यान अग्याना । जीव धर्म अहमिति अभिमाना ॥ राम ब्रह्म ब्यापक जग जाना । परमानन्द परेस पुराना ॥

Doha / दोहा

दो. पुरुष प्रसिद्ध प्रकास निधि प्रगट परावर नाथ ॥ रघुकुलमनि मम स्वामि सोइ कहि सिवँ नायउ माथ ॥ ११६ ॥

Chaupai / चोपाई

निज भ्रम नहिं समुझहिं अग्यानी । प्रभु पर मोह धरहिं जड़ प्रानी ॥ जथा गगन घन पटल निहारी । झाँपेउ मानु कहहिं कुबिचारी ॥

चितव जो लोचन अंगुलि लाएँ । प्रगट जुगल ससि तेहि के भाएँ ॥ उमा राम बिषइक अस मोहा । नभ तम धूम धूरि जिमि सोहा ॥

बिषय करन सुर जीव समेता । सकल एक तें एक सचेता ॥ सब कर परम प्रकासक जोई । राम अनादि अवधपति सोई ॥

जगत प्रकास्य प्रकासक रामू । मायाधीस ग्यान गुन धामू ॥ जासु सत्यता तें जड माया । भास सत्य इव मोह सहाया ॥

Doha / दोहा

दो. रजत सीप महुँ मास जिमि जथा भानु कर बारि । जदपि मृषा तिहुँ काल सोइ भ्रम न सकइ कोउ टारि ॥ ११७ ॥

Chaupai / चोपाई

एहि बिधि जग हरि आश्रित रहई । जदपि असत्य देत दुख अहई ॥ जौं सपनें सिर काटै कोई । बिनु जागें न दूरि दुख होई ॥

जासु कृपाँ अस भ्रम मिटि जाई । गिरिजा सोइ कृपाल रघुराई ॥ आदि अंत कोउ जासु न पावा । मति अनुमानि निगम अस गावा ॥

बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना । कर बिनु करम करइ बिधि नाना ॥ आनन रहित सकल रस भोगी । बिनु बानी बकता बड़ जोगी ॥

तनु बिनु परस नयन बिनु देखा । ग्रहइ घ्रान बिनु बास असेषा ॥ असि सब भाँति अलौकिक करनी । महिमा जासु जाइ नहिं बरनी ॥

Doha / दोहा

दो. जेहि इमि गावहि बेद बुध जाहि धरहिं मुनि ध्यान ॥ सोइ दसरथ सुत भगत हित कोसलपति भगवान ॥ ११८ ॥

Chaupai / चोपाई

कासीं मरत जंतु अवलोकी । जासु नाम बल करउँ बिसोकी ॥ सोइ प्रभु मोर चराचर स्वामी । रघुबर सब उर अंतरजामी ॥

बिबसहुँ जासु नाम नर कहहीं । जनम अनेक रचित अघ दहहीं ॥ सादर सुमिरन जे नर करहीं । भव बारिधि गोपद इव तरहीं ॥

राम सो परमातमा भवानी । तहँ भ्रम अति अबिहित तव बानी ॥ अस संसय आनत उर माहीं । ग्यान बिराग सकल गुन जाहीं ॥

सुनि सिव के भ्रम भंजन बचना । मिटि गै सब कुतरक कै रचना ॥ भइ रघुपति पद प्रीति प्रतीती । दारुन असंभावना बीती ॥

Doha / दोहा

दो. पुनि पुनि प्रभु पद कमल गहि जोरि पंकरुह पानि । बोली गिरिजा बचन बर मनहुँ प्रेम रस सानि ॥ ११९ ॥

Chaupai / चोपाई

ससि कर सम सुनि गिरा तुम्हारी । मिटा मोह सरदातप भारी ॥ तुम्ह कृपाल सबु संसउ हरेऊ । राम स्वरुप जानि मोहि परेऊ ॥

नाथ कृपाँ अब गयउ बिषादा । सुखी भयउँ प्रभु चरन प्रसादा ॥ अब मोहि आपनि किंकरि जानी । जदपि सहज जड नारि अयानी ॥

प्रथम जो मैं पूछा सोइ कहहू । जौं मो पर प्रसन्न प्रभु अहहू ॥ राम ब्रह्म चिनमय अबिनासी । सर्ब रहित सब उर पुर बासी ॥

नाथ धरेउ नरतनु केहि हेतू । मोहि समुझाइ कहहु बृषकेतू ॥ उमा बचन सुनि परम बिनीता । रामकथा पर प्रीति पुनीता ॥

Doha / दोहा

दो. हिँयँ हरषे कामारि तब संकर सहज सुजान बहु बिधि उमहि प्रसंसि पुनि बोले कृपानिधान ॥ १२०(क) ॥

Masaparayana 4 Ends

namo namaḥ!

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