Ram Charita Manas

Masaparayan 6

ॐ श्री परमात्मने नमः

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संस्कृत्म
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Chaupai / चोपाई

सुनु मुनि कथा पुनीत पुरानी । जो गिरिजा प्रति संभु बखानी ॥ बिस्व बिदित एक कैकय देसू । सत्यकेतु तहँ बसइ नरेसू ॥

धरम धुरंधर नीति निधाना । तेज प्रताप सील बलवाना ॥ तेहि कें भए जुगल सुत बीरा । सब गुन धाम महा रनधीरा ॥

राज धनी जो जेठ सुत आही । नाम प्रतापभानु अस ताही ॥ अपर सुतहि अरिमर्दन नामा । भुजबल अतुल अचल संग्रामा ॥

भाइहि भाइहि परम समीती । सकल दोष छल बरजित प्रीती ॥ जेठे सुतहि राज नृप दीन्हा । हरि हित आपु गवन बन कीन्हा ॥

Doha / दोहा

दो. जब प्रतापरबि भयउ नृप फिरी दोहाई देस । प्रजा पाल अति बेदबिधि कतहुँ नहीं अघ लेस ॥ १५३ ॥

Chaupai / चोपाई

नृप हितकारक सचिव सयाना । नाम धरमरुचि सुक्र समाना ॥ सचिव सयान बंधु बलबीरा । आपु प्रतापपुंज रनधीरा ॥

सेन संग चतुरंग अपारा । अमित सुभट सब समर जुझारा ॥ सेन बिलोकि राउ हरषाना । अरु बाजे गहगहे निसाना ॥

बिजय हेतु कटकई बनाई । सुदिन साधि नृप चलेउ बजाई ॥ जँह तहँ परीं अनेक लराईं । जीते सकल भूप बरिआई ॥

सप्त दीप भुजबल बस कीन्हे । लै लै दंड छाड़ि नृप दीन्हें ॥ सकल अवनि मंडल तेहि काला । एक प्रतापभानु महिपाला ॥

Doha / दोहा

दो. स्वबस बिस्व करि बाहुबल निज पुर कीन्ह प्रबेसु । अरथ धरम कामादि सुख सेवइ समयँ नरेसु ॥ १५४ ॥

Chaupai / चोपाई

भूप प्रतापभानु बल पाई । कामधेनु भै भूमि सुहाई ॥ सब दुख बरजित प्रजा सुखारी । धरमसील सुंदर नर नारी ॥

सचिव धरमरुचि हरि पद प्रीती । नृप हित हेतु सिखव नित नीती ॥ गुर सुर संत पितर महिदेवा । करइ सदा नृप सब कै सेवा ॥

भूप धरम जे बेद बखाने । सकल करइ सादर सुख माने ॥ दिन प्रति देह बिबिध बिधि दाना । सुनहु सास्त्र बर बेद पुराना ॥

नाना बापीं कूप तड़ागा । सुमन बाटिका सुंदर बागा ॥ बिप्रभवन सुरभवन सुहाए । सब तीरथन्ह बिचित्र बनाए ॥

Doha / दोहा

दो. जँह लगि कहे पुरान श्रुति एक एक सब जाग । बार सहस्र सहस्र नृप किए सहित अनुराग ॥ १५५ ॥

Chaupai / चोपाई

हृदयँ न कछु फल अनुसंधाना । भूप बिबेकी परम सुजाना ॥ करइ जे धरम करम मन बानी । बासुदेव अर्पित नृप ग्यानी ॥

चढ़ि बर बाजि बार एक राजा । मृगया कर सब साजि समाजा ॥ बिंध्याचल गभीर बन गयऊ । मृग पुनीत बहु मारत भयऊ ॥

फिरत बिपिन नृप दीख बराहू । जनु बन दुरेउ ससिहि ग्रसि राहू ॥ बड़ बिधु नहि समात मुख माहीं । मनहुँ क्रोधबस उगिलत नाहीं ॥

कोल कराल दसन छबि गाई । तनु बिसाल पीवर अधिकाई ॥ घुरुघुरात हय आरौ पाएँ । चकित बिलोकत कान उठाएँ ॥

Doha / दोहा

दो. नील महीधर सिखर सम देखि बिसाल बराहु । चपरि चलेउ हय सुटुकि नृप हाँकि न होइ निबाहु ॥ १५६ ॥

Chaupai / चोपाई

आवत देखि अधिक रव बाजी । चलेउ बराह मरुत गति भाजी ॥ तुरत कीन्ह नृप सर संधाना । महि मिलि गयउ बिलोकत बाना ॥

तकि तकि तीर महीस चलावा । करि छल सुअर सरीर बचावा ॥ प्रगटत दुरत जाइ मृग भागा । रिस बस भूप चलेउ संग लागा ॥

गयउ दूरि घन गहन बराहू । जहँ नाहिन गज बाजि निबाहू ॥ अति अकेल बन बिपुल कलेसू । तदपि न मृग मग तजइ नरेसू ॥

कोल बिलोकि भूप बड़ धीरा । भागि पैठ गिरिगुहाँ गभीरा ॥ अगम देखि नृप अति पछिताई । फिरेउ महाबन परेउ भुलाई ॥

Doha / दोहा

दो. खेद खिन्न छुद्धित तृषित राजा बाजि समेत । खोजत ब्याकुल सरित सर जल बिनु भयउ अचेत ॥ १५७ ॥

Chaupai / चोपाई

फिरत बिपिन आश्रम एक देखा । तहँ बस नृपति कपट मुनिबेषा ॥ जासु देस नृप लीन्ह छड़ाई । समर सेन तजि गयउ पराई ॥

समय प्रतापभानु कर जानी । आपन अति असमय अनुमानी ॥ गयउ न गृह मन बहुत गलानी । मिला न राजहि नृप अभिमानी ॥

रिस उर मारि रंक जिमि राजा । बिपिन बसइ तापस कें साजा ॥ तासु समीप गवन नृप कीन्हा । यह प्रतापरबि तेहि तब चीन्हा ॥

राउ तृषित नहि सो पहिचाना । देखि सुबेष महामुनि जाना ॥ उतरि तुरग तें कीन्ह प्रनामा । परम चतुर न कहेउ निज नामा ॥

Doha / दोहा

दो० भूपति तृषित बिलोकि तेहिं सरबरु दीन्ह देखाइ । मज्जन पान समेत हय कीन्ह नृपति हरषाइ ॥ १५८ ॥

Chaupai / चोपाई

गै श्रम सकल सुखी नृप भयऊ । निज आश्रम तापस लै गयऊ ॥ आसन दीन्ह अस्त रबि जानी । पुनि तापस बोलेउ मृदु बानी ॥

को तुम्ह कस बन फिरहु अकेलें । सुंदर जुबा जीव परहेलें ॥ चक्रबर्ति के लच्छन तोरें । देखत दया लागि अति मोरें ॥

नाम प्रतापभानु अवनीसा । तासु सचिव मैं सुनहु मुनीसा ॥ फिरत अहेरें परेउँ भुलाई । बडे भाग देखउँ पद आई ॥

हम कहँ दुर्लभ दरस तुम्हारा । जानत हौं कछु भल होनिहारा ॥ कह मुनि तात भयउ अँधियारा । जोजन सत्तरि नगरु तुम्हारा ॥

Doha / दोहा

दो. निसा घोर गम्भीर बन पंथ न सुनहु सुजान । बसहु आजु अस जानि तुम्ह जाएहु होत बिहान ॥ १५९(क) ॥

तुलसी जसि भवतब्यता तैसी मिलइ सहाइ । आपुनु आवइ ताहि पहिं ताहि तहाँ लै जाइ ॥ १५९(ख) ॥

Chaupai / चोपाई

भलेहिं नाथ आयसु धरि सीसा । बाँधि तुरग तरु बैठ महीसा ॥ नृप बहु भाति प्रसंसेउ ताही । चरन बंदि निज भाग्य सराही ॥

पुनि बोले मृदु गिरा सुहाई । जानि पिता प्रभु करउँ ढिठाई ॥ मोहि मुनिस सुत सेवक जानी । नाथ नाम निज कहहु बखानी ॥

तेहि न जान नृप नृपहि सो जाना । भूप सुह्रद सो कपट सयाना ॥ बैरी पुनि छत्री पुनि राजा । छल बल कीन्ह चहइ निज काजा ॥

समुझि राजसुख दुखित अराती । अवाँ अनल इव सुलगइ छाती ॥ सरल बचन नृप के सुनि काना । बयर सँभारि हृदयँ हरषाना ॥

Doha / दोहा

दो. कपट बोरि बानी मृदुल बोलेउ जुगुति समेत । नाम हमार भिखारि अब निर्धन रहित निकेति ॥ १६० ॥

Chaupai / चोपाई

कह नृप जे बिग्यान निधाना । तुम्ह सारिखे गलित अभिमाना ॥ सदा रहहि अपनपौ दुराएँ । सब बिधि कुसल कुबेष बनाएँ ॥

तेहि तें कहहि संत श्रुति टेरें । परम अकिंचन प्रिय हरि केरें ॥ तुम्ह सम अधन भिखारि अगेहा । होत बिरंचि सिवहि संदेहा ॥

जोसि सोसि तव चरन नमामी । मो पर कृपा करिअ अब स्वामी ॥ सहज प्रीति भूपति कै देखी । आपु बिषय बिस्वास बिसेषी ॥

सब प्रकार राजहि अपनाई । बोलेउ अधिक सनेह जनाई ॥ सुनु सतिभाउ कहउँ महिपाला । इहाँ बसत बीते बहु काला ॥

Doha / दोहा

दो. अब लगि मोहि न मिलेउ कोउ मैं न जनावउँ काहु । लोकमान्यता अनल सम कर तप कानन दाहु ॥ १६१(क) ॥

Chaupai / चोपाई

सो. तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर । सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि ॥ १६१(ख)

तातें गुपुत रहउँ जग माहीं । हरि तजि किमपि प्रयोजन नाहीं ॥ प्रभु जानत सब बिनहिं जनाएँ । कहहु कवनि सिधि लोक रिझाएँ ॥

तुम्ह सुचि सुमति परम प्रिय मोरें । प्रीति प्रतीति मोहि पर तोरें ॥ अब जौं तात दुरावउँ तोही । दारुन दोष घटइ अति मोही ॥

जिमि जिमि तापसु कथइ उदासा । तिमि तिमि नृपहि उपज बिस्वासा ॥ देखा स्वबस कर्म मन बानी । तब बोला तापस बगध्यानी ॥

नाम हमार एकतनु भाई । सुनि नृप बोले पुनि सिरु नाई ॥ कहहु नाम कर अरथ बखानी । मोहि सेवक अति आपन जानी ॥

Doha / दोहा

दो. आदिसृष्टि उपजी जबहिं तब उतपति भै मोरि । नाम एकतनु हेतु तेहि देह न धरी बहोरि ॥ १६२ ॥

Chaupai / चोपाई

जनि आचरुज करहु मन माहीं । सुत तप तें दुर्लभ कछु नाहीं ॥ तपबल तें जग सृजइ बिधाता । तपबल बिष्नु भए परित्राता ॥

तपबल संभु करहिं संघारा । तप तें अगम न कछु संसारा ॥ भयउ नृपहि सुनि अति अनुरागा । कथा पुरातन कहै सो लागा ॥

करम धरम इतिहास अनेका । करइ निरूपन बिरति बिबेका ॥ उदभव पालन प्रलय कहानी । कहेसि अमित आचरज बखानी ॥

सुनि महिप तापस बस भयऊ । आपन नाम कहत तब लयऊ ॥ कह तापस नृप जानउँ तोही । कीन्हेहु कपट लाग भल मोही ॥

Sortha/ सोरठा

सो. सुनु महीस असि नीति जहँ तहँ नाम न कहहिं नृप । मोहि तोहि पर अति प्रीति सोइ चतुरता बिचारि तव ॥ १६३ ॥

Chaupai / चोपाई

नाम तुम्हार प्रताप दिनेसा । सत्यकेतु तव पिता नरेसा ॥ गुर प्रसाद सब जानिअ राजा । कहिअ न आपन जानि अकाजा ॥

देखि तात तव सहज सुधाई । प्रीति प्रतीति नीति निपुनाई ॥ उपजि परि ममता मन मोरें । कहउँ कथा निज पूछे तोरें ॥

अब प्रसन्न मैं संसय नाहीं । मागु जो भूप भाव मन माहीं ॥ सुनि सुबचन भूपति हरषाना । गहि पद बिनय कीन्हि बिधि नाना ॥

कृपासिंधु मुनि दरसन तोरें । चारि पदारथ करतल मोरें ॥ प्रभुहि तथापि प्रसन्न बिलोकी । मागि अगम बर होउँ असोकी ॥

Doha / दोहा

दो. जरा मरन दुख रहित तनु समर जितै जनि कोउ । एकछत्र रिपुहीन महि राज कलप सत होउ ॥ १६४ ॥

Chaupai / चोपाई

कह तापस नृप ऐसेइ होऊ । कारन एक कठिन सुनु सोऊ ॥ कालउ तुअ पद नाइहि सीसा । एक बिप्रकुल छाड़ि महीसा ॥

तपबल बिप्र सदा बरिआरा । तिन्ह के कोप न कोउ रखवारा ॥ जौं बिप्रन्ह सब करहु नरेसा । तौ तुअ बस बिधि बिष्नु महेसा ॥

चल न ब्रह्मकुल सन बरिआई । सत्य कहउँ दोउ भुजा उठाई ॥ बिप्र श्राप बिनु सुनु महिपाला । तोर नास नहि कवनेहुँ काला ॥

हरषेउ राउ बचन सुनि तासू । नाथ न होइ मोर अब नासू ॥ तव प्रसाद प्रभु कृपानिधाना । मो कहुँ सर्ब काल कल्याना ॥

Doha / दोहा

दो. एवमस्तु कहि कपटमुनि बोला कुटिल बहोरि । मिलब हमार भुलाब निज कहहु त हमहि न खोरि ॥ १६५ ॥

Chaupai / चोपाई

तातें मै तोहि बरजउँ राजा । कहें कथा तव परम अकाजा ॥ छठें श्रवन यह परत कहानी । नास तुम्हार सत्य मम बानी ॥

यह प्रगटें अथवा द्विजश्रापा । नास तोर सुनु भानुप्रतापा ॥ आन उपायँ निधन तव नाहीं । जौं हरि हर कोपहिं मन माहीं ॥

सत्य नाथ पद गहि नृप भाषा । द्विज गुर कोप कहहु को राखा ॥ राखइ गुर जौं कोप बिधाता । गुर बिरोध नहिं कोउ जग त्राता ॥

जौं न चलब हम कहे तुम्हारें । होउ नास नहिं सोच हमारें ॥ एकहिं डर डरपत मन मोरा । प्रभु महिदेव श्राप अति घोरा ॥

Doha / दोहा

दो. होहिं बिप्र बस कवन बिधि कहहु कृपा करि सोउ । तुम्ह तजि दीनदयाल निज हितू न देखउँ कोउँ ॥ १६६ ॥

Chaupai / चोपाई

सुनु नृप बिबिध जतन जग माहीं । कष्टसाध्य पुनि होहिं कि नाहीं ॥ अहइ एक अति सुगम उपाई । तहाँ परंतु एक कठिनाई ॥

मम आधीन जुगुति नृप सोई । मोर जाब तव नगर न होई ॥ आजु लगें अरु जब तें भयऊँ । काहू के गृह ग्राम न गयऊँ ॥

जौं न जाउँ तव होइ अकाजू । बना आइ असमंजस आजू ॥ सुनि महीस बोलेउ मृदु बानी । नाथ निगम असि नीति बखानी ॥

बड़े सनेह लघुन्ह पर करहीं । गिरि निज सिरनि सदा तृन धरहीं ॥ जलधि अगाध मौलि बह फेनू । संतत धरनि धरत सिर रेनू ॥

Doha / दोहा

दो. अस कहि गहे नरेस पद स्वामी होहु कृपाल । मोहि लागि दुख सहिअ प्रभु सज्जन दीनदयाल ॥ १६७ ॥

Chaupai / चोपाई

जानि नृपहि आपन आधीना । बोला तापस कपट प्रबीना ॥ सत्य कहउँ भूपति सुनु तोही । जग नाहिन दुर्लभ कछु मोही ॥

अवसि काज मैं करिहउँ तोरा । मन तन बचन भगत तैं मोरा ॥ जोग जुगुति तप मंत्र प्रभाऊ । फलइ तबहिं जब करिअ दुराऊ ॥

जौं नरेस मैं करौं रसोई । तुम्ह परुसहु मोहि जान न कोई ॥ अन्न सो जोइ जोइ भोजन करई । सोइ सोइ तव आयसु अनुसरई ॥

पुनि तिन्ह के गृह जेवँइ जोऊ । तव बस होइ भूप सुनु सोऊ ॥ जाइ उपाय रचहु नृप एहू । संबत भरि संकलप करेहू ॥

Doha / दोहा

दो. नित नूतन द्विज सहस सत बरेहु सहित परिवार । मैं तुम्हरे संकलप लगि दिनहिं󫡲इब जेवनार ॥ १६८ ॥

Chaupai / चोपाई

एहि बिधि भूप कष्ट अति थोरें । होइहहिं सकल बिप्र बस तोरें ॥ करिहहिं बिप्र होम मख सेवा । तेहिं प्रसंग सहजेहिं बस देवा ॥

और एक तोहि कहऊँ लखाऊ । मैं एहि बेष न आउब काऊ ॥ तुम्हरे उपरोहित कहुँ राया । हरि आनब मैं करि निज माया ॥

तपबल तेहि करि आपु समाना । रखिहउँ इहाँ बरष परवाना ॥ मैं धरि तासु बेषु सुनु राजा । सब बिधि तोर सँवारब काजा ॥

गै निसि बहुत सयन अब कीजे । मोहि तोहि भूप भेंट दिन तीजे ॥ मैं तपबल तोहि तुरग समेता । पहुँचेहउँ सोवतहि निकेता ॥

Doha / दोहा

दो. मैं आउब सोइ बेषु धरि पहिचानेहु तब मोहि । जब एकांत बोलाइ सब कथा सुनावौं तोहि ॥ १६९ ॥

Chaupai / चोपाई

सयन कीन्ह नृप आयसु मानी । आसन जाइ बैठ छलग्यानी ॥ श्रमित भूप निद्रा अति आई । सो किमि सोव सोच अधिकाई ॥

कालकेतु निसिचर तहँ आवा । जेहिं सूकर होइ नृपहि भुलावा ॥ परम मित्र तापस नृप केरा । जानइ सो अति कपट घनेरा ॥

तेहि के सत सुत अरु दस भाई । खल अति अजय देव दुखदाई ॥ प्रथमहि भूप समर सब मारे । बिप्र संत सुर देखि दुखारे ॥

तेहिं खल पाछिल बयरु सँभरा । तापस नृप मिलि मंत्र बिचारा ॥ जेहि रिपु छय सोइ रचेन्हि उपाऊ । भावी बस न जान कछु राऊ ॥

Doha / दोहा

दो. रिपु तेजसी अकेल अपि लघु करि गनिअ न ताहु । अजहुँ देत दुख रबि ससिहि सिर अवसेषित राहु ॥ १७० ॥

Chaupai / चोपाई

तापस नृप निज सखहि निहारी । हरषि मिलेउ उठि भयउ सुखारी ॥ मित्रहि कहि सब कथा सुनाई । जातुधान बोला सुख पाई ॥

अब साधेउँ रिपु सुनहु नरेसा । जौं तुम्ह कीन्ह मोर उपदेसा ॥ परिहरि सोच रहहु तुम्ह सोई । बिनु औषध बिआधि बिधि खोई ॥

कुल समेत रिपु मूल बहाई । चौथे दिवस मिलब मैं आई ॥ तापस नृपहि बहुत परितोषी । चला महाकपटी अतिरोषी ॥

भानुप्रतापहि बाजि समेता । पहुँचाएसि छन माझ निकेता ॥ नृपहि नारि पहिं सयन कराई । हयगृहँ बाँधेसि बाजि बनाई ॥

Doha / दोहा

दो. राजा के उपरोहितहि हरि लै गयउ बहोरि । लै राखेसि गिरि खोह महुँ मायाँ करि मति भोरि ॥ १७१ ॥

Chaupai / चोपाई

आपु बिरचि उपरोहित रूपा । परेउ जाइ तेहि सेज अनूपा ॥ जागेउ नृप अनभएँ बिहाना । देखि भवन अति अचरजु माना ॥

मुनि महिमा मन महुँ अनुमानी । उठेउ गवँहि जेहि जान न रानी ॥ कानन गयउ बाजि चढ़ि तेहीं । पुर नर नारि न जानेउ केहीं ॥

गएँ जाम जुग भूपति आवा । घर घर उत्सव बाज बधावा ॥ उपरोहितहि देख जब राजा । चकित बिलोकि सुमिरि सोइ काजा ॥

जुग सम नृपहि गए दिन तीनी । कपटी मुनि पद रह मति लीनी ॥ समय जानि उपरोहित आवा । नृपहि मते सब कहि समुझावा ॥

Doha / दोहा

दो. नृप हरषेउ पहिचानि गुरु भ्रम बस रहा न चेत । बरे तुरत सत सहस बर बिप्र कुटुंब समेत ॥ १७२ ॥

Chaupai / चोपाई

उपरोहित जेवनार बनाई । छरस चारि बिधि जसि श्रुति गाई ॥ मायामय तेहिं कीन्ह रसोई । बिंजन बहु गनि सकइ न कोई ॥

बिबिध मृगन्ह कर आमिष राँधा । तेहि महुँ बिप्र माँसु खल साँधा ॥ भोजन कहुँ सब बिप्र बोलाए । पद पखारि सादर बैठाए ॥

परुसन जबहिं लाग महिपाला । भै अकासबानी तेहि काला ॥ बिप्रबृंद उठि उठि गृह जाहू । है बड़ि हानि अन्न जनि खाहू ॥

भयउ रसोईं भूसुर माँसू । सब द्विज उठे मानि बिस्वासू ॥ भूप बिकल मति मोहँ भुलानी । भावी बस आव मुख बानी ॥

Doha / दोहा

दो. बोले बिप्र सकोप तब नहिं कछु कीन्ह बिचार । जाइ निसाचर होहु नृप मूढ़ सहित परिवार ॥ १७३ ॥

Chaupai / चोपाई

छत्रबंधु तैं बिप्र बोलाई । घालै लिए सहित समुदाई ॥ ईस्वर राखा धरम हमारा । जैहसि तैं समेत परिवारा ॥

संबत मध्य नास तव होऊ । जलदाता न रहिहि कुल कोऊ ॥ नृप सुनि श्राप बिकल अति त्रासा । भै बहोरि बर गिरा अकासा ॥

बिप्रहु श्राप बिचारि न दीन्हा । नहिं अपराध भूप कछु कीन्हा ॥ चकित बिप्र सब सुनि नभबानी । भूप गयउ जहँ भोजन खानी ॥

तहँ न असन नहिं बिप्र सुआरा । फिरेउ राउ मन सोच अपारा ॥ सब प्रसंग महिसुरन्ह सुनाई । त्रसित परेउ अवनीं अकुलाई ॥

Doha / दोहा

दो. भूपति भावी मिटइ नहिं जदपि न दूषन तोर । किएँ अन्यथा होइ नहिं बिप्रश्राप अति घोर ॥ १७४ ॥

Chaupai / चोपाई

अस कहि सब महिदेव सिधाए । समाचार पुरलोगन्ह पाए ॥ सोचहिं दूषन दैवहि देहीं । बिचरत हंस काग किय जेहीं ॥

उपरोहितहि भवन पहुँचाई । असुर तापसहि खबरि जनाई ॥ तेहिं खल जहँ तहँ पत्र पठाए । सजि सजि सेन भूप सब धाए ॥

घेरेन्हि नगर निसान बजाई । बिबिध भाँति नित होई लराई ॥ जूझे सकल सुभट करि करनी । बंधु समेत परेउ नृप धरनी ॥

सत्यकेतु कुल कोउ नहिं बाँचा । बिप्रश्राप किमि होइ असाँचा ॥ रिपु जिति सब नृप नगर बसाई । निज पुर गवने जय जसु पाई ॥

Doha / दोहा

दो. भरद्वाज सुनु जाहि जब होइ बिधाता बाम । धूरि मेरुसम जनक जम ताहि ब्यालसम दाम ॥ । १७५ ॥

Chaupai / चोपाई

काल पाइ मुनि सुनु सोइ राजा । भयउ निसाचर सहित समाजा ॥ दस सिर ताहि बीस भुजदंडा । रावन नाम बीर बरिबंडा ॥

भूप अनुज अरिमर्दन नामा । भयउ सो कुंभकरन बलधामा ॥ सचिव जो रहा धरमरुचि जासू । भयउ बिमात्र बंधु लघु तासू ॥

नाम बिभीषन जेहि जग जाना । बिष्नुभगत बिग्यान निधाना ॥ रहे जे सुत सेवक नृप केरे । भए निसाचर घोर घनेरे ॥

कामरूप खल जिनस अनेका । कुटिल भयंकर बिगत बिबेका ॥ कृपा रहित हिंसक सब पापी । बरनि न जाहिं बिस्व परितापी ॥

Doha / दोहा

दो. उपजे जदपि पुलस्त्यकुल पावन अमल अनूप । तदपि महीसुर श्राप बस भए सकल अघरूप ॥ १७६ ॥

Chaupai / चोपाई

कीन्ह बिबिध तप तीनिहुँ भाई । परम उग्र नहिं बरनि सो जाई ॥ गयउ निकट तप देखि बिधाता । मागहु बर प्रसन्न मैं ताता ॥

करि बिनती पद गहि दससीसा । बोलेउ बचन सुनहु जगदीसा ॥ हम काहू के मरहिं न मारें । बानर मनुज जाति दुइ बारें ॥

एवमस्तु तुम्ह बड़ तप कीन्हा । मैं ब्रह्माँ मिलि तेहि बर दीन्हा ॥ पुनि प्रभु कुंभकरन पहिं गयऊ । तेहि बिलोकि मन बिसमय भयऊ ॥

जौं एहिं खल नित करब अहारू । होइहि सब उजारि संसारू ॥ सारद प्रेरि तासु मति फेरी । मागेसि नीद मास षट केरी ॥

Doha / दोहा

दो. गए बिभीषन पास पुनि कहेउ पुत्र बर मागु । तेहिं मागेउ भगवंत पद कमल अमल अनुरागु ॥ १७७ ॥

Chaupai / चोपाई

तिन्हि देइ बर ब्रह्म सिधाए । हरषित ते अपने गृह आए ॥ मय तनुजा मंदोदरि नामा । परम सुंदरी नारि ललामा ॥

सोइ मयँ दीन्हि रावनहि आनी । होइहि जातुधानपति जानी ॥ हरषित भयउ नारि भलि पाई । पुनि दोउ बंधु बिआहेसि जाई ॥

गिरि त्रिकूट एक सिंधु मझारी । बिधि निर्मित दुर्गम अति भारी ॥ सोइ मय दानवँ बहुरि सँवारा । कनक रचित मनिभवन अपारा ॥

भोगावति जसि अहिकुल बासा । अमरावति जसि सक्रनिवासा ॥ तिन्ह तें अधिक रम्य अति बंका । जग बिख्यात नाम तेहि लंका ॥

Doha / दोहा

दो. खाईं सिंधु गभीर अति चारिहुँ दिसि फिरि आव । कनक कोट मनि खचित दृढ़ बरनि न जाइ बनाव ॥ १७८(क) ॥

हरिप्रेरित जेहिं कलप जोइ जातुधानपति होइ । सूर प्रतापी अतुलबल दल समेत बस सोइ ॥ १७८(ख) ॥

Chaupai / चोपाई

रहे तहाँ निसिचर भट भारे । ते सब सुरन्ह समर संघारे ॥ अब तहँ रहहिं सक्र के प्रेरे । रच्छक कोटि जच्छपति केरे ॥

दसमुख कतहुँ खबरि असि पाई । सेन साजि गढ़ घेरेसि जाई ॥ देखि बिकट भट बड़ि कटकाई । जच्छ जीव लै गए पराई ॥

फिरि सब नगर दसानन देखा । गयउ सोच सुख भयउ बिसेषा ॥ सुंदर सहज अगम अनुमानी । कीन्हि तहाँ रावन रजधानी ॥

जेहि जस जोग बाँटि गृह दीन्हे । सुखी सकल रजनीचर कीन्हे ॥ एक बार कुबेर पर धावा । पुष्पक जान जीति लै आवा ॥

Doha / दोहा

दो. कौतुकहीं कैलास पुनि लीन्हेसि जाइ उठाइ । मनहुँ तौलि निज बाहुबल चला बहुत सुख पाइ ॥ १७९ ॥

Chaupai / चोपाई

सुख संपति सुत सेन सहाई । जय प्रताप बल बुद्धि बड़ाई ॥ नित नूतन सब बाढ़त जाई । जिमि प्रतिलाभ लोभ अधिकाई ॥

अतिबल कुंभकरन अस भ्राता । जेहि कहुँ नहिं प्रतिभट जग जाता ॥ करइ पान सोवइ षट मासा । जागत होइ तिहुँ पुर त्रासा ॥

जौं दिन प्रति अहार कर सोई । बिस्व बेगि सब चौपट होई ॥ समर धीर नहिं जाइ बखाना । तेहि सम अमित बीर बलवाना ॥

बारिदनाद जेठ सुत तासू । भट महुँ प्रथम लीक जग जासू ॥ जेहि न होइ रन सनमुख कोई । सुरपुर नितहिं परावन होई ॥

Doha / दोहा

दो. कुमुख अकंपन कुलिसरद धूमकेतु अतिकाय । एक एक जग जीति सक ऐसे सुभट निकाय ॥ १८० ॥

Chaupai / चोपाई

कामरूप जानहिं सब माया । सपनेहुँ जिन्ह कें धरम न दाया ॥ दसमुख बैठ सभाँ एक बारा । देखि अमित आपन परिवारा ॥

सुत समूह जन परिजन नाती । गे को पार निसाचर जाती ॥ सेन बिलोकि सहज अभिमानी । बोला बचन क्रोध मद सानी ॥

सुनहु सकल रजनीचर जूथा । हमरे बैरी बिबुध बरूथा ॥ ते सनमुख नहिं करही लराई । देखि सबल रिपु जाहिं पराई ॥

तेन्ह कर मरन एक बिधि होई । कहउँ बुझाइ सुनहु अब सोई ॥ द्विजभोजन मख होम सराधा ॥ सब कै जाइ करहु तुम्ह बाधा ॥

Doha / दोहा

दो. छुधा छीन बलहीन सुर सहजेहिं मिलिहहिं आइ । तब मारिहउँ कि छाड़िहउँ भली भाँति अपनाइ ॥ १८१ ॥

Chaupai / चोपाई

मेघनाद कहुँ पुनि हँकरावा । दीन्ही सिख बलु बयरु बढ़ावा ॥ जे सुर समर धीर बलवाना । जिन्ह कें लरिबे कर अभिमाना ॥

तिन्हहि जीति रन आनेसु बाँधी । उठि सुत पितु अनुसासन काँधी ॥ एहि बिधि सबही अग्या दीन्ही । आपुनु चलेउ गदा कर लीन्ही ॥

चलत दसानन डोलति अवनी । गर्जत गर्भ स्त्रवहिं सुर रवनी ॥ रावन आवत सुनेउ सकोहा । देवन्ह तके मेरु गिरि खोहा ॥

दिगपालन्ह के लोक सुहाए । सूने सकल दसानन पाए ॥ पुनि पुनि सिंघनाद करि भारी । देइ देवतन्ह गारि पचारी ॥

रन मद मत्त फिरइ जग धावा । प्रतिभट खौजत कतहुँ न पावा ॥ रबि ससि पवन बरुन धनधारी । अगिनि काल जम सब अधिकारी ॥

किंनर सिद्ध मनुज सुर नागा । हठि सबही के पंथहिं लागा ॥ ब्रह्मसृष्टि जहँ लगि तनुधारी । दसमुख बसबर्ती नर नारी ॥

आयसु करहिं सकल भयभीता । नवहिं आइ नित चरन बिनीता ॥

Doha / दोहा

दो. भुजबल बिस्व बस्य करि राखेसि कोउ न सुतंत्र । मंडलीक मनि रावन राज करइ निज मंत्र ॥ १८२(ख) ॥

देव जच्छ गंधर्व नर किंनर नाग कुमारि । जीति बरीं निज बाहुबल बहु सुंदर बर नारि ॥ १८२ख ॥

Chaupai / चोपाई

इंद्रजीत सन जो कछु कहेऊ । सो सब जनु पहिलेहिं करि रहेऊ ॥ प्रथमहिं जिन्ह कहुँ आयसु दीन्हा । तिन्ह कर चरित सुनहु जो कीन्हा ॥

देखत भीमरूप सब पापी । निसिचर निकर देव परितापी ॥ करहि उपद्रव असुर निकाया । नाना रूप धरहिं करि माया ॥

जेहि बिधि होइ धर्म निर्मूला । सो सब करहिं बेद प्रतिकूला ॥ जेहिं जेहिं देस धेनु द्विज पावहिं । नगर गाउँ पुर आगि लगावहिं ॥

सुभ आचरन कतहुँ नहिं होई । देव बिप्र गुरू मान न कोई ॥ नहिं हरिभगति जग्य तप ग्याना । सपनेहुँ सुनिअ न बेद पुराना ॥

Chanda / छन्द

छं. जप जोग बिरागा तप मख भागा श्रवन सुनइ दससीसा । आपुनु उठि धावइ रहै न पावइ धरि सब घालइ खीसा ॥ अस भ्रष्ट अचारा भा संसारा धर्म सुनिअ नहि काना । तेहि बहुबिधि त्रासइ देस निकासइ जो कह बेद पुराना ॥

Sortha/ सोरठा

सो. बरनि न जाइ अनीति घोर निसाचर जो करहिं । हिंसा पर अति प्रीति तिन्ह के पापहि कवनि मिति ॥ १८३ ॥

Masaparayana 6 Ends

namo namaḥ!

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