Ram Charita Manas

Masaparayan 7

ॐ श्री परमात्मने नमः

This overlay will guide you through the buttons:

संस्कृत्म
A English
Chaupai / चोपाई

बाढ़े खल बहु चोर जुआरा । जे लंपट परधन परदारा ॥ मानहिं मातु पिता नहिं देवा । साधुन्ह सन करवावहिं सेवा ॥

जिन्ह के यह आचरन भवानी । ते जानेहु निसिचर सब प्रानी ॥ अतिसय देखि धर्म कै ग्लानी । परम सभीत धरा अकुलानी ॥

गिरि सरि सिंधु भार नहिं मोही । जस मोहि गरुअ एक परद्रोही ॥ सकल धर्म देखइ बिपरीता । कहि न सकइ रावन भय भीता ॥

धेनु रूप धरि हृदयँ बिचारी । गई तहाँ जहँ सुर मुनि झारी ॥ निज संताप सुनाएसि रोई । काहू तें कछु काज न होई ॥

Chanda / छन्द

छं. सुर मुनि गंधर्बा मिलि करि सर्बा गे बिरंचि के लोका । सँग गोतनुधारी भूमि बिचारी परम बिकल भय सोका ॥ ब्रह्माँ सब जाना मन अनुमाना मोर कछू न बसाई । जा करि तैं दासी सो अबिनासी हमरेउ तोर सहाई ॥

Sortha/ सोरठा

सो. धरनि धरहि मन धीर कह बिरंचि हरिपद सुमिरु । जानत जन की पीर प्रभु भंजिहि दारुन बिपति ॥ १८४ ॥

Chaupai / चोपाई

बैठे सुर सब करहिं बिचारा । कहँ पाइअ प्रभु करिअ पुकारा ॥ पुर बैकुंठ जान कह कोई । कोउ कह पयनिधि बस प्रभु सोई ॥

जाके हृदयँ भगति जसि प्रीति । प्रभु तहँ प्रगट सदा तेहिं रीती ॥ तेहि समाज गिरिजा मैं रहेऊँ । अवसर पाइ बचन एक कहेऊँ ॥

हरि ब्यापक सर्बत्र समाना । प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना ॥ देस काल दिसि बिदिसिहु माहीं । कहहु सो कहाँ जहाँ प्रभु नाहीं ॥

अग जगमय सब रहित बिरागी । प्रेम तें प्रभु प्रगटइ जिमि आगी ॥ मोर बचन सब के मन माना । साधु साधु करि ब्रह्म बखाना ॥

Doha / दोहा

दो. सुनि बिरंचि मन हरष तन पुलकि नयन बह नीर । अस्तुति करत जोरि कर सावधान मतिधीर ॥ १८५ ॥

Chanda / छन्द

छं. जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता । गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिधुंसुता प्रिय कंता ॥ पालन सुर धरनी अद्भुत करनी मरम न जानइ कोई । जो सहज कृपाला दीनदयाला करउ अनुग्रह सोई ॥

जय जय अबिनासी सब घट बासी ब्यापक परमानंदा । अबिगत गोतीतं चरित पुनीतं मायारहित मुकुंदा ॥ जेहि लागि बिरागी अति अनुरागी बिगतमोह मुनिबृंदा । निसि बासर ध्यावहिं गुन गन गावहिं जयति सच्चिदानंदा ॥

जेहिं सृष्टि उपाई त्रिबिध बनाई संग सहाय न दूजा । सो करउ अघारी चिंत हमारी जानिअ भगति न पूजा ॥ जो भव भय भंजन मुनि मन रंजन गंजन बिपति बरूथा । मन बच क्रम बानी छाड़ि सयानी सरन सकल सुर जूथा ॥

सारद श्रुति सेषा रिषय असेषा जा कहुँ कोउ नहि जाना । जेहि दीन पिआरे बेद पुकारे द्रवउ सो श्रीभगवाना ॥ भव बारिधि मंदर सब बिधि सुंदर गुनमंदिर सुखपुंजा । मुनि सिद्ध सकल सुर परम भयातुर नमत नाथ पद कंजा ॥

Doha / दोहा

दो. जानि सभय सुरभूमि सुनि बचन समेत सनेह । गगनगिरा गंभीर भइ हरनि सोक संदेह ॥ १८६ ॥

Chaupai / चोपाई

जनि डरपहु मुनि सिद्ध सुरेसा । तुम्हहि लागि धरिहउँ नर बेसा ॥ अंसन्ह सहित मनुज अवतारा । लेहउँ दिनकर बंस उदारा ॥

कस्यप अदिति महातप कीन्हा । तिन्ह कहुँ मैं पूरब बर दीन्हा ॥ ते दसरथ कौसल्या रूपा । कोसलपुरीं प्रगट नरभूपा ॥

तिन्ह के गृह अवतरिहउँ जाई । रघुकुल तिलक सो चारिउ भाई ॥ नारद बचन सत्य सब करिहउँ । परम सक्ति समेत अवतरिहउँ ॥

हरिहउँ सकल भूमि गरुआई । निर्भय होहु देव समुदाई ॥ गगन ब्रह्मबानी सुनी काना । तुरत फिरे सुर हृदय जुड़ाना ॥

तब ब्रह्मा धरनिहि समुझावा । अभय भई भरोस जियँ आवा ॥

Doha / दोहा

दो. निज लोकहि बिरंचि गे देवन्ह इहइ सिखाइ । बानर तनु धरि धरि महि हरि पद सेवहु जाइ ॥ १८७ ॥

Chaupai / चोपाई

गए देव सब निज निज धामा । भूमि सहित मन कहुँ बिश्रामा । जो कछु आयसु ब्रह्माँ दीन्हा । हरषे देव बिलंब न कीन्हा ॥

बनचर देह धरि छिति माहीं । अतुलित बल प्रताप तिन्ह पाहीं ॥ गिरि तरु नख आयुध सब बीरा । हरि मारग चितवहिं मतिधीरा ॥

गिरि कानन जहँ तहँ भरि पूरी । रहे निज निज अनीक रचि रूरी ॥ यह सब रुचिर चरित मैं भाषा । अब सो सुनहु जो बीचहिं राखा ॥

अवधपुरीं रघुकुलमनि राऊ । बेद बिदित तेहि दसरथ नाऊँ ॥ धरम धुरंधर गुननिधि ग्यानी । हृदयँ भगति मति सारँगपानी ॥

Doha / दोहा

दो. कौसल्यादि नारि प्रिय सब आचरन पुनीत । पति अनुकूल प्रेम दृढ़ हरि पद कमल बिनीत ॥ १८८ ॥

Chaupai / चोपाई

एक बार भूपति मन माहीं । भै गलानि मोरें सुत नाहीं ॥ गुर गृह गयउ तुरत महिपाला । चरन लागि करि बिनय बिसाला ॥

निज दुख सुख सब गुरहि सुनायउ । कहि बसिष्ठ बहुबिधि समुझायउ ॥ धरहु धीर होइहहिं सुत चारी । त्रिभुवन बिदित भगत भय हारी ॥

सृंगी रिषहि बसिष्ठ बोलावा । पुत्रकाम सुभ जग्य करावा ॥ भगति सहित मुनि आहुति दीन्हें । प्रगटे अगिनि चरू कर लीन्हें ॥

जो बसिष्ठ कछु हृदयँ बिचारा । सकल काजु भा सिद्ध तुम्हारा ॥ यह हबि बाँटि देहु नृप जाई । जथा जोग जेहि भाग बनाई ॥

Doha / दोहा

दो. तब अदृस्य भए पावक सकल सभहि समुझाइ ॥ परमानंद मगन नृप हरष न हृदयँ समाइ ॥ १८९ ॥

Chaupai / चोपाई

तबहिं रायँ प्रिय नारि बोलाईं । कौसल्यादि तहाँ चलि आई ॥ अर्ध भाग कौसल्याहि दीन्हा । उभय भाग आधे कर कीन्हा ॥

कैकेई कहँ नृप सो दयऊ । रह्यो सो उभय भाग पुनि भयऊ ॥ कौसल्या कैकेई हाथ धरि । दीन्ह सुमित्रहि मन प्रसन्न करि ॥

एहि बिधि गर्भसहित सब नारी । भईं हृदयँ हरषित सुख भारी ॥ जा दिन तें हरि गर्भहिं आए । सकल लोक सुख संपति छाए ॥

मंदिर महँ सब राजहिं रानी । सोभा सील तेज की खानीं ॥ सुख जुत कछुक काल चलि गयऊ । जेहिं प्रभु प्रगट सो अवसर भयऊ ॥

Doha / दोहा

दो. जोग लगन ग्रह बार तिथि सकल भए अनुकूल । चर अरु अचर हर्षजुत राम जनम सुखमूल ॥ १९० ॥

Chaupai / चोपाई

नौमी तिथि मधु मास पुनीता । सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता ॥ मध्यदिवस अति सीत न घामा । पावन काल लोक बिश्रामा ॥

सीतल मंद सुरभि बह बाऊ । हरषित सुर संतन मन चाऊ ॥ बन कुसुमित गिरिगन मनिआरा । स्त्रवहिं सकल सरिताऽमृतधारा ॥

सो अवसर बिरंचि जब जाना । चले सकल सुर साजि बिमाना ॥ गगन बिमल सकुल सुर जूथा । गावहिं गुन गंधर्ब बरूथा ॥

बरषहिं सुमन सुअंजलि साजी । गहगहि गगन दुंदुभी बाजी ॥ अस्तुति करहिं नाग मुनि देवा । बहुबिधि लावहिं निज निज सेवा ॥

Doha / दोहा

दो. सुर समूह बिनती करि पहुँचे निज निज धाम । जगनिवास प्रभु प्रगटे अखिल लोक बिश्राम ॥ १९१ ॥

Chanda / छन्द

छं. भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी । हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी ॥ लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी । भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी ॥

कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता । माया गुन ग्यानातीत अमाना बेद पुरान भनंता ॥ करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता । सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रगट श्रीकंता ॥

ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै । मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर पति थिर न रहै ॥ उपजा जब ग्याना प्रभु मुसकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै । कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ॥

माता पुनि बोली सो मति डौली तजहु तात यह रूपा । कीजै सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा ॥ सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा । यह चरित जे गावहिं हरिपद पावहिं ते न परहिं भवकूपा ॥

Doha / दोहा

दो. बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार । निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार ॥ १९२ ॥

Chaupai / चोपाई

सुनि सिसु रुदन परम प्रिय बानी । संभ्रम चलि आई सब रानी ॥ हरषित जहँ तहँ धाईं दासी । आनँद मगन सकल पुरबासी ॥

दसरथ पुत्रजन्म सुनि काना । मानहुँ ब्रह्मानंद समाना ॥ परम प्रेम मन पुलक सरीरा । चाहत उठत करत मति धीरा ॥

जाकर नाम सुनत सुभ होई । मोरें गृह आवा प्रभु सोई ॥ परमानंद पूरि मन राजा । कहा बोलाइ बजावहु बाजा ॥

गुर बसिष्ठ कहँ गयउ हँकारा । आए द्विजन सहित नृपद्वारा ॥ अनुपम बालक देखेन्हि जाई । रूप रासि गुन कहि न सिराई ॥

Doha / दोहा

दो. नंदीमुख सराध करि जातकरम सब कीन्ह । हाटक धेनु बसन मनि नृप बिप्रन्ह कहँ दीन्ह ॥ १९३ ॥

Chaupai / चोपाई

ध्वज पताक तोरन पुर छावा । कहि न जाइ जेहि भाँति बनावा ॥ सुमनबृष्टि अकास तें होई । ब्रह्मानंद मगन सब लोई ॥

बृंद बृंद मिलि चलीं लोगाई । सहज संगार किएँ उठि धाई ॥ कनक कलस मंगल धरि थारा । गावत पैठहिं भूप दुआरा ॥

करि आरति नेवछावरि करहीं । बार बार सिसु चरनन्हि परहीं ॥ मागध सूत बंदिगन गायक । पावन गुन गावहिं रघुनायक ॥

सर्बस दान दीन्ह सब काहू । जेहिं पावा राखा नहिं ताहू ॥ मृगमद चंदन कुंकुम कीचा । मची सकल बीथिन्ह बिच बीचा ॥

Doha / दोहा

दो. गृह गृह बाज बधाव सुभ प्रगटे सुषमा कंद । हरषवंत सब जहँ तहँ नगर नारि नर बृंद ॥ १९४ ॥

Chaupai / चोपाई

कैकयसुता सुमित्रा दोऊ । सुंदर सुत जनमत भैं ओऊ ॥ वह सुख संपति समय समाजा । कहि न सकइ सारद अहिराजा ॥

अवधपुरी सोहइ एहि भाँती । प्रभुहि मिलन आई जनु राती ॥ देखि भानू जनु मन सकुचानी । तदपि बनी संध्या अनुमानी ॥

अगर धूप बहु जनु अँधिआरी । उड़इ अभीर मनहुँ अरुनारी ॥ मंदिर मनि समूह जनु तारा । नृप गृह कलस सो इंदु उदारा ॥

भवन बेदधुनि अति मृदु बानी । जनु खग मूखर समयँ जनु सानी ॥ कौतुक देखि पतंग भुलाना । एक मास तेइँ जात न जाना ॥

Doha / दोहा

दो. मास दिवस कर दिवस भा मरम न जानइ कोइ । रथ समेत रबि थाकेउ निसा कवन बिधि होइ ॥ १९५ ॥

Chaupai / चोपाई

यह रहस्य काहू नहिं जाना । दिन मनि चले करत गुनगाना ॥ देखि महोत्सव सुर मुनि नागा । चले भवन बरनत निज भागा ॥

औरउ एक कहउँ निज चोरी । सुनु गिरिजा अति दृढ़ मति तोरी ॥ काक भुसुंडि संग हम दोऊ । मनुजरूप जानइ नहिं कोऊ ॥

परमानंद प्रेमसुख फूले । बीथिन्ह फिरहिं मगन मन भूले ॥ यह सुभ चरित जान पै सोई । कृपा राम कै जापर होई ॥

तेहि अवसर जो जेहि बिधि आवा । दीन्ह भूप जो जेहि मन भावा ॥ गज रथ तुरग हेम गो हीरा । दीन्हे नृप नानाबिधि चीरा ॥

Doha / दोहा

दो. मन संतोषे सबन्हि के जहँ तहँ देहि असीस । सकल तनय चिर जीवहुँ तुलसिदास के ईस ॥ १९६ ॥

Chaupai / चोपाई

कछुक दिवस बीते एहि भाँती । जात न जानिअ दिन अरु राती ॥ नामकरन कर अवसरु जानी । भूप बोलि पठए मुनि ग्यानी ॥

करि पूजा भूपति अस भाषा । धरिअ नाम जो मुनि गुनि राखा ॥ इन्ह के नाम अनेक अनूपा । मैं नृप कहब स्वमति अनुरूपा ॥

जो आनंद सिंधु सुखरासी । सीकर तें त्रैलोक सुपासी ॥ सो सुख धाम राम अस नामा । अखिल लोक दायक बिश्रामा ॥

बिस्व भरन पोषन कर जोई । ताकर नाम भरत अस होई ॥ जाके सुमिरन तें रिपु नासा । नाम सत्रुहन बेद प्रकासा ॥

Doha / दोहा

दो. लच्छन धाम राम प्रिय सकल जगत आधार । गुरु बसिष्ट तेहि राखा लछिमन नाम उदार ॥ १९७ ॥

Chaupai / चोपाई

धरे नाम गुर हृदयँ बिचारी । बेद तत्त्व नृप तव सुत चारी ॥ मुनि धन जन सरबस सिव प्राना । बाल केलि तेहिं सुख माना ॥

बारेहि ते निज हित पति जानी । लछिमन राम चरन रति मानी ॥ भरत सत्रुहन दूनउ भाई । प्रभु सेवक जसि प्रीति बड़ाई ॥

स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी । निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी ॥ चारिउ सील रूप गुन धामा । तदपि अधिक सुखसागर रामा ॥

हृदयँ अनुग्रह इंदु प्रकासा । सूचत किरन मनोहर हासा ॥ कबहुँ उछंग कबहुँ बर पलना । मातु दुलारइ कहि प्रिय ललना ॥

Doha / दोहा

दो. ब्यापक ब्रह्म निरंजन निर्गुन बिगत बिनोद । सो अज प्रेम भगति बस कौसल्या के गोद ॥ १९८ ॥

Chaupai / चोपाई

काम कोटि छबि स्याम सरीरा । नील कंज बारिद गंभीरा ॥ अरुन चरन पकंज नख जोती । कमल दलन्हि बैठे जनु मोती ॥

रेख कुलिस धवज अंकुर सोहे । नूपुर धुनि सुनि मुनि मन मोहे ॥ कटि किंकिनी उदर त्रय रेखा । नाभि गभीर जान जेहि देखा ॥

भुज बिसाल भूषन जुत भूरी । हियँ हरि नख अति सोभा रूरी ॥ उर मनिहार पदिक की सोभा । बिप्र चरन देखत मन लोभा ॥

कंबु कंठ अति चिबुक सुहाई । आनन अमित मदन छबि छाई ॥ दुइ दुइ दसन अधर अरुनारे । नासा तिलक को बरनै पारे ॥

सुंदर श्रवन सुचारु कपोला । अति प्रिय मधुर तोतरे बोला ॥ चिक्कन कच कुंचित गभुआरे । बहु प्रकार रचि मातु सँवारे ॥

पीत झगुलिआ तनु पहिराई । जानु पानि बिचरनि मोहि भाई ॥ रूप सकहिं नहिं कहि श्रुति सेषा । सो जानइ सपनेहुँ जेहि देखा ॥

Doha / दोहा

दो. सुख संदोह मोहपर ग्यान गिरा गोतीत । दंपति परम प्रेम बस कर सिसुचरित पुनीत ॥ १९९ ॥

Chaupai / चोपाई

एहि बिधि राम जगत पितु माता । कोसलपुर बासिंह सुखदाता ॥ जिन्ह रघुनाथ चरन रति मानी । तिन्ह की यह गति प्रगट भवानी ॥

रघुपति बिमुख जतन कर कोरी । कवन सकइ भव बंधन छोरी ॥ जीव चराचर बस कै राखे । सो माया प्रभु सों भय भाखे ॥

भृकुटि बिलास नचावइ ताही । अस प्रभु छाड़ि भजिअ कहु काही ॥ मन क्रम बचन छाड़ि चतुराई । भजत कृपा करिहहिं रघुराई ॥

एहि बिधि सिसुबिनोद प्रभु कीन्हा । सकल नगरबासिंह सुख दीन्हा ॥ लै उछंग कबहुँक हलरावै । कबहुँ पालनें घालि झुलावै ॥

Doha / दोहा

दो. प्रेम मगन कौसल्या निसि दिन जात न जान । सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान ॥ २०० ॥

Chaupai / चोपाई

एक बार जननीं अन्हवाए । करि सिंगार पलनाँ पौढ़ाए ॥ निज कुल इष्टदेव भगवाना । पूजा हेतु कीन्ह अस्नाना ॥

करि पूजा नैबेद्य चढ़ावा । आपु गई जहँ पाक बनावा ॥ बहुरि मातु तहवाँ चलि आई । भोजन करत देख सुत जाई ॥

गै जननी सिसु पहिं भयभीता । देखा बाल तहाँ पुनि सूता ॥ बहुरि आइ देखा सुत सोई । हृदयँ कंप मन धीर न होई ॥

इहाँ उहाँ दुइ बालक देखा । मतिभ्रम मोर कि आन बिसेषा ॥ देखि राम जननी अकुलानी । प्रभु हँसि दीन्ह मधुर मुसुकानी ॥

Doha / दोहा

दो. देखरावा मातहि निज अदभुत रुप अखंड । रोम रोम प्रति लागे कोटि कोटि ब्रह्मंड ॥ २०१ ॥

Chaupai / चोपाई

अगनित रबि ससि सिव चतुरानन । बहु गिरि सरित सिंधु महि कानन ॥ काल कर्म गुन ग्यान सुभाऊ । सोउ देखा जो सुना न काऊ ॥

देखी माया सब बिधि गाढ़ी । अति सभीत जोरें कर ठाढ़ी ॥ देखा जीव नचावइ जाही । देखी भगति जो छोरइ ताही ॥

तन पुलकित मुख बचन न आवा । नयन मूदि चरननि सिरु नावा ॥ बिसमयवंत देखि महतारी । भए बहुरि सिसुरूप खरारी ॥

अस्तुति करि न जाइ भय माना । जगत पिता मैं सुत करि जाना ॥ हरि जननि बहुबिधि समुझाई । यह जनि कतहुँ कहसि सुनु माई ॥

Doha / दोहा

दो. बार बार कौसल्या बिनय करइ कर जोरि ॥ अब जनि कबहूँ ब्यापै प्रभु मोहि माया तोरि ॥ २०२ ॥

Chaupai / चोपाई

बालचरित हरि बहुबिधि कीन्हा । अति अनंद दासन्ह कहँ दीन्हा ॥ कछुक काल बीतें सब भाई । बड़े भए परिजन सुखदाई ॥

चूड़ाकरन कीन्ह गुरु जाई । बिप्रन्ह पुनि दछिना बहु पाई ॥ परम मनोहर चरित अपारा । करत फिरत चारिउ सुकुमारा ॥

मन क्रम बचन अगोचर जोई । दसरथ अजिर बिचर प्रभु सोई ॥ भोजन करत बोल जब राजा । नहिं आवत तजि बाल समाजा ॥

कौसल्या जब बोलन जाई । ठुमकु ठुमकु प्रभु चलहिं पराई ॥ निगम नेति सिव अंत न पावा । ताहि धरै जननी हठि धावा ॥

धूरस धूरि भरें तनु आए । भूपति बिहसि गोद बैठाए ॥

Doha / दोहा

दो. भोजन करत चपल चित इत उत अवसरु पाइ । भाजि चले किलकत मुख दधि ओदन लपटाइ ॥ २०३ ॥

Chaupai / चोपाई

बालचरित अति सरल सुहाए । सारद सेष संभु श्रुति गाए ॥ जिन कर मन इन्ह सन नहिं राता । ते जन बंचित किए बिधाता ॥

भए कुमार जबहिं सब भ्राता । दीन्ह जनेऊ गुरु पितु माता ॥ गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई । अलप काल बिद्या सब आई ॥

जाकी सहज स्वास श्रुति चारी । सो हरि पढ़ यह कौतुक भारी ॥ बिद्या बिनय निपुन गुन सीला । खेलहिं खेल सकल नृपलीला ॥

करतल बान धनुष अति सोहा । देखत रूप चराचर मोहा ॥ जिन्ह बीथिन्ह बिहरहिं सब भाई । थकित होहिं सब लोग लुगाई ॥

Doha / दोहा

दो. कोसलपुर बासी नर नारि बृद्ध अरु बाल । प्रानहु ते प्रिय लागत सब कहुँ राम कृपाल ॥ २०४ ॥

Chaupai / चोपाई

बंधु सखा संग लेहिं बोलाई । बन मृगया नित खेलहिं जाई ॥ पावन मृग मारहिं जियँ जानी । दिन प्रति नृपहि देखावहिं आनी ॥

जे मृग राम बान के मारे । ते तनु तजि सुरलोक सिधारे ॥ अनुज सखा सँग भोजन करहीं । मातु पिता अग्या अनुसरहीं ॥

जेहि बिधि सुखी होहिं पुर लोगा । करहिं कृपानिधि सोइ संजोगा ॥ बेद पुरान सुनहिं मन लाई । आपु कहहिं अनुजन्ह समुझाई ॥

प्रातकाल उठि कै रघुनाथा । मातु पिता गुरु नावहिं माथा ॥ आयसु मागि करहिं पुर काजा । देखि चरित हरषइ मन राजा ॥

Doha / दोहा

दो. ब्यापक अकल अनीह अज निर्गुन नाम न रूप । भगत हेतु नाना बिधि करत चरित्र अनूप ॥ २०५ ॥

Chaupai / चोपाई

यह सब चरित कहा मैं गाई । आगिलि कथा सुनहु मन लाई ॥ बिस्वामित्र महामुनि ग्यानी । बसहि बिपिन सुभ आश्रम जानी ॥

जहँ जप जग्य मुनि करही । अति मारीच सुबाहुहि डरहीं ॥ देखत जग्य निसाचर धावहि । करहि उपद्रव मुनि दुख पावहिं ॥

गाधितनय मन चिंता ब्यापी । हरि बिनु मरहि न निसिचर पापी ॥ तब मुनिवर मन कीन्ह बिचारा । प्रभु अवतरेउ हरन महि भारा ॥

एहुँ मिस देखौं पद जाई । करि बिनती आनौ दोउ भाई ॥ ग्यान बिराग सकल गुन अयना । सो प्रभु मै देखब भरि नयना ॥

Doha / दोहा

दो. बहुबिधि करत मनोरथ जात लागि नहिं बार । करि मज्जन सरऊ जल गए भूप दरबार ॥ २०६ ॥

Chaupai / चोपाई

मुनि आगमन सुना जब राजा । मिलन गयऊ लै बिप्र समाजा ॥ करि दंडवत मुनिहि सनमानी । निज आसन बैठारेन्हि आनी ॥

चरन पखारि कीन्हि अति पूजा । मो सम आजु धन्य नहिं दूजा ॥ बिबिध भाँति भोजन करवावा । मुनिवर हृदयँ हरष अति पावा ॥

पुनि चरननि मेले सुत चारी । राम देखि मुनि देह बिसारी ॥ भए मगन देखत मुख सोभा । जनु चकोर पूरन ससि लोभा ॥

तब मन हरषि बचन कह राऊ । मुनि अस कृपा न कीन्हिहु काऊ ॥ केहि कारन आगमन तुम्हारा । कहहु सो करत न लावउँ बारा ॥

असुर समूह सतावहिं मोही । मै जाचन आयउँ नृप तोही ॥ अनुज समेत देहु रघुनाथा । निसिचर बध मैं होब सनाथा ॥

Doha / दोहा

दो. देहु भूप मन हरषित तजहु मोह अग्यान । धर्म सुजस प्रभु तुम्ह कौं इन्ह कहँ अति कल्यान ॥ २०७ ॥

Chaupai / चोपाई

सुनि राजा अति अप्रिय बानी । हृदय कंप मुख दुति कुमुलानी ॥ चौथेंपन पायउँ सुत चारी । बिप्र बचन नहिं कहेहु बिचारी ॥

मागहु भूमि धेनु धन कोसा । सर्बस देउँ आजु सहरोसा ॥ देह प्रान तें प्रिय कछु नाही । सोउ मुनि देउँ निमिष एक माही ॥

सब सुत प्रिय मोहि प्रान कि नाईं । राम देत नहिं बनइ गोसाई ॥ कहँ निसिचर अति घोर कठोरा । कहँ सुंदर सुत परम किसोरा ॥

सुनि नृप गिरा प्रेम रस सानी । हृदयँ हरष माना मुनि ग्यानी ॥ तब बसिष्ट बहु निधि समुझावा । नृप संदेह नास कहँ पावा ॥

अति आदर दोउ तनय बोलाए । हृदयँ लाइ बहु भाँति सिखाए ॥ मेरे प्रान नाथ सुत दोऊ । तुम्ह मुनि पिता आन नहिं कोऊ ॥

Doha / दोहा

दो. सौंपे भूप रिषिहि सुत बहु बिधि देइ असीस । जननी भवन गए प्रभु चले नाइ पद सीस ॥ २०८(क) ॥

Sortha/ सोरठा

सो. पुरुषसिंह दोउ बीर हरषि चले मुनि भय हरन ॥ कृपासिंधु मतिधीर अखिल बिस्व कारन करन ॥ २०८(ख)

Chaupai / चोपाई

अरुन नयन उर बाहु बिसाला । नील जलज तनु स्याम तमाला ॥ कटि पट पीत कसें बर भाथा । रुचिर चाप सायक दुहुँ हाथा ॥

स्याम गौर सुंदर दोउ भाई । बिस्बामित्र महानिधि पाई ॥ प्रभु ब्रह्मन्यदेव मै जाना । मोहि निति पिता तजेहु भगवाना ॥

चले जात मुनि दीन्हि दिखाई । सुनि ताड़का क्रोध करि धाई ॥ एकहिं बान प्रान हरि लीन्हा । दीन जानि तेहि निज पद दीन्हा ॥

तब रिषि निज नाथहि जियँ चीन्ही । बिद्यानिधि कहुँ बिद्या दीन्ही ॥ जाते लाग न छुधा पिपासा । अतुलित बल तनु तेज प्रकासा ॥

Doha / दोहा

दो. आयुष सब समर्पि कै प्रभु निज आश्रम आनि । कंद मूल फल भोजन दीन्ह भगति हित जानि ॥ २०९ ॥

Chaupai / चोपाई

प्रात कहा मुनि सन रघुराई । निर्भय जग्य करहु तुम्ह जाई ॥ होम करन लागे मुनि झारी । आपु रहे मख कीं रखवारी ॥

सुनि मारीच निसाचर क्रोही । लै सहाय धावा मुनिद्रोही ॥ बिनु फर बान राम तेहि मारा । सत जोजन गा सागर पारा ॥

पावक सर सुबाहु पुनि मारा । अनुज निसाचर कटकु सँघारा ॥ मारि असुर द्विज निर्मयकारी । अस्तुति करहिं देव मुनि झारी ॥

तहँ पुनि कछुक दिवस रघुराया । रहे कीन्हि बिप्रन्ह पर दाया ॥ भगति हेतु बहु कथा पुराना । कहे बिप्र जद्यपि प्रभु जाना ॥

तब मुनि सादर कहा बुझाई । चरित एक प्रभु देखिअ जाई ॥ धनुषजग्य मुनि रघुकुल नाथा । हरषि चले मुनिबर के साथा ॥

आश्रम एक दीख मग माहीं । खग मृग जीव जंतु तहँ नाहीं ॥ पूछा मुनिहि सिला प्रभु देखी । सकल कथा मुनि कहा बिसेषी ॥

Doha / दोहा

दो. गौतम नारि श्राप बस उपल देह धरि धीर । चरन कमल रज चाहति कृपा करहु रघुबीर ॥ २१० ॥

Chanda / छन्द

छं. परसत पद पावन सोक नसावन प्रगट भई तपपुंज सही । देखत रघुनायक जन सुख दायक सनमुख होइ कर जोरि रही ॥ अति प्रेम अधीरा पुलक सरीरा मुख नहिं आवइ बचन कही । अतिसय बड़भागी चरनन्हि लागी जुगल नयन जलधार बही ॥

धीरजु मन कीन्हा प्रभु कहुँ चीन्हा रघुपति कृपाँ भगति पाई । अति निर्मल बानीं अस्तुति ठानी ग्यानगम्य जय रघुराई ॥ मै नारि अपावन प्रभु जग पावन रावन रिपु जन सुखदाई । राजीव बिलोचन भव भय मोचन पाहि पाहि सरनहिं आई ॥

मुनि श्राप जो दीन्हा अति भल कीन्हा परम अनुग्रह मैं माना । देखेउँ भरि लोचन हरि भवमोचन इहइ लाभ संकर जाना ॥ बिनती प्रभु मोरी मैं मति भोरी नाथ न मागउँ बर आना । पद कमल परागा रस अनुरागा मम मन मधुप करै पाना ॥

जेहिं पद सुरसरिता परम पुनीता प्रगट भई सिव सीस धरी । सोइ पद पंकज जेहि पूजत अज मम सिर धरेउ कृपाल हरी ॥ एहि भाँति सिधारी गौतम नारी बार बार हरि चरन परी । जो अति मन भावा सो बरु पावा गै पतिलोक अनंद भरी ॥

Doha / दोहा

दो. अस प्रभु दीनबंधु हरि कारन रहित दयाल । तुलसिदास सठ तेहि भजु छाड़ि कपट जंजाल ॥ २११ ॥

Masaparayana 7 Ends

namo namaḥ!

भाषा चुने (Choose Language)

Gyaandweep Gyaandweep

namo namaḥ!

Sign Up to practice more than 60 Vedic Scriptures and 100 of chants, one verse at a time.

Login to track your learning and teaching progress.


Sign In