ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
चलत महाधुनि गर्जेसि भारी । गर्भ स्त्रवहिं सुनि निसिचर नारी ॥ नाघि सिंधु एहि पारहि आवा । सबद किलकिला कपिन्ह सुनावा ॥
हरषे सब बिलोकि हनुमाना । नूतन जन्म कपिन्ह तब जाना ॥ मुख प्रसन्न तन तेज बिराजा । कीन्हेसि रामचन्द्र कर काजा ॥
मिले सकल अति भए सुखारी । तलफत मीन पाव जिमि बारी ॥ चले हरषि रघुनायक पासा । पूँछत कहत नवल इतिहासा ॥
तब मधुबन भीतर सब आए । अंगद संमत मधु फल खाए ॥ रखवारे जब बरजन लागे । मुष्टि प्रहार हनत सब भागे ॥
Doha / दोहा
दो. जाइ पुकारे ते सब बन उजार जुबराज । सुनि सुग्रीव हरष कपि करि आए प्रभु काज ॥ २८ ॥
Chaupai / चोपाई
जौं न होति सीता सुधि पाई । मधुबन के फल सकहिं कि खाई ॥ एहि बिधि मन बिचार कर राजा । आइ गए कपि सहित समाजा ॥
आइ सबन्हि नावा पद सीसा । मिलेउ सबन्हि अति प्रेम कपीसा ॥ पूँछी कुसल कुसल पद देखी । राम कृपाँ भा काजु बिसेषी ॥
नाथ काजु कीन्हेउ हनुमाना । राखे सकल कपिन्ह के प्राना ॥ सुनि सुग्रीव बहुरि तेहि मिलेऊ । कपिन्ह सहित रघुपति पहिं चलेऊ ।
राम कपिन्ह जब आवत देखा । किएँ काजु मन हरष बिसेषा ॥ फटिक सिला बैठे द्वौ भाई । परे सकल कपि चरनन्हि जाई ॥
Doha / दोहा
दो. प्रीति सहित सब भेटे रघुपति करुना पुंज । पूँछी कुसल नाथ अब कुसल देखि पद कंज ॥ २९ ॥
Chaupai / चोपाई
जामवंत कह सुनु रघुराया । जा पर नाथ करहु तुम्ह दाया ॥ ताहि सदा सुभ कुसल निरंतर । सुर नर मुनि प्रसन्न ता ऊपर ॥
सोइ बिजई बिनई गुन सागर । तासु सुजसु त्रेलोक उजागर ॥ प्रभु कीं कृपा भयउ सबु काजू । जन्म हमार सुफल भा आजू ॥
नाथ पवनसुत कीन्हि जो करनी । सहसहुँ मुख न जाइ सो बरनी ॥ पवनतनय के चरित सुहाए । जामवंत रघुपतिहि सुनाए ॥
सुनत कृपानिधि मन अति भाए । पुनि हनुमान हरषि हियँ लाए ॥ कहहु तात केहि भाँति जानकी । रहति करति रच्छा स्वप्रान की ॥
Doha / दोहा
दो. नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट । लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट ॥ ३० ॥
Chaupai / चोपाई
चलत मोहि चूड़ामनि दीन्ही । रघुपति हृदयँ लाइ सोइ लीन्ही ॥ नाथ जुगल लोचन भरि बारी । बचन कहे कछु जनककुमारी ॥
अनुज समेत गहेहु प्रभु चरना । दीन बंधु प्रनतारति हरना ॥ मन क्रम बचन चरन अनुरागी । केहि अपराध नाथ हौं त्यागी ॥
अवगुन एक मोर मैं माना । बिछुरत प्रान न कीन्ह पयाना ॥ नाथ सो नयनन्हि को अपराधा । निसरत प्रान करिहिं हठि बाधा ॥
बिरह अगिनि तनु तूल समीरा । स्वास जरइ छन माहिं सरीरा ॥ नयन स्त्रवहि जलु निज हित लागी । जरैं न पाव देह बिरहागी ।
सीता के अति बिपति बिसाला । बिनहिं कहें भलि दीनदयाला ॥
Doha / दोहा
दो. निमिष निमिष करुनानिधि जाहिं कलप सम बीति । बेगि चलिय प्रभु आनिअ भुज बल खल दल जीति ॥ ३१ ॥
Chaupai / चोपाई
सुनि सीता दुख प्रभु सुख अयना । भरि आए जल राजिव नयना ॥ बचन काँय मन मम गति जाही । सपनेहुँ बूझिअ बिपति कि ताही ॥
कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई । जब तव सुमिरन भजन न होई ॥ केतिक बात प्रभु जातुधान की । रिपुहि जीति आनिबी जानकी ॥
सुनु कपि तोहि समान उपकारी । नहिं कोउ सुर नर मुनि तनुधारी ॥ प्रति उपकार करौं का तोरा । सनमुख होइ न सकत मन मोरा ॥
सुनु सुत उरिन मैं नाहीं । देखेउँ करि बिचार मन माहीं ॥ पुनि पुनि कपिहि चितव सुरत्राता । लोचन नीर पुलक अति गाता ॥
Doha / दोहा
दो. सुनि प्रभु बचन बिलोकि मुख गात हरषि हनुमंत । चरन परेउ प्रेमाकुल त्राहि त्राहि भगवंत ॥ ३२ ॥
Chaupai / चोपाई
बार बार प्रभु चहइ उठावा । प्रेम मगन तेहि उठब न भावा ॥ प्रभु कर पंकज कपि कें सीसा । सुमिरि सो दसा मगन गौरीसा ॥
सावधान मन करि पुनि संकर । लागे कहन कथा अति सुंदर ॥ कपि उठाइ प्रभु हृदयँ लगावा । कर गहि परम निकट बैठावा ॥
कहु कपि रावन पालित लंका । केहि बिधि दहेउ दुर्ग अति बंका ॥ प्रभु प्रसन्न जाना हनुमाना । बोला बचन बिगत अभिमाना ॥
साखामृग के बड़ि मनुसाई । साखा तें साखा पर जाई ॥ नाघि सिंधु हाटकपुर जारा । निसिचर गन बिधि बिपिन उजारा । ।
सो सब तव प्रताप रघुराई । नाथ न कछू मोरि प्रभुताई ॥
Doha / दोहा
दो. ता कहुँ प्रभु कछु अगम नहिं जा पर तुम्ह अनुकुल । तब प्रभावँ बड़वानलहिं जारि सकइ खलु तूल ॥ ३३ ॥
Chaupai / चोपाई
नाथ भगति अति सुखदायनी । देहु कृपा करि अनपायनी ॥ सुनि प्रभु परम सरल कपि बानी । एवमस्तु तब कहेउ भवानी ॥
उमा राम सुभाउ जेहिं जाना । ताहि भजनु तजि भाव न आना ॥ यह संवाद जासु उर आवा । रघुपति चरन भगति सोइ पावा ॥
सुनि प्रभु बचन कहहिं कपिबृंदा । जय जय जय कृपाल सुखकंदा ॥ तब रघुपति कपिपतिहि बोलावा । कहा चलैं कर करहु बनावा ॥
अब बिलंबु केहि कारन कीजे । तुरत कपिन्ह कहुँ आयसु दीजे ॥ कौतुक देखि सुमन बहु बरषी । नभ तें भवन चले सुर हरषी ॥
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