ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
उहाँ निसाचर रहहिं ससंका । जब ते जारि गयउ कपि लंका ॥ निज निज गृहँ सब करहिं बिचारा । नहिं निसिचर कुल केर उबारा ॥
जासु दूत बल बरनि न जाई । तेहि आएँ पुर कवन भलाई ॥ दूतन्हि सन सुनि पुरजन बानी । मंदोदरी अधिक अकुलानी ॥
रहसि जोरि कर पति पग लागी । बोली बचन नीति रस पागी ॥ कंत करष हरि सन परिहरहू । मोर कहा अति हित हियँ धरहु ॥
समुझत जासु दूत कइ करनी । स्त्रवहीं गर्भ रजनीचर धरनी ॥ तासु नारि निज सचिव बोलाई । पठवहु कंत जो चहहु भलाई ॥
तब कुल कमल बिपिन दुखदाई । सीता सीत निसा सम आई ॥ सुनहु नाथ सीता बिनु दीन्हें । हित न तुम्हार संभु अज कीन्हें ॥
Doha / दोहा
दो. -राम बान अहि गन सरिस निकर निसाचर भेक । जब लगि ग्रसत न तब लगि जतनु करहु तजि टेक ॥ ३६ ॥
Chaupai / चोपाई
श्रवन सुनी सठ ता करि बानी । बिहसा जगत बिदित अभिमानी ॥ सभय सुभाउ नारि कर साचा । मंगल महुँ भय मन अति काचा ॥
जौं आवइ मर्कट कटकाई । जिअहिं बिचारे निसिचर खाई ॥ कंपहिं लोकप जाकी त्रासा । तासु नारि सभीत बड़ि हासा ॥
अस कहि बिहसि ताहि उर लाई । चलेउ सभाँ ममता अधिकाई ॥ मंदोदरी हृदयँ कर चिंता । भयउ कंत पर बिधि बिपरीता ॥
बैठेउ सभाँ खबरि असि पाई । सिंधु पार सेना सब आई ॥ बूझेसि सचिव उचित मत कहहू । ते सब हँसे मष्ट करि रहहू ॥
जितेहु सुरासुर तब श्रम नाहीं । नर बानर केहि लेखे माही ॥
Sign In