ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस । राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ॥ ३७ ॥
Chaupai / चोपाई
सोइ रावन कहुँ बनि सहाई । अस्तुति करहिं सुनाइ सुनाई ॥ अवसर जानि बिभीषनु आवा । भ्राता चरन सीसु तेहिं नावा ॥
पुनि सिरु नाइ बैठ निज आसन । बोला बचन पाइ अनुसासन ॥ जौ कृपाल पूँछिहु मोहि बाता । मति अनुरुप कहउँ हित ताता ॥
जो आपन चाहै कल्याना । सुजसु सुमति सुभ गति सुख नाना ॥ सो परनारि लिलार गोसाईं । तजउ चउथि के चंद कि नाई ॥
चौदह भुवन एक पति होई । भूतद्रोह तिष्टइ नहिं सोई ॥ गुन सागर नागर नर जोऊ । अलप लोभ भल कहइ न कोऊ ॥
Doha / दोहा
दो. काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ । सब परिहरि रघुबीरहि भजहु भजहिं जेहि संत ॥ ३८ ॥
Chaupai / चोपाई
तात राम नहिं नर भूपाला । भुवनेस्वर कालहु कर काला ॥ ब्रह्म अनामय अज भगवंता । ब्यापक अजित अनादि अनंता ॥
गो द्विज धेनु देव हितकारी । कृपासिंधु मानुष तनुधारी ॥ जन रंजन भंजन खल ब्राता । बेद धर्म रच्छक सुनु भ्राता ॥
ताहि बयरु तजि नाइअ माथा । प्रनतारति भंजन रघुनाथा ॥ देहु नाथ प्रभु कहुँ बैदेही । भजहु राम बिनु हेतु सनेही ॥
सरन गएँ प्रभु ताहु न त्यागा । बिस्व द्रोह कृत अघ जेहि लागा ॥ जासु नाम त्रय ताप नसावन । सोइ प्रभु प्रगट समुझु जियँ रावन ॥
Doha / दोहा
दो. बार बार पद लागउँ बिनय करउँ दससीस । परिहरि मान मोह मद भजहु कोसलाधीस ॥ ३९(क) ॥
मुनि पुलस्ति निज सिष्य सन कहि पठई यह बात । तुरत सो मैं प्रभु सन कही पाइ सुअवसरु तात ॥ ३९(ख) ॥
Chaupai / चोपाई
माल्यवंत अति सचिव सयाना । तासु बचन सुनि अति सुख माना ॥ तात अनुज तव नीति बिभूषन । सो उर धरहु जो कहत बिभीषन ॥
रिपु उतकरष कहत सठ दोऊ । दूरि न करहु इहाँ हइ कोऊ ॥ माल्यवंत गृह गयउ बहोरी । कहइ बिभीषनु पुनि कर जोरी ॥
सुमति कुमति सब कें उर रहहीं । नाथ पुरान निगम अस कहहीं ॥ जहाँ सुमति तहँ संपति नाना । जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना ॥
तव उर कुमति बसी बिपरीता । हित अनहित मानहु रिपु प्रीता ॥ कालराति निसिचर कुल केरी । तेहि सीता पर प्रीति घनेरी ॥
Doha / दोहा
दो. तात चरन गहि मागउँ राखहु मोर दुलार । सीत देहु राम कहुँ अहित न होइ तुम्हार ॥ ४० ॥
Chaupai / चोपाई
बुध पुरान श्रुति संमत बानी । कही बिभीषन नीति बखानी ॥ सुनत दसानन उठा रिसाई । खल तोहि निकट मुत्यु अब आई ॥
जिअसि सदा सठ मोर जिआवा । रिपु कर पच्छ मूढ़ तोहि भावा ॥ कहसि न खल अस को जग माहीं । भुज बल जाहि जिता मैं नाही ॥
मम पुर बसि तपसिन्ह पर प्रीती । सठ मिलु जाइ तिन्हहि कहु नीती ॥ अस कहि कीन्हेसि चरन प्रहारा । अनुज गहे पद बारहिं बारा ॥
उमा संत कइ इहइ बड़ाई । मंद करत जो करइ भलाई ॥ तुम्ह पितु सरिस भलेहिं मोहि मारा । रामु भजें हित नाथ तुम्हारा ॥
सचिव संग लै नभ पथ गयऊ । सबहि सुनाइ कहत अस भयऊ ॥
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