ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
सुनु कपीस लंकापति बीरा । केहि बिधि तरिअ जलधि गंभीरा ॥ संकुल मकर उरग झष जाती । अति अगाध दुस्तर सब भाँती ॥
कह लंकेस सुनहु रघुनायक । कोटि सिंधु सोषक तव सायक ॥ जद्यपि तदपि नीति असि गाई । बिनय करिअ सागर सन जाई ॥
Doha / दोहा
दो. प्रभु तुम्हार कुलगुर जलधि कहिहि उपाय बिचारि । बिनु प्रयास सागर तरिहि सकल भालु कपि धारि ॥ ५० ॥
Chaupai / चोपाई
सखा कही तुम्ह नीकि उपाई । करिअ दैव जौं होइ सहाई ॥ मंत्र न यह लछिमन मन भावा । राम बचन सुनि अति दुख पावा ॥
नाथ दैव कर कवन भरोसा । सोषिअ सिंधु करिअ मन रोसा ॥ कादर मन कहुँ एक अधारा । दैव दैव आलसी पुकारा ॥
सुनत बिहसि बोले रघुबीरा । ऐसेहिं करब धरहु मन धीरा ॥ अस कहि प्रभु अनुजहि समुझाई । सिंधु समीप गए रघुराई ॥
प्रथम प्रनाम कीन्ह सिरु नाई । बैठे पुनि तट दर्भ डसाई ॥ जबहिं बिभीषन प्रभु पहिं आए । पाछें रावन दूत पठाए ॥
Doha / दोहा
दो. सकल चरित तिन्ह देखे धरें कपट कपि देह । प्रभु गुन हृदयँ सराहहिं सरनागत पर नेह ॥ ५१ ॥
Chaupai / चोपाई
प्रगट बखानहिं राम सुभाऊ । अति सप्रेम गा बिसरि दुराऊ ॥ रिपु के दूत कपिन्ह तब जाने । सकल बाँधि कपीस पहिं आने ॥
कह सुग्रीव सुनहु सब बानर । अंग भंग करि पठवहु निसिचर ॥ सुनि सुग्रीव बचन कपि धाए । बाँधि कटक चहु पास फिराए ॥
बहु प्रकार मारन कपि लागे । दीन पुकारत तदपि न त्यागे ॥ जो हमार हर नासा काना । तेहि कोसलाधीस कै आना ॥
सुनि लछिमन सब निकट बोलाए । दया लागि हँसि तुरत छोडाए ॥ रावन कर दीजहु यह पाती । लछिमन बचन बाचु कुलघाती ॥
Doha / दोहा
दो. कहेहु मुखागर मूढ़ सन मम संदेसु उदार । सीता देइ मिलेहु न त आवा काल तुम्हार ॥ ५२ ॥
Chaupai / चोपाई
तुरत नाइ लछिमन पद माथा । चले दूत बरनत गुन गाथा ॥ कहत राम जसु लंकाँ आए । रावन चरन सीस तिन्ह नाए ॥
बिहसि दसानन पूँछी बाता । कहसि न सुक आपनि कुसलाता ॥ पुनि कहु खबरि बिभीषन केरी । जाहि मृत्यु आई अति नेरी ॥
करत राज लंका सठ त्यागी । होइहि जब कर कीट अभागी ॥ पुनि कहु भालु कीस कटकाई । कठिन काल प्रेरित चलि आई ॥
जिन्ह के जीवन कर रखवारा । भयउ मृदुल चित सिंधु बिचारा ॥ कहु तपसिन्ह कै बात बहोरी । जिन्ह के हृदयँ त्रास अति मोरी ॥
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