ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीन दिन बीति । बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति ॥ ५७ ॥
Chaupai / चोपाई
लछिमन बान सरासन आनू । सोषौं बारिधि बिसिख कृसानू ॥ सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीती । सहज कृपन सन सुंदर नीती ॥
ममता रत सन ग्यान कहानी । अति लोभी सन बिरति बखानी ॥ क्रोधिहि सम कामिहि हरि कथा । ऊसर बीज बएँ फल जथा ॥
अस कहि रघुपति चाप चढ़ावा । यह मत लछिमन के मन भावा ॥ संघानेउ प्रभु बिसिख कराला । उठी उदधि उर अंतर ज्वाला ॥
मकर उरग झष गन अकुलाने । जरत जंतु जलनिधि जब जाने ॥ कनक थार भरि मनि गन नाना । बिप्र रूप आयउ तजि माना ॥
Doha / दोहा
दो. काटेहिं पइ कदरी फरइ कोटि जतन कोउ सींच । बिनय न मान खगेस सुनु डाटेहिं पइ नव नीच ॥ ५८ ॥
Chaupai / चोपाई
सभय सिंधु गहि पद प्रभु केरे । छमहु नाथ सब अवगुन मेरे ॥ गगन समीर अनल जल धरनी । इन्ह कइ नाथ सहज जड़ करनी ॥
तव प्रेरित मायाँ उपजाए । सृष्टि हेतु सब ग्रंथनि गाए ॥ प्रभु आयसु जेहि कहँ जस अहई । सो तेहि भाँति रहे सुख लहई ॥
प्रभु भल कीन्ही मोहि सिख दीन्ही । मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्ही ॥ ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी । सकल ताड़ना के अधिकारी ॥
प्रभु प्रताप मैं जाब सुखाई । उतरिहि कटकु न मोरि बड़ाई ॥ प्रभु अग्या अपेल श्रुति गाई । करौं सो बेगि जौ तुम्हहि सोहाई ॥
Doha / दोहा
दो. सुनत बिनीत बचन अति कह कृपाल मुसुकाइ । जेहि बिधि उतरै कपि कटकु तात सो कहहु उपाइ ॥ ५९ ॥
Chaupai / चोपाई
नाथ नील नल कपि द्वौ भाई । लरिकाई रिषि आसिष पाई ॥ तिन्ह के परस किएँ गिरि भारे । तरिहहिं जलधि प्रताप तुम्हारे ॥
मैं पुनि उर धरि प्रभुताई । करिहउँ बल अनुमान सहाई ॥ एहि बिधि नाथ पयोधि बँधाइअ । जेहिं यह सुजसु लोक तिहुँ गाइअ ॥
एहि सर मम उत्तर तट बासी । हतहु नाथ खल नर अघ रासी ॥ सुनि कृपाल सागर मन पीरा । तुरतहिं हरी राम रनधीरा ॥
देखि राम बल पौरुष भारी । हरषि पयोनिधि भयउ सुखारी ॥ सकल चरित कहि प्रभुहि सुनावा । चरन बंदि पाथोधि सिधावा ॥
Chanda / छन्द
छं. निज भवन गवनेउ सिंधु श्रीरघुपतिहि यह मत भायऊ । यह चरित कलि मलहर जथामति दास तुलसी गायऊ ॥ सुख भवन संसय समन दवन बिषाद रघुपति गुन गना । तजि सकल आस भरोस गावहि सुनहि संतत सठ मना ॥
Doha / दोहा
दो. सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान । सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान ॥ ६० ॥
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