ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. जहँ तहँ गईं सकल तब सीता कर मन सोच । मास दिवस बीतें मोहि मारिहि निसिचर पोच ॥ ११ ॥
Chaupai / चोपाई
त्रिजटा सन बोली कर जोरी । मातु बिपति संगिनि तैं मोरी ॥ तजौं देह करु बेगि उपाई । दुसहु बिरहु अब नहिं सहि जाई ॥
आनि काठ रचु चिता बनाई । मातु अनल पुनि देहि लगाई ॥ सत्य करहि मम प्रीति सयानी । सुनै को श्रवन सूल सम बानी ॥
सुनत बचन पद गहि समुझाएसि । प्रभु प्रताप बल सुजसु सुनाएसि ॥ निसि न अनल मिल सुनु सुकुमारी । अस कहि सो निज भवन सिधारी ॥
कह सीता बिधि भा प्रतिकूला । मिलहि न पावक मिटिहि न सूला ॥ देखिअत प्रगट गगन अंगारा । अवनि न आवत एकउ तारा ॥
पावकमय ससि स्त्रवत न आगी । मानहुँ मोहि जानि हतभागी ॥ सुनहि बिनय मम बिटप असोका । सत्य नाम करु हरु मम सोका ॥
नूतन किसलय अनल समाना । देहि अगिनि जनि करहि निदाना ॥ देखि परम बिरहाकुल सीता । सो छन कपिहि कलप सम बीता ॥
Sign In