Ram Charita Manas

Sundara-Kanda

Maa Sita conversation with Hanuman.

ॐ श्री परमात्मने नमः


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ॐ श्री गणेशाय नमः

Sortha / सोरठा

सो. कपि करि हृदयँ बिचार दीन्हि मुद्रिका डारी तब । जनु असोक अंगार दीन्हि हरषि उठि कर गहेउ ॥ १२ ॥

Chapter : 7 Number : 14

Chaupai / चोपाई

तब देखी मुद्रिका मनोहर । राम नाम अंकित अति सुंदर ॥ चकित चितव मुदरी पहिचानी । हरष बिषाद हृदयँ अकुलानी ॥

Chapter : 7 Number : 14

जीति को सकइ अजय रघुराई । माया तें असि रचि नहिं जाई ॥ सीता मन बिचार कर नाना । मधुर बचन बोलेउ हनुमाना ॥

Chapter : 7 Number : 14

रामचंद्र गुन बरनैं लागा । सुनतहिं सीता कर दुख भागा ॥ लागीं सुनैं श्रवन मन लाई । आदिहु तें सब कथा सुनाई ॥

Chapter : 7 Number : 14

श्रवनामृत जेहिं कथा सुहाई । कहि सो प्रगट होति किन भाई ॥ तब हनुमंत निकट चलि गयऊ । फिरि बैंठीं मन बिसमय भयऊ ॥

Chapter : 7 Number : 14

राम दूत मैं मातु जानकी । सत्य सपथ करुनानिधान की ॥ यह मुद्रिका मातु मैं आनी । दीन्हि राम तुम्ह कहँ सहिदानी ॥

Chapter : 7 Number : 14

नर बानरहि संग कहु कैसें । कहि कथा भइ संगति जैसें ॥

Chapter : 7 Number : 14

Doha / दोहा

दो. कपि के बचन सप्रेम सुनि उपजा मन बिस्वास ॥ जाना मन क्रम बचन यह कृपासिंधु कर दास ॥ १३ ॥

Chapter : 7 Number : 15

Chaupai / चोपाई

हरिजन जानि प्रीति अति गाढ़ी । सजल नयन पुलकावलि बाढ़ी ॥ बूड़त बिरह जलधि हनुमाना । भयउ तात मों कहुँ जलजाना ॥

Chapter : 7 Number : 15

अब कहु कुसल जाउँ बलिहारी । अनुज सहित सुख भवन खरारी ॥ कोमलचित कृपाल रघुराई । कपि केहि हेतु धरी निठुराई ॥

Chapter : 7 Number : 15

सहज बानि सेवक सुख दायक । कबहुँक सुरति करत रघुनायक ॥ कबहुँ नयन मम सीतल ताता । होइहहि निरखि स्याम मृदु गाता ॥

Chapter : 7 Number : 15

बचनु न आव नयन भरे बारी । अहह नाथ हौं निपट बिसारी ॥ देखि परम बिरहाकुल सीता । बोला कपि मृदु बचन बिनीता ॥

Chapter : 7 Number : 15

मातु कुसल प्रभु अनुज समेता । तव दुख दुखी सुकृपा निकेता ॥ जनि जननी मानहु जियँ ऊना । तुम्ह ते प्रेमु राम कें दूना ॥

Chapter : 7 Number : 15

Doha / दोहा

दो. रघुपति कर संदेसु अब सुनु जननी धरि धीर । अस कहि कपि गद गद भयउ भरे बिलोचन नीर ॥ १४ ॥

Chapter : 7 Number : 16

Chaupai / चोपाई

कहेउ राम बियोग तव सीता । मो कहुँ सकल भए बिपरीता ॥ नव तरु किसलय मनहुँ कृसानू । कालनिसा सम निसि ससि भानू ॥

Chapter : 7 Number : 16

कुबलय बिपिन कुंत बन सरिसा । बारिद तपत तेल जनु बरिसा ॥ जे हित रहे करत तेइ पीरा । उरग स्वास सम त्रिबिध समीरा ॥

Chapter : 7 Number : 16

कहेहू तें कछु दुख घटि होई । काहि कहौं यह जान न कोई ॥ तत्त्व प्रेम कर मम अरु तोरा । जानत प्रिया एकु मनु मोरा ॥

Chapter : 7 Number : 16

सो मनु सदा रहत तोहि पाहीं । जानु प्रीति रसु एतेनहि माहीं ॥ प्रभु संदेसु सुनत बैदेही । मगन प्रेम तन सुधि नहिं तेही ॥

Chapter : 7 Number : 16

कह कपि हृदयँ धीर धरु माता । सुमिरु राम सेवक सुखदाता ॥ उर आनहु रघुपति प्रभुताई । सुनि मम बचन तजहु कदराई ॥

Chapter : 7 Number : 16

Doha / दोहा

दो. निसिचर निकर पतंग सम रघुपति बान कृसानु । जननी हृदयँ धीर धरु जरे निसाचर जानु ॥ १५ ॥

Chapter : 7 Number : 17

Chaupai / चोपाई

जौं रघुबीर होति सुधि पाई । करते नहिं बिलंबु रघुराई ॥ रामबान रबि उएँ जानकी । तम बरूथ कहँ जातुधान की ॥

Chapter : 7 Number : 17

अबहिं मातु मैं जाउँ लवाई । प्रभु आयसु नहिं राम दोहाई ॥ कछुक दिवस जननी धरु धीरा । कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा ॥

Chapter : 7 Number : 17

निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं । तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं ॥ हैं सुत कपि सब तुम्हहि समाना । जातुधान अति भट बलवाना ॥

Chapter : 7 Number : 17

मोरें हृदय परम संदेहा । सुनि कपि प्रगट कीन्ह निज देहा ॥ कनक भूधराकार सरीरा । समर भयंकर अतिबल बीरा ॥

Chapter : 7 Number : 17

Doha / दोहा

दो. सुनु माता साखामृग नहिं बल बुद्धि बिसाल । प्रभु प्रताप तें गरुड़हि खाइ परम लघु ब्याल ॥ १६ ॥

Chapter : 7 Number : 18

Chaupai / चोपाई

मन संतोष सुनत कपि बानी । भगति प्रताप तेज बल सानी ॥ आसिष दीन्हि रामप्रिय जाना । होहु तात बल सील निधाना ॥

Chapter : 7 Number : 18

अजर अमर गुननिधि सुत होहू । करहुँ बहुत रघुनायक छोहू ॥ करहुँ कृपा प्रभु अस सुनि काना । निर्भर प्रेम मगन हनुमाना ॥

Chapter : 7 Number : 18

बार बार नाएसि पद सीसा । बोला बचन जोरि कर कीसा ॥ अब कृतकृत्य भयउँ मैं माता । आसिष तव अमोघ बिख्याता ॥

Chapter : 7 Number : 18

सुनहु मातु मोहि अतिसय भूखा । लागि देखि सुंदर फल रूखा ॥ सुनु सुत करहिं बिपिन रखवारी । परम सुभट रजनीचर भारी ॥

Chapter : 7 Number : 18

तिन्ह कर भय माता मोहि नाहीं । जौं तुम्ह सुख मानहु मन माहीं ॥

Chapter : 7 Number : 18

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