ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. कपिहि बिलोकि दसानन बिहसा कहि दुर्बाद । सुत बध सुरति कीन्हि पुनि उपजा हृदयँ बिषाद ॥ २० ॥
Chaupai / चोपाई
कह लंकेस कवन तैं कीसा । केहिं के बल घालेहि बन खीसा ॥ की धौं श्रवन सुनेहि नहिं मोही । देखउँ अति असंक सठ तोही ॥
मारे निसिचर केहिं अपराधा । कहु सठ तोहि न प्रान कइ बाधा ॥ सुन रावन ब्रह्मांड निकाया । पाइ जासु बल बिरचित माया ॥
जाकें बल बिरंचि हरि ईसा । पालत सृजत हरत दससीसा । जा बल सीस धरत सहसानन । अंडकोस समेत गिरि कानन ॥
धरइ जो बिबिध देह सुरत्राता । तुम्ह ते सठन्ह सिखावनु दाता । हर कोदंड कठिन जेहि भंजा । तेहि समेत नृप दल मद गंजा ॥
खर दूषन त्रिसिरा अरु बाली । बधे सकल अतुलित बलसाली ॥
Doha / दोहा
दो. जाके बल लवलेस तें जितेहु चराचर झारि । तासु दूत मैं जा करि हरि आनेहु प्रिय नारि ॥ २१ ॥
Chaupai / चोपाई
जानउँ मैं तुम्हारि प्रभुताई । सहसबाहु सन परी लराई ॥ समर बालि सन करि जसु पावा । सुनि कपि बचन बिहसि बिहरावा ॥
खायउँ फल प्रभु लागी भूँखा । कपि सुभाव तें तोरेउँ रूखा ॥ सब कें देह परम प्रिय स्वामी । मारहिं मोहि कुमारग गामी ॥
जिन्ह मोहि मारा ते मैं मारे । तेहि पर बाँधेउ तनयँ तुम्हारे ॥ मोहि न कछु बाँधे कइ लाजा । कीन्ह चहउँ निज प्रभु कर काजा ॥
बिनती करउँ जोरि कर रावन । सुनहु मान तजि मोर सिखावन ॥ देखहु तुम्ह निज कुलहि बिचारी । भ्रम तजि भजहु भगत भय हारी ॥
जाकें डर अति काल डेराई । जो सुर असुर चराचर खाई ॥ तासों बयरु कबहुँ नहिं कीजै । मोरे कहें जानकी दीजै ॥
Doha / दोहा
दो. प्रनतपाल रघुनायक करुना सिंधु खरारि । गएँ सरन प्रभु राखिहैं तव अपराध बिसारि ॥ २२ ॥
Chaupai / चोपाई
राम चरन पंकज उर धरहू । लंका अचल राज तुम्ह करहू ॥ रिषि पुलिस्त जसु बिमल मंयका । तेहि ससि महुँ जनि होहु कलंका ॥
राम नाम बिनु गिरा न सोहा । देखु बिचारि त्यागि मद मोहा ॥ बसन हीन नहिं सोह सुरारी । सब भूषण भूषित बर नारी ॥
राम बिमुख संपति प्रभुताई । जाइ रही पाई बिनु पाई ॥ सजल मूल जिन्ह सरितन्ह नाहीं । बरषि गए पुनि तबहिं सुखाहीं ॥
सुनु दसकंठ कहउँ पन रोपी । बिमुख राम त्राता नहिं कोपी ॥ संकर सहस बिष्नु अज तोही । सकहिं न राखि राम कर द्रोही ॥
Doha / दोहा
दो. मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान । भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान ॥ २३ ॥
Chaupai / चोपाई
जदपि कहि कपि अति हित बानी । भगति बिबेक बिरति नय सानी ॥ बोला बिहसि महा अभिमानी । मिला हमहि कपि गुर बड़ ग्यानी ॥
मृत्यु निकट आई खल तोही । लागेसि अधम सिखावन मोही ॥ उलटा होइहि कह हनुमाना । मतिभ्रम तोर प्रगट मैं जाना ॥
सुनि कपि बचन बहुत खिसिआना । बेगि न हरहुँ मूढ़ कर प्राना ॥ सुनत निसाचर मारन धाए । सचिवन्ह सहित बिभीषनु आए ।
नाइ सीस करि बिनय बहूता । नीति बिरोध न मारिअ दूता ॥ आन दंड कछु करिअ गोसाँई । सबहीं कहा मंत्र भल भाई ॥
सुनत बिहसि बोला दसकंधर । अंग भंग करि पठइअ बंदर ॥
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