ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
एक बार बसिष्ट मुनि आए। जहाँ राम सुखधाम सुहाए ॥ अति आदर रघुनायक कीन्हा। पद पखारि पादोदक लीन्हा ॥
राम सुनहु मुनि कह कर जोरी। कृपासिंधु बिनती कछु मोरी ॥ देखि देखि आचरन तुम्हारा। होत मोह मम हृदयँ अपारा ॥
महिमा अमित बेद नहिं जाना। मैं केहि भाँति कहउँ भगवाना ॥ उपरोहित्य कर्म अति मंदा। बेद पुरान सुमृति कर निंदा ॥
जब न लेउँ मैं तब बिधि मोही। कहा लाभ आगें सुत तोही ॥ परमातमा ब्रह्म नर रूपा। होइहि रघुकुल भूषन भूपा ॥
Doha / दोहा
दो. -तब मैं हृदयँ बिचारा जोग जग्य ब्रत दान । जा कहुँ करिअ सो पैहउँ धर्म न एहि सम आन ॥ ४८ ॥
Chaupai / चोपाई
जप तप नियम जोग निज धर्मा। श्रुति संभव नाना सुभ कर्मा ॥ ग्यान दया दम तीरथ मज्जन। जहँ लगि धर्म कहत श्रुति सज्जन ॥
आगम निगम पुरान अनेका। पढ़े सुने कर फल प्रभु एका ॥ तब पद पंकज प्रीति निरंतर। सब साधन कर यह फल सुंदर ॥
छूटइ मल कि मलहि के धोएँ। घृत कि पाव कोइ बारि बिलोएँ ॥ प्रेम भगति जल बिनु रघुराई। अभिअंतर मल कबहुँ न जाई ॥
सोइ सर्बग्य तग्य सोइ पंडित। सोइ गुन गृह बिग्यान अखंडित ॥ दच्छ सकल लच्छन जुत सोई। जाकें पद सरोज रति होई ॥
Doha / दोहा
दो. नाथ एक बर मागउँ राम कृपा करि देहु । जन्म जन्म प्रभु पद कमल कबहुँ घटै जनि नेहु ॥ ४९ ॥
Chaupai / चोपाई
अस कहि मुनि बसिष्ट गृह आए। कृपासिंधु के मन अति भाए ॥ हनूमान भरतादिक भ्राता। संग लिए सेवक सुखदाता ॥
पुनि कृपाल पुर बाहेर गए। गज रथ तुरग मगावत भए ॥ देखि कृपा करि सकल सराहे। दिए उचित जिन्ह जिन्ह तेइ चाहे ॥
हरन सकल श्रम प्रभु श्रम पाई। गए जहाँ सीतल अवँराई ॥ भरत दीन्ह निज बसन डसाई। बैठे प्रभु सेवहिं सब भाई ॥
मारुतसुत तब मारूत करई। पुलक बपुष लोचन जल भरई ॥ हनूमान सम नहिं बड़भागी। नहिं कोउ राम चरन अनुरागी ॥
गिरिजा जासु प्रीति सेवकाई। बार बार प्रभु निज मुख गाई ॥
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