Ram Charita Manas

Uttara Kanda

Listening to Insults of Guruji and Shiva's curse

ॐ श्री परमात्मने नमः


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ॐ श्री गणेशाय नमः

Sortha / सोरठा

सो. गुर नित मोहि प्रबोध दुखित देखि आचरन मम । मोहि उपजइ अति क्रोध दंभिहि नीति कि भावई ॥ १०५(ख) ॥

Chapter : 14 Number : 110

Chaupai / चोपाई

एक बार गुर लीन्ह बोलाई। मोहि नीति बहु भाँति सिखाई ॥ सिव सेवा कर फल सुत सोई। अबिरल भगति राम पद होई ॥

Chapter : 14 Number : 110

रामहि भजहिं तात सिव धाता। नर पावँर कै केतिक बाता ॥ जासु चरन अज सिव अनुरागी। तातु द्रोहँ सुख चहसि अभागी ॥

Chapter : 14 Number : 110

हर कहुँ हरि सेवक गुर कहेऊ। सुनि खगनाथ हृदय मम दहेऊ ॥ अधम जाति मैं बिद्या पाएँ। भयउँ जथा अहि दूध पिआएँ ॥

Chapter : 14 Number : 110

मानी कुटिल कुभाग्य कुजाती। गुर कर द्रोह करउँ दिनु राती ॥ अति दयाल गुर स्वल्प न क्रोधा। पुनि पुनि मोहि सिखाव सुबोधा ॥

Chapter : 14 Number : 110

जेहि ते नीच बड़ाई पावा। सो प्रथमहिं हति ताहि नसावा ॥ धूम अनल संभव सुनु भाई। तेहि बुझाव घन पदवी पाई ॥

Chapter : 14 Number : 110

रज मग परी निरादर रहई। सब कर पद प्रहार नित सहई ॥ मरुत उड़ाव प्रथम तेहि भरई। पुनि नृप नयन किरीटन्हि परई ॥

Chapter : 14 Number : 110

सुनु खगपति अस समुझि प्रसंगा। बुध नहिं करहिं अधम कर संगा ॥ कबि कोबिद गावहिं असि नीती। खल सन कलह न भल नहिं प्रीती ॥

Chapter : 14 Number : 110

उदासीन नित रहिअ गोसाईं। खल परिहरिअ स्वान की नाईं ॥ मैं खल हृदयँ कपट कुटिलाई। गुर हित कहइ न मोहि सोहाई ॥

Chapter : 14 Number : 110

Doha / दोहा

दो. एक बार हर मंदिर जपत रहेउँ सिव नाम । गुर आयउ अभिमान तें उठि नहिं कीन्ह प्रनाम ॥ १०६(क) ॥

Chapter : 14 Number : 111

सो दयाल नहिं कहेउ कछु उर न रोष लवलेस । अति अघ गुर अपमानता सहि नहिं सके महेस ॥ १०६(ख) ॥

Chapter : 14 Number : 111

Chaupai / चोपाई

मंदिर माझ भई नभ बानी। रे हतभाग्य अग्य अभिमानी ॥ जद्यपि तव गुर कें नहिं क्रोधा। अति कृपाल चित सम्यक बोधा ॥

Chapter : 14 Number : 111

तदपि साप सठ दैहउँ तोही। नीति बिरोध सोहाइ न मोही ॥ जौं नहिं दंड करौं खल तोरा। भ्रष्ट होइ श्रुतिमारग मोरा ॥

Chapter : 14 Number : 111

जे सठ गुर सन इरिषा करहीं। रौरव नरक कोटि जुग परहीं ॥ त्रिजग जोनि पुनि धरहिं सरीरा। अयुत जन्म भरि पावहिं पीरा ॥

Chapter : 14 Number : 111

बैठ रहेसि अजगर इव पापी। सर्प होहि खल मल मति ब्यापी ॥ महा बिटप कोटर महुँ जाई ॥ रहु अधमाधम अधगति पाई ॥

Chapter : 14 Number : 111

Doha / दोहा

दो. हाहाकार कीन्ह गुर दारुन सुनि सिव साप ॥ कंपित मोहि बिलोकि अति उर उपजा परिताप ॥ १०७(क) ॥

Chapter : 14 Number : 112

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