ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Sortha / सोरठा
सो. गुर नित मोहि प्रबोध दुखित देखि आचरन मम । मोहि उपजइ अति क्रोध दंभिहि नीति कि भावई ॥ १०५(ख) ॥
Chaupai / चोपाई
एक बार गुर लीन्ह बोलाई। मोहि नीति बहु भाँति सिखाई ॥ सिव सेवा कर फल सुत सोई। अबिरल भगति राम पद होई ॥
रामहि भजहिं तात सिव धाता। नर पावँर कै केतिक बाता ॥ जासु चरन अज सिव अनुरागी। तातु द्रोहँ सुख चहसि अभागी ॥
हर कहुँ हरि सेवक गुर कहेऊ। सुनि खगनाथ हृदय मम दहेऊ ॥ अधम जाति मैं बिद्या पाएँ। भयउँ जथा अहि दूध पिआएँ ॥
मानी कुटिल कुभाग्य कुजाती। गुर कर द्रोह करउँ दिनु राती ॥ अति दयाल गुर स्वल्प न क्रोधा। पुनि पुनि मोहि सिखाव सुबोधा ॥
जेहि ते नीच बड़ाई पावा। सो प्रथमहिं हति ताहि नसावा ॥ धूम अनल संभव सुनु भाई। तेहि बुझाव घन पदवी पाई ॥
रज मग परी निरादर रहई। सब कर पद प्रहार नित सहई ॥ मरुत उड़ाव प्रथम तेहि भरई। पुनि नृप नयन किरीटन्हि परई ॥
सुनु खगपति अस समुझि प्रसंगा। बुध नहिं करहिं अधम कर संगा ॥ कबि कोबिद गावहिं असि नीती। खल सन कलह न भल नहिं प्रीती ॥
उदासीन नित रहिअ गोसाईं। खल परिहरिअ स्वान की नाईं ॥ मैं खल हृदयँ कपट कुटिलाई। गुर हित कहइ न मोहि सोहाई ॥
Doha / दोहा
दो. एक बार हर मंदिर जपत रहेउँ सिव नाम । गुर आयउ अभिमान तें उठि नहिं कीन्ह प्रनाम ॥ १०६(क) ॥
सो दयाल नहिं कहेउ कछु उर न रोष लवलेस । अति अघ गुर अपमानता सहि नहिं सके महेस ॥ १०६(ख) ॥
Chaupai / चोपाई
मंदिर माझ भई नभ बानी। रे हतभाग्य अग्य अभिमानी ॥ जद्यपि तव गुर कें नहिं क्रोधा। अति कृपाल चित सम्यक बोधा ॥
तदपि साप सठ दैहउँ तोही। नीति बिरोध सोहाइ न मोही ॥ जौं नहिं दंड करौं खल तोरा। भ्रष्ट होइ श्रुतिमारग मोरा ॥
जे सठ गुर सन इरिषा करहीं। रौरव नरक कोटि जुग परहीं ॥ त्रिजग जोनि पुनि धरहिं सरीरा। अयुत जन्म भरि पावहिं पीरा ॥
बैठ रहेसि अजगर इव पापी। सर्प होहि खल मल मति ब्यापी ॥ महा बिटप कोटर महुँ जाई ॥ रहु अधमाधम अधगति पाई ॥
Doha / दोहा
दो. हाहाकार कीन्ह गुर दारुन सुनि सिव साप ॥ कंपित मोहि बिलोकि अति उर उपजा परिताप ॥ १०७(क) ॥
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