ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
रघुपति भगति सजीवन मूरी। अनूपान श्रद्धा मति पूरी ॥ एहि बिधि भलेहिं सो रोग नसाहीं। नाहिं त जतन कोटि नहिं जाहीं ॥
जानिअ तब मन बिरुज गोसाँई। जब उर बल बिराग अधिकाई ॥ सुमति छुधा बाढ़इ नित नई। बिषय आस दुर्बलता गई ॥
बिमल ग्यान जल जब सो नहाई। तब रह राम भगति उर छाई ॥ सिव अज सुक सनकादिक नारद। जे मुनि ब्रह्म बिचार बिसारद ॥
सब कर मत खगनायक एहा। करिअ राम पद पंकज नेहा ॥ श्रुति पुरान सब ग्रंथ कहाहीं। रघुपति भगति बिना सुख नाहीं ॥
कमठ पीठ जामहिं बरु बारा। बंध्या सुत बरु काहुहि मारा ॥ फूलहिं नभ बरु बहुबिधि फूला। जीव न लह सुख हरि प्रतिकूला ॥
तृषा जाइ बरु मृगजल पाना। बरु जामहिं सस सीस बिषाना ॥ अंधकारु बरु रबिहि नसावै। राम बिमुख न जीव सुख पावै ॥
हिम ते अनल प्रगट बरु होई। बिमुख राम सुख पाव न कोई ॥ दो०=बारि मथें घृत होइ बरु सिकता ते बरु तेल।
Doha / दोहा
दो. बारि मथें घृत होइ बरु सिकता ते बरु तेल । बिनु हरि भजन न भव तरिअ यह सिद्धांत अपेल ॥ १२२(क) ॥
मसकहि करइ बिंरंचि प्रभु अजहि मसक ते हीन । अस बिचारि तजि संसय रामहि भजहिं प्रबीन ॥ १२२(ख) ॥
Shloka / श्लोक्
श्लोक- विनिच्श्रितं वदामि ते न अन्यथा वचांसि मे । हरिं नरा भजन्ति येऽतिदुस्तरं तरन्ति ते ॥ १२२(ग) ॥
Chaupai / चोपाई
कहेउँ नाथ हरि चरित अनूपा। ब्यास समास स्वमति अनुरुपा ॥ श्रुति सिद्धांत इहइ उरगारी। राम भजिअ सब काज बिसारी ॥
प्रभु रघुपति तजि सेइअ काही। मोहि से सठ पर ममता जाही ॥ तुम्ह बिग्यानरूप नहिं मोहा। नाथ कीन्हि मो पर अति छोहा ॥
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