ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा ॥ सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती ॥
चारिउ चरन धर्म जग माहीं। पूरि रहा सपनेहुँ अघ नाहीं ॥ राम भगति रत नर अरु नारी। सकल परम गति के अधिकारी ॥
अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा। सब सुंदर सब बिरुज सरीरा ॥ नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना। नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना ॥
सब निर्दंभ धर्मरत पुनी। नर अरु नारि चतुर सब गुनी ॥ सब गुनग्य पंडित सब ग्यानी। सब कृतग्य नहिं कपट सयानी ॥
Doha / दोहा
दो. राम राज नभगेस सुनु सचराचर जग माहिं ॥ काल कर्म सुभाव गुन कृत दुख काहुहि नाहिं ॥ २१ ॥
Chaupai / चोपाई
भूमि सप्त सागर मेखला। एक भूप रघुपति कोसला ॥ भुअन अनेक रोम प्रति जासू। यह प्रभुता कछु बहुत न तासू ॥
सो महिमा समुझत प्रभु केरी। यह बरनत हीनता घनेरी ॥ सोउ महिमा खगेस जिन्ह जानी। फिरी एहिं चरित तिन्हहुँ रति मानी ॥
सोउ जाने कर फल यह लीला। कहहिं महा मुनिबर दमसीला ॥ राम राज कर सुख संपदा। बरनि न सकइ फनीस सारदा ॥
सब उदार सब पर उपकारी। बिप्र चरन सेवक नर नारी ॥ एकनारि ब्रत रत सब झारी। ते मन बच क्रम पति हितकारी ॥
Doha / दोहा
दो. दंड जतिन्ह कर भेद जहँ नर्तक नृत्य समाज । जीतहु मनहि सुनिअ अस रामचंद्र कें राज ॥ २२ ॥
Chaupai / चोपाई
फूलहिं फरहिं सदा तरु कानन। रहहि एक सँग गज पंचानन ॥ खग मृग सहज बयरु बिसराई। सबन्हि परस्पर प्रीति बढ़ाई ॥
कूजहिं खग मृग नाना बृंदा। अभय चरहिं बन करहिं अनंदा ॥ सीतल सुरभि पवन बह मंदा। गूंजत अलि लै चलि मकरंदा ॥
लता बिटप मागें मधु चवहीं। मनभावतो धेनु पय स्त्रवहीं ॥ ससि संपन्न सदा रह धरनी। त्रेताँ भइ कृतजुग कै करनी ॥
प्रगटीं गिरिन्ह बिबिध मनि खानी। जगदातमा भूप जग जानी ॥ सरिता सकल बहहिं बर बारी। सीतल अमल स्वाद सुखकारी ॥
सागर निज मरजादाँ रहहीं। डारहिं रत्न तटन्हि नर लहहीं ॥ सरसिज संकुल सकल तड़ागा। अति प्रसन्न दस दिसा बिभागा ॥
Doha / दोहा
दो. बिधु महि पूर मयूखन्हि रबि तप जेतनेहि काज । मागें बारिद देहिं जल रामचंद्र के राज ॥ २३ ॥
Chaupai / चोपाई
कोटिन्ह बाजिमेध प्रभु कीन्हे। दान अनेक द्विजन्ह कहँ दीन्हे ॥ श्रुति पथ पालक धर्म धुरंधर। गुनातीत अरु भोग पुरंदर ॥
पति अनुकूल सदा रह सीता। सोभा खानि सुसील बिनीता ॥ जानति कृपासिंधु प्रभुताई। सेवति चरन कमल मन लाई ॥
जद्यपि गृहँ सेवक सेवकिनी। बिपुल सदा सेवा बिधि गुनी ॥ निज कर गृह परिचरजा करई। रामचंद्र आयसु अनुसरई ॥
जेहि बिधि कृपासिंधु सुख मानइ। सोइ कर श्री सेवा बिधि जानइ ॥ कौसल्यादि सासु गृह माहीं। सेवइ सबन्हि मान मद नाहीं ॥
उमा रमा ब्रह्मादि बंदिता। जगदंबा संततमनिंदिता ॥
Doha / दोहा
दो. जासु कृपा कटाच्छु सुर चाहत चितव न सोइ । राम पदारबिंद रति करति सुभावहि खोइ ॥ २४ ॥
Chaupai / चोपाई
सेवहिं सानकूल सब भाई। राम चरन रति अति अधिकाई ॥ प्रभु मुख कमल बिलोकत रहहीं। कबहुँ कृपाल हमहि कछु कहहीं ॥
राम करहिं भ्रातन्ह पर प्रीती। नाना भाँति सिखावहिं नीती ॥ हरषित रहहिं नगर के लोगा। करहिं सकल सुर दुर्लभ भोगा ॥
अहनिसि बिधिहि मनावत रहहीं। श्रीरघुबीर चरन रति चहहीं ॥ दुइ सुत सुन्दर सीताँ जाए। लव कुस बेद पुरानन्ह गाए ॥
दोउ बिजई बिनई गुन मंदिर। हरि प्रतिबिंब मनहुँ अति सुंदर ॥ दुइ दुइ सुत सब भ्रातन्ह केरे। भए रूप गुन सील घनेरे ॥
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