ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Doha / दोहा
दो. ग्यान गिरा गोतीत अज माया मन गुन पार । सोइ सच्चिदानंद घन कर नर चरित उदार ॥ २५ ॥
Chaupai / चोपाई
प्रातकाल सरऊ करि मज्जन। बैठहिं सभाँ संग द्विज सज्जन ॥ बेद पुरान बसिष्ट बखानहिं। सुनहिं राम जद्यपि सब जानहिं ॥
अनुजन्ह संजुत भोजन करहीं। देखि सकल जननीं सुख भरहीं ॥ भरत सत्रुहन दोनउ भाई। सहित पवनसुत उपबन जाई ॥
बूझहिं बैठि राम गुन गाहा। कह हनुमान सुमति अवगाहा ॥ सुनत बिमल गुन अति सुख पावहिं। बहुरि बहुरि करि बिनय कहावहिं ॥
सब कें गृह गृह होहिं पुराना। रामचरित पावन बिधि नाना ॥ नर अरु नारि राम गुन गानहिं। करहिं दिवस निसि जात न जानहिं ॥
Doha / दोहा
दो. अवधपुरी बासिंह कर सुख संपदा समाज । सहस सेष नहिं कहि सकहिं जहँ नृप राम बिराज ॥ २६ ॥
Chaupai / चोपाई
नारदादि सनकादि मुनीसा। दरसन लागि कोसलाधीसा ॥ दिन प्रति सकल अजोध्या आवहिं। देखि नगरु बिरागु बिसरावहिं ॥
जातरूप मनि रचित अटारीं। नाना रंग रुचिर गच ढारीं ॥ पुर चहुँ पास कोट अति सुंदर। रचे कँगूरा रंग रंग बर ॥
नव ग्रह निकर अनीक बनाई। जनु घेरी अमरावति आई ॥ महि बहु रंग रचित गच काँचा। जो बिलोकि मुनिबर मन नाचा ॥
धवल धाम ऊपर नभ चुंबत। कलस मनहुँ रबि ससि दुति निंदत ॥ बहु मनि रचित झरोखा भ्राजहिं। गृह गृह प्रति मनि दीप बिराजहिं ॥
Chanda / छन्द
छं. मनि दीप राजहिं भवन भ्राजहिं देहरीं बिद्रुम रची । मनि खंभ भीति बिरंचि बिरची कनक मनि मरकत खची ॥
सुंदर मनोहर मंदिरायत अजिर रुचिर फटिक रचे । प्रति द्वार द्वार कपाट पुरट बनाइ बहु बज्रन्हि खचे ॥
Doha / दोहा
दो. चारु चित्रसाला गृह गृह प्रति लिखे बनाइ । राम चरित जे निरख मुनि ते मन लेहिं चोराइ ॥ २७ ॥
Chaupai / चोपाई
सुमन बाटिका सबहिं लगाई। बिबिध भाँति करि जतन बनाई ॥ लता ललित बहु जाति सुहाई। फूलहिं सदा बंसत कि नाई ॥
गुंजत मधुकर मुखर मनोहर। मारुत त्रिबिध सदा बह सुंदर ॥ नाना खग बालकन्हि जिआए। बोलत मधुर उड़ात सुहाए ॥
मोर हंस सारस पारावत। भवननि पर सोभा अति पावत ॥ जहँ तहँ देखहिं निज परिछाहीं। बहु बिधि कूजहिं नृत्य कराहीं ॥
सुक सारिका पढ़ावहिं बालक। कहहु राम रघुपति जनपालक ॥ राज दुआर सकल बिधि चारू। बीथीं चौहट रूचिर बजारू ॥
Chanda / छन्द
छं. बाजार रुचिर न बनइ बरनत बस्तु बिनु गथ पाइए । जहँ भूप रमानिवास तहँ की संपदा किमि गाइए ॥
बैठे बजाज सराफ बनिक अनेक मनहुँ कुबेर ते । सब सुखी सब सच्चरित सुंदर नारि नर सिसु जरठ जे ॥
Doha / दोहा
दो. उत्तर दिसि सरजू बह निर्मल जल गंभीर । बाँधे घाट मनोहर स्वल्प पंक नहिं तीर ॥ २८ ॥
Chaupai / चोपाई
दूरि फराक रुचिर सो घाटा। जहँ जल पिअहिं बाजि गज ठाटा ॥ पनिघट परम मनोहर नाना। तहाँ न पुरुष करहिं अस्नाना ॥
राजघाट सब बिधि सुंदर बर। मज्जहिं तहाँ बरन चारिउ नर ॥ तीर तीर देवन्ह के मंदिर। चहुँ दिसि तिन्ह के उपबन सुंदर ॥
कहुँ कहुँ सरिता तीर उदासी। बसहिं ग्यान रत मुनि संन्यासी ॥ तीर तीर तुलसिका सुहाई। बृंद बृंद बहु मुनिन्ह लगाई ॥
पुर सोभा कछु बरनि न जाई। बाहेर नगर परम रुचिराई ॥ देखत पुरी अखिल अघ भागा। बन उपबन बापिका तड़ागा ॥
Chanda / छन्द
छं. बापीं तड़ाग अनूप कूप मनोहरायत सोहहीं । सोपान सुंदर नीर निर्मल देखि सुर मुनि मोहहीं ॥
बहु रंग कंज अनेक खग कूजहिं मधुप गुंजारहीं । आराम रम्य पिकादि खग रव जनु पथिक हंकारहीं ॥
Doha / दोहा
दो. रमानाथ जहँ राजा सो पुर बरनि कि जाइ । अनिमादिक सुख संपदा रहीं अवध सब छाइ ॥ २९ ॥
Chaupai / चोपाई
जहँ तहँ नर रघुपति गुन गावहिं। बैठि परसपर इहइ सिखावहिं ॥ भजहु प्रनत प्रतिपालक रामहि। सोभा सील रूप गुन धामहि ॥
जलज बिलोचन स्यामल गातहि। पलक नयन इव सेवक त्रातहि ॥ धृत सर रुचिर चाप तूनीरहि। संत कंज बन रबि रनधीरहि ॥
काल कराल ब्याल खगराजहि। नमत राम अकाम ममता जहि ॥ लोभ मोह मृगजूथ किरातहि। मनसिज करि हरि जन सुखदातहि ॥
संसय सोक निबिड़ तम भानुहि। दनुज गहन घन दहन कृसानुहि ॥ जनकसुता समेत रघुबीरहि। कस न भजहु भंजन भव भीरहि ॥
बहु बासना मसक हिम रासिहि। सदा एकरस अज अबिनासिहि ॥ मुनि रंजन भंजन महि भारहि। तुलसिदास के प्रभुहि उदारहि ॥
Doha / दोहा
दो. एहि बिधि नगर नारि नर करहिं राम गुन गान । सानुकूल सब पर रहहिं संतत कृपानिधान ॥ ३० ॥
Chaupai / चोपाई
जब ते राम प्रताप खगेसा। उदित भयउ अति प्रबल दिनेसा ॥ पूरि प्रकास रहेउ तिहुँ लोका। बहुतेन्ह सुख बहुतन मन सोका ॥
जिन्हहि सोक ते कहउँ बखानी। प्रथम अबिद्या निसा नसानी ॥ अघ उलूक जहँ तहाँ लुकाने। काम क्रोध कैरव सकुचाने ॥
बिबिध कर्म गुन काल सुभाऊ। ए चकोर सुख लहहिं न काऊ ॥ मत्सर मान मोह मद चोरा। इन्ह कर हुनर न कवनिहुँ ओरा ॥
धरम तड़ाग ग्यान बिग्याना। ए पंकज बिकसे बिधि नाना ॥ सुख संतोष बिराग बिबेका। बिगत सोक ए कोक अनेका ॥
Doha / दोहा
दो. यह प्रताप रबि जाकें उर जब करइ प्रकास । पछिले बाढ़हिं प्रथम जे कहे ते पावहिं नास ॥ ३१ ॥
Chaupai / चोपाई
भ्रातन्ह सहित रामु एक बारा। संग परम प्रिय पवनकुमारा ॥ सुंदर उपबन देखन गए। सब तरु कुसुमित पल्लव नए ॥
जानि समय सनकादिक आए। तेज पुंज गुन सील सुहाए ॥ ब्रह्मानंद सदा लयलीना। देखत बालक बहुकालीना ॥
रूप धरें जनु चारिउ बेदा। समदरसी मुनि बिगत बिभेदा ॥ आसा बसन ब्यसन यह तिन्हहीं। रघुपति चरित होइ तहँ सुनहीं ॥
तहाँ रहे सनकादि भवानी। जहँ घटसंभव मुनिबर ग्यानी ॥ राम कथा मुनिबर बहु बरनी। ग्यान जोनि पावक जिमि अरनी ॥
Doha / दोहा
दो. देखि राम मुनि आवत हरषि दंडवत कीन्ह । स्वागत पूँछि पीत पट प्रभु बैठन कहँ दीन्ह ॥ ३२ ॥
Chaupai / चोपाई
कीन्ह दंडवत तीनिउँ भाई। सहित पवनसुत सुख अधिकाई ॥ मुनि रघुपति छबि अतुल बिलोकी। भए मगन मन सके न रोकी ॥
स्यामल गात सरोरुह लोचन। सुंदरता मंदिर भव मोचन ॥ एकटक रहे निमेष न लावहिं। प्रभु कर जोरें सीस नवावहिं ॥
तिन्ह कै दसा देखि रघुबीरा। स्त्रवत नयन जल पुलक सरीरा ॥ कर गहि प्रभु मुनिबर बैठारे। परम मनोहर बचन उचारे ॥
आजु धन्य मैं सुनहु मुनीसा। तुम्हरें दरस जाहिं अघ खीसा ॥ बड़े भाग पाइब सतसंगा। बिनहिं प्रयास होहिं भव भंगा ॥
Doha / दोहा
दो. संत संग अपबर्ग कर कामी भव कर पंथ । कहहि संत कबि कोबिद श्रुति पुरान सदग्रंथ ॥ ३३ ॥
Chaupai / चोपाई
सुनि प्रभु बचन हरषि मुनि चारी। पुलकित तन अस्तुति अनुसारी ॥ जय भगवंत अनंत अनामय। अनघ अनेक एक करुनामय ॥
जय निर्गुन जय जय गुन सागर। सुख मंदिर सुंदर अति नागर ॥ जय इंदिरा रमन जय भूधर। अनुपम अज अनादि सोभाकर ॥
ग्यान निधान अमान मानप्रद। पावन सुजस पुरान बेद बद ॥ तग्य कृतग्य अग्यता भंजन। नाम अनेक अनाम निरंजन ॥
सर्ब सर्बगत सर्ब उरालय। बससि सदा हम कहुँ परिपालय ॥ द्वंद बिपति भव फंद बिभंजय। ह्रदि बसि राम काम मद गंजय ॥
Doha / दोहा
दो. परमानंद कृपायतन मन परिपूरन काम । प्रेम भगति अनपायनी देहु हमहि श्रीराम ॥ ३४ ॥
Chaupai / चोपाई
देहु भगति रघुपति अति पावनि। त्रिबिध ताप भव दाप नसावनि ॥ प्रनत काम सुरधेनु कलपतरु। होइ प्रसन्न दीजै प्रभु यह बरु ॥
भव बारिधि कुंभज रघुनायक। सेवत सुलभ सकल सुख दायक ॥ मन संभव दारुन दुख दारय। दीनबंधु समता बिस्तारय ॥
आस त्रास इरिषादि निवारक। बिनय बिबेक बिरति बिस्तारक ॥ भूप मौलि मन मंडन धरनी। देहि भगति संसृति सरि तरनी ॥
मुनि मन मानस हंस निरंतर। चरन कमल बंदित अज संकर ॥ रघुकुल केतु सेतु श्रुति रच्छक। काल करम सुभाउ गुन भच्छक ॥
तारन तरन हरन सब दूषन। तुलसिदास प्रभु त्रिभुवन भूषन ॥
Doha / दोहा
दो. बार बार अस्तुति करि प्रेम सहित सिरु नाइ । ब्रह्म भवन सनकादि गे अति अभीष्ट बर पाइ ॥ ३५ ॥
Chaupai / चोपाई
सनकादिक बिधि लोक सिधाए। भ्रातन्ह राम चरन सिरु नाए ॥ पूछत प्रभुहि सकल सकुचाहीं। चितवहिं सब मारुतसुत पाहीं ॥
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