ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
सुनि चहहिं प्रभु मुख कै बानी। जो सुनि होइ सकल भ्रम हानी ॥ अंतरजामी प्रभु सभ जाना। बूझत कहहु काह हनुमाना ॥
जोरि पानि कह तब हनुमंता। सुनहु दीनदयाल भगवंता ॥ नाथ भरत कछु पूँछन चहहीं। प्रस्न करत मन सकुचत अहहीं ॥
तुम्ह जानहु कपि मोर सुभाऊ। भरतहि मोहि कछु अंतर काऊ ॥ सुनि प्रभु बचन भरत गहे चरना। सुनहु नाथ प्रनतारति हरना ॥
Doha / दोहा
दो. नाथ न मोहि संदेह कछु सपनेहुँ सोक न मोह । केवल कृपा तुम्हारिहि कृपानंद संदोह ॥ ३६ ॥
Chaupai / चोपाई
करउँ कृपानिधि एक ढिठाई। मैं सेवक तुम्ह जन सुखदाई ॥ संतन्ह कै महिमा रघुराई। बहु बिधि बेद पुरानन्ह गाई ॥
श्रीमुख तुम्ह पुनि कीन्हि बड़ाई। तिन्ह पर प्रभुहि प्रीति अधिकाई ॥ सुना चहउँ प्रभु तिन्ह कर लच्छन। कृपासिंधु गुन ग्यान बिचच्छन ॥
संत असंत भेद बिलगाई। प्रनतपाल मोहि कहहु बुझाई ॥ संतन्ह के लच्छन सुनु भ्राता। अगनित श्रुति पुरान बिख्याता ॥
संत असंतन्हि कै असि करनी। जिमि कुठार चंदन आचरनी ॥ काटइ परसु मलय सुनु भाई। निज गुन देइ सुगंध बसाई ॥
Doha / दोहा
दो. ताते सुर सीसन्ह चढ़त जग बल्लभ श्रीखंड । अनल दाहि पीटत घनहिं परसु बदन यह दंड ॥ ३७ ॥
Chaupai / चोपाई
बिषय अलंपट सील गुनाकर। पर दुख दुख सुख सुख देखे पर ॥ सम अभूतरिपु बिमद बिरागी। लोभामरष हरष भय त्यागी ॥
कोमलचित दीनन्ह पर दाया। मन बच क्रम मम भगति अमाया ॥ सबहि मानप्रद आपु अमानी। भरत प्रान सम मम ते प्रानी ॥
बिगत काम मम नाम परायन। सांति बिरति बिनती मुदितायन ॥ सीतलता सरलता मयत्री। द्विज पद प्रीति धर्म जनयत्री ॥
ए सब लच्छन बसहिं जासु उर। जानेहु तात संत संतत फुर ॥ सम दम नियम नीति नहिं डोलहिं। परुष बचन कबहूँ नहिं बोलहिं ॥
Doha / दोहा
दो. निंदा अस्तुति उभय सम ममता मम पद कंज । ते सज्जन मम प्रानप्रिय गुन मंदिर सुख पुंज ॥ ३८ ॥
Chaupai / चोपाई
सनहु असंतन्ह केर सुभाऊ। भूलेहुँ संगति करिअ न काऊ ॥ तिन्ह कर संग सदा दुखदाई। जिमि कलपहि घालइ हरहाई ॥
खलन्ह हृदयँ अति ताप बिसेषी। जरहिं सदा पर संपति देखी ॥ जहँ कहुँ निंदा सुनहिं पराई। हरषहिं मनहुँ परी निधि पाई ॥
काम क्रोध मद लोभ परायन। निर्दय कपटी कुटिल मलायन ॥ बयरु अकारन सब काहू सों। जो कर हित अनहित ताहू सों ॥
झूठइ लेना झूठइ देना। झूठइ भोजन झूठ चबेना ॥ बोलहिं मधुर बचन जिमि मोरा। खाइ महा अति हृदय कठोरा ॥
Doha / दोहा
दो. पर द्रोही पर दार रत पर धन पर अपबाद । ते नर पाँवर पापमय देह धरें मनुजाद ॥ ३९ ॥
Chaupai / चोपाई
लोभइ ओढ़न लोभइ डासन। सिस्त्रोदर पर जमपुर त्रास न ॥ काहू की जौं सुनहिं बड़ाई। स्वास लेहिं जनु जूड़ी आई ॥
जब काहू कै देखहिं बिपती। सुखी भए मानहुँ जग नृपती ॥ स्वारथ रत परिवार बिरोधी। लंपट काम लोभ अति क्रोधी ॥
मातु पिता गुर बिप्र न मानहिं। आपु गए अरु घालहिं आनहिं ॥ करहिं मोह बस द्रोह परावा। संत संग हरि कथा न भावा ॥
अवगुन सिंधु मंदमति कामी। बेद बिदूषक परधन स्वामी ॥ बिप्र द्रोह पर द्रोह बिसेषा। दंभ कपट जियँ धरें सुबेषा ॥
Doha / दोहा
दो. ऐसे अधम मनुज खल कृतजुग त्रेता नाहिं । द्वापर कछुक बृंद बहु होइहहिं कलिजुग माहिं ॥ ४० ॥
Chaupai / चोपाई
पर हित सरिस धर्म नहिं भाई। पर पीड़ा सम नहिं अधमाई ॥ निर्नय सकल पुरान बेद कर। कहेउँ तात जानहिं कोबिद नर ॥
नर सरीर धरि जे पर पीरा। करहिं ते सहहिं महा भव भीरा ॥ करहिं मोह बस नर अघ नाना। स्वारथ रत परलोक नसाना ॥
कालरूप तिन्ह कहँ मैं भ्राता। सुभ अरु असुभ कर्म फल दाता ॥ अस बिचारि जे परम सयाने। भजहिं मोहि संसृत दुख जाने ॥
त्यागहिं कर्म सुभासुभ दायक। भजहिं मोहि सुर नर मुनि नायक ॥ संत असंतन्ह के गुन भाषे। ते न परहिं भव जिन्ह लखि राखे ॥
Doha / दोहा
दो. सुनहु तात माया कृत गुन अरु दोष अनेक । गुन यह उभय न देखिअहिं देखिअ सो अबिबेक ॥ ४१ ॥
Chaupai / चोपाई
श्रीमुख बचन सुनत सब भाई। हरषे प्रेम न हृदयँ समाई ॥ करहिं बिनय अति बारहिं बारा। हनूमान हियँ हरष अपारा ॥
पुनि रघुपति निज मंदिर गए। एहि बिधि चरित करत नित नए ॥ बार बार नारद मुनि आवहिं। चरित पुनीत राम के गावहिं ॥
नित नव चरन देखि मुनि जाहीं। ब्रह्मलोक सब कथा कहाहीं ॥ सुनि बिरंचि अतिसय सुख मानहिं। पुनि पुनि तात करहु गुन गानहिं ॥
सनकादिक नारदहि सराहहिं। जद्यपि ब्रह्म निरत मुनि आहहिं ॥ सुनि गुन गान समाधि बिसारी ॥ सादर सुनहिं परम अधिकारी ॥
Doha / दोहा
दो. जीवनमुक्त ब्रह्मपर चरित सुनहिं तजि ध्यान । जे हरि कथाँ न करहिं रति तिन्ह के हिय पाषान ॥ ४२ ॥
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