ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
Chaupai / चोपाई
एक बार रघुनाथ बोलाए। गुर द्विज पुरबासी सब आए ॥ बैठे गुर मुनि अरु द्विज सज्जन। बोले बचन भगत भव भंजन ॥
सनहु सकल पुरजन मम बानी। कहउँ न कछु ममता उर आनी ॥ नहिं अनीति नहिं कछु प्रभुताई। सुनहु करहु जो तुम्हहि सोहाई ॥
सोइ सेवक प्रियतम मम सोई। मम अनुसासन मानै जोई ॥ जौं अनीति कछु भाषौं भाई। तौं मोहि बरजहु भय बिसराई ॥
बड़ें भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथिन्ह गावा ॥ साधन धाम मोच्छ कर द्वारा। पाइ न जेहिं परलोक सँवारा ॥
Doha / दोहा
दो. सो परत्र दुख पावइ सिर धुनि धुनि पछिताइ । कालहि कर्महि ईस्वरहि मिथ्या दोष लगाइ ॥ ४३ ॥
Chaupai / चोपाई
एहि तन कर फल बिषय न भाई। स्वर्गउ स्वल्प अंत दुखदाई ॥ नर तनु पाइ बिषयँ मन देहीं। पलटि सुधा ते सठ बिष लेहीं ॥
ताहि कबहुँ भल कहइ न कोई। गुंजा ग्रहइ परस मनि खोई ॥ आकर चारि लच्छ चौरासी। जोनि भ्रमत यह जिव अबिनासी ॥
फिरत सदा माया कर प्रेरा। काल कर्म सुभाव गुन घेरा ॥ कबहुँक करि करुना नर देही। देत ईस बिनु हेतु सनेही ॥
नर तनु भव बारिधि कहुँ बेरो। सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो ॥ करनधार सदगुर दृढ़ नावा। दुर्लभ साज सुलभ करि पावा ॥
Doha / दोहा
दो. जो न तरै भव सागर नर समाज अस पाइ । सो कृत निंदक मंदमति आत्माहन गति जाइ ॥ ४४ ॥
Chaupai / चोपाई
जौं परलोक इहाँ सुख चहहू। सुनि मम बचन ह्रृदयँ दृढ़ गहहू ॥ सुलभ सुखद मारग यह भाई। भगति मोरि पुरान श्रुति गाई ॥
ग्यान अगम प्रत्यूह अनेका। साधन कठिन न मन कहुँ टेका ॥ करत कष्ट बहु पावइ कोऊ। भक्ति हीन मोहि प्रिय नहिं सोऊ ॥
भक्ति सुतंत्र सकल सुख खानी। बिनु सतसंग न पावहिं प्रानी ॥ पुन्य पुंज बिनु मिलहिं न संता। सतसंगति संसृति कर अंता ॥
पुन्य एक जग महुँ नहिं दूजा। मन क्रम बचन बिप्र पद पूजा ॥ सानुकूल तेहि पर मुनि देवा। जो तजि कपटु करइ द्विज सेवा ॥
Doha / दोहा
दो. औरउ एक गुपुत मत सबहि कहउँ कर जोरि । संकर भजन बिना नर भगति न पावइ मोरि ॥ ४५ ॥
Chaupai / चोपाई
कहहु भगति पथ कवन प्रयासा। जोग न मख जप तप उपवासा ॥ सरल सुभाव न मन कुटिलाई। जथा लाभ संतोष सदाई ॥
मोर दास कहाइ नर आसा। करइ तौ कहहु कहा बिस्वासा ॥ बहुत कहउँ का कथा बढ़ाई। एहि आचरन बस्य मैं भाई ॥
बैर न बिग्रह आस न त्रासा। सुखमय ताहि सदा सब आसा ॥ अनारंभ अनिकेत अमानी। अनघ अरोष दच्छ बिग्यानी ॥
प्रीति सदा सज्जन संसर्गा। तृन सम बिषय स्वर्ग अपबर्गा ॥ भगति पच्छ हठ नहिं सठताई। दुष्ट तर्क सब दूरि बहाई ॥
Doha / दोहा
दो. मम गुन ग्राम नाम रत गत ममता मद मोह । ता कर सुख सोइ जानइ परानंद संदोह ॥ ४६ ॥
Chaupai / चोपाई
सुनत सुधासम बचन राम के। गहे सबनि पद कृपाधाम के ॥ जननि जनक गुर बंधु हमारे। कृपा निधान प्रान ते प्यारे ॥
तनु धनु धाम राम हितकारी। सब बिधि तुम्ह प्रनतारति हारी ॥ असि सिख तुम्ह बिनु देइ न कोऊ। मातु पिता स्वारथ रत ओऊ ॥
हेतु रहित जग जुग उपकारी। तुम्ह तुम्हार सेवक असुरारी ॥ स्वारथ मीत सकल जग माहीं। सपनेहुँ प्रभु परमारथ नाहीं ॥
सबके बचन प्रेम रस साने। सुनि रघुनाथ हृदयँ हरषाने ॥ निज निज गृह गए आयसु पाई। बरनत प्रभु बतकही सुहाई ॥
Doha / दोहा
दो. -उमा अवधबासी नर नारि कृतारथ रूप । ब्रह्म सच्चिदानंद घन रघुनायक जहँ भूप ॥ ४७ ॥
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